कन्याके विवाहकालमें ब्राह्मणलोग यह प्रतिज्ञा करवाते हैं कि तू पतिके जीवन और मरणमें भी उनकी सहचरी होकर रह । जैसे साँप पकड़नेवाला मनुष्य ...
कन्याके विवाहकालमें ब्राह्मणलोग यह प्रतिज्ञा करवाते हैं कि तू पतिके जीवन और मरणमें भी उनकी सहचरी होकर रह । जैसे साँप पकड़नेवाला मनुष्य साँपको बलपूर्वक बिलसे बाहर निकाल लेता है, उसी प्रकार सती स्त्री अपने पतिको बलपूर्वक यमदूतोंके हाथसे छीनकर स्वर्गमें ले जाती है । पतिव्रता स्त्रीको देखकर यमदूत भाग जाते हैं, सूर्य भी उसके तेजसे सन्तप्त होते हैं और अग्निदेव भी उसके तेजकी आँचसे जलने लगते हैं । पतिव्रताका तेज देखकर सम्पूर्ण तेज काँप उठते हैं। अपने शरीरमें जितने रोएँ हैं, उतने करोड़ अयुत वर्षोंतक वह पतिके साथ स्वर्गसुख भोगती है और विहार करती है
पति के कर्म पति के हाथ हैं पर पति के दुष्कर्म से पत्नी को शिक्षा नहीं नहीं चाहिए। संसारमें वह माता धन्य है, वह पिता धन्य है और वह पति धन्य है, जिनके घरमें पतिव्रता स्त्री शोभा पाती है। केवल पतिव्रता नारीके पुण्यसे उसके पिता, माता और पति- इन तीनों कुलोंकी तीन-तीन पीढ़ियाँ स्वर्गीय सुख भोगती हैं।
कुलटा (दुराचारिणी) स्त्रियाँ अपना शीलभंग करनेके कारण पिता-माता और पति तीनों कुलोंको नरकमें गिराती हैं और स्वयं भी इहलोक तथा परलोकमें दुःख भोगती हैं।
पतिव्रताका चरण साक्षात् श्रीपार्वती और श्रीराधा का चरण है जहाँ-जहाँ धरतीका स्पर्श करता है, वह स्थान तीर्थभूमिकी भाँति मान्य है। इसमें तनिक भी संदेह नहीं।
वहाँ भूमिपर कोई भार नहीं रहता। वह स्थान परम पावन हो जाता है। सूर्य भी डरते-डरते अपनी किरणोंसे पतिव्रताका स्पर्श करते हैं। चन्द्रमा अपनेको पवित्र करनेके लिये ही उसका स्पर्श करते हैं। जल सदा पतिव्रता देवीके चरणस्पर्शकी अभिलाषा रखता है। वह जानता है कि पतिव्रता गायत्रीदेवीके द्वारा जो हमारे पापका नाश होता है, उसमें उस देवीका पातिव्रत्य ही कारण है। पातिव्रत्यके बलसे ही वह हमारे पापोंका नाश करती है। क्या घर-घरमें अपने रूप और लावण्यपर गर्व करनेवाली नारियाँ नहीं हैं ? परंतु पतिव्रता स्त्री भगवान् विश्वेश्वरकी भक्तिसे ही प्राप्त होती हैं। गृहस्थ आश्रमका मूल ऐसी सुभार्या ही है गृहस्थ के सुखका मूल कारण पतिव्रता नियम वाली भार्या ही है, धर्मफलकी प्राप्ति तथा उत्तम सन्तानवृद्धिका कारण भी पतिव्रता से युक्त भार्या ही है जिसके घर पतिव्रता पत्नी नहीं उसका गृहस्थाश्रम तपोवन न होकर भूत और प्रेतों के रहने का स्थान बन जाता है । जिसका प्रभाव संतान और सुख पर भी पड़ता है और उसकी श्री दुर्घटना या रोग के कारण वैद्य के यहाँ नष्ट होती है।
पतिकी आयु बढ़नेकी इच्छा रखनेवाली पतिव्रता स्त्री हल्दी, कुंकुम, सिन्दूर, कज्जल, चोली, पान, मांगलिक आभूषण, केशोंके शृंगार तथा हाथ और कान आदिके आभूषण अपने शरीरसे कभी अलग न करे। | जितने अधिक समय तक वह यह आभूषण काजल, केशों का श्रृंगार आदि धारण किये रहती है उसी के अनुसार उसके पति की आयु का निर्धारण होता है । अतः पत्नि का स्वभाव ही पति की आयु है।
पत्नी बात बात पर कोप भवन में ( श्रृंगार उतारकर)न जाये, बात बात पर पति से उदास न हों अन्यथा पति की मृत्यु के बाद उसका जीवन नीरस और दरिद्रता का शिकार हो जाता है।
पतिसे विद्वेष रखनेवाली स्त्रीसे पतिव्रता नारी कभी बातचीत न करे। कभी अकेली न रहे और पूरे वस्त्र निकालकर कभी न नहाये । ओखली, मूसल, झाडू, सिलवट, चक्की और चौकठ (देहली) - पर सती स्त्री कभी न बैठे। पतिके सम्मुख धृष्टता न करे।
इस प्रकार की नियमों वाली और मधुरभाषी पत्नी ही पति को यमराज के मुख से सदा ही बचाती है। शंखचूड या जालंधर जैसा पाप करने पर भी पतिव्रता का पति सुरक्षित रहता है।
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