छैनी उठाना ही भक्ति ?

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 एक मूर्तिकार एक रास्ते से गुजरा और उसने संगमरमर के पत्थर की दुकान के पास एक बड़ा संगमरमर का पत्थर पड़ा देखा अनगढ़ राह के किनारे। उसने दुकानदार से पूछा कि और सब पत्थर सम्भाल के भीतर रखे गए हैं। ये पत्थर बाहर क्यों डाला है ??

  उसने कहा ये पत्थर बेकार है। इसे कोई मूर्तिकार खरीदने को राजी नहीं है। आपकी इसमें उत्सुकता है ??

  मूर्तिकार ने कहा मेरी उत्सुकता है। उसने कहा। आप इसको मुफ्त ले जाएँ। ये टले यहाँ से तो जगह खाली हो बस इतना ही काफी है कि ये टल जाए यहाँ से। ये आज दस वर्ष से यहाँ पड़ा है। कोई खरीददार नहीं मिलता। आप ले जाओ कुछ पैसे देने की जरूरत नहीं है। अगर आप कहो तो आपके घर तक पहुँचवाने का काम भी मैं कर देता हूँ।

  दो वर्ष बाद मूर्तिकार ने उस पत्थर के दुकानदार को अपने घर आमंत्रित किया कि मैंने एक मूर्ति बनाई है। तुम्हें दिखाना चाहूँगा। वो तो उस पत्थर की बात भूल ही गया था। मूर्ति देखके तो दंग रह गया ऐसी मूर्ति शायद कभी बनाई नहीं गई थी। 

  भगवान श्री कृष्ण का बाल रूप उस मूर्तिकार ने तराशा। मईया यशोदा श्री कृष्ण को गोद में खिला रही हैं। इतनी जीवंत कि उसे भरोसा नहीं आया।

उसने कहा ये पत्थर तुम कहाँ से लाए ??

इतना अद्भुत पत्थर तुम्हें कहाँ मिला ??

  मूर्तिकार हँसने लगा उसने कहा। ये वही पत्थर है। जो तुमने व्यर्थ समझ के दुकान के बाहर फेंक दिया था और मुझे मुफ्त में दे दिया था। इतना ही नहीं। मेरे घर तक पहुँचवा दिया था।

“वही पत्थर है” उस दुकानदार को तो भरोसा ही नहीं आया। उसने कहा तुम मजाक करते हो। उसको तो कोई लेने को भी तैयार नहीं था। दो पैसा देने को कोई तैयार नहीं था। तुमने उस पत्थर को इतना महिमा रूप, इतना लावण्य दे दिया। तुम्हें पता कैसे चला कि ये पत्थर इतनी सुन्दर प्रतिमा बन सकता है ??

  मूर्तिकार ने कहा आँखें चाहिए पत्थरों के भीतर देखने वाली आँख चाहिए। अधिकतर लोगों के जीवन अनगढ़ रह जाते हैं। दो कौड़ी उनका मूल्य होता है। मगर वो तुम्हारे ही कारण। तुमने कभी तराशा नहीं। तुमने कभी छैनी नहीं उठाई। तुमने कभी अपने को गढ़ा नहीं। तुमने कभी इसकी फिकर न की कि ये मेरा जीवन जो अभी अनगढ़ पत्थर है एक सुन्दर मूर्ति बन सकती है। इसके भीतर छिपा हुआ भगवान प्रगट हो सकता है। इसके भीतर छिपा हुआ ईश्वर प्रगट हो सकता है।

 वस्तुत: मूर्तिकार के जो शब्द थे। वो ये थे कि मैंने कुछ किया नहीं है। मैं जब रास्ते से निकला था। इस पत्थर के भीतर पड़े हुए भगवान ने मुझे पुकारा कि मूर्तिकार मुझे मुक्‍त करो। उनकी आवाज़ सुनके ही मैं इस पत्थर को ले आया। मैंने कुछ किया नहीं है, सिर्फ भगवान के आस-पास जो व्यर्थ के पत्थर थे। वो छाँट दिए हैं। भगवान प्रगट हो गए हैं।

  प्रत्येक व्यक्‍ति परमात्मा को अपने भीतर लिए बैठा है। थोड़े से पत्थर छाँटने हैं। थोड़ी छैनी उठानी है। उस छैनी उठाने का नाम ही भक्ति है। 

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