रावण द्वारा रचित अद्भुत शिव ताण्डव स्तोत्र हिन्दी व्याख्या सहित

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
By -

 शिव तांडव स्त्रोत

जटाटवीगलज्जवलप्रवाहपावितस्थले 

गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम् । 

डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं 

चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥1॥

   सघन जटामंडल रूप वन से प्रवाहित होकर श्री गंगाजी की धाराएँ जिन शिवजी के पवित्र कंठ प्रदेश को प्रक्षालित (धोती) करती हैं, और जिनके गले में लंबे-लंबे बड़े-बड़े सर्पों की मालाएँ लटक रही हैं तथा जो शिवजी डमरू को डम- डम बजाकर प्रचंड तांडव नृत्य करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्याण करें।

जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।

विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि । 

धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके 

किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥

  अति अम्भीर कटाहरूप जटाओं में अतिवेग से विलासपूर्वक भ्रमण करती हुई देवनदी गंगाजी की चंचल लहरें जिन शिवजी के शीश पर लहरा रही हैं तथा जिनके मस्तक में अग्नि की प्रचंड ज्वालाएँ धधक कर प्रज्वलित हो रही हैं, ऐसे बाल चंद्रमा से विभूषित मस्तक वाले शिवजी में मेरा अनुराग (प्रेम) प्रतिक्षण बढ़ता रहे।


#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!