ईश्वर और विश्वास

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
0

   एक पंडित जी समुद्री जहाज से यात्रा कर रहे थे, रास्ते में एक रात तूफान आने से जहाज को एक द्वीप के पास लंगर डालना पडा। सुबह पता चला कि रात आये तुफान में जहाज में कुछ खराबी आ गयी है। जहाज को एक दो दिन वहीं रोक कर उसकी मरम्मत करनी पडेगी।

       पंडित जी नें सोचा क्यों ना एक छोटी बोट से द्वीप पर चल कर घूमा जाये अगर कोई मिल जाये तो उस तक प्रभु का संदेश पहँचाया जाय और उसे प्रभु का मार्ग बता कर प्रभु से मिलाया जाये। इस प्रकार पण्डितजी जहाज के कैप्टन से इज़ाज़त ले कर एक छोटी बोट से द्वीप पर गये । वहाँ इधर उधर घूमते हुए तीन द्वीपवासियों से मिले जो बरसों से उस सूने द्वीप पर रहते थे। पंडित जी उनके पास जा कर बातचीत करने लगे ।

   पण्डित जी ने उन द्वीप वासियों से ईश्वर और उनकी आराधना पर चर्चा की  उन्होंने उनसे पूछा- “क्या आप ईश्वर को मानते हैं ?

वे सब बोले- “हाँ.. ।

फिर उन्होंने ने पूछा- “आप ईश्वर की आराधना कैसे करते हैं ?"

उन्होंने बताया- ''हम अपने दोनो हाथ जोड़ करके कहते हैं  -हे ईश्वर हम आपके हैं आपको याद करते हैं आप भी हमें याद रखना" ।

पंडित जी ने कहा- "यह प्रार्थना तो ठीक नही है।"

एक ने कहा- "तो आप हमें सही प्रार्थना सिखा दीजिये।"* उन्होंने ने उन सबों को धार्मिक पुस्तके पढना और प्रार्थना करना सिखाया। तब तक जहाज बन गया। पंडित जी अपनी यात्रा पर आगे बढ गये।

तीन दिन बाद  पंडित जी ने जहाज के डेक पर टहलते हुए देखा, वह तीनो द्वीपवासी जहाज के पीछे-पीछे पानी पर दौडते हुवे आ रहे हैं। उन्होने हैरान होकर जहाज रुकवाया, और उन्हे ऊपर चढवाया। 

    फिर उनसे इस तरह आने का कारण पूछा- “वे बोले - ''!! आपने हमें जो प्रार्थना सिखाई थी, हम उसे अगले दिन ही भूल गये। इसलिये आपके पास उसे दुबारा सीखने आये हैं, हमारी मदद कीजिये।"

उन्होंने कहा- " ठीक है, पर यह तो बताओ तुम लोग पानी पर कैसे दौड सके?"

उसने कहा- "हम आपके पास जल्दी पहुँचना चाहते थे, सो हमने ईश्वर से विनती करके मदद माँगी और कहा - "हे ईश्वर!! दौड़ तो हम लेगें  बस आप हमें गिरने मत देना ! और बस दौड पडे।

अब पंडित जी सोच में पड गये.. उन्होने कहा- "आप लोग और ईश्वर पर आपका विश्वास धन्य है। आपको अन्य किसी प्रार्थना की आवश्यकता नहीं है। आप पहले कि तरह प्रार्थना करते रहें।"

ये कहानी बताती है कि ईश्वर पर विश्वास, ईश्वर की आराधना प्रणाली से अधिक महत्वपूर्ण है॥

संत कबीरदास ने कहा है - 

“माला फेरत जुग गया,

फिरा ना मन का फेर ।

कर का मनकाडारि दे, 

मन का मनका फेर॥“

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

thanks for a lovly feedback

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top