Secure Page

Welcome to My Secure Website

This is a demo text that cannot be copied.

No Screenshot

Secure Content

This content is protected from screenshots.

getWindow().setFlags(WindowManager.LayoutParams.FLAG_SECURE, WindowManager.LayoutParams.FLAG_SECURE); Secure Page

Secure Content

This content cannot be copied or captured via screenshots.

Secure Page

Secure Page

Multi-finger gestures and screenshots are disabled on this page.

getWindow().setFlags(WindowManager.LayoutParams.FLAG_SECURE, WindowManager.LayoutParams.FLAG_SECURE); Secure Page

Secure Content

This is the protected content that cannot be captured.

Screenshot Detected! Content is Blocked

ON SPOT$type=blogging$m=0$cate=0$sn=0$rm=0$c=2$va=0

Search This Blog

समदुःखसुख: स्वस्थ: समलोष्टाश्मकांचनः। तुल्यप्रियाप्रियो धीरस्तुल्यनिन्दात्मसंस्तुतिः।। मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयो:।सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीतः स उच्यते।।

SHARE:

   और जो निरंतर आत्म-भाव में स्थित हुआ, दुख-सुख को समान समझने वाला है तथा मिट्टी, पत्थर और सुवर्ण में समान भाव वाला और धैर्यवान है; तथा जो प...

   और जो निरंतर आत्म-भाव में स्थित हुआ, दुख-सुख को समान समझने वाला है तथा मिट्टी, पत्थर और सुवर्ण में समान भाव वाला और धैर्यवान है; तथा जो प्रिय और अप्रिय को बराबर समझता है और अपनी निंदा-स्तुति में भी समान भाव वाला है।

   तथा जो मान और अपमान में सम है एवं मित्र और वैरी के पक्ष में भी सम है, वह संपूर्ण आरंभों में कर्तापन के अभिमान से रहित हुआ पुरुष गुणातीत कहा जाता है।

 ओशो समझाते हैं कि “कृष्ण कह रहे हैं कि जिस दिन कोई जान लेता है कि गुण ही गुण में बर्त रहे हैं, मैं पृथक हूं, मैं कुछ भी नहीं कर रहा हूं, मैं करने वाला ही नहीं हूं, जिस दिन ऐसा द्रष्टा-भाव गहन हो जाता है, उसी दिन व्यक्ति गुणातीत अवस्था को उपलब्ध हो जाता है। उसी दिन वह सच्चिदानंदघन हो जाता है, उसी क्षण।

  रुकने की वासना भी चलने की वासना का हिस्सा है। रुकना भी चलने का एक ढंग है; क्योंकि रुकना भी एक क्रिया है। तो ऐसा व्यक्ति जिसकी प्रवृत्ति खो गई है...।

  ध्यान रहे, हम तो हमेशा विपरीत में सोचते हैं, इसलिए कठिनाई होती है। हम सोचते हैं, जिसकी प्रवृत्ति खो गई है, वह निवृत्ति को साधेगा। निवृत्ति भी प्रवृत्ति का एक रूप है। कुछ करना भी कर्ता-भाव है; और कुछ न करने का आग्रह करना भी कर्ता-भाव है। अगर मैं कहता हूं कि यह मैं न करूंगा, तो इसका अर्थ यह हुआ कि मैं मानता हूं कि यह मैं कर सकता था। यह भी मैं मानता हूं कि यह मेरा कर्तृत्व है; चाहूं तो करूं, और चाहूं तो न करूं।

   लेकिन साक्षी का अर्थ है कि न तो मैं कर सकता हूं, और न नहीं कर सकता हूं। न तो प्रवृत्ति मेरी है, न निवृत्ति मेरी है। प्रवृत्ति भी गुणों की है और निवृत्ति भी गुणों की है। गुण ही बर्त रहे हैं। वे ही चल रहे हैं; वे ही रुक जाएंगे। तो जब तक चल रहे हैं, मैं उन्हें चलता हुआ देखूंगा। और जब रुक जाएंगे, तब मैं उन्हें रुका हुआ देखूंगा। जब तक जीवन है, तब तक मैं जीवन का साक्षी; और जब मृत्यु होगी, तब मैं मृत्यु का साक्षी रहूंगा। कर्ता मैं न बनूंगा।

   इसलिए निवृत्ति को आप मत सोचना कि वह वास्तविक निवृत्ति है। अगर उसमें कर्ता का भाव है, तो वह प्रवृत्ति का ही शीर्षासन करता हुआ रूप है। वह उसका ही उलटा रूप है। कोई दौड़ रहा था कर्ता-भाव से, कोई खड़ा है कर्ता-भाव से; लेकिन कर्ता-भाव मौजूद है।

   बुद्ध ने सही कहा है कि न तो मैं प्रवृत्त हूं अब और न निवृत्त; न तो मैं गृहस्थ हूं अब और न संन्यस्त; न तो मैं कुछ पकड़े हूं और न मैं कुछ छोड़ता हूं।

   इसे ठीक से ख्याल में ले लें, क्योंकि जीवन के बहुत पहलुओं पर यही अड़चन है। हम सोचते हैं कि कुछ कर रहे हैं, इसको न करें। हमारा ध्यान क्रिया पर लगा है, हमारा ध्यान कर्ता पर नहीं है। क्योंकि करने में भी मैं कर्ता हूं; न करने में भी मैं कर्ता हूं।

   सारी चेष्टा द्रष्टा पुरुषों की यह है कि कर्ता का भाव मिट जाए। मैं होने दूं, करूं न। जो हो रहा है, उसे होने दूं; उसमें कुछ छेड़छाड़ भी न करूं। जहां कर्म जा रहे हों, जहां गुण जा रहे हों, उन्हें जाने दूं। मैं उन पर सारी पकड़ छोड़ दूं।

  इसीलिए संतत्व अति कठिन हो जाता है। साधुता कठिन नहीं है। क्योंकि साधुता निवृत्ति साधती है। वह प्रवृत्ति के विपरीत है। वह गृहस्थ के विपरीत है। वहां कुछ करने को शेष है, विपरीत करने को शेष है। कोई हिंसा कर रहा है, आप अहिंसा कर रहे हैं। कोई धन इकट्ठा कर रहा है, आप त्याग कर रहे हैं। कोई महल बना रहा है, आप झोपड़े की तरफ जा रहे हैं। कोई शहर की तरफ आ रहा है, आप जंगल की तरफ जा रहे हैं। वहां कुछ काम शेष है।

  मन को काम चाहिए। अगर धन इकट्ठा करना बंद कर दें, तो मन कहेगा, बांटना शुरू करो। लेकिन कुछ करो। करते रहो, तो मन जिंदा रहेगा। इसलिए मन तत्काल ही विपरीत क्रियाएं पकड़ा देता है।

  स्त्रियों के पीछे भागो। अगर इससे रुकना है, तो मन कहता है, स्त्रियों से भागो। मगर भागते रहो। क्योंकि मन का संबंध स्त्री से नहीं है, भागने से है। या तो स्त्री की तरफ भागो, या स्त्री की तरफ पीठ करके भागो, लेकिन भागो। अगर भागते रहे, तो कर्तापन बना रहेगा। अगर भागना रुका, तो कर्तापन रुक जाएगा।

   तो मन ऐसे समय तक भी दौड़ाता रहता है, जब कि दौड़ने में कोई अर्थ भी नहीं रह जाता है।

   मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन अपने चिकित्सक के पास गया। तब वह बहुत बूढ़ा हो गया था। नब्बे वर्ष उसकी उम्र थी। जीर्ण-शीर्ण उसका शरीर हो गया था। आंखों से ठीक दिखाई भी नहीं पड़ता था। हाथ से लकड़ी टेक-टेक बामुश्किल चल पाता था।

   अपने चिकित्सक से उसने कहा कि मैं बड़ी दुविधा में और बड़ी मुश्किल में पड़ा हूं। कुछ करें। चिकित्सक ने पूछा कि तकलीफ क्या है? नसरुद्दीन ने कहा कि संकोच होता है कहते, लेकिन अपने चिकित्सक को तो बात कहनी ही पड़ेगी। मैं अभी भी स्त्रियों का पीछा करता हूं। इतना बूढ़ा हो गया हूं, अब यह कब रुकेगा? मैं अभी भी स्त्रियों का पीछा कर रहा हूं। आंखों से दिखाई नहीं पड़ता, पैरों से चल नहीं सकता; लेकिन स्त्रियों का पीछा करता हूं!

   उसके चिकित्सक ने कहा, नसरुद्दीन, चिंता मत करो। यह कोई बीमारी नहीं है। यह तुम्हारे स्वस्थ होने का प्रतीक है कि अभी भी तुम जिंदा हो नब्बे साल में! इससे तुम्हें दुखी नहीं होना चाहिए।

    नसरुद्दीन ने कहा कि वह मेरा दुख भी नहीं है। तुम फिर गलत समझे। तकलीफ यह है कि मैं स्त्रियों का पीछा तो करता हूं, लेकिन यह भूल गया हूं कि पीछा क्यों कर रहा हूं। आई चेज वीमेन, बट आई कांट रिमेंबर व्हाय। तकलीफ मेरी यह है कि मुझे अब याद नहीं पड़ता कि मैं किसलिए पीछा कर रहा हूं। और अगर स्त्री को पकड़ भी लिया, तो करूंगा क्या! यह मुझे याद नहीं रहा है।

    जिंदगी में आपकी बहुत-सी क्रियाएं एक न एक दिन इसी जगह पहुंच जाती हैं, जब आप करते रहते हैं, और अर्थ भी खो जाता है, स्मृति भी खो जाती है कि क्यों कर रहे हैं। लेकिन पुराना मोमेंटम है, गति है। पहले दौड़ता रहा है, दौड़ता रहा है। अब दौड़ने का अर्थ खो गया; मंजिल भी खो गई; अब प्रयोजन भी न रहा। लेकिन पुरानी आदत है, दौड़े चला जा रहा है।

    शरीर के साथ, शरीर के गुणों के साथ यही घटना घटती है। रस्सी जल भी जाती है, तो उसकी अकड़ शेष रह जाती है। जली हुई, राख पड़ी हुई लकड़ी में भी उसकी पुरानी अकड़ का ढंग तो बना ही रहता है। अब आप जाग भी जाते हैं, होश से भी भर जाते हैं, तो भी गुणों की पुरानी रेखाएं चारों तरफ बनी रहती हैं। और उनमें पुरानी गति का वेग है, वे चलती रहती हैं। फर्क यह पड़ जाता है कि अब आप उनको नया वेग नहीं देते। यह क्रांतिकारी मामला है। यह छोटी घटना नहीं है।

   आप उनको नया वेग नहीं देते। आप उनमें नया रस नहीं लेते। अब वे चलती भी हैं, तो अपने अतीत के कारण। और अतीत की शक्ति की सीमा है। अगर आप रोज वेग न दें, तो आज नहीं कल पुरानी शक्ति चुक जाएगी। अगर आप रोज शक्ति न दें...।

   आप पेट्रोल भरकर गाड़ी को चला रहे हैं। जितना पेट्रोल भरा है, उतना चुक जाएगा और गाड़ी रुक जाएगी। रोज पेट्रोल डालते चले जाते हैं, तो फिर चुकने का कोई अंत नहीं आता। आपने तय भी कर लिया कि अब पेट्रोल नहीं डालेंगे, तो पुराना पेट्रोल थोड़ी दूर काम देगा; सौ-पचास मील आप चल सकते हैं। बुद्ध को चालीस वर्ष में ज्ञान हो गया, लेकिन जन्मों-जन्मों में जो ईंधन इकट्ठा किया है, वह चालीस वर्ष तक शरीर को और चला गया। उस चालीस वर्ष में शरीर अपने गुणों में बर्तेगा, बुद्ध सिर्फ देखने वाले हैं।

   द्रष्टा और भोक्ता, द्रष्टा और कर्ता, इसके भेद को ख्याल में ले लें, तो अड़चन नहीं रह जाएगी। अगर आप कर्ता हो जाते हैं, भोक्ता हो जाते हैं, तो आप नया वेग दे रहे हैं। आपने ईंधन डालना शुरू कर दिया। अगर आप सिर्फ द्रष्टा रहते हैं, तो नया वेग नहीं दे रहे हैं। पुराने वेग की सीमा है, वह कट जाएगी। और जिस दिन पुराना वेग चुक जाएगा, शरीर गिर जाएगा; गुण वापस प्रकृति में मिल जाएंगे, और आप सच्चिदानंदघनरूप परमात्मा में।”

COMMENTS

BLOGGER

POPULAR POSTS$type=three$author=hide$comment=hide$rm=hide

TOP POSTS (30 DAYS)$type=three$author=hide$comment=hide$rm=hide

Name

about us,2,AKTU,1,BANK EXAM,1,Best Gazzal,1,bhagwat darshan,3,bhagwatdarshan,2,birthday song,1,BPSC,2,CBSE,2,computer,40,Computer Science,41,contact us,1,COURSES,1,CPD,1,darshan,16,Download,4,DRDO,1,EXAM,1,Financial education,2,Gadgets,1,GATE,1,General Knowledge,34,JEE MAINS,1,Learn Sanskrit,3,medical Science,1,Motivational speach,1,PAPER I,14,POINT I,5,POINT II,3,POINT III,2,POINT IV,2,POINT V,2,poojan samagri,4,Privacy policy,1,psychology,1,RECRUITMENT,9,Research techniques,41,RESULT,2,RPSC,1,RSMSSB,1,Science,1,solved question paper,3,sooraj krishna shastri,6,Sooraj krishna Shastri's Videos,60,SPORTS,4,SSC,1,SYLLABUS,1,TGT,1,UGC NET/JRF,16,UKPSC,1,UNIT I,13,UNIT II,1,University,1,UP PGT,1,UPSC,2,World News,1,अध्यात्म,202,अनुसन्धान,26,अन्तर्राष्ट्रीय दिवस,10,अभिज्ञान-शाकुन्तलम्,5,अष्टाध्यायी,1,आओ भागवत सीखें,16,आज का समाचार,46,आधुनिक विज्ञान,22,आधुनिक समाज,153,आयुर्वेद,49,आरती,8,ईशावास्योपनिषद्,21,उत्तररामचरितम्,35,उपनिषद्,34,उपन्यासकार,1,ऋग्वेद,16,ऐतिहासिक कहानियां,4,ऐतिहासिक घटनाएं,16,कथा,10,कबीर दास के दोहे,1,करवा चौथ,1,कर्मकाण्ड,123,कादंबरी श्लोक वाचन,1,कादम्बरी,2,काव्य प्रकाश,1,काव्यशास्त्र,32,किरातार्जुनीयम्,3,कृष्ण लीला,2,केनोपनिषद्,10,क्रिसमस डेः इतिहास और परम्परा,9,खगोल विज्ञान,3,गजेन्द्र मोक्ष,1,गीता रहस्य,2,ग्रन्थ संग्रह,1,चाणक्य नीति,2,चार्वाक दर्शन,4,चालीसा,6,जन्मदिन,1,जन्मदिन गीत,1,जयंती,1,जयन्ती,4,जीमूतवाहन,1,जैन दर्शन,3,जोक,6,जोक्स संग्रह,5,ज्योतिष,52,तन्त्र साधना,2,दर्शन,36,देवी देवताओं के सहस्रनाम,1,देवी रहस्य,1,धर्मान्तरण,5,धार्मिक स्थल,50,नवग्रह शान्ति,3,नीतिशतक,27,नीतिशतक के श्लोक हिन्दी अनुवाद सहित,7,नीतिशतक संस्कृत पाठ,7,न्याय दर्शन,18,परमहंस वन्दना,3,परमहंस स्वामी,2,पारिभाषिक शब्दावली,1,पाश्चात्य विद्वान,1,पुराण,1,पूजन सामग्री,7,पूजा विधि,2,पौराणिक कथाएँ,73,प्रत्यभिज्ञा दर्शन,1,प्रश्नोत्तरी,41,प्राचीन भारतीय विद्वान्,100,बर्थडे विशेज,5,बाणभट्ट,1,बौद्ध दर्शन,1,भगवान के अवतार,4,भजन कीर्तन,39,भर्तृहरि,18,भविष्य में होने वाले परिवर्तन,12,भागवत,4,भागवत : गहन अनुसंधान,29,भागवत अष्टम स्कन्ध,28,भागवत अष्टम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत एकादश स्कन्ध,31,भागवत एकादश स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत कथा,136,भागवत कथा में गाए जाने वाले गीत और भजन,7,भागवत की स्तुतियाँ,4,भागवत के पांच प्रमुख गीत,6,भागवत के श्लोकों का छन्दों में रूपांतरण,1,भागवत चतुर्थ स्कन्ध,31,भागवत चतुर्थ स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत तृतीय स्कंध(हिन्दी),13,भागवत तृतीय स्कन्ध,33,भागवत दशम स्कन्ध,91,भागवत दशम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत द्वादश स्कन्ध,13,भागवत द्वादश स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत द्वितीय स्कन्ध,10,भागवत द्वितीय स्कन्ध(हिन्दी),10,भागवत नवम स्कन्ध,38,भागवत नवम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत पञ्चम स्कन्ध,26,भागवत पञ्चम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत पाठ,58,भागवत प्रथम स्कन्ध,22,भागवत प्रथम स्कन्ध(हिन्दी),19,भागवत महात्म्य,3,भागवत माहात्म्य,18,भागवत माहात्म्य स्कन्द पुराण(संस्कृत),2,भागवत माहात्म्य स्कन्द पुराण(हिन्दी),2,भागवत माहात्म्य(संस्कृत),2,भागवत माहात्म्य(हिन्दी),9,भागवत मूल श्लोक वाचन,55,भागवत रहस्य,55,भागवत श्लोक,7,भागवत षष्टम स्कन्ध,19,भागवत षष्ठ स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत सप्तम स्कन्ध,15,भागवत सप्तम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत साप्ताहिक कथा,9,भागवत सार,35,भारतीय अर्थव्यवस्था,15,भारतीय इतिहास,22,भारतीय उत्सव,3,भारतीय दर्शन,5,भारतीय देवी-देवता,8,भारतीय नारियां,3,भारतीय पर्व,56,भारतीय योग,3,भारतीय विज्ञान,38,भारतीय वैज्ञानिक,2,भारतीय संगीत,2,भारतीय सम्राट,3,भारतीय संविधान,1,भारतीय संस्कृति,4,भाषा विज्ञान,16,मनोविज्ञान,4,मन्त्र-पाठ,8,मन्दिरों का परिचय,1,महा-शिव-रात्रि व्रत,6,महाकुम्भ 2025,7,महापुरुष,46,महाभारत रहस्य,35,महीसुर -महिमा -माला,4,मार्कण्डेय पुराण,1,मुक्तक काव्य,19,यजुर्वेद,3,युगल गीत,1,योग दर्शन,1,रघुवंश-महाकाव्यम्,5,राघवयादवीयम्,1,रामचरितमानस,5,रामचरितमानस की विशिष्ट चौपाइयों का विश्लेषण,129,रामायण के चित्र,19,रामायण रहस्य,66,राष्ट्रीय दिवस,6,राष्ट्रीयगीत,1,रील्स,7,रुद्राभिषेक,1,रोचक कहानियाँ,159,लघुकथा,38,लेख,184,वास्तु शास्त्र,14,वीरसावरकर,1,वेद,3,वेदान्त दर्शन,9,वैदिक कथाएँ,38,वैदिक गणित,2,वैदिक विज्ञान,2,वैदिक संवाद,23,वैदिक संस्कृति,33,वैशेषिक दर्शन,13,वैश्विक पर्व,10,व्रत एवं उपवास,41,शायरी संग्रह,4,शिक्षाप्रद कहानियाँ,130,शिव रहस्य,3,शिव रहस्य.,5,शिवमहापुराण,15,शिशुपालवधम्,2,शुभकामना संदेश,7,श्राद्ध,1,श्रीमद्भगवद्गीता,23,श्रीमद्भागवत महापुराण,17,सनातन धर्म,4,सरकारी नौकरी,11,सरस्वती वन्दना,1,संस्कृत,11,संस्कृत काव्य पाठ,1,संस्कृत गीतानि,37,संस्कृत बोलना सीखें,13,संस्कृत में अवसर और सम्भावनाएँ,6,संस्कृत व्याकरण,26,संस्कृत श्लोक,21,संस्कृत साहित्य,13,संस्कृत: एक वैज्ञानिक भाषा,1,संस्कृत:वर्तमान और भविष्य,6,संस्कृतलेखः,2,सांख्य दर्शन,6,साहित्यदर्पण,23,सुभाषितानि,29,सुविचार,26,सूरज कृष्ण शास्त्री,455,सूरदास,1,स्तोत्र पाठ,62,स्वास्थ्य और देखभाल,8,हमारी प्राचीन धरोहर,1,हमारी विरासत,7,हमारी संस्कृति,105,हँसना मना है,6,हिन्दी रचना,34,हिन्दी साहित्य,5,हिन्दू तीर्थ,3,हिन्दू धर्म,4,होली पर्व,3,
ltr
item
भागवत दर्शन: समदुःखसुख: स्वस्थ: समलोष्टाश्मकांचनः। तुल्यप्रियाप्रियो धीरस्तुल्यनिन्दात्मसंस्तुतिः।। मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयो:।सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीतः स उच्यते।।
समदुःखसुख: स्वस्थ: समलोष्टाश्मकांचनः। तुल्यप्रियाप्रियो धीरस्तुल्यनिन्दात्मसंस्तुतिः।। मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयो:।सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीतः स उच्यते।।
भागवत दर्शन
https://www.bhagwatdarshan.com/2023/03/blog-post_55.html
https://www.bhagwatdarshan.com/
https://www.bhagwatdarshan.com/
https://www.bhagwatdarshan.com/2023/03/blog-post_55.html
true
1742123354984581855
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content