असमभव कुछ भी नहीं। नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः। शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मणः।।

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 नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः। शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मणः।। बचपन में आपने एक प्रयोग किया होगा। उसमें सूर्य की बिखरी...

 नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।

शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मणः।।

बचपन में आपने एक प्रयोग किया होगा। उसमें सूर्य की बिखरी हुई किरणों को एक लेंस के माध्यम से एकत्रित करके किसी कागज पर डालने से वह कागज जल उठता है। जबकि बिखरी किरणों से कागज नहीं जल पाता है। आप जानते हैं कागज क्यों जला क्योंकि लेंस का अपने लक्ष्य के ऊपर फोकस था।

   दूसरा उदाहरण कैमरे का ही ले तो आपने देखा होगा कि कैमरे का फोकस सही है तो फोटो अच्छी आएगी और अगर फोकस अच्छा नहीं है तो फोटो साफ नहीं आएगी। ठीक उसी प्रकार हमारी ऊर्जा (एनर्जी) भी बिखरी अवस्था में रहती हैं। लेकिन जब हम इसे एक ही जगह पर फोकस करते हैं तो चमत्कार हो सकता है। बिगड़े हुए काम बन जाते है। किस्मत नाम की चीज़ भी चमकने लग जाती हैं। फोकस केवल यह नहीं बताता कि आपको क्या करना है बल्कि यह भी बताता है कि आपको क्या नहीं करना है।

  एक बार की बात है, एक बहुत बड़ा तालाब था, जिस तालाब में बहुत सारे मेंढक रहते थे। सरोवर के बीच में एक बहुत पुराना का खम्भा भी लगा हुआ था, खम्भा बहुत ऊँचा था और उसकी सतह बहुत ही चिकनी थी, जिस कारण से वह लोहे के खंभे पर भारी फिसलन हो गयी थी।

     एक दिन की बात है, उस तालाब मे रहने वाले मेंढकों के दिमाग में ख्याल आया कि क्यों न, एक प्रतियोगिता करवाई जाये, जिसमे इस तालाब मे और आस पास के रहने वाले सभी मेढक इस प्रतियोगिता मे भाग ले सकेगे और जो कोई मेढक इस प्रतियोगिता मे भाग लेगा, उसे इस फिसलन भरे लोहे के खंबे पर सबसे ऊपर चढ़ना होगा, और जो सबसे पहले ऊपर पहुंच जायेगा, उसे विजेता घोषित कर दिया जायेगा। और उसे उचित सम्मान और उपहार से सम्मानित किया जाएगा, इस तरह उस तालाब मे रहने वाले सब मेंढको ने मिलकर प्रतियोगता का दिन फिक्स कर दिया, इस तरह प्रतियोगिता का दिन आ गया, खम्भे के चारो और बहुत भीड इक्कठी हो गयी। आसपास के इलाकों से भी कई मेंढक इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने पहुंचे, चारो तरफ माहौल में सरगर्मी थी। हर तरफ प्रतियोगिता को लेकर शोर ही शोर था, और फिर सबके इकट्ठा होने पर प्रतियोगिता शुरू हो गयी, लेकिन खम्भे को देखकर भीड में से किसी भी मेंढक को यकीन नहीं हुआ कि कोई मेंढक इस खम्भे के ऊपर पहुंच पायेगा, चारो ओर यही शोर हो रहा था -“अरे ये बहुत कठिन हैं” “वो कभी भी इसे नहीं जीत पाएंगे” “ऊपर पहुंचने का तो कोई सवाल ही नहीं हैं, इतने चिकने खम्भे पर नहीं चढ़ा जा सकता” और यह हो भी रहा था कि जो भी मेंढक कोशिश करते, वो थोडा ऊपर जाकर फिसलने के कारण नीचे गिर जाते, और कई मेंढक तो बार बार गिरने के बावजूद अपने प्रयास में लगे हुए थे।

   पर भीड तो अभी भी चिल्लाये जा रही थी, “ये नहीं हो सकता, ये असंभव हैं” अब जो भी मेंढक उत्साहित थे, कोशिश कर रहे थे। वो भी ये सुन सुनकर हताश हो गए और बार बार गिरने से उन्होंने अपना प्रयास करना भी छोड़ दिया, लेकिन उन्ही मेंढकों के बीच एक छोटा सा मेंढक था, जो बार बार गिरने पर भी उसी जोश के साथ ऊपर चढ़ने में लगा हुआ था, और वो लगातार आहिस्ता आहिस्ता ऊपर की ओर बढ़ता रहा और आखिरकार वह खम्भे के सबसे ऊपर पहुच गया और इस तरह वह छोटा मेढक इस प्रतियोगिता का विजेतां बना। फिर जीतने के बाद उस मेढक को ढेर सारे इनाम और सम्मान से सम्मानित किया गया, और सभी लोगो को उसकी जीत पर सभी को बडा आश्यर्य हुआ, सभी मेंढक उसे घेर कर खडे हो गए और पूछने लगे, “तुमने ये असंभव काम कैसे कर दिखाया, कैसे तुमने सबको पीछे छोड़ कर जीत प्राप्त की ?”

  तभी पीछे से किसी मेढक ने बोला “अरे इससे क्या पूछते हो, ये तो बहरा है, ये तो किसी की सुन भी नहीं सकता, जिस कारण से इसने बिना किसी के कुछ सुने ही अपने लक्ष्य पर आगे बढ़ा और विजेता बन गया”।

  अब आपको समझ आया वो भला वो मेढक कैसे जीता, क्यूकी उसके आसपास जितने भी लोग थे, सब सिर्फ शोर करके टांग खींचने वाले थे, लेकिन उस मेढक को उनकी आवाज उसको नहीं सुनाई दी, जिस कारण से वह नकारात्मक नहीं सोच पाया, और वो अपने लक्ष्य पर ज्यादा फोकस कर पाया, और इस तरह जीत गया।

   हर किसी के अंदर भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की काबिलियत होती हैं, और हम शुरुआत भी करते हैं, और आगे बढ्ने की कोशिश भी करते है, लेकिन अपने आसपास के ज्ञान चंदो के कारण और अपने नकारात्मक माहौल के कारण, हम अपना काम या तो शुरू नहीं करते हैं या फिर बीच में ही छोड़ देते हैं।

   तो ऐसे मे आपको जो भी पीछे रखने वाली आवाजे हैं, चाहे वो किसी भी नकरात्मक रूप मे कोई भी, कुछ भी हो सकता हैं, फिर चाहे वो आपके दोस्त हो, रिश्तेदार हो, या फिर आप खुद हो, अपने लक्ष्य पर आगे बढ़ने के लिए इन सभी नकरात्मक विचार वालों से खुद को दूर रखना होता है, जिस कारण से आपके अंदर सकरात्मक ऊर्जा का विकास होता है, और फिर आप अपने आपको एक मजबूत इंसान बनाते है, जो की अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हरसंभव प्रयास कर सकते है,

  इस तरह इस कहानी से हमे यही शिक्षा मिलती है, की यदि हमने नकारात्मकता से दुरी बना ली, तो एक दिन हमे सफलता के शिखर पर पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता, और एक दिन हम अपने लक्ष्य को जरूर हासिल कर लेते है।

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भागवत दर्शन: असमभव कुछ भी नहीं। नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः। शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मणः।।
असमभव कुछ भी नहीं। नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः। शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मणः।।
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