जनम-जनम मुनि जतन कराहीं। अंत राम कहि आवत नाहीं।।

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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   मुनि लोग बरसों वर्ष तक तपस्या करते हैं परंतु जब उनका अंत समय आता है तो मुख से राम नाम निकलता ही नहीं इसलिए इतना करो कि पैर में ठोकर लगते ही गोविंद नाम मुख से निकले मां बाप का नहीं।

   हमारा कहने का मतलब यह नहीं है कि मां बाप का कोई महत्व नहीं है। मां बाप अपने स्थान पर महान एवं पूज्यनीय है , लेकिन प्रभु स्मरण का अंत समय में जीवन रुपी भवसागर पार कर देता है । 

  अब हमारे मन में शंका उठती है, कि अगर एक नाम प्रभु का जीवन के सारे पापों को ध्वस्त कर सकता है, तो हमारे द्वारा इतना नाम लिया हमने अपने जीवन में इतना नाम लिया गया फिर हमारे पाप क्यों नहीं कटते। इसमें एक कारण है, हमारे या आप के मुख से जब प्रभु का नाम निकलता है तभी आप के समस्त पाप जलकर भस्म हो जाएंगे।

येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम्।

ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रताः।।

  परन्तु जिन पुण्यकर्मी पुरुषों का पाप नष्ट हो गया है, वे द्वन्द्वमोह से निर्मुक्त और दृढ़वती पुरुष मुझे भजते हैं।

  इसमें कोई संदेह नहीं। शास्त्रीय प्रमाण है, परंतु महाराज शर्त इतनी है कि प्रभु का नाम उच्चारण के बाद फिर कोई पाप हृदय में प्रवेश ना होवे, तो सारे पाप भस्म ही रह जाएंगे और यदि मन में एक पाप भी घुसा तो सारे सोए हुए पापों को भी जगा देगा। तो फिर उपाय क्या है? उपाय इतना है कि राम नाम लेते ही प्राण छूट जाए तो तर जाओगे। उस अंतिम नाम ने ही तुम्हारे जीवन को पवित्र बना दिया।

  कलियुग में भगवान का अवतरण होता है 'नाम' के रूप में। कलियुग में जो युग-धर्म है वह है नाम संकीर्तन। भगवान चैतन्य महाप्रभु ने भी कहा है कि कलियुग में केवल हरिनाम ही हमारा उद्धार कर सकता है। इसके अलावा किसी भी अन्य साधना से सद्गति नहीं है। यही बात नानक देव ने भी कही है, 

नानक दुखिया सब संसारा। 

ओही सुखिया जो नामाधार।। 

 श्रीमद्भागवतम्  में शुकदेव गोस्वामी महाराज कलियुग के लक्षण बताने के बाद महाराज परीक्षित से कहते है ं

  "हे राजन - यदपि कलियुग दोषों का सागर है फिर भी इस युग में एक अच्छा गुण है , केवल श्री हरि के सुमधुर नाम कीर्तन करने से मनुष्य भवबंधन से मुक्त हो जाता है और दिव्य धाम को प्राप्त होता है। 

तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है:-

कलियुग केवल नाम आधारा। 

सुमिरि  सुमिरि नर उतरहिं पारा।। 

  गोस्वामी तुलसीदास जी ने कलियुग जैसे समय में,इतने बढते हुए अधर्म और पापों के बावजूद कितना सरल और सुगम उपाय बताया है भवसागर पार करने का । 

 अजामिल की कथा तो आपने सुनी होगी। अंत समय में अंजामिल के मुख से भगवान का नाम सुनते ही विष्णु पार्षद उसी समय उसी स्थान पर प्रकट हो गए। 

 यमराज के पार्षद अजामिल के शरीर में से उसके प्राण हर रहे थे। तब भगवान विष्णु के दूतों ने उन्हें बलपूर्वक रोक दिया उनके रोकने पर यमदूतों ने कहा- आप लोग कौन हैं ?

 हमें तो कोई देवता प्रतीत होते हैं। पर आप धर्म का और हमारे महाराज यम की आज्ञा का उल्लंघन कर रहे हो।

  तब भगवान के पार्षदों ने कहा- यमदूतों! तुम धर्मराज के आज्ञाकारी दूत हो तो हमें धर्म का लक्षण और धर्म का तत्व बताओ।

ब्रूत धर्मस्य नस्तत्त्वं यच्च धर्मस्य लक्षणम्।

  दूतों ने कहा- देखो भाई! और तो हम कुछ नहीं जानते, बस हम धर्मराज की आज्ञा को ही धर्म मानते हैं। इसने अपने जीवन में बहुत पाप किए हैं, इसलिए इसके जीवन की समाप्ति के बाद हम इसे लेने आए हैं।

   तब पार्षदों ने कहा- तो इतना और जान लो कि जिसने अंत समय में भगवान नारायण का नाम ले लिया समझो उसी समय उसके जीवन के सारे पाप समाप्त हो जाते हैं। इसलिए इसने भी अंत समय में उच्च स्वर से भगवान का नाम स्मरण किया, इसलिए अब इसके प्राण पर हमारा अधिकार है। तुम लोग अब यहां से जाओ यह तो अब बैकुंठ का निवासी हो गया।

  यहां पर जरा ध्यान दें। भगवान का केवल नाम अंतःकरण की शुद्धि के लिए, पाप की निवृत्ति के लिए पर्याप्त है। 

ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।

मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।

 हे पृथानन्दन ! जो भक्त जिस प्रकार मेरी शरण लेते हैं, मैं उन्हें उसी प्रकार आश्रय देता हूँ; क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकारसे मेरे मार्गका अनुकरण करते हैं।

  भगवान के तो सहस्त्रनाम हैं, आप किसी भी नाम का संकीर्तन कर लें। एक व्यक्ति सब नाम का उच्चारण करे यह आवश्यक नहीं। क्योंकि सब नामों का उच्चारण संभव ही नहीं है। भगवान के एक नाम का उच्चारण करने मात्र से सब पापों की निवृत्ति हो जाती है। पाप की निवृत्ति के लिए भगवन्नाम का एक अंश ही पर्याप्त है। जैसे राम का “रा” इसने तो संपूर्ण नाम का उच्चारण कर लिया। इसलिए महाराज जितना ज्यादा से ज्यादा हो सके नाम उच्चारण करें। इसे अपने जीवन में उतारें, हर वक्त हर समय नाम उच्चारण करें। क्या पता कब हमारी मौत हमारे सामने हो।

  तो फिर आप कहोगे- कि अभी से नाम लेने की क्या जरूरत है अंत समय में कह देंगे सुधर जायेंगे। पर ऐसा संभव नहीं। 

जनम जनम मुनि जतन कराहीं।

अंत राम कहि आवत नाहीं।।

  इसीलिए महाराज! अंत के भरोसे में ना रहना यह जिह्वा कब फिसल जाए पता नहीं। इसलिए आज से ही अभ्यास करना शुरू कर दो।पैर में कांटा चुभते ही मैया दईया चिल्लाते हैं। पर यदि हर बात में राम का नाम निकले यही तो कल्याण का मार्ग है।

 यह बात अलग है कि अजामिल ने अपने बेटे के नाम से अभ्यास कर रखा था पर निकला अंतिम समय में भगवान का नाम ही तो अंत में अजामिल के मुख से धोखे से निकला नारायण नाम उसके पापों से छुटकारा दिला मुक्ती प्रदान करा दिया।

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