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जो व्यक्ति दुष्ट है उसके सामने विनम्रता कभी काम नहीं करेगा।जो कुटिल ब्यक्ति है उसके साथ प्रेम और स्नेह कभी काम नहीं करेगा। कंजूस के सामने धर्मशास्त्र भी काम नहीं करेगा। इसलिए हर ब्यक्ति के साथ गुण-दोष के आधार पर ब्यवहार होता है।
"शठे शाठ्यं समाचरेत्"
अर्थात् शठ(दुष्ट) ब्यक्ति के साथ साठ्यता का ब्यवहार करनें से मान जाएगा। यानि दो -चार हाथ पड़ने पर ही वह मान जाएगा।
कृते प्रतिकृतिं कुर्याद्विंसिते प्रतिहिंसितम् ।
तत्र दोषं न पश्यामि शठे शाठ्यं समाचरेत् ॥
अर्थात जो जैसा करे उसके साथ वैसा ही बर्ताव करो । जो तुम्हारे साथ हिंसा करता है, तुम भी उसके प्रतिकार में उसकी हिंसा करो ! इसमें मैं कोई दोष नहीं मानता; क्योंकि दुष्ट के साथ दुष्टता ही करने में प्रतिद्वंदी पक्ष की भलाई है।
सर्प: क्रूर: खल: क्रूर: सर्पात क्रुरतर: खल: ।
सर्प: शाम्यति मन्त्रैश्च दुर्जन: केन शाम्यति ।।
सांप भी क्रूर होता है और दुष्ट भी क्रूर होता है किंतु दुष्ट सांप से अधिक क्रूर होता है क्योंकि सांप के विष का तो मन्त्र से शमन हो सकता है किंतु दुष्ट के विष का शमन किसी प्रकार से नहीं हो सकता।
कहने का अर्थ यह है कि अगर दुष्ट व्यक्ति के साथ अच्छे से बर्ताव करेंगे तो उसका दिमाग उड़ने लगेगा। इससे वह सामने वाले को कमजोर और डरपोक समझेगा। बुद्धि बल से सामने वाले के साथ ऐसा व्यवहार करना चाहिए, जिससे ऐसा प्रतित हो कि सामने वाला कमजोर नहीं है।
चौपाई:
"खल सन विनय कुटिल संग प्रीती। सहज कृपन संग, सुन्दर नीती।।"
यह चौपाई गोस्वामी तुलसीदास की रामचरितमानस से ली गई है और इसमें गहन जीवन शिक्षाएँ समाहित हैं। इसमें चार प्रमुख प्रकार के व्यक्तित्वों और उनके साथ व्यवहार करने की निरर्थकता का उल्लेख किया गया है। तुलसीदास ने इस चौपाई के माध्यम से व्यावहारिक जीवन में विवेकपूर्ण व्यवहार का संदेश दिया है।
चौपाई का अर्थ:
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"खल सन विनय":
दुष्ट व्यक्ति के साथ विनम्रता दिखाना व्यर्थ है। दुष्ट व्यक्ति, चाहे कितनी भी अच्छी बातें सुनें या सम्मान पाएँ, अपनी बुरी आदतों और अहंकार को नहीं छोड़ता।
उदाहरण: जैसे सर्प को दूध पिलाने से वह और अधिक विषैला हो जाता है। -
"कुटिल संग प्रीती":
कुटिल (धोखेबाज या मक्कार) व्यक्ति से प्रेम करना भी मूर्खता है। कुटिल व्यक्ति सदा अपना स्वार्थ साधने और दूसरों को हानि पहुँचाने के लिए तत्पर रहता है।
उदाहरण: यह उसी प्रकार है जैसे जल में रहने वाला मगरमच्छ अपने साथ खेलते हुए व्यक्ति पर भी हमला कर सकता है। -
"सहज कृपन संग":
स्वभाव से कंजूस व्यक्ति से सहयोग या उदारता की आशा करना व्यर्थ है। कंजूस व्यक्ति न स्वयं सुखी होता है और न दूसरों को कुछ प्रदान करके संतोष देता है।
उदाहरण: कंजूस का धन तिजोरी में बंद रहता है, परंतु वह अपने और दूसरों के लिए उसका उपयोग नहीं करता। -
"सुन्दर नीती":
कंजूस व्यक्ति के सामने नैतिकता या सुन्दर नीति की बातें करना व्यर्थ है, क्योंकि वह अपनी स्वार्थपरता में व्यस्त रहता है और अच्छे विचारों की सराहना नहीं कर पाता।
उदाहरण: यह उसी प्रकार है जैसे पत्थर पर पानी डालने से वह भीतर नहीं जा पाता।
तुलसीदास का उद्देश्य:
तुलसीदास ने इस चौपाई के माध्यम से यह संदेश दिया है कि हमें अपने विचार और ऊर्जा वहाँ व्यर्थ नहीं करनी चाहिए जहाँ इसका कोई प्रभाव न हो।
- दुष्ट व्यक्ति की संगति से बचना चाहिए, क्योंकि वह हमेशा दूसरों को हानि पहुँचाने का प्रयास करता है।
- कुटिल व्यक्ति से सच्चे प्रेम की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए, क्योंकि वह छल-कपट में लिप्त रहता है।
- कंजूस व्यक्ति से उदारता की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए, क्योंकि वह स्वभाव से ही स्वार्थी होता है।
चौपाई का व्यावहारिक दृष्टिकोण:
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आधुनिक संदर्भ:
आज के जीवन में, इस चौपाई का महत्व और भी बढ़ जाता है। इसे हम निम्नलिखित स्थितियों में लागू कर सकते हैं:- नकारात्मक और स्वार्थी लोगों से दूरी बनाएँ।
- अपने समय और ऊर्जा का उपयोग उन लोगों पर करें जो उसे सराहें।
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सामाजिक दृष्टिकोण:
समाज में किसी भी प्रकार का सुधार या सकारात्मक बदलाव लाने के लिए यह आवश्यक है कि हम अच्छे और विनम्र व्यक्तियों को प्राथमिकता दें, न कि दुष्ट और स्वार्थी लोगों पर ध्यान दें। -
आध्यात्मिक दृष्टिकोण:
आध्यात्मिक रूप से, यह चौपाई सिखाती है कि हमें अपनी शक्ति और ऊर्जा को व्यर्थ नष्ट नहीं करना चाहिए। सही दिशा में कर्म करना ही श्रेष्ठ है।
संदेश:
यह चौपाई हमें यह सिखाती है कि हमें विवेकपूर्वक यह समझना चाहिए कि कहाँ पर अपनी ऊर्जा और प्रयास लगाना चाहिए। दुष्ट, कुटिल, और कंजूस व्यक्तियों के साथ विनम्रता, प्रेम, या नीति की बातें करना उसी प्रकार व्यर्थ है जैसे बंजर भूमि में बीज बोना। इसके बजाय, हमें अपने संसाधनों और समय का उपयोग उन लोगों पर करना चाहिए जो उसका सही मूल्य समझते हैं।
"सार यह है कि विवेक और समय का उपयोग सही दिशा में करें।"
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