राम रसायन तुम्हारे पासा सदा रहो रघुपति के दासा - एक वैज्ञानिक विश्लेषण

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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ramcharit manas


  तुलसीदासजी लिखते हैं कि यदि हमें जीवन में हनुमानजी की भांति दास्य भाव लाकर भगवान की भक्ति करनी है तो उसके लिए राम रसायन चाहिए। यह राम रसायन क्या है? 

 चार बातों के मिश्रण से जो रसायन बनता है, उसे राम रसायन कहते हैं।

1. तज्ञता 

2. आत्मीयता की अनुभूति 

3. वात्सल्य का अनुभव और

4. विश्वास। 

  इन चार बातों के मिश्रण से जो रसायन बनता है उसे भाव कहते हैं । यही राम रसायन है। राम रसायन यानी भगवान राम के प्रति भाव निर्माण होने के लिए इन चार बातों की आवश्यकता है। हनुमानजी के जीवन में चारों बातें थी इसलिए उनका दास्यभाव भी उत्कृष्ट है। जिनके जीवन में यह चार बाते होती हैं वह हनुमानजी की तरह राम का दास बन सकता है ।

  भगवान मेरे मालिक हैं ।  भगवान मालिक, दाता, शासक, पालक, पिता, मित्र और स्वामी भी हो सकते हैं ।  गीता में अर्जून ने तीन स्थितियाँ बतायी है।  

पितेव पुत्रस्य सखेव सख्यु: 

प्रिय: प्रियायार्हसि देव सोढुम ।

  यह सब भक्ति की पूजा सामग्री है, उसे जीवन में लाना चाहिए, तो भक्ति की जा सकती है । भक्ति की यह वृत्ति जब दृढ होती है तब 

सदा रहो रघुपति के दासा। 

  भक्ति जिज्ञासा में से उत्पन्न होनी चाहिए ।  बुद्धि में कृति का निश्चय होना चाहिए ।  भक्ति वैयक्तिक जीवन में आश्रय है तो सामाजिक जीवन में आवश्यकता है ।  हम भक्ति का अर्थ स्तुति करना समझते हैं हम समझते है जो स्तुति करता है उसे मरने के बाद फायदा होता है, जो भगवान की ज्यादा प्रशंसा करता है वह भगवान को अच्छा लगता है मगर वास्तव में ऐसा नहीं होता ।

 इस चौपाई में जो वैज्ञानिकता समाई हुई है, उसी पर चर्चा करते हैं। इस चौपाई में गोस्वामी तुलसीदास जी ने जिस बात प्रमुख रूप से इशारा किया है वह है राम रसायन। विचार करने वाली बात यह है कि यह राम रसायन क्या है ? 

  राम (Ram) का तात्पर्य हम संपूर्ण आत्माओं की आत्मा यानी कि परमात्मा है, वही रसायन का मतलब साधारण भाषा में द्रव्य (chemical) पदार्थ होता है। इन दोनों शब्दों पर गहराई से विचार करने पर यह बात सामने आती है कि हनुमान चालीसा में वर्णित इस चौपाई का हमारे मस्तिष्क से सीधा संबंध है।

   वैज्ञानिक भी इस बात को सिद्ध कर चुके हैं कि हमारे मस्तिष्क में कई प्रकार के रसायन बनते रहते हैं जब हम अच्छे विचारों से ओतप्रोत होते हैं तो उस समय हमारे मस्तिष्क से ऐसा द्रव्य सृवाहित होते हैं जिनके असर से जीवन उच्चतम स्तर पर पहुंच जाता है, इसी के साथ-साथ हमारी बीमारियां तो दूर होती ही है वरन बाहर की परिस्थितियां भी अनुकूल हो जाती है।

  वैज्ञानिक दृष्टिकौण से देखा जाए तो हम हमारे शरीर में कुछ ऐसे रसायन होते हैं जो मस्तिष्क के खास हिस्सों में विशिष्ट ग्रंथियों से निर्मित होते हैं।

 इन्हें न्यूरोट्रांसमीटर्स (neurotransmitters) कहते हैं। ये ऐसे रसायन है जो सोच-विचार के जरिए हमारे व्यवहार और आचरण को प्रभावित करते हैं। इनकी सुक्ष्मता ही हमारी मानसिक क्रियाओं के लिए पर्याप्त होती है। वहीं दूसरी ओर इन रसायनों की कमी घातक साबित होती है।

 गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस वाक्य के माध्यम से जीवन के अंतिम उद्देश्य की ओर इशारा किया, अर्थात राम रसायन यानी कि सकारात्मक दृष्टिकोण से मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाले द्रव्यों के प्रभाव से जीवन सुखमय बिताने के पश्चात रघुपति यानी कि प्रभु श्री राम की शरण में जाना है।

Scientific Mystery of Hanuman Chalisa

  हनुमान चालीसा की चौपाइयों का नियमित पठन-पाठन व श्रवण से हमारे मस्तिष्क में वह तरंगे उत्पन्न होती है। जिससे कि मस्तिष्क में बनने वाले प्रमुख न्यूरोट्रांसमीटर्स यानी डोपामाइन (dopamine), सेरोटोनिन (serotonin), गुआटामेट एंडोर्फिंस (guatamate endorphins) और नोरे ड्रिनेलिन (noradrenaline) का बैलेंस बना रहता है और इससे सुकून भरी जिंदगी, सीखने की क्षमता का विकास, एकाग्रता, संघर्ष एवं जुझारू पन की क्षमता का स्वतः ही विकास हो जाता है। यही राम रसायन का अति विशिष्ट महत्व है।

  विज्ञान के बारे में हमें ज्यादा जानकारी नहीं है यदि कोई त्रुटी हो तो पाठक गण सुधार कर ले।

  राम-रसायन वह भाव है जिससे भक्त पूरी तरह अपने इष्ट राम में समाहित हो जाता है. दरअसल रसायन कई यौगिकों से मिलाकर तैयार किया जाता है. अलग अलग स्थितियों में यह यौगिक काम के नहीं होते हैं. लेकिन जब यह सभी मिलकर रसायन का रुप ले लेते हैं तो फिर काम के हो जाते हैं। 

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