नववर्षा भवेद्दुर्गा सुभद्रा दशवार्षिकी ।
क्रूरशत्रुविनाशार्थं तथोग्रकर्मसाधने ।
दुर्गाञ्च पूजयेद्भक्त्या परलोकसुखाय च ।।
वाञ्छितार्थस्य सिद्ध्यर्थं सुभद्रां पूजयेत्सदा ।
देवीभागवत ३/२६/४३,५०,५१
"नवरात्री में कन्यापूजन में नव वर्ष की कन्या 'दुर्गा' कहलाती है, क्रूर शत्रु के विनाश एवं उग्र कर्म की साधना के निमित्त, परलोक में सुख पाने के लिए 'दुर्गा' नामक कन्या की भक्ति पूर्वक आराधना करनी चाहिए । दस वर्ष की कन्या 'सुभद्रा' कहलाती है, मनुष्य को अपने मनोरथ की सिद्धि के लिए सुभद्रा की सदा पूजा करनी चाहिए।"
तेन प्राप्ताऽथ वैदेही कृत्वा सेतुं महार्णवे ।
हत्वा मन्दोदरीनाथं कुम्भकर्णं महाबलम् ।।
मेघनादं सुतं हत्वा कृत्वा भूपं बिभीषणम् ।
पश्चादयोध्यामागत्य प्राप्तं राज्यमकण्टकम् ।।
देवीभागवत ०३/२७/५१-५२
‘‘नवरात्रि व्रत के प्रभाव से श्रीरामजी ने महासागर पर सेतु की रचना कर महाबली मन्दोदरीपति रावण, कुम्भकर्ण तथा रावणपुत्र मेघनाद का संहार करके सीताजी को प्राप्त किया । विभीषण को लंका का राजा बनाकर पुनः अयोध्या लौटकर उन्होंने निष्कण्टक राज्य प्राप्त किया ।‘‘
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