भागवत के छन्दों का सम्पूर्ण विवेचन

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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bhagwat darshan
bhagwat darshan

पद्म पुराणोक्त भागवत माहात्म्य के छन्द 

१. प्रथम अध्याय -  कुल श्लोक  - 80 

     छन्द प्रयोग अनुष्टुप् - 78  

                       -   वसन्ततिलका -  ( श्लोक क्र.2) 

                       -   मालिनी (श्लोक क्र 80)

 २. द्वितीय अध्याय -  कुल श्लोक - 76

     छन्द प्रयोग  - अनुष्टुप् - 74 

                         - वसन्ततिलका - 2 (श्लोक क्र. 75, 76) 

 ३. तृतीय अध्याय -  कुल श्लोक - 74 

    छन्द प्रयोग   -  अनुष्टुप् - 60 

                        -  उपजाति - 7 (श्लोक क्र. 13 ,66, 68, 69, 70, 71, 72) 

                        -  इन्द्रवज्रा - 1 (श्लोक क्र. 14) 

                        -  उपेन्द्रवज्रा 1 (श्लोक क्र. 67)

                        -  इन्द्रवंशा 1 (श्लोक क्र. 53)

                        -  वसन्ततिलका (श्लोक क्र. 42 ,43 , 74)

                        - मालिनी - 1 (श्लोक क्र. 73) 

४. चतुर्थ अध्याय -  कुल श्लोक - 81 

                         -  अनुष्टुप् 71 

                         -  वसन्ततिलका - 3(श्लोक क्र 79, 80, और 81) 

                         -  इन्द्रवंशा -1 श्लोक क्र 13 

                         -   उपजाति - 6 (श्लोक क्र 8, 9, 10, 11, 12और14) 

५. पञ्चम अध्याय - कुल श्लोक - 90 

                          -  अनुष्टुप् - 87 

                          -  इन्द्रवंशा - 1(श्लोक क्र. - 87)

                          -  इन्द्रवज्रा - 1(श्लोक क्र 90

                          -  उपजाति - 1(श्लोक क्र 88)

६. षष्ठम अध्याय - कुल श्लोक - 103 

                           -  अनुष्टुप् - 84 

                           -  उपजाति -7 (श्लोक क्र 78 79 84 85 87 89और 91 

                           -  द्रुतविलम्बित -1(श्लोक क्र. - 80) 

                           -  वंशस्थ -1 (श्लोक क्र. - 90) 

                            -  इन्द्रवज्रा -1(श्लोक क्र. - 92) 

                            -  उपेन्द्रवज्रा -1(श्लोक क्र. - 88)

                            -  शिखरिणी - 1(श्लोक क्र. 100) 

                            -  शार्दूलविक्रीडित - 2(श्लोक क्र. - 81,82) 

                            -  स्रग्धरा - 1(श्लोक क्र. - 86) 

                            -  वसन्ततिलका -1(श्लोक क्र. - 98) 

                            -  पुष्पिताग्रा -1(श्लोक क्र. - 99) 

                            -  मालिनी - 1(श्लोक क्र. - 102) 

                            -  प्रहर्षिणी -1(श्लोक क्र. - 103)


श्रीमद्भागवत महापुराण के छन्दों का सम्पूर्ण विवेचन

1. स्रग्धरा छन्द

-    सूत्र - म्रभ्नैर्यानां त्रयेण त्रिमुनियतियुता स्रग्धरा कीर्तितेयम् ।(म्रभ्नैर्यानां त्रयेण में म र भ न य(3 बार) 

-  श्रीमद्भागवत  का अक्षर संख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा छन्द ।

-  प्रत्येक चरण में 21 वर्ण।

-  गणों का क्रम -  म र भ न य य य (ऽऽऽ ऽ।ऽ ऽ।। ।।। ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ ) 

-  7-7 अक्षरों पर यति (विराम) । 

-  इस छन्द का प्रयोग पूरे श्रीमद्भागवत में सिर्फ दो  बार । एक बार पद्म पुराणोक्त माहात्म्य में । 

-  उदाहरण - 

1. गुर्वर्थे त्यक्तराज्यो व्यचरदनुवनं पद्म पद्भ्यां प्रियायाः 

    पाणिस्पर्शाक्षमाभ्यां मृजितपथरुजो यो हरीन्द्रानुजाभ्याम् । 

    वैरूप्याच्छूर्पणख्याः प्रियविरहरुषाऽऽरोपितभ्रूविजृम्भ 

    त्रस्ताब्धिर्बद्धसेतुः खलदवदहनः कोसलेन्द्रोवतान्नः ॥ (9.10.4)

2. तीर्थं चक्रे नृपोनं यदजनि यदुषु स्वःसरित्पादशौचं 

    विद्विट्स्निग्धाः स्वरूपं ययुरजितपरा श्रीर्यदर्थेऽन्ययत्नः । 

    यन्नामाम›लघ्नं श्रुतमथ गदितं यत्कृतो गोत्रधर्मः 

    कृष्णस्यैतन्नचित्रं क्षितिभरहरणं काल चक्रायुधस्य ॥(10.90.47)

3. प्रह्लादस्तालधारी तरलगतितया चोद्धवः कांस्यधारी 

   वीणाधारी सुरर्षिः स्वरकुशलतया रागकर्तार्जुनोऽभूत्। 

   इन्द्रोऽवादीन्मृदङ्गं जयजय सुकराः कीर्तने ते कुमाराः 

   यत्राग्रे भाववक्ता सरसरचनया व्यासपुत्रो बभूव ॥(माहात्म्य 6.86)

 2. शार्दूलविक्रीडित छन्द

-  सूत्र - सूर्याश्वैर्मसजस्ततः सगुरुवः शार्दूलविक्रीडितम् ।

-  अक्षर संख्या की दृष्टि से श्रीमद्भागवत का दूसरा सबसे बड़ा छन्द। 

-  प्रत्येक चरण में 19 वर्ण ।

-  गणों का क्रम - ऽऽऽ ।।ऽ ।ऽ। ।।ऽ ऽऽ। ऽऽ। ऽ(म स ज स त त ऽ) ।

-  12 और 7 अक्षरों पर यति ।

-  यह छन्द विधृति या अतिधृति छन्द समुदाय का भेद है । 

-  प्रस्तार भेद से इनके कुल 524288 भेद । 

-  उदाहरण - 

जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञः स्वराट्

तेने ब्रह्म हृदा य आदि कवये मुह्यन्ति यत्सूरयः । 

तेजोवारिमृदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गोऽमृषा 

धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं सत्यं परं धीमहि ॥(1.1.1)।

-  श्रीमद्भागवत जी में यह छन्द 13 बार प्रयुक्त हुआ है । 

-  अन्य 12 स्थान हैं - 1.1.2, 10.14.18-35, 10.26.25, 10.43.17, 10.87.50, 10.90.24, 12.13.1,12.13.18-19 । 

 3. शिखरिणी छन्द

-  सूत्र:- रसै रुद्रैश्छिन्ना यमनसभलागः शिखरिणी ।

-  श्रीमद्भागवत में  प्रयुक्त - 2 बार ।

-  प्रत्येक चरण में 17 वर्ण ।

-  प्रत्येक चरण में गणों का क्रम(य म न स भ । ऽ) होता है ।

-  6 और 11 अक्षरों पर यति।

-  यह छन्द अत्यष्टि छन्द समुदाय का भेद है । 

-  प्रस्तार से इनके 131072 भेद होते हैं। 

-  उदाहरण - 

1.  पुरा कल्पापाये स्वकृतमुदरीकृत्य विकृतं 

     त्वमेवाद्यस्तस्मिन् सलिल उरगेन्द्राधिशयने ।

     पुमान् शेषे सिद्धैर्हृदि विमृशिताध्यात्मपदविः

     स एवाद्याक्ष्णोर्यः पथि चरसि भृत्यानवसि नः ॥(4.7.42)

2. इतीरेशेऽतर्क्ये निजमहिमनि स्वप्रमितिके

    परत्राजातोऽतन्निरसुनमुखब्रह्मकमितौ । 

    अनीशेऽपि द्रष्टुं किमिदमिति वा मुह्यति सति

    चछादाजो ज्ञात्वा सपदि परमोऽजाजवनिकाम् ॥(10.13.57) 

3. असारे संसारे विषयविषसङ्गाकुलधियः 

    क्षणार्धं क्षेमार्थं पिबत शुकगाथातुलसुधाम् । 

    किमर्थं व्यर्थं भो व्रजथ कुपथे कुत्सितकथे 

    परीक्षित्साक्षी यच्छ्रवणगतमुक्त्युक्तिकथने ॥(भा.माहा. 6.100) 

- शिव महिम्न स्तोत्र और देव्यक्षमापराधनस्तोत्र भी इसी छन्द में हैं। 

 4.  मन्दाक्रान्ता छन्द

-  सूत्र:- मन्दाक्रान्ताम्बुधिरसनगैर्मोभनो तौ गयुग्मम् ।

-  प्रत्येक चरण में 17 वर्ण।

-  गणों का क्रम, ( म भ न त त ऽ ऽ ) ऽऽऽ ऽ।। ।।। ऽऽ। ऽऽ। ऽऽ होता है ।

-  प्रत्येक चरण में  4 6 7 अक्षरों पर विराम या यति।

-  यह छन्द अत्यष्टि छन्द समुदाय का भेद है । 

-  प्रस्तार से इनके 131072 भेद होते हैं। 

-  श्रीमद्भागवत् जी में  प्रयुक्त - 10 बार।  

-  उदाहरण -

1.  उत्पत्यध्वन्यशरण उरुक्लेशदुर्गेऽन्तकोग्र-

     व्यालान्विष्टे विषयमृगतृष्यात्मगेहोरुभारः । 

     द्वन्द्वश्वभ्रे खलमृगभये शोकदावेऽज्ञसार्थः 

     पादौकस्ते शरणद कदा याति कामोपसृष्टः॥(4.7.28)

2.  प्रत्यानीताः परम भवता त्रायता नः स्वभागा 

     दैत्याक्रान्तं हृदयकमलं त्वद्गृ हं प्रत्यबोधि । 

     कालग्रस्तं कियदिदमहो नाथ शुश्रूषतां ते  

     मुक्तिस्तेषां न हि बहुमता नारसिंहापरैः किम् ॥(7.8.42) 

3.  बर्हापीडं नटवरवपुः कर्णयोः कर्णिकारं 

     बिभ्रद् वासः कनककपिशं वैजयन्तीं च मालाम् । 

     रन्ध्रान् वेणोरधरसुधया पूरयन् गोपवृन्दै- 

     र्वृन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद् गीतकीर्ति: ।। 10.21.5।। 

भागवत के अन्य उदाहरण:- 8.7.17, 10.8.(29,30,31), 10.9.3, 10.13.11, 10.90.20, 4.7.28, 7.8.42 । 

- हिन्दी का बहुत ही सुन्दर उदाहरण -

                                               जो लेवेगा, नृपति मुझसे, दण्ड दूंगी करोड़ों ,

लोटा थाली , सहित तन के वस्त्र भी बेंच दूंगी । 

जो मांगेगा , हृदय वह तो , काट दूंगी उसे भी । 

बेटा तेरा , गमन मथुरा, मैं न आंखों लखूंगी ।। 

 5. नर्कुटक छन्द

-  सूत्र:- यदि भवतो नजौ भजजला गुरु नर्कुटकम् ।

-  प्रत्येक चरण में 17 वर्ण । 

-  गणों का क्रम - ।।। ।ऽ। ऽ।। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ(न ज भ ज ज और लघु गुरु)

-  7वें और 10वें वर्ण पर यति ।

-  उदाहरण - 

जय जय जह्यजामजित दोषगृभीतगुणां 

  त्वमसि यदात्मना समवरुद्वसमस्तभगः । 

अगजगदोकसामखिलशक्त्यवबोधक ते 

                        क्वचिदजयाऽऽत्मना च चरतोऽनुचरेन्निगमः॥(10.87.14) 

-  श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध में वेदस्तुति में प्रयुक्त। 

-  10.87.14 से 10.87.41 तक 28 श्लोक लगातार इसी छन्द में हैं।

6. मालिनी छन्द

-  सूत्र:- ननमयययुतेयं मालिनी भोगिलौकैः । 

-  प्रत्येक चरण में 15 वर्ण।

-  गणों का क्रम - न न म य य (।।। ।।। ऽऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ)

-  8 और 7 पर यति। 

भ्रमरगीत में मालिनी छन्द का प्रयोग हुआ है

-  उदाहरण - 

          मधुप कितवबन्धो मा स्पृशाङ्घ्रिं सपत्न्याः 

       कुचविलुलितमालाकुत्रकुमश्मश्रुभिर्नः । 

वहतुमधुपतिस्तन्मानिनीनां प्रसादं 

          यदुसदसि विडम्ब्यं यस्य दूतस्त्वमीदृक् ॥

                                                        भ्रमरगीत (10.47.12) 

-  भागवत में इस छन्द का लगभग 20 बार प्रयोग। 

-  4.7.29, 7.8.52, 8.12.47, 8.24.61, 10.47.12 से 21, 10.51.58, 10.85.59, 10.90.15, 10.90.48, 11.29.49 , 12.12.68 में भी इसी छन्द का प्रयोग है । 

-  हनुमानजी की स्तुति सुन्दरकाण्ड से इसी छन्द में है- 

अतुलितबलधामं स्वर्णशैलाभदेहम् 

   दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् । 

  सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं । 

     रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ।। 

7. वसन्ततिलका छन्द

-  सूत्र:- उक्ता वसन्ततिलका तभजा जगौ गः ।

-  चौदह अक्षरों के पाद वाले छन्द समुदाय को शक्वरी कहते हैं। 

-  प्रस्तार से इसके 16384 भेद होते हैं ।

-  इसके भेदों में वसन्ततिलका बहुत ही प्रसिद्ध है। 

-  श्रीमद्भागवत  में इसका बहुत अधिक प्रयोग हुआ है । 

-  वसन्ततिलका को ही कुछ विद्वान सिंहोन्नता या उद्धर्षिणी भी कहते हैं ।

-  प्रत्येक चरण में 14 अक्षर । 

-  गणों का क्रम (त भ ज ज और ऽ ऽ ) ऽऽ। ऽ।। ।ऽ। ।ऽ। ऽऽ तथा पादान्त विराम होता है।

- उदाहरण - 

1. अक्षण्वतां फलमिदं न परं विदामः 

    सख्यः पशुननु विवेशयतोर्यवस्यैः । 

    वक्त्रं व्रजेशसुतयोरनुवेणु जुष्टं 

    यैर्वा निपीतमनुरक्तकटाक्षमोक्षं ।। (वेणुगीत)

2. आसामहो चरणरेणुजुषामहं स्यां 

    वृन्दावने किमपि गुल्मलतौषधिनाम् ।(उद्धव गीत)

3. मैवं विभोऽर्हति भवान् गदितुं नृशंसं 

    सन्त्यज्य सर्व विषयांस्तव पादमूलम् ॥(प्रणय गीत)

4. ब्रह्मादयः सुरगणा मुनयोऽथ सिद्धाः 

    सत्वैकतानमतयो चवसां प्रवाहैः(प्रह्लाद स्तुति) 

5. योऽन्तः प्रविश्य मम वाचमिमां प्रसुप्तां ॥(ध्रुव स्तुति) 

वसन्ततिलका के अन्य उदाहरण भागवत में - 1.2.2 व 3, 1.2.23 , 1.4.5 , 1.8.14 , 1.8.43 , 1.11.36 , 1.15.7 से 21 , 2.2.5 , 2.7.1 से 49 तक , 3.9.1 से 25 तक , 3.15.17 से 50 तक , 3.16.6 से 12 तक , 3.16.20 से 26 तक , 3.16.37 , 3.20.36 , 3.23.6 से 11 व 38 ,39 , 3.28.21 से 38 , 3.31.12.से 21 , 3.32.9 व 10 , 4.1.27.28.56.57 , 4.7.(13,14,15,,20, 21, 26,27,30) , 4.9.6 से 17 तक, 4.11.30 , 4.12.16 से 18 , 4.22.37 से 40 , 4.22.47 , 4.23.11और 12 , 4.26.23 से 26 , 4.29.(40,53,55,84) , 4.30.6.7 ।

-  कुल वसन्ततिलका का 658 बार प्रयोग भागवत में ।

8. पुष्पिताग्रा छन्द -

-  सूत्र:- अयुजि नयुगरेफतो यकारो युजि च नजौ जरगाश्च पुष्पिताग्रा ।

-  12,13 अक्षर का चरण ।

-  प्रथम तथा तृतीय चरण में ( न न र य ) तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में ( न ज ज र ऽ )।।। ।।। ऽ।ऽ व ।।। ।ऽ। ।ऽ। ऽ।ऽ ऽ तथा पादान्त विराम । 

-  भागवत के प्रथम स्कन्ध  में भीष्म स्तुति में पुष्पिताग्रा छन्द प्रयुक्त हुआ है ।

-  कहीं कहीं चारों चरण 13 अक्षर का भी है और गणक्रम द्वितीय या चतुर्थ के अनुसार है ।

-  उदाहरण - 

     इति मतिरुपकल्पिता वितृष्णा 

     भगवति सात्वतपु›वे विभूम्नि । 

स्वसुखमुपगते क्वचिद्विहर्तुं

      प्रकृतिमुपेयुषि यद्भवप्रवाह ।। 

त्रिभुवनकमनं तमालवर्णं 

     रविकरगौरवराम्बरं दधाने ।।

 वपुरलककुलावृताननाब्जं 

            विजयसखे रतिरस्तु मेऽनवद्या ।। 

 - भागवत के अन्य पुष्पिताग्रा छन्द के उदाहरण - 

  1.9.32 से 42, 3.4.27 व 28,  3.33.37,   4.23.39, 4.31.21.22, 10.7.24 और 25,  10.21.2,  10.90.22, 11.2.(53,54, 55) ,  12.12.(65, 66, 67, 69)।

9. रुचिरा छन्द  

-  सूत्र:- जभौ सजौ गिति रुचिरा चतुग्रहैः ।

-  गण विधान -जगण भगण सगण जगण और गुरु ।

-  4 और 9 वर्ण पर यति ।

-  उदाहरण - 

    पिबन्ति ये भगवत आत्मनः सतां 

   कथामृतं श्रवणपुटेषु सम्भृतम् । 

पुनन्ति ते विषयविदूषिताशयं 

                      व्रजन्ति तच्चरणसरोरुहान्तिकम् ॥ (2.2.37) 

       नृवाजि काञ्चन शिबिकाभिरच्युतं 

सहात्मजाः पतिमनुसुव्रताय। 

वराम्बराभरणविलेपनस्रजः  

                      सुसंवृतानृभिरसिचर्मपाणिभिः ॥(10.71.15) 

-  अन्य उदाहरण  - 2.2.37, 8.11.31 व 32, 10.18.26 से 29, 10.71.14 से 18, 10.83.36 ।

 10. प्रहर्षिणी छन्द -

-  सूत्र:- आशाभिर्मनजरगाः प्रहर्षिणीयम् । 

-  13-13 अक्षरों के चार पादों से सम्पन्न होने वाले छन्द समूह का नाम अतिजगती है । 

 -  प्रस्तार से इसके 8192 भेद होते हैं । 

-  अतिजगती के ही भेदों में एक प्रहर्षिणी है । 

-  प्रत्येक पाद में ( म न ज र ऽ ) मात्रा ।

-  3 - 10 पर यति । 

-  उदाहरण - 

 यज्ञोऽयं तव यजनाय केन सृष्टो 

        विध्वस्तः पशुपतिनाद्य दक्षकोपात् । 

तं नस्त्वं शवशयनाभशान्तमेधं 

               यज्ञात्मन्नलिनरुचा दृशा पुनीहि ॥(4.7.33)

-  अन्य श्लोक - 4.7.33, 5.25.9 से 12, 7.8.56, 10.57.42, 10.89.21  

11. मञ्जुभाषिणी छन्द

-  सूत्र:- सजसा जगौ च यदि मञ्जुभाषिणी ।

-  प्रत्येक चरण में 13-13 अक्षर ।

-  छन्द समूह का नाम अतिजगती है । प्रस्तार से इसके 8192 भेद होते हैं । 

-  प्रत्येक पाद में गणों का क्रम ( स ज स ज ऽ ) ।

-  6 - 7 वर्णों पर पर यति ।

-  उदाहरण -   

                                                             जगदुद्भवस्थितिलयेषु दैवतो 

       बहुभिद्यमानगुणयाऽऽत्ममायया । 

  रचितात्मभेदमतये स्वसंस्थया  

                 विनिवर्तितभ्रमगुणात्मने नमः ॥ (4.7.39)

  वयमीश किन्नरगणास्तवानुगा 

        दितिजेन विष्टिममुनानु कारिताः । 

    भवता हरे स वृजिनोऽवसादितो 

                 नरसिंह नाथ विभवाय नो भव ॥(7.8.55)

12. मत्तमयूर छन्द

-  सूत्र:- वेदैरन्ध्रैम्रसगा मत्तमयूरम् ।

-  प्रत्येक चरण में 13-13 वर्ण।

-  चार पादों से सम्पन्न होने वाले छन्द समूह का नाम अतिजगती है । 

-  प्रस्तार से इसके 8192 भेद होते हैं ।

-  गणों का क्रम - प्रत्येक पाद में ( म त य स ऽ )

-  4 - 9 वर्णों पर यति।

-  उदाहरण -  

अंशाशास्ते देव मरीच्यादय एते 

  ब्रह्मेन्द्राद्या देवगणा रुद्रपुरोगाः । 

     क्रीडाभाण्डं विश्वमिदं यस्य विभूमन्

                 तस्मै नित्यं नाथ नमस्ते करवाम ॥ (4.7.43)

13. द्रुतविलम्बित छन्द

-  सूत्र:- द्रुतविलम्बितमाह नभौ भरौ । 

-  गणों का क्रम -  न भ भ र है । 

-  प्रत्येक चरण में 12 अक्षर तथा पादान्त विराम ।

-  श्रीमद्भागवतजी में यह छन्द एक ही बार प्रथम स्कन्ध के प्रथम अध्याय के तीसरे श्लोक में प्रयुक्त हुआ है। 

-  उदाहरण - 

     निगमकल्पतरोर्गलितं फलम् 

    शुकमुखादमृतद्रवसंयुतम् । 

पिबत भागवतं रसमालयं 

                     मुहुरहो रसिका भुवि भावुकाः ॥ (1.1.3)

14. इन्द्रवंशा छन्द

-  प्रत्येक पाद में 12 -12 वर्ण ।

-  छन्द समुदाय - जगती । प्रस्तार भेद - 4096 ।

-  गणों का क्रम - त त ज र ।

-  उदाहरण -  

यत्कीर्तनं यत्स्मरणं यदीक्षणं 

यद्वन्दनं यच्छ्रवणं यदर्हणम्।

     लोकस्य सद्यो विधुनोति कल्मषं 

              तस्मै सुभद्रश्रवसे नमो नमः ॥(2.4.15)

15.  वंशस्थ छन्द 

-   सूत्र:- जरौ तु वंशस्थमुदीरितं जरौ । 

-  प्रत्येक चरण में 12-12 वर्ण ।

-  छन्द समुदाय - जगती ।  प्रस्तार से इसके 4096 भेद होते हैं ।

-  गणों का क्रम ( ज त ज तथा र )। पादान्त में यति ।

-   इन्द्रवंशा का प्रथम अक्षर लघु हो जाय तो वह वंशस्थ हो जाता है ।

-  उदाहरण -  

नमन्ति यत्पादनिकेतमात्मनः 

   शिवाय हानीय धनानि शत्रवः । 

   कथं स वीरः श्रियमङ्ग दुस्त्यजां 

               युवैषतोत्स्रष्टुमहो सहासुभिः ॥(1.4.11)

-  इन्द्रवंशा और वंशस्थ के मेल से भी उपजाति बनता है । 

-  उदाहरण -  

           किरातहूणान्ध्रपुलिन्दपुल्कसा (वंशस्थ) 

                 आभीरकङ्का यवनाः खसादयः । (इन्द्रवंशा) 

येऽन्ये च पापा यदुपाश्रयाश्रयाः 

     शुद्ध्यन्ति तस्मै प्रभविष्णवे नमः ॥ 

16. भुजङ्गप्रयात छन्द 

-  सूत्र:-  भुजङ्गप्रयातं चतुर्भिर्यकारैः । 

-  प्रत्येक चरण में 12-12 वर्ण ।

-  गणों का क्रम -  चार यगण(।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ) । पादान्त विराम ।

-  उदाहरण - 

अयं त्वत्कथामृष्टपीयूषनद्यां 

     मनोवारणः क्लेशदावाग्निदग्धः । 

    तृषार्तोऽवगाढो न सस्मार दावं 

       न निष्क्रामति ब्रह्मसम्पन्नवन्नः ।। 

प्रजेशा वयं ते परेशाभिसृष्टा 

        न येन प्रजा वै सृजामो निषिद्धाः । 

 स एष त्वया भिन्नवक्षा नु शेते 

               जगन्मङ्गलं सत्वमूर्तेऽवतारः ॥(7.8.49)

-  गोस्वामी तुलसीदास विरचित शिवजी की प्रसिद्ध स्तुति रुद्राष्टकम् इसी छन्द में है -

नमामी शमीशान निर्वाणरूपं 

विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् । 

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं 

चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम् ।। 

निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं 

गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् । 

करालं महाकाल कालं कृपालं 

गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ।। 

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं 

मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् । 

स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा

लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ।। 

चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं 

प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् । 

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं 

प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ।। 

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं 

अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् । 

त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं 

भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ।। 

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी 

सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी । 

चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी 

प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ।। 

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं 

भजन्तीह लोकेे परे वा नराणाम् । 

न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं 

प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ।। 

न जानामि योगं जपं नैव पूजां 

नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् । 

जरा जन्म दुः खौघ तातप्यमानं 

प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ।। 

(यहाँ तक उपरोक्त छन्द)

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये । 

ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भु प्रसीदति ॥

तथा - 

 न तातो न माता न बन्धुर्न दाता 

   न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता । 

न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव 

       गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी॥

                                         (आदिशंकराचार्य कृत भवान्यष्टकम्)

17. स्रग्विणी छन्द

-  सूत्र:- कीर्तितेषां चतूरेफिकास्रग्विणी । 

-  12-12 अक्षर का चरण

-  गणों का क्रम - चार रगण(रगण ऽ।ऽ ऽ।ऽ ऽ।ऽ ऽ।ऽ) । पादान्त विराम ।

 -  उदाहरण  - 

स्वागतं ते प्रसीदेश तुभ्यं नमः 

       श्रीनिवास श्रिया कान्तया त्राहि नः । 

  त्वामृतेऽधीश नाङ्गैर्मखः शोभते 

              शीर्षहीनः कबन्धो यथा पुरुषः ॥(4.7.36)

   त्वं क्रतुस्त्वं हविस्त्वं हुताशः स्वयं 

  त्वं हि मंत्रः समिद्दर्भपात्राणि च । 

त्वं सदस्यर्त्विजो दम्पती देवता 

                  अग्निहोत्रं स्वधा सोम आज्यं पशुः ॥(4.7.45)

त्वं पुरा गां रसाया महासूकरो 

 दंष्ट्रया पद्यिनीं वारणेन्द्रो यथा । 

   स्तूयमानो नदंल्लीलया योगिभिर् 

           व्युज्जहर्थ त्रयीगात्र यज्ञक्रतुः ॥(4.7.46)

स प्रसीद त्वमस्माकमाकाङ्क्षतां 

दर्शनं ते परिभ्रष्टसत्कर्मणाम् । 

कीर्त्यमाने नृभिर्नाम्नि यज्ञेश ते 

                 यज्ञविघ्नाः क्षयं यान्ति तस्मै नमः ॥(4.7.47)

-   अच्युताष्टकम् में स्रग्विणी छन्द है ।

18. इन्द्रवज्रा छन्द

-   सूत्र:- स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः ।

-  11-11 वर्ण के चार चरण वाले छन्द समुदाय को त्रिष्टुप् कहते हैं । 

-  प्रस्तार से इसके 2048 भेद होते हैं ।

-  त्रिष्टुप् के अवान्तर भेद - इन्द्रवज्रा , उपेन्द्रवज्रा , उपजाति, दोधक, शालिनी, रथोद्धता और स्वागता प्रसिद्ध है ।

-  गण व्यवस्था -  ( 2 तगण 1 जगण और ऽ ऽ )। पादान्त विराम ।

-  उदाहरण -               

                                       बर्हायिते ते नयने नराणां 

   लिङ्गानि विष्णोर्न निरीक्षतो ये । 

पादौ नृणां तौ द्रुमजन्मभाजौ 

            क्षेत्राणि नानुव्रजतो हरेर्यौ ॥ (2.3.22)

19. उपेन्द्रवज्रा छन्द 

-  सूत्र:- उपेन्द्रवज्रा जतजास्ततो गौ । 

-  गण व्यवस्था - (जगण तगण जगण और ऽ ऽ )। पादान्त विराम

 -   इन्द्रवज्रा का प्रथम अक्षर लघु हो जाय तो उपेन्द्रवज्रा हो जाता है ।

 - उदाहरण - 

        निशम्य भीष्मोक्तमथाच्युतोक्तं 

   प्रवृत्तविज्ञानविधूतविभ्रमः । 

        शशास गामिन्द्र इवाजिताश्रयः 

                    परिध्युपान्तामनुजानुवर्तितः॥ (1.10.3)

 -  इन्द्रवज्रा व उपेन्द्रवज्रा के मेल से ‘उपजाति‘ बनता है । 


20. स्वागता छन्द

-  सूत्र:-स्वागतेति रनभाद्गुरु युग्मम् । 

-  प्रत्येक चरण  11 वर्ण  । 

-  गणक्रम -  र न भ और दो ऽऽ 

-  श्रीमद्भागवत के युगलगीत में स्वागता छन्द है । 

-  उदाहरण - 

 वामबाहुकृतवामकपोलो 

   वल्गितभ्रुरधरार्पितवेणुम् । 

     कोमलाङ्गुलिभिराश्रितमार्गं 

     गोप्य ईरयति यत्र मुकुन्दः ॥

21. शालिनी छन्द

-  सूत्र:- मात्तौ गौ चेच्छालिनी वेदलोकैः । 

-  11-11 अक्षर के चार चरण  

-  4 और 7 में यति ।

-   गणों का क्रम ( म त त ऽ ऽ ) ।

 -  उदाहरण - 

  रूपं यत्तत् प्राहुरव्यक्तमाद्यं 

      ब्रह्मज्योतिर्निगुणं निर्विकारम् ।

सत्तामात्रं निर्विशेंषं निरीहं 

                          स त्वं साक्षात् विष्णुरध्यात्मदीपः ॥(10.3.24)

 -  अन्यत्र उदाहरण -1.13.28, 4.7.37, 5.5.1, 7.8.45, 10.3.24, 26, 27 व 28, 10.63.25 से 28 ।

22. वातोर्मी छन्द

-  सूत्र:- वातोग्रमीयादिताम्भौतगौगः । 

-  प्रत्येक चरण में 11 वर्ण । 

-  गणों का क्रम दो मगण एक तगण और दो गुरु  । 

-  उदाहरण - 

दृष्टः किं नो दृग्भिरसद्ग्रहैस्त्वं

   प्रत्यग्द्रष्टा दृश्यते येन दृश्यम् ।

   माया ह्येषा भवदीया हि भूमन् 

                     यज्ञत्वं षष्ठः पत्रचभिर्भासि भूतैः ॥( 4.7.37)


 23. अनुष्टुप् छन्द

-  श्रीभागवते प्रायोऽनुष्टुप् छन्दः ।

-  8 अक्षर वाले चार पदों से जो छन्द बनते हैं उनकी जातिवाचक संज्ञा अनुष्टुप् है । 

-  प्रस्तार से इसके 256 भेद होते हैं । 

-  इसे श्लोक भी कहा जाता है । 

-  भागवत में इस छन्द में लगभग 11000 श्लोक हैं । 

-  8 अक्षर का चरण ,प्रत्येक चरण में पांचवां लघु तथा छठा गुरु , प्रथम और तृतीय चरण में सातवां अक्षर दीर्घ और द्वितीय तथा चतुर्थ में ह्रस्व होता है । 

 -  उदाहरण  - 

सच्चिदानन्दरूपाय विश्वात्पत्यादिहेतवे । 

तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नुमः ॥ 

24. प्रमाणिका छन्द

-  सूत्र:- प्रमाणिका जरौ लगौ । 

-  8 अक्षर वाले चार पदों से जो छन्द बनते हैं उनकी जातिवाचक संज्ञा अनुष्टुप् है । 

-  प्रस्तार से इसके 256 भेद होते हैं । 

-  प्रमाणिका भी नगस्वरूपिणी की तरह अनुष्टुप का ही भेद है । इसमे एक जगण एक रगण व लघु गुरु होता है । 

-   प्रमाणिका और नगस्वरूपिणी दो छन्द को मिलाकर एक छन्द बना देने से पञ्चचामर छन्द हो जाता है ।

-  रावणकृत श्रीशिवताण्डवस्तोत्र में पञ्चचामर छन्द है । 

-  प्रमाणिका छन्द  भागवत में एक ही बार भगवान नृसिंह की स्तुति में ही आया है -

  हरे तवाङ्घ्रिपङ्कजं भवापवर्गमाश्रिताः । 

                यदेष साधुहृच्छयस्त्वयासुरः समापितः ॥(7.8.51)

 25. इन्दिरा या कनकमञ्जरी छन्द 

-  11 अक्षर का चरण तथा पादान्त यति ।

- इन्दिरा या कनकमञ्जरी छन्द श्रीमद्भागवत जी में केवल गोपी गीत में प्रयुक्त हुआ है ।

-  उदाहरण  -

    जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः 

श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि । 

दयित दृश्यतां दिक्षु तावका 

           स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते ॥1॥

शरदुदाशये साधुजातसत् 

सरसिजोदरश्रीमुषादृशा । 

   सुरतनाथ तेऽशुल्कदासिका 

      वरदनिघ्नतो नेह किं वधः ॥2॥

        विषजलाप्ययाद् व्यालराक्षसाद् 

      वर्षमारुताद् वैद्यु तानलात् । 

   वृषमयात्मजाद् विश्वताभया-

       दृषभ ते वयं रक्षिता मुहुः ॥3॥

      न खलु गोपिकानन्दनो भवा- 

         नखिलदेहिनामन्तरात्मकदृक् । 

  विखनसार्थितो विश्वगुप्तये 

              सख उदेयिवान् सात्वतां कुले ॥4॥

  विरिचिताभयं वृष्णिधुर्य ते 

   चरणमीयुषां संसृतेर्भयात् । 

 करसरोरुहं कान्त कामदं 

        शिरसि धेहि नः श्रीकरग्रहं ॥5॥

   व्रजजनार्तिहन् वीर योषितां 

   निजजनस्मयध्वंसनस्मित । 

         भज सखे भवत्कित्रकरीः स्म नो 

      जलरुहाननं चारु दर्शय ॥6॥ 

प्रणतदेहिनां पापकर्शनं 

 तृणचरानुगं श्रीनिकेतनम् 

    फणिफणार्पितं ते पदाम्बुजं 

                कृणु कुचेषु नः कृन्धि हृच्छयम् ॥7॥

    मधुरया गिरा वल्गु वाक्यया 

 बुधमनोज्ञया पुष्करेक्षण । 

   विधिकरीरिमा वीर मुह्यती -

            रधरसीधुनाऽऽप्याययस्व नः ॥8॥

तव कथामृतं तप्तजीवनं 

         कविभिरीडितं कल्मषापहम् । 

श्रवणमङ्गलं  श्रीमदाततं 

             भुवि गृणन्ति ते भूरिदा जनाः ॥9॥

प्रहषितं प्रिय प्रेमवीक्षणं 

        विहरणं च ते ध्यानमङ्गलम् । 

       रहसि संविदो या हृदिस्पृशः 

                 कुहक नो मनः क्षोभयन्ति हि ॥10॥

 चलसि यद् व्रजाचारयन् 

                पशून् नलिनसुन्दरं नाथ ते पदम् । 

          शिलतृणाङ्कुरैः सीदतीति नः 

                 कलिलतां मनः कान्त गच्छति ॥11॥

  दिनपरिक्षये नीलकुन्तलै- 

    र्वनरुहाननं बिभ्रदावृतम् । 

घनरजस्वलं दर्शयन्मुहु-

              र्मनसि नः स्मरं वीर यच्छसि ॥12॥

प्रणतकामदं पद्यजार्चितं 

    धरणिमण्डनं ध्येयमापदि । 

चरणपङ्कजं शन्तमं च ते 

             रमण नः स्तनेष्वर्पयाधिहन् ॥13॥

सुरतवर्धनं शोकनाशनं 

          स्वरितवेणुना सुष्ठु चुम्बितम् । 

इतररागविस्मारणंनृणां 

               वितर वीर नस्तेऽधरामृतम् ॥14॥ 

      अटति यद् भवानह्नि काननं 

   त्रुटिर्युगायते त्वामपश्यतां 

      कुटिलकुन्तलं श्रीमुखं च ते 

                     जड उदीक्षितां पक्ष्मकृद्दृशाम् ॥15॥

     पतिसुतान्वयभ्रातृबान्धवा- 

             नतिविलंध्य तेऽन्त्यच्युतागताः । 

    गतिदिस्तवोद्गीतमोहिताः 

                   कितव योषितः कस्त्यजेन्निशि ॥16॥

  रहसि संविदं हृच्छयादयं 

     प्रहसिताननं प्रेमवीक्षणम् । 

     बृहदुरः श्रियो वीक्ष्य धाम ते 

            मुहुरतिस्पृहा मुह्यते मनः ॥17॥ 

     व्रजवनौकसां व्यक्तिरङ्ग ते 

      वृजिनहन्न्न्यलं विश्वमङ्गलम् ।

          त्यज मनाक्च नस्त्वत्स्पृहात्मनां 

             स्वजनहृद्रुजां यन्निषुदनम् ॥18॥ 

          (यहाँ तक इन्दिरा या कनकमञ्जरी छन्द )

         यत्ते सुजातचरणाम्बुरुहं स्तनेषु 

                  भीताः शनैः प्रिय दधीमहि कर्कशेषु । 

                   तेनाटवीमटसि तद् व्यथते न किंस्वित् 

                       कूर्पादिभिभ्र्रमति धीर्भवदायुषां नः ॥19॥

26. वैतालीय या वियोगिनी छन्द 

-   चरण 1 व 3 में 2 सगण 1जगण और गुरु तथा चरण 2 व 4 में स भ र लघु गुरु होता है ।

-   विषम चरण में 14 तथा सम चरण में 16 मात्रा होनी चाहिये । 

-   उदाहरण  -  

प्रियरावपदानि भाषसे 

     मृत सञ्जीविकयानया गिरा 

  करवाणि किमद्य ते प्रियं 

                           वद मे वल्गितकण्ठ कोकिल॥(10.90.21)

27. औपछन्दसिक छन्द 

-  वैतालीय में एक गुरु बढ़ा देने से औपछन्दसक छन्द होता है । 

-  गणों का क्रम -  (स भ र।ऽ) 

-  उदाहरण - 

इदमप्यच्युत विश्वभावनं 

     वपुरानन्दकरं मनोदृशाम् । 

    सुरविद्विट्क्षपणैरुदायुधैः    

                भुजदण्डैरुपपन्नमष्टभिः ॥(4.7.32) 

28.  गीति आर्या छन्द

-   यह एक मात्रिक छन्द है। 

-  इसके प्रथम तथा तृतीय चरण में 12 और दूसरे तथा चौथे चरण में 18 मात्राएँ होती हैं। 

-  उदाहरण  - 

     अजित जितः सममतिभिः 

       साधुभिर्भवान् जितात्मभिर्भवता । 

       विजितास्तेऽपि च भजता- 

            मकामात्मनां य आत्मदोऽतिकरुणः ॥ 

-  भागवत 6.16.34 से 6.16.47 तक यही छन्द है। परन्तु कुछ छन्द में मात्रा में कुछ कमी या अधिकता है । 

-  श्रीमद्भागवत अन्वितार्थप्रकाशिका टीका में ग्रन्थकार ने इस विषय में लिखा है - ‘इदं स्थूलं लक्षणमपि न घटते नितरां सूक्ष्मं तच्चार्षत्वासोढ़व्यम् । अजित जितः सममतिभिः इत्यादि । अन्यत्रापि बहुस्थलेषु छन्दोभङ्गः सोढव्यः । इति ॥

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