विभिन्न संस्थानों के ध्येय-वाक्यों का संस्कृत एवं हिन्दी में भावार्थ

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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(1) सत्यमेव जयते (सत्य की ही विजय होती है।)

भारतसर्वकारः संस्कृत-भावार्थ:-सत्यस्य एव विजयः भवति । एतद् अस्माकं देशस्य मूलमन्त्रः अस्ति। सत्यात् परं किमपि नास्ति । सत्यम् एव शाश्वतम्। अतः सत्यमेव जयते।

हिन्दी - भावार्थ- सत्य की ही विजय होती है। यह हमारे देश का मूल मन्त्र है। सत्य से बड़ा कुछ भी नहीं है। सत्य ही शाश्वत है। इसलिए सत्य ही विजय को प्राप्त करता है। (यह ध्येय वाक्य भारत सरकार के अशोक चिह्न में स्वीकृत है ।)

(2) यतो धर्मस्ततो जयः (जहाँ धर्म है, वहाँ विजय होती है।)

- सर्वोच्चन्यायालयः

संस्कृत-भावार्थ:-यत्र धर्मः तत्र विजयः भवति अधर्मस्य सदा पराजयः एव भवति। यदि वयं धर्मपूर्वकम् अर्थात् न्यायपूर्वकम् कार्य करवाम, तर्हि अस्माकं विजय निश्चितः इति ।

हिन्दी- भावार्थ-जहाँ धर्म है, वहाँ विजय होती है। अधर्म की हमेशा पराजय होती है। यदि हम धर्मपूर्वक अर्थात् न्यायपूर्वक कार्य करते हैं, तो हमारी विजय निश्चित है। (यह ध्येय वाक्य भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वीकृत है तथा उसके प्रतीक चिह्न में अंकित है।)

(3) सत्यं शिवं सुन्दरम् (ईश्वर सत्य-स्वरूप, कल्याणकारी और सुन्दर है।)

-राष्ट्रियदूरदर्शनम्

संस्कृत भावार्थ:-सः परमात्मा सत्यस्वरूपः अस्ति, स एव विश्वस्य कल्याणं करोति अतः सः परमदयालुः अस्ति। स एव सुन्दरः अस्ति। तस्मात् सुन्दरः अस्मिन् ब्रह्माण्डे कोऽपि नास्ति अतः सत्यं शिवं सुन्दरम् प्रस्तौति अस्माकं दूरदर्शनम् ।

हिन्दी- भावार्थ- वह परमात्मा सत्य-स्वरूप है, वही संसार का कल्याण करता है। अत: वह परम दयालु है। वही सुन्दर है। उससे अधिक सुन्दर इस ब्रह्माण्ड में कोई भी नहीं है। इसलिए हमारा दूरदर्शन सत्य, शिव (कल्याण) और सुन्दर को प्रस्तुत करता है। (यह ध्येय वाक्य हमारे राष्ट्रीय दूरदर्शन द्वारा स्वीकृत है तथा उसके प्रतीक चिह्न में अंकित है।)

(4) बहुजनहिताय बहुजनसुखाय (हमारा जीवन बहुत से लोगों के हित और सुख के लिए है।)

- आकाशवाणी

संस्कृत भावार्थ:- बहुजनानां हिताय अर्थात् अस्माकं जीवनं सम्पूर्णसमाजस्य हिताय सुखाय च भवेत् वयं तस्य सुखस्य कृते सर्वदा प्रयत्नं कुर्मः इति भावः ।

हिन्दी- भावार्थ- बहुत से लोगों के हित के लिए अर्थात् हमारा जीवन सम्पूर्ण समाज के हित के लिए और सुख के लिए होना चाहिए। हम सभी के कल्याण और सुख के लिए हमेशा प्रयत्न करते रहें। (यह ध्येय वाक्य भारत के आकाशवाणी (रेडियो) विभाग द्वारा स्वीकृत है और उसके प्रतीक चिह्न में अंकित है।)

(5) धर्मचक्र प्रवर्तनाय (राजा प्रजा का धर्मपूर्वक पालन करे।)

-लोकसभा

संस्कृत भावार्थ:- शासकस्य दायित्वं भवति यत् सर्वान् मानवान् धर्मपूर्वकं पालयेत् । धर्मस्य अर्थः कर्तव्यम् । शासक स्वयं कर्तव्यपालनं कुर्वन् स्वप्रजाम् अपि कर्तव्यपालने योजयेत्। तदर्थं धर्मचक्रप्रवर्तनाय अस्माकं लोकसभा ।

हिन्दी भावार्थ- शासक का दायित्व होता है कि वह सभी मनुष्यों का धर्मपूर्वक पालन करे। धर्म का अर्थ कर्तव्य है। शासक स्वयं अपने कर्तव्य का पालन करता हुआ अपनी प्रजा को भी कर्तव्य पालन में लगाये। उसी के लिए अर्थात् धर्म-चक्र पर प्रेरित करने के लिए हमारी लोकसभा है। (यह ध्येय वाक्ये भारत की लोकसभा द्वारा स्वीकृत है। ) ।

(6) योगक्षेमं वहाम्यहम् (हम अप्राप्त की प्राप्ति तथा प्राप्त की रक्षा करें।)

-भारतीयजीवनबीमानिगमः

संस्कृत भावार्थ:- योगः अर्थात् अप्राप्तवस्तुनः प्राप्तिः । क्षेमः अर्थात् प्राप्तवस्तुनः संरक्षणम् । इत्थम् अप्राप्तवस्तूनि वयं प्राप्नुयाम् प्राप्तवस्तूनि च रक्षेम।

हिन्दी भावार्थ योग अर्थात् अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति होना। क्षेम अर्थात् प्राप्त वस्तु की रक्षा करना इस प्रकार अप्राप्त वस्तुओं को हम प्राप्त करें तथा प्राप्त वस्तुओं की रक्षा करें। (यह ध्येय वाक्य भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा स्वीकृत है एवं उसके प्रतीक चिह्न में अंकित है।)

(7) आदित्यात् जायते वृष्टिः (सूर्य से वर्षा होती है।)

-भारतीयमौसमविभागः

संस्कृत-भावार्थ: यदा सूर्य : तपति तदा समुद्रेषु अवस्थितं जलं वाष्परूपेण गगने गच्छति। तेनैव मेघानां निर्माण भवति मेघाः जलं वर्षन्ति । अतः एवोच्यते आदित्यात् जायते वृष्टिः

हिन्दी भावार्थ-ज - जब सूर्य तपता है तब समुद्रों में स्थित जल वाष्प के रूप में आकाश में जाता है। उसी से बादलों का निर्माण होता है। बादल जल की वर्षा करते हैं। इसीलिए कहा जाता है—सूर्य से वर्षा होती है। (यह ध्येय वाक्य भारतीय मौसम विभाग द्वारा स्वीकृत है एवं उसके प्रतीक चिह्न में अंकित है।)

(8) नभः स्पृशं दीप्तम् (प्रकाशित आकाश का स्पर्श करना।)

-भारतीयवायुसेना

संस्कृत-भावार्थ:- प्रकाशितस्य आकाशस्य स्पर्शनम् अर्थात् अस्माकं गतिः न केवलं भूमण्डले अपितु गगनमण्डलेऽपि निर्वाधरूपेण भवेत् वयं नभसि अवस्थितान् शत्रून हत्वा जयामहे।

हिन्दी- भावार्थ- प्रकाशित आकाश का स्पर्श करना (ना)। अर्थात् हमारी गति न केवल भूमण्डल पर ही अपितु आकाश-मण्डल में भी बाधारहित रूप से होनी चाहिए। हम आकाश में स्थित शत्रुओं को नष्ट करके विजय प्राप्त करें। (यह ध्येय वाक्य भारतीय वायुसेना का है तथा उसके प्रतीक चिह्न में अंकित है।)

(9) शन्नो वरुणः (वरुण देवता हमारा कल्याण करें।)

-भारतीयजलसेना

संस्कृत-भावार्थ:-जलाधिपति: वरुणः अस्माकं कल्याणं विदधातु । समुद्रसन्तरणे का अपि बाधा न आगच्छेत्। तत्रापि अस्माकं मङ्गलं भवेत्

हिन्दी- भावार्थ-जल के देवता वरुण हमारा कल्याण करे। समुद्र को तैरने में कोई भी बाधा नहीं आवे वहाँ

भी हमारा मंगलमय होवे। (यह ध्येय वाक्य भारतीय जल-सेना द्वारा स्वीकृत है एवं उसके प्रतीक चिह्न में

अंकित है।) (10) शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् (शरीर ही धर्म का पहला साधन है।)

- अखिलभारतीय आयुर्विज्ञानसंस्थानम्

संस्कृत भावार्थ:- धर्मसाधनस्य प्रथम सोपानम् अस्ति अस्माकं शरीरम् कार्य विना वयं किम् अपि साधयितुं

समर्था न भवामः अतः यत्नेन शरीरस्य संरक्षणं करणीयम् ।

हिन्दी- भावार्थ धर्म के साधन का प्रथम सोपान (सीढ़ी) हमारा शरीर है। शरीर के बिना हम कुछ भी सिद्ध नहीं कर सकते हैं। इसलिए प्रयत्नपूर्वक सर्वप्रथम अपने शरीर की सुरक्षा करनी चाहिए। [यह ध्येय वाक्य अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) द्वारा स्वीकृत है एवं उसके प्रतीक चिह्न में अंकित है।

(11) असतो मा सद्गमय (ईश्वर मुझे असत्य से सत्य की ओर ले जावे।)

-केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षाबोर्ड

संस्कृत भावार्थ:-ईश्वर निवेदयामि यत् स माम् असत्यात् सत्यं प्रति नयेत् । अर्थात् वयं कदापि सन्मार्ग विहाय

अन्यत्र न विचरेम।

हिन्दी- भावार्थ- मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि वह मुझे असत्य से सत्य की ओर ले जावे। अर्थात् हम कभी भी सन्मार्ग को छोड़कर दूसरी जगह (कुमार्ग पर नहीं भटकें। [यह ध्येय वाक्य केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) द्वारा स्वीकृत है एवं उसके प्रतीक चिह्न में अंकित है ।]

(12) विद्ययाऽमृतमश्रुते (विद्या से अमरता की प्राप्ति होती है।

- राष्ट्रियशैक्षिक अनुसन्धानम् एवं प्रशिक्षण परिषद् (NCERT)

संस्कृत भावार्थ:- विद्यया अर्थात् ज्ञानेन अमरतायाः प्राप्तिः भवति शरीरे विनष्टे सति यशः शाश्वत् भवति । विद्यया मानव: यशः प्राप्नोति अत एव उच्यते विद्ययाऽमृतमश्रुते

हिन्दी भावार्थ-विद्या अर्थात् ज्ञान से अमरता की प्राप्ति होती है। शरीर के नष्ट हो जाने पर भी यश हमेशा रहता है। विद्या से मनुष्य यश प्राप्त करता है। इसलिए कहा गया है-विद्या से अमृत प्राप्त होता है। [यह ध्येयवाक्य राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद् (NCERT) द्वारा स्वीकृत है और उसके प्रतीक चिह्न में अंकित है ।]

(13) उद्बुध्यध्वं समनसः सखायः

- राज्यशैक्षिक अनुसन्धानम् एवं (समान मन वाले हे मित्रों! आप जागरूक हो जाओ।)

प्रशिक्षणसंस्थानम् (SIERT)

संस्कृत-भावार्थ:-समानमनसः हे मित्राणि ! भवन्तः जागरुकाः भवन्तु अर्थात् सज्जनशक्ति: एकीभूय जागृयात् ।

हिन्दी- भावार्थ- समान मन वाले हे मित्रों ! आप लोग जागरूक हो जाओ। अर्थात् सज्जन शक्ति एकत्रित होकर जागृत हो जाये। [यह ध्येय वाक्य राज्य शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण संस्थान (SIERT) द्वारा स्वीकृत है एवं उसके प्रतीक चिह्न में अंकित हैं।

(14) सिद्धिर्भवतिकर्मजा (कर्म से ही सफलता प्राप्त होती है।)

-माध्यमिक शिक्षाबोर्डराजस्थानम् ।

संस्कृत भावार्थ:- कर्मणा एवं कार्यसिद्धिः भवति अतः वयं सर्वदा स्वकार्ये प्रवृत्ताः भवेम ।

हिन्दी - भावार्थ- कर्म से ही कार्य में सफलता प्राप्त होती है। इसलिए हमें हमेशा अपने-अपने कार्य में प्रवृत्त हो जाना चाहिए। (यह ध्येय वाक्य माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान द्वारा स्वीकृत है तथा इसके प्रतीक चिह्न में अंकित (15) शुभास्ते पन्थानः सन्तु ( आपका मार्ग कल्याणकारी होवे ।)

- राजस्थानराज्यपथपरिवहननिगमः

संस्कृत-भावार्थ:-भवन्तः पथः मङ्गलमयः भूयात् मार्गे का अपि बाधा न आगच्छेत्।

हिन्दी- भावार्थ- आपका मार्ग सुखप्रद एवं कल्याणकारी होवे मार्ग में कोई भी बाधा नहीं आवे। (यह ध्येय वाक्य राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम द्वारा स्वीकृत है एवं इसके प्रतीक चिह्न में अंकित है ।)

(16) कला संस्कृतिः रक्षणम् ।

- सिङ्गापुर इण्डियन फाईन आर्ट्स (कला और संस्कृति की रक्षा करनी चाहिए।)

सोसाइटी (सिङ्गापुरम्) संस्कृत भावार्थ:- कला संस्कृतिश्च रक्षणीया भवति । कला संस्कृतिश्च कस्यापि राष्ट्रस्य

मूलाधारा भवति अतः एते रक्षणीये हिन्दी- भावार्थ - कला और संस्कृति की रक्षा करनी चाहिए। कला और संस्कृति किसी भी राष्ट्र की मूल आधार होती है। इसलिए इन दोनों की रक्षा करनी चाहिए। [यह ध्येय वाक्य सिङ्गापुर इण्डियन फाईन आर्ट्स सोसाइटी (सिङ्गापुर) द्वारा स्वीकृत है तथा इसके प्रतीक चिह्न में अंकित है।"

(17) जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

नेपालदेशः माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।) (राष्ट्रिय आदर्शवाक्यम्)

संस्कृत भावार्थ:- माता मातृभूमिश्च स्वर्गाद् अपि महीयसी भवति । अतः अस्माभिः मातृसम्मान सेवनं च करणीयम् सहेव मातृभूमे रनमपि करणीयम्।

हिन्दी- भावार्थ माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर (श्रेष्ठ) होती है। इसलिए हमें माता का सम्मान और सेवा करनी चाहिए। साथ ही मातृभूमि की रक्षा भी करनी चाहिए। (यह ध्येय वाक्य नेपाल देश द्वारा अपने राष्ट्रीय आदर्श वाक्य के रूप में स्वीकृत है तथा इसके राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न में अंकित है।)

(18) सर्वस्य लोचनं शास्त्रम् (शास्त्र सभी का नेत्र है ।)

- पेराडेनिया विश्वविद्यालयः, श्रीलङ्काः

संस्कृत-भावार्थ:-सामान्यनेत्राभ्याम् सर्वे केवलं प्रत्यक्षं पदार्थम् एव पश्यन्ति । किन्तु परोक्षं पदार्थ सामान्यनेत्राभ्यां कोऽपि द्रष्टुं न शक्नोति तत्र शास्त्रद्वारा मानव: उचितानुचितं स्वविवेकेन सर्व द्रष्टुं समर्थः भवति अतः एवोक्तं सर्वस्य लोचनं शास्त्रम्

हिन्दी- भावार्थ- सामान्य नेत्रों से तो सभी केवल प्रत्यक्ष पदार्थ को ही देखते हैं, किन्तु परोक्ष पदार्थ को सामान्य नेत्रों से कोई भी नहीं देख सकता है। वहाँ शास्त्र द्वारा मनुष्य उचित और अनुचित को अपने विवेक से सब कुछ देखने में समर्थ होता हैं। इसलिए कहा गया हैं—सभी का नेत्र शास्त्र है। (यह ध्येय वाक्य पेराडेनिया विश्वविद्यालय, श्रीलंका द्वारा स्वीकृत है एवं इसके प्रतीक चिह्न में अंकित है।)

(19) जलेष्वेव जयामहे (जल में हमारी विजय होवे )

- इण्डोनेशियन् जलसेना

संस्कृत भावार्थ:- जलेषु अस्माकं विजयः भवेत्। केवलं नभसि स्थले न अपितु महासागरे अपि वयं अस्माकं शत्रुन् हत्वा विजयं प्राप्नुमः ।

(19) जलेष्वेव जयामहे (जल में हमारी विजय होवे ।)

इण्डोनेशियन जलसेना

संस्कृत भावार्थ:- जलेषु अस्माकं विजयः भवेत्। केवलं नभसि स्थले न अपितु महासागरे अपि वयं अस्माकं `शत्रुन् हत्वा विजयं प्राप्नुमः ।

हिन्दी- भावार्थ- जल में हमारी विजय होनी चाहिए। केवल आकाश एवं भूमि पर ही नहीं, अपितु महासागर में भी हम हमारे शत्रुओं को मारकर विजय प्राप्त करें। (यह ध्येय वाक्य इण्डोनेशियन जल-सेना द्वारा स्वीकृत है एवं इसके प्रतीक चिह्न में अंकित है।

(20) वयं रक्षामः (हम सब रक्षा करें।)

-भारतीय तटरक्षकः

संस्कृत भावार्थ:- अत्र रक्षायाः भावः उद्घोषितः वयं सर्वे मिलित्वा देशस्य रक्षणकार्य करवामः ।

हिन्दी - भावार्थ- यहाँ रक्षा का भाव दर्शाया गया है। हम सब मिलकर देश की रक्षा को कार्य करें। (यह ध्येय- वाक्य भारतीय तट रक्षक सेना द्वारा स्वीकृत है एवं इसके प्रतीक चिह्न में अंकित है।)

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