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भगवान श्री राम जी ने शिवलिंग की स्थापना करके विधिपूर्वक उसका पूजन किया (फिर भगवान बोले-) शिवजी के समान मुझको दूसरा कोई प्रिय नहीं है॥
जो गंगाजलु आनि चढ़ाइहि।
सो साजुज्य मुक्ति नर पाइहि ।।
जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ावेगा, वह मनुष्य सायुज्य मुक्ति पावेगा (अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा) ।
शिव द्रोही मम दास कहावा।
सो नर मोहि सपनेहुँ नहिं भावा ।।
जिनको शंकरजी प्रिय हैं, परन्तु जो मेरे द्रोही हैं एवं जो शिवजी के द्रोही हैं और मेरे दास (बनना चाहते) हैं, वे मनुष्य कल्पभर घोर नरक में निवास करते हैं॥
शंकर प्रिय मम द्रोही शिव द्रोही मम दास।
ते नर करहि कल्पभर घोर नरक में वास।।
शिवलिंग (अर्थात प्रतीक, निशान या चिह्न) इसे लिंगा, पार्थिव-लिंग, लिंगम् या शिवा लिंगम् भी कहते हैं।
यह भगवान शिव का प्रतिमाविहीन चिह्न है। यह प्राकृतिक रूप से स्वयम्भू व अधिकतर शिव मंदिरों में स्थापित होता है।
शून्य, आकाश, अनंत, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे 'शिवलिंग' कहा गया है।
स्कंद पुराण में कहा गया है कि आकाश स्वयंलिंग है। धरती उसकी पीठ या आधार है और सब अनंत शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे शिवलिंग कहा गया है। शिव पुराण में शिव को संसार की उत्पत्ति का कारण और परब्रह्म कहा गया है।
इसका एक और अर्थ 'अनन्त' होना भी है। ब्रह्माड में सिर्फ दो चीजें सत्य रूप से मौजूद हैं एक है 'ऊर्जा' और दूसरा है 'पदार्थ'। हमारा शरीर मिट्टी से मिलकर बना है जो कि एक दिन इसी मिट्टी में मिल जाएगा इसलिए इसे 'पदार्थ' कहा जाता है लेकिन शरीर के अंदर की आत्मा अमर होती है वो शक्तिशाली है इसलिए उसे' ऊर्जा' कहा गया है। इसलिए शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का रूप धारण करके 'शिवलिंग' का आकार ग्रहण करते हैं।
शिव लिंग शब्द का अर्थ जानना सबसे पहले ज़रूरी है. संस्कृत भाषा में जाएँ और लिंग का अर्थ देखें तो इसका अर्थ चिन्ह या प्रतीक होता है।
जिस लिंग का अर्थ अज्ञानियों को समझ में आता है वह पुरुष की जननेंद्रिय है जिसे संस्कृत मे शिश्न कहा जाता है. लिंग शब्द पुरुष जननेन्द्रिय से जुड़ा होता तो हमारे दक्षिणभारतीय भाइयों के सरनेम में लिंग शब्द की आवृत्ति देखने में नहीं आती, जैसे कि -लिंगास्वामी, ,रामलिंगम, नागलिंगम, इत्यादि।
बात करते हैं शिवलिंग शब्द की। शिवलिंग का अर्थ इस तरह होता है शिव का प्रतीक। बिलकुल ठीक ऐसे ही हिंदी व्याकरण में में पुल्लिंग कर अर्थ हो जाता है। पुरुष का प्रतीक और स्त्रीलिंग का अर्थ होता है स्त्री का प्रतीक। यहां नपुंसक लिंग भी प्रयोग में आता है जिसका अर्थ नपुंसक के प्रतीक से चिन्हित होता है। अतएव लिंग शब्द को सीधे सीधे न देख कर इसके वास्तविक अर्थ को देखना चाहिए जो कि संस्कृत में प्रतीक या चिन्ह को दर्शित करता है, जननेन्द्रिय को नहीं।
भगवान शिव और देवी शक्ति अर्थात मां पार्वती के आदि-आनादी एकल रूप का चित्रण भी है। इसमें पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतीक भी जिसे ऐसे कह सकते हैं कि इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है बल्कि दोनों का ही समान अस्तित्व है।
आइये अब बात कर लेते हैं इसके समानांतर शब्द योनि की. यदि आप हिन्दू धार्मिक ग्रंथ पढ़ें तो आपको योनि का अर्थ स्पष्ट हो जाएगा। योनि मनुष्य या प्राणी के जन्म से जुडी हुई है न कि किसी स्त्री के स्त्रीत्व से। कहा जाता है मानव योनि हज़ारों जन्मों के बाद हासिल होती है । या ये भी कहा जाता है कि बुरे कर्म करने से पशुयोनि में जन्म लेना पड़ता है, आदि..। सुस्पष्ट है कि योनि का अर्थ संस्कृत में प्रादुर्भाव, प्रकटीकरण आदि होता है. प्राणी को उसके कर्मों के अनुसार विभिन्न योनियों में अगला जन्म प्राप्त होता है।
शिव उठत, शिव चलत, शिव शाम-भोर है।
शिव बुद्धि, शिव चित्त, शिव मन विभोर है॥
शिव रात्रि, शिव दिवस, शिव स्वप्न-शयन है।
शिव काल, शिव कला, शिव मास-अयन है॥
शिव शब्द, शिव अर्थ, शिवहि परमार्थ है।
शिव कर्म, शिव भाग्य, शिवहि पुरुषार्थ है॥
शिव स्नेह, शिव राग, शिवहि अनुराग है।
शिव कली, शिव कुसुम, शिवहि पराग है॥
शिव भोग, शिव त्याग, शिव तत्व-ज्ञान है।
शिव भक्ति, शिव प्रेम, शिवहि विज्ञान है॥
शिव स्वर्ग, शिव मोक्ष, शिव परम साध्य है।
शिव जीव, शिव ब्रह्म, शिवहि आराध्य है॥
सदुपायकथास्वपण्डितो हृदये दु:खशरेण खण्डित:।
शशिखण्डमण्डनं शरणं यामि शरण्यमीरम् ॥
हे शम्भो! मेरा हृदय दु:ख रूपीबाण से पीडित है, और मैं इस दु:ख को दूर करने वाले किसी उत्तम उपाय को भी नहीं जानता हूँ अतएव चन्द्रकला व शिखण्ड मयूरपिच्छ का आभूषण बनाने वाले, शरणागत के रक्षक परमेश्वर आपकी शरण में हूँ। अर्थात् आप ही मुझे इस भयंकर संसार के दु:ख से दूर करें।
महाशिवरात्रि पर्व की ढेर सारी शुभकामनाएं ।
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