एक फकीर था नसरुद्दीन। वह जब फकीर नहीं हुआ था तो किसी गांव में किसी जंगल के पास एक छोटी सी दुकान करता था, एक होटल चलाता था। उस देश का राज...
एक फकीर था नसरुद्दीन। वह जब फकीर नहीं हुआ था तो किसी गांव में किसी जंगल के पास एक छोटी सी दुकान करता था, एक होटल चलाता था। उस देश का राजा एक बार जंगल में शिकार करने को निकला, भटक गया और भूल से रात उस गांव में पहुंच गया। छोटा सा दो-चार झोपड़ों का गांव था जहां नसरुद्दीन की दुकान थी। रात वहीं ठहरना पड़ा। सुबह उठ कर उसने दो-चार अंडे उस दुकान से खरीदे और पीछे पूछा कि कितने दाम हैं? तो नसरुद्दीन ने कहा, सौ स्वर्ण अशर्फियां।
राजा तो हैरान हो गया! उसने कहा कि बड़ी आश्चर्य की बात है! आर ऐग्स सो रेयर हियर? क्या मुर्गी के अंडे इतनी मुश्किल से यहां मिलते हैं कि चार अंडों के दाम सौ स्वर्ण अशर्फियां? दो-चार पैसे में मिल जाते हैं राजधानी में तो ये।
नसरुद्दीन ने कहा, ऐग्स आर नॉट रेयर सर, बट किंग्स आर! अंडे तो मुश्किल से यहां नहीं मिलते, लेकिन राजा-महाराजा मुश्किल से इधर आते हैं। उस राजा ने फौरन सौ रुपये निकाल कर दे दिए।
वह राजा गया भी नहीं था कि नसरुद्दीन की पत्नी ने पूछा, बड़ी हैरानी की बात है कि उसने फिर कुछ भी नहीं कहा और सौ रुपये निकाल कर दे दिए।
नसरुद्दीन ने कहा, मैं आदमी की कमजोरी जानता हूं। राजा बहुत मुश्किल से आते हैं। बस फिर कमजोरी के बिंदु को छू लिया। और नसरुद्दीन ने कहा कि एक बार और ऐसी घटना घटी थी।
मैं एक राजदरबार में गया था। मैंने एक पगड़ी पहन रखी थी जो बड़ी सस्ती थी, लेकिन बड़ी रंगीन थी, बड़ी चमकदार थी। अक्सर ऐसा होता है, सस्ती चीजें रंगीन और चमकदार होती हैं। रंगीन और चमकदार होने में उनका सस्तापन छिप जाता है। तो एक सस्ती पगड़ी पहन कर मैं राजदरबार में गया था। चमकदार पगड़ी को देख कर सम्राट ने मुझसे पूछा, कितने की है? मैंने कहा, एक हजार रुपये की। वह राजा चकित हो गया! दस-पांच रुपया भी उसका मूल्य नहीं था। राजा के बड़े वजीर ने राजा के कान में कहा कि यह आदमी बहुत बेईमान मालूम होता है। यह दो-चार रुपये की पगड़ी है, कहीं इसकी बातों में मत आ जाना। तभी मैंने कहा कि महाराज, मैं जाऊं? मैंने यह पगड़ी खरीदी थी एक हजार रुपये में और मुझे कहा गया था कि इस जमीन पर एक ऐसा महाराजा भी है जो इसे दो हजार रुपये में भी खरीद सकता है। तो मैं जाऊं? यह वह दरबार नहीं है, यह वह महाराजा नहीं है। मैं भूल से आ गया। किसी और दरबार में खोजूं, कोई और महाराजा को ढूंढूं जो इसे दो हजार में खरीद सके। वह आप नहीं मालूम होते, यह दरबार वह नहीं मालूम होता। उस राजा ने कहा, दो हजार रुपये दे दो और पगड़ी खरीद लो।
वह पगड़ी खरीद ली गई और दो हजार रुपये दे दिए गए। जब मैं बाहर निकलता था, उस वजीर ने मुझसे कहा कि तुम बड़े अजीब आदमी हो! मैंने उस वजीर के कान में कहा कि महानुभाव, आप पगड़ियों के दाम जानते होंगे, मैं आदमियों की कमजोरी जानता हूं।
आदमी बड़ा कमजोर है एक बिंदु पर। अहंकार के बिंदु पर सारी कमजोरी है, सारी वीकनेस है। लेकिन उसको ही हम समझते हैं कि वही है हमारा बल, वही है हमारी स्टें्रग्थ, वही है हमारी शक्ति। कमजोरी को ही अगर कोई शक्ति समझ बैठा हो तो फिर कमजोरी से छुटकारा होना असंभव है और बीमारी को किसी ने स्वास्थ्य समझ लिया हो, तब तो बड़ी कठिनाई है। लेकिन हम सारे लोग कमजोरी को ही बल समझे हुए हैं। और उसको बल मान कर जीवन भर उसी के इर्द-गिर्द घूमते हैं, परिभ्रमण करते हैं। और यह भी नहीं देखते कि उसी परिभ्रमण से सारा दुख, सारी अशांति, सारी बेचैनी, सारी पीड़ा पैदा होती है।
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