बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार। निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार॥

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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  ब्राह्मण, गो, देवता और संतों के लिए भगवान ने मनुष्य का अवतार लिया। वे माया और उसके गुण (सत्‌, रज, तम) और बाहरी तथा भीतरी इन्द्रियों से परे हैं। उनका दिव्य शरीर अपनी इच्छा से ही बना है ,किसी कर्म बंधन से परवश होकर त्रिगुणात्मक भौतिक पदार्थों के द्वारा नहीं।

लेकिन दुर्भाग्य आज विप्र धेनु एवं संत ये कलिकाल में देखा जाय तो सबसे घृर्णा की दृष्टि से देखें जाते हैं। इसका कारण कोई और नहीं हम स्वयं है।

 आज समाज में ढेर सारे गेरुआ वस्त्र धारण करके अपने आप को संत एवं ब्राह्मण की नकल करते हुए मिल जायेंगे।

मारग सोइ जा कहुँ जोइ भावा। 

पंडित सोइ जो गाल बजावा॥

मिथ्यारंभ दंभ रत जोई।

ता कहुँ संत कहइ सब कोई । । 

  जिसको जो अच्छा लग जाए, वही मार्ग है। जो डींग मारता है, वही पंडित है। जो मिथ्या आरंभ करता (आडंबर रचता) है और जो दंभ में रत है, उसी को सब कोई संत कहते हैं । धेनु अर्थात गाय हमारे ऋषि मुनि कहते हैं कि तैंतीस कोटि देवता का वास गाय मे होता है।

  मानव जाति के लिए गौ से बढ़कर उपकार करने वाली और कोई वस्तु नहीं है। गौ मानव जाति की माता के समान उपकार करने वाली, दीर्घायु और निरोगता देने वाली है। यह अनेक प्रकार से प्राणिमात्र की सेवा कर उन्हें सुख पहुँचाती है। इसके उपकार से मनुष्य कभी उऋण नहीं हो सकता। यही कारण है कि हिन्दू जाति ने गाय को देवता और माता के सदृश्य समझ कर उसकी सेवा-शुश्रूषा करना अपना प्रधान धर्म समझा है। गाय का महत्व प्रतिपादन करने वाले कुछ वेद मन्त्र और शास्त्र वचन नीचे उपस्थित करते हैं।

  देवो वः सविता प्रार्पयतु श्रेष्ठतमाय कर्मण आप्यायध्वमध्या इन्द्राय भागं प्रजावतीरनमीवाँ अयक्ष्मा मावस्तेन ईशत माघ सो ध्रुवा अस्मिन्गोपतौ स्यात् ॥

   'हे गौओं! प्राणियों को सत्कार्यों में प्रवृत्त कराने वाले सवितादेव, आपको हरित शस्य संपन्न विस्तृत क्षेत्र कर्मों का अनुष्ठान होता है । है गौओं! आप इन्द्र के क्षीर मूलक भाग को बढ़ावें अर्थात् अधिक दूध देने वाली हों। आपकी कोई चोरी न कर सके, व्याघ्रादि हिंसक जीव भी आपको न मार सकें, क्योंकि आप तमोगुणी दुष्टों द्वारा मारे जाने योग्य नहीं हो। आप बहुत सन्तान उत्पन्न करने वाली हैं जिनसे संसार का बहुत कल्याण होता है। आप जहाँ रहती हैं वहाँ किसी भी प्रकार की व्याधि नहीं आ सकती ! यहाँ तक कि यक्ष्मा (तपेदिक) आदि राजरोग भी आपके पास नहीं आ सकते, अतएव आप सर्वदा यजमान के घर में सुख पूर्वक निवास करें।

  अन्धस्थान्धो वो भक्षीय महस्थ महो वो भक्षीयोर्जस्थोर्ज ।  वो भक्षीय रायस्पोषस्थ रायस्पोषं वो भक्षीय ॥

    'हे गौओं! आप अन्न को देने वाली हैं अतः आपकी कृपा से हम अन्न को प्राप्त करें। आप पूजनीय हैं, आपके सेवन से हममें सात्विक उच्च भाव पैदा होते हैं। आप बल देने वाली हैं, हमें भी आप बल दें। आप धन को बढ़ाने वाली हैं अतः हमारे यहाँ भी धन की वृद्धि और शक्ति संचार करो।'

अपस्त्रमिन्दुमहष्भुंरण्युमाग्निमीडे षूर्वचितिं नमोभिः । स पर्वभिऋतुशः कल्पमानी गाँ मा हँम् सीरदितिं विराजताम् ।। 

  'क्षय रहित ऐश्वर्य से युक्त रोष रहित अथवा आराधना के योग्य पूर्व महर्षियों से चयन के योग्य अन्नों से सबके पोषण करने वाले अग्नि द्वारा स्तुति करता हूँ। वह अग्नि पर्व द्वारा प्रत्येक ऋतु में कर्मों का सम्पादन करता हुआ अखण्डित अदीन दुग्धदानादि से विराजमान दस ऐश्वर्य होने से गौ विराट हैं अतएव गौ को मत मारो।'

यूयं गावो भेद कृशं चिदक्षीरं चि कृणुथा सुप्रतीकम् । भद्रं गृहं कृणुथ भद्रवाची बृहदो वय उच्यते सभासु ॥

  गौओं दूध से निर्बल मनुष्य बलवान और हृष्ट पुष्ट होता है तथा फीका और निस्तेज मनुष्य तेजस्वी बनता है। गौओं से घर की शोभा बढ़ती है। गौओं का शब्द बहुत प्यारा लगता है।'

शास्त्रों में भी :-

गोभ्यो यज्ञाः प्रवर्त्तन्ते गोभ्यो देवाः समुत्थिताः । गोभ्यो वेदाः समुद्गीर्णाः सषडंगपदक्रमाः ॥

  'गौओं के द्वारा यज्ञ चलते हैं, गौओं से ही देवता हुए हैं। छओं अंगों सहित वेदों की उत्पत्ति गौओं से ही हुई है।'

मूलं गवा नित्यं ब्रह्मविष्णु समाश्रितौ।

शृंगा सर्वतीर्थानि स्थावराणि चराणि च ॥

   'गौओं के सींग के मूल में ब्रह्मा और विष्णु निवास करते हैं, सींग के अग्रभाग में सब तीर्थ और स्थावर जंगम रहते हैं।

शिरोमध्ये महादेवः सर्वभूतमयः स्थितिः ।

गवामंगेषु निष्ठान्ति भुवनानि चतुर्दश ॥

   'गौओं के शिर के बीच में सारे संसार के साथ शिवजी निवास करते है। गौओं के अंगों में चौदहों भुवन रहते हैं।

गावः स्वगस्य सोपानं गावः स्वर्गेऽपि पूजिताः । गावः कामदुहो देव्यो नान्यत्किञ्चित्षरं स्मृतम् ॥

   'गौएं स्वर्ग की सीढ़ी हैं, स्वर्ग में भी गौओं की पूजा होती है। गौएं अभिलषित फल देने वाली हैं, गौ से बढ़कर उत्तम और कोई वस्तु नहीं है।

  सनातन धर्म में गाय पूजनीय है और इसमें तैंतीस कोटि देवी देवताओं का वास होता है। हिन्दू धर्मग्रन्थों और वेदों में तो गाय को स्थान दिया ही गया है, देवों और महापुरुषों ने भी गाय का उत्तम बखान किया है। आइए जानते हैं किसने क्या कहा है गाय के बारे में- 

 स्कंद पुराण के अनुसार - ‘गौ सर्वदेवमयी और वेद सर्वगौमय हैं। 

भगवान कृष्ण ने श्रीमद् भगवद्भीता में कहा है- 

धेनुनामस्मि कामधेनु:’ अर्थात मैं गायों में कामधेनु हूं।

  श्रीराम ने वन गमन से पूर्व किसी त्रिजट नामक ब्राह्मण को गाय दान की थी।

 गुरु गोविंदसिंहजी ने कहा -

यही देहु आज्ञा तुरुक को खापाऊं। 

 गौ माता का दुःख सदा मैं मिटाऊं।। 

बाल गंगाधर तिलक ने कहा था कि -

 चाहे मुझे मार डालो, पर गाय पर हाथ न उठाओ’।

  पं. मदनमोहन मालवीय की अंतिम इच्छा थी कि भारतीय संविधान में सबसे पहली धारा सम्पूर्ण गौवंश हत्या निषेध की बने।

   पंडित मदनमोहन मालवीय का कथन था कि यदि हम गायों की रक्षा करेंगे तो गाएं हमारी रक्षा करेंगी।

मुस्लिम कवि रसखान ने कहा- 

जो पशु हों तो कहा बसु मेरो। 

चरों नित नंद की धेनु मंझारन।

भगवान महावीर के अनुसार -

गौ रक्षा बिना मानव रक्षा संभव नहीं। 

   स्वामी दयानन्द सरस्वती कहते हैं कि एक गाय अपने जीवनकाल में 4,10,440 मनुष्यों हेतु एक समय का भोजन जुटाती है जबकि उसके मांस से 80 मांसाहारी लोग अपना पेट भर सकते हैं।

 गोवंश की रक्षा ईश्वर की सारी मूक सृष्टि की रक्षा करना है, भारत की सुख- समृद्धि गाय के साथ जुड़ी हुई है। गाय प्रसन्नता और उन्नति की जननी है, गाय कई प्रकार से अपनी जननी से भी श्रेष्ठ है।

   लेकिन आज दुर्भाग्य है कि लोगों ने गाय को सड़क पर छोड़ दिया है।जो कसाईयों का भोजन बन रही है। अभी भी समय है जाग जाओ,कब तक सोते रहोगे, क्योंकि सोते हुए को जगाया जा सकता है लेकिन जो सोने का नाटक कर रहा है उसे जगाना मुश्किल है। हे सनातन प्रेमियों ! उठो और गौ, ब्राह्मण एवं संत की रक्षा करो। यदि हम गौ रक्षा नहीं कर सकते, तो आने वाले समय में हमें भी बचाने वाला कोई नहीं होगा। 

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