श्रीराम का वनवास ख़त्म हो चुका था । एक बार श्रीराम ब्राम्हणों को भोजन करा रहे थे तभी भगवान शिव ब्राम्हण वेश में वहाँ आये। श्रीराम ने लक्ष्मण ...
श्रीराम का वनवास ख़त्म हो चुका था । एक बार श्रीराम ब्राम्हणों को भोजन करा रहे थे तभी भगवान शिव ब्राम्हण वेश में वहाँ आये। श्रीराम ने लक्ष्मण और हनुमान सहित उनका स्वागत किया और उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया। भगवान शिव भोजन करने बैठे किन्तु उनकी क्षुधा को कौन बुझा सकता था ? बात हीं बात में श्रीराम का सारा भण्डार खाली हो गया।
लक्ष्मण और हनुमान ये देख कर चिंतित हो गए और आश्चर्य से भर गए। एक ब्राम्हण उनके द्वार से भूखे पेट लौट जाये ये तो बड़े अपमान की बात थी।उन्होंने श्रीराम से और भोजन बनवाने की आज्ञा मांगी। श्रीराम तो सब कुछ जानते हीं थे, उन्होंने मुस्कुराते हुए लक्ष्मण से देवी सीता को बुला लाने के लिए कहा। सीता जी वहाँ आयी और ब्राम्हण वेश में बैठे भगवान शिव का अभिवादन किया।
श्रीराम ने मुस्कुराते हुए सीता जी को सारी बातें बताई और उन्हें इस परिस्थिति का समाधान करने को कहा। सीता जी अब स्वयं महादेव को भोजन कराने को उद्धत हुई। उनके हाथ का पहला ग्रास खाते हीं भगवान शिव संतुष्ट हो गए। भोजन के उपरान्त भगवान शिव ने श्रीराम से कहा कि आकण्ठ भोजन करने के कारण वे स्वयं उठने में असमर्थ हैं इसी कारण कोई उन्हें उठा कर शैय्या पर सुला दे।
श्रीराम की आज्ञा से हनुमान महादेव को उठाने लगे मगर आश्चर्य, एक विशाल पर्वत को बात हीं बात में उखाड़ देने वाले हनुमान, जिनके बल का कोई पार हीं नहीं था, महादेव को हिला तक नहीं सके। भला रुद्रावतार रूद्र की शक्ति से कैसे पार पा सकते थे ? हनुमान लज्जित हो पीछे हट गए।
फिर श्रीराम की आज्ञा से लक्ष्मण ये कार्य करने को आये। अब तक वो ये समझ चुके थे कि ये कोई साधारण ब्राम्हण नहीं हैं। अनंत की शक्ति भी अनंत हीं थी। परमपिता ब्रम्हा, नारायण और महादेव का स्मरण करते हुए लक्ष्मण ने उन्हें उठा कर शैय्या पर लिटा दिया।
लेटने के बाद भगवान शिव ने श्रीराम से सेवा करने को कहा। स्वयं श्रीराम लक्ष्मण और हनुमान के साथ भगवान शिव की पाद सेवा करने लगे। देवी सीता ने महादेव को पीने के लिए जल दिया। महादेव ने आधा जल पिया और बांकी जल का कुल्ला देवी सीता पर कर दिया।
देवी सीता ने हाथ जोड़ कर कहा कि हे ब्राम्हणदेव, आपने अपने जूठन से मुझे पवित्र कर दिया। ऐसा सौभाग्य तो बिरलों को प्राप्त होता है। ये कहते हुए देवी सीता उनके चरण स्पर्श करने बढ़ी, तभी महादेव अपने असली स्वरुप में आ गए। महाकाल के दर्शन होते हीं सभी ने करबद्ध हो उन्हें नमन किया।
भगवान शिव ने श्रीराम को अपने ह्रदय से लगाते हुए कहा कि आप सभी मेरी परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। ऐसे कई अवसर थे जब किसी भी मनुष्य को क्रोध आ सकता था किन्तु आपने अपना संयम नहीं खोया। इसी कारण संसार आपको मर्यादा पुरुषोत्तम कहता है। उन्होंने श्रीराम को वरदान मांगने को कहा किन्तु श्रीराम ने हाथ जोड़ कर कहा कि आपके आशीर्वाद से मेरे पास सब कुछ है।
अगर आप कुछ देना हीं चाहते हैं तो अपने चरणों में सदा की भक्ति का आशीर्वाद दीजिये। महादेव ने मुस्कुराते हुए कहा कि आप और मैं कोई अलग नहीं हैं किन्तु फिर भी देवी सीता ने मुझे भोजन करवाया है इसीलिए उन्हें कोई वरदान तो माँगना हीं होगा। देवी सीता ने कहा कि हे भगवान, अगर आप हमसे प्रसन्न हैं तो कुछ काल तक आप हमारे राजसभा में कथावाचक बनकर रहें। उसके बाद कुछ काल तक भगवान शिव श्रीराम की सभा में कथा सुना कर सबको कृतार्थ करते रहे ।
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