खल सन विनय कुटिल संग प्रीती। सहज कृपन संग, सुन्दर नीती ।।

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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   जो व्यक्ति दुष्ट है उसके सामने विनम्रता कभी काम नहीं करेगा।जो  कुटिल ब्यक्ति है उसके  साथ प्रेम और स्नेह कभी काम नहीं करेगा। कंजूस के सामने धर्मशास्त्र भी काम नहीं करेगा। इसलिए हर ब्यक्ति के साथ गुण-दोष के आधार पर ब्यवहार होता है।

"शठे शाठ्यं समाचरेत्"

  अर्थात् शठ(दुष्ट) ब्यक्ति के साथ साठ्यता का ब्यवहार करनें से मान जाएगा। यानि दो -चार हाथ पड़ने पर ही वह मान जाएगा।

कृते प्रतिकृतिं कुर्याद्विंसिते प्रतिहिंसितम् ।

तत्र दोषं न पश्यामि शठे शाठ्यं समाचरेत् ॥

  अर्थात जो जैसा करे उसके साथ वैसा ही बर्ताव करो । जो तुम्हारे साथ हिंसा करता है, तुम भी उसके प्रतिकार में उसकी हिंसा करो ! इसमें मैं कोई दोष नहीं मानता; क्योंकि दुष्ट के साथ दुष्टता ही करने में प्रतिद्वंदी पक्ष की भलाई है। 

सर्प: क्रूर: खल: क्रूर: सर्पात क्रुरतर: खल: । 

सर्प: शाम्यति मन्त्रैश्च दुर्जन: केन शाम्यति ।। 

  सांप भी क्रूर होता है और दुष्ट भी क्रूर होता है किंतु दुष्ट सांप से अधिक क्रूर होता है क्योंकि सांप के विष का तो मन्त्र से शमन हो सकता है किंतु दुष्ट के विष का शमन किसी प्रकार से नहीं हो सकता।

  कहने का अर्थ यह है कि अगर दुष्ट व्यक्ति के साथ अच्छे से बर्ताव करेंगे तो उसका दिमाग उड़ने लगेगा। इससे वह सामने वाले को कमजोर और डरपोक समझेगा। बुद्धि बल से सामने वाले के साथ ऐसा व्यवहार करना चाहिए, जिससे ऐसा प्रतित हो कि सामने वाला कमजोर नहीं है।

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