navani neech kai ati dukhdai |
नीचका झुकना (नम्रता) भी अत्यन्त दुःखदायी होता है । जैसे अंकुश, धनुष, साँप और बिल्लीका झुकना । हे भवानी ! दुष्टकी मीठी वाणी भी (उसी प्रकार) भय देनेवाली होती है, जैसे बिना ऋतुके फूल ।
बात करते हैं रावण जब माता सीता जी का हरण करने के लिए मामा मारीच के पास जाता है। जब रावण सीता का हरण करने के लिए लंका से निकलता है तो सबसे पहले वह अपने मामा मारीच के पास पहुंचता है और उसे नमस्कार करता है। मारीच रावण को झुका देखकर समझ जाता है कि अब भविष्य में कोई संकट आने वाला है।
रावण को इस प्रकार झुके हुए देखकर मारीच सोचता है कि किसी नीच व्यक्ति का नमन करना भी दुखदाई होता है। मारीच रावण का मामा था, लेकिन रावण राक्षसराज और अभिमानी था। वह बिना कारण किसी के सामने झुक नहीं सकता था । मारीच ये बात जानता था और उसका झुकना किसी भयंकर परेशानी का संकेत था। तब भयभीत होकर मारीच ने रावण को प्रणाम किया। मारीच सोचता है कि जिस प्रकार कोई धनुष झुकता है तो वह किसी के लिए मृत्यु रूपी बाण छोड़ता है। जैसे कोई सांप झुकता है तो वह डंसने के लिए झुकता है। जैसे कोई बिल्ली झुकती है तो वह अपने शिकार पर झपटने के लिए झुकती है। ठीक इसी प्रकार रावण भी मारीच के सामने झुका था। किसी नीच व्यक्ति की मीठी वाणी भी बहुत दुखदायी होती है। यह ठीक वैसा ही है जैसे बिना मौसम का कोई फल। मारीच अब समझ चुका था कि भविष्य में उसके साथ कुछ बुरा होने वाला है।
आज के सामाजिक परिवेश में हम इस प्रकार के दुष्ट स्वाभाव वाले व्यक्ति बहुतायत मिलते हैं जो हमारे सामने तो नम्रता दिखाते हैं और पीठ पीछे वार कर देते हैं , यह केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। अतः गोस्वामी जी द्वारा हमें इस प्रकार के व्यक्तियों से सावधान रहने के लिए चेतावनी दी गई है कि यदि इस प्रकार के दुष्ट व्यक्ति अचानक नम्र होकर हमसे मिलते हैं तो समझ जाना चाहिए कि यह हमें दुखदाई होने वाला है। यदि हम इनके नम्रतापूर्ण व्यव्हार को देखते हुए इनकी बातों में आकर कोई कार्य करते हैं तो यह हमारे लिए संकट उत्पन्न कर सकता है।
तुलसीदाम जी ने स्पष्ट लिखा है –
तब मारीच हृदयँ अनुमाना।
नवहि बिरोधें नहिं कल्याना।
सस्त्री मर्मी प्रभु सठ धनी।
बैद बंदि कबि भानस गुनी।।
इस दोहे में मारीच की सोच बताई गई है कि हमें किन लोगों की बातों को तुरंत मान लेना चाहिए। अन्यथा प्राणों का संकट खड़ा हो सकता है। इस दोहे के अनुसार - शस्त्रधारी, हमारे राज जानने वाला, समर्थ स्वामी, मूर्ख, धनवान व्यक्ति, वैद्य, भाट, कवि और रसोइयां, इन लोगों की बातें तुरंत मान लेनी चाहिए। इनसे कभी विरोध नहीं करना चाहिए, अन्यथा हमारे प्राण संकट में आ सकते हैं। अर्थात् उपयुक्त नौ लोगों का विरोध कभी नहीं करना चाहिए।
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