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भारतीयदर्शन में परमाणु :- महर्षि कणाद

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    भारतीय दर्शन में परमाणु का उल्लेख पाश्चात्य विज्ञान से कई सदी पहले ही हो गया था। परमाणु और अणु, कई मतों के अनुसार एक ही तत्व से दो नाम ह...

    भारतीय दर्शन में परमाणु का उल्लेख पाश्चात्य विज्ञान से कई सदी पहले ही हो गया था। परमाणु और अणु, कई मतों के अनुसार एक ही तत्व से दो नाम हैं। भिन्न भिन्न दर्शन के अनुसार परमाणुओं का अपने तरीके से वर्णन किया गया हैं। परंतु इसका सारांश यह ही निकलता हैं कि परमाणु पदार्थ का सबसे सूक्ष्म अंग हैं, जिसका अधिक विभाजन साध्य नहीं।

व्युपत्ति -

   परमाणु संस्कृत भाषा के दो शब्दों का मेल हैं - परम + अणु। परम अर्थात सर्वोत्कृष्ट तथा अणु अर्थात सबसे छोटा हिस्सा। ततः, परमाणु और अणु का स्थूल रूप से अर्थ एक ही हैं। पर चूँकि विज्ञान में अणु से लघु, उसके विभाजित अंगो को संबोधित किया गया हैं, इसलिए अविभाज्य परमाणु को अणु से भिन्न समझना गलत नहीं।

वैशेषिक दर्शन -

  वैशेषिक में चार भूतों के चार तरह के परमाणु माने हैं — पृथ्वी परमाणु, जल परमाणु, तेज परमाणु और वायु-परमाणु। 

  पाँचवा भूत आकाश विभु है। इससे उसके टुकड़े नहीं हो सकते। 

  परमाणु इसलिये मानने पड़े हैं कि जितने पदार्थ देखने में आते हैं सब छोटे छोटे टुकड़ों से बने हैं। इन टुकड़ों में से किसी एक को लेकर बराबर टुकड़े करते गए तो अंत में ऐसे टुकड़े होंगे जो दिखाई न पड़ेंगे।

   वैशेषिकों का सिद्धांत है कि कारण गुणपूर्वक ही कार्य के गुण होते हैं, अतः जैसे गुण परमाणु में होंगे वैसे ही गुण उनसे बनी हुई वस्तुओं में होगे। जैसे, गंध, गुरुत्व आदि जिस प्रकार पृथ्वी परमाणु में रहते हैं उसी प्रकार सब पार्थिव वस्तुओं में होते हैं।

परमाणुवाद

  महर्षि कणाद जी के वैशेषिक दर्शन के मत से इन्हीं परमाणुओं के संयोग से पृथ्वी आदि द्रव्यों की उत्पत्ति हुई है जिसका क्रम प्रशस्तपाद भाष्य में इस प्रकार लिखा गया हैं -

  जब जीवों के कर्मकल के भोग का समय आता है तब महेश्वर की उस भोग के अनुकूल सृष्टि करने की इच्छा होती है। इस इच्छा के अनुसार जीवों के अद्दष्ट के बल से वायु परमाणुओं में चलन उत्पन्न होता है। इस चलन से उन परमाणुओं में परस्पर संयोग होता है। दो दो परमाणुओं के मिलने से 'द्वयणुक' उत्पन्न होते हैं। तीन द्वयणुक मिलने से 'त्रसरेणु'। चार द्वयणुक मिलने से 'चतुरणुक' इत्यादि उत्पन्न हो जाते हैं। इस प्रकार -

1)एक महान वायु उत्पन्न होता है।

2) उसी वायु में जल परमाणुओं के परस्पर संयोग से जलद्वयणुक जलत्रसेरणु आदि की योजना होते होते महान जलनिधि उत्पन्न होता है।{ (H2O )hydrogen and oxygen}

3)इस जलनिधि में पृथ्वी परमाणुओं के संयोग से द्वयणुकादी क्रम से महापृथ्वी उत्पन्न होती है। (H2O+any other gas which is responsible for creating earth not confirmed by modern science )

4)उसी जलनिधि में तेजस् परमाणुओं के परस्पर संयोग से महान तेजोराशि की उत्पत्ति होती है।(H2O + any other gas which is responsible for creating fire not confirmed by mordern science)

 इसी क्रम से चारो महाभूत उत्पन्न होते हैं। यही संक्षेप में वैशेषिकों का परमाणुवाद है।

तर्कामृत -

   परमाणु अत्यंत सूक्ष्म और केवल अनुमेय है। अतः किसी छेद से आती हुई सूर्य की किरणों में जो छोटे छोटे धुल के कण दिखाई पड़ते हैं उनके टुकड़े करने से अणु होंगे। ये अणु भी जिन सूक्ष्मतिसूक्ष्म कणों से मिलकर बने होंगे उन्हीं का नाम परमाणु रखा गया है। तर्कामृत नाम के एक नवीन ग्रंथ में जो यह लिखा गया है कि सूर्य की आती हुई किरणों की बीच जो धूल के कण दिखाई पड़ते हैं उनके छठे भाग को परमाणु कहते हैं।

जालान्तरस्थसूर्यांशौ यत् सूक्ष्मं दृश्यते रजः।

भागस्तस्य च षष्ठो यः परमाणुः स उच्यते ॥

   निम्नलिखित श्लोक में जाले से आने वाले प्रकाश में दिखने वाले धूल के कणों के ३०वें भाग को परमाणु कहा गया है।

जालान्तरगते रश्मौ यत् सूक्ष्मं दृश्यते रजः।

तस्य त्रिंशत्तमो भागः परमाणुः स उच्यते ॥

वायुपुराण के श्लोक में परमाणुवाद -

परमाणुः सुसूक्ष्मस्तु बावग्राह्यो न चक्षुषा।

यदभेद्यतमं लोके विज्ञेयं परमाणु तत् ॥ ३९.११७ ॥

जालान्तरगतं भानोर्यत्सूक्ष्मं दृश्यते रजः।

प्रथमं तत्प्रमाणानां परमाणुं प्रचक्षते ॥ ३९.११८ ॥

अष्टानां परमाणूनां समवायो यदा भवेत्।

त्रसरेणुः समाख्यातस्तत्पद्मरज उच्यते ॥ ३९.११९ ॥

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