सामान्य (लौकिक) मंत्रो से सम्पूर्ण शिवपूजन प्रकार और पद्धति शिवपूजन में ध्यान योग्य कुछ खास बातें - (1) स्नान कर के ही पूजा में बेठें । ...
सामान्य (लौकिक) मंत्रो से सम्पूर्ण शिवपूजन प्रकार और पद्धति
शिवपूजन में ध्यान योग्य कुछ खास बातें -
(1) स्नान कर के ही पूजा में बेठें ।
(2) साफ सुथरा वस्त्र धारण करें ( बिना सिला हो तो बहुत अच्छा )
(3) आसन एक दम स्वच्छ चाहिए ( दर्भासन/कुशासन हो तो उत्तम )
(4) पूर्व या उत्तर दिशा में मुह कर के ही पूजा करे।
(5) बिल्व पत्र पर जो चिकनाहट वाला भाग होता हे वही शिवलिंग पर चढ़ाये ( कृपया खण्डित बिल्वपत्र मत चढ़ायें। )
(6) संपूर्ण परिक्रमा कभी भी मत करे ( जहाँ से जल प्रसार हो रहा हो वहाँ से वापस आ जायें। )
(7) पूजन में चंपा के पुष्प का प्रयोग ना करें।
(8) बिल्वपत्र के उपरांत आक के फुल, धतुरा पुष्प या नील कमल का प्रयोग अवश्य कर सकते है।
(9) शिव प्रसाद का कभी भी इंकार मत करे ( ये सब के लिए पवित्र हेै)।
पूजन सामग्री
शिव की मूर्ति या शिवलिंग, अबीर- गुलाल, चन्दन ( सफ़ेद ) अगरबत्ती धुप ( गुग्गुल ) बिल्वपत्र, बिल्व फल, दूर्वा, चावल, पुष्प, फल,मिठाई, पान-सुपारी,जनेऊ, पंचामृत, आसन, कलश, दीपक, शंख, घंटा, आरती इन सब चीजों का होना आवश्यक है।
पूजन विधि
भगवन शंकर का पूजन करने हेतु प्रातः काल जल्दी उठकर प्रातः कर्म पुरे करने के बाद पूर्व दिशा या इशानकोण की ओर अपना मुख रख कर .. प्रथम आचमन करना चाहिए बाद में खुद के ललाट पर तिलक करना चाहिए बाद में निन्म मंत्र बोल कर शिखा बांधनी चाहिए।
शिखा मंत्र
उर्ध्वकेशी विरुपाक्षी मांसशोणित भक्षणे।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये चामुण्डे ह्यपराजिते।।
आचमन मंत्र
ॐ केशवाय नमः ।
ॐ नारायणाय नमः ।
ॐ माधवाय नमः ।
तीनो बार पानी हाथ में लेकर पीना चाहिए और बाद में ॐ गोविन्दाय नमः बोल हाथ धो लेने चाहिए बाद में बायें हाथ में पानी लेकर दायें हाथ से पानी .. अपने मुह, कर्ण, आँख, नाक, नाभि, ह्रदय और मस्तक पर लगाना चाहिए और बाद में "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" बोल कर खुद के चारों और पानी के छीटे डालने चाहिए।
ॐ नमो नारायणाय बोल कर प्राणायाम करना चाहिए।
स्वयं एवं सामग्री पवित्रीकरण
'ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स वाह्याभ्यांतरः शुचिः।।
( बोल कर शरीर एवं पूजन सामग्री पर जल का छिड़काव करे - शुद्धिकरण के लिए )
न्यास
नीचे दिए गए मंत्र बोल कर आगे लिखे गए अंग पर अपने दायें हाथ से स्पर्श करे।
ह्रीं नं पादाभ्याम् नमः ( दोनों पाव पर ),
ह्रीं मों जानुभ्याम् नमः ( दोनों जंघा पर )
ह्रीं भं कटीभ्याम् नमः ( दोनों कमर पर )
ह्रीं गं नाभ्ये नमः ( नाभि पर )
ह्रीं वं ह्रदयाय नमः ( ह्रदय पर )
ह्रीं ते बाहुभ्याम नमः ( दोनों कंधे पर )
ह्रीं वां कंठाय नमः ( गले पर )
ह्रीं सुं मुखाय नमः ( मुख पर )
ह्रीं दें नेत्राभ्याम नमः ( दोनों नेत्रों पर )
ह्रीं वां ललाटाय नमः ( ललाट पर )
ह्रीं यां मूर्ध्ने नमः ( मस्तक पर )
ह्रीं नमो भगवते वासुदेवाय नमः ( पुरे शरीर पर )
तत्पश्चात भगवन शंकर की पूजा करें । पूजन विधि निम्न प्रकार से हेै -
तिलक मन्त्र
स्वस्त्यस्तु द्विपदेभ्यश्चतुष्पादेभ्य एव च ।
स्वस्त्यस्त्व पादकेभ्य श्री सर्वेभ्यः स्वस्ति सर्वदा ।।
नमस्कार मंत्र
हाथ मे अक्षत पुष्प लेकर निम्न मंत्र बोलकर नमस्कार करें।
श्री गणेशाय नमः
इष्ट देवताभ्यो नमः
कुल देवताभ्यो नमः
ग्राम देवताभ्यो नमः
स्थान देवताभ्यो नमः
सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः
गुरुवे नमः
मातृ पितरेभ्यो नमः
ॐ शांति शांति शांति
गणपति स्मरण
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः।।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि।।
विद्याराम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्न वदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये।।
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
संकल्प
(दाहिने हाथ में जल अक्षत और द्रव्य लेकर निम्न संकल्प मंत्र बोले :)
'ऊँ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलिप्रथमचरणे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखंडे आर्यावर्तान्तर्गतैकदेशे ------ नगरे ------ ग्रामे वा बौद्धावतारे .....नाम संवत्सरे श्री सूर्ये दक्षिणायने....ऋतौ महामाङ्गल्यप्रद मासोत्तमे शुभ भाद्रप्रद मासे शुक्ल पक्षे चतुर्थ्याम् तिथौ भृगुवासरे हस्त नक्षत्रे शुभ योगे गर करणे तुला राशि स्थिते चन्द्रे सिंह राशि स्थिते सूर्य वृष राशि स्थिते देवगुरौ शेषेषु ग्रहेषु च यथा यथा राशि स्थान स्थितेषु सत्सु एवं ग्रह गुणगण विशेषण विशिष्टायां शुभ पुण्य तिथौ ----- गोत्रः ----- अमुक शर्मा, वर्मा, गुप्ता, दासोऽहं मम आत्मनः श्रीमन्महागणपति प्रीत्यर्थम् यथालब्धोपचारैस्तदीयं पूजनं करिष्ये।''
इसके पश्चात् हाथ का जल किसी पात्र में छोड़ देवें।
नोट - ------ यहाँ पर अपने नगर का नाम बोलें ------ यहाँ पर अपने ग्राम का नाम बोलें ------ यहाँ पर अपना कुल गौत्र बोलें ------ यहाँ पर अपना नाम बोलकर शर्मा/ वर्मा/ गुप्ता आदि बोलें।
दिग्रक्षण - मंत्र
यदत्र संस्थितं भूतं स्थानमाश्रित्य सर्वत: ।
स्थानं त्यक्त्वा तुं तत्सर्व यत्रस्थं तत्र गच्छतु ।।
यह मंत्र बोल कर चावल को अपनी चारों और डालें।
वरुण पूजन
अपाम्पतये वरुणाय नमः।
सर्वोपचारार्थे गंधाक्षत पुष्पैः समपूजयामि।
यह बोल कर कलश के जल में चन्दन - पुष्प डाले और कलश में से थोडा जल हाथ में ले कर निन्म मंत्र बोल कर पूजन सामग्री और खुद पर वो जल के छीटे डालें।
दीप पूजन
दीपस्त्वं देवरूपश्च कर्मसाक्षी जयप्रद:।
साज्यञ्च वर्तिसंयुक्तं दीपज्योतिर्नमोस्तुते।।
( बोल कर दीप पर चन्दन और पुष्प अर्पण करे )
शंख पूजन
लक्ष्मीसहोदरस्त्वं तु विष्णुना विधृत: करे।
निर्मितः सर्वदेवेैश्च पांचजन्य नमोस्तुते।।
( बोल कर शंख पर चन्दन और पुष्प चढ़ाये )
घंटा पूजन
देवानां प्रीतये नित्यं राक्षसां च विनाशने।
घंटानादं प्रकुर्वीत ततः घंटां प्रपूज्यताम्।।
( बोल कर घंट नाद करे और उस पर चन्दन और पुष्प चढ़ाये )
ध्यान मंत्र
ध्यायामि दैवतं श्रेष्ठं नित्यं धर्म्यार्थप्राप्तये।
धर्मार्थकाममोक्षाणां साधनं ते नमो नमः।।
( बोल कर भगवान शंकर का ध्यान करे )
आवाहन मंत्र
आगच्छ देव देवेश तेजोराशि जगत्पते।
पूजां मया कृतां देव गृहाण सुरसत्तम।।
( बोल कर भगवन शिव को आह्वाहन करने की भावना करे )
आसन मंत्र
सर्वकश्ठंयामदिव्यम नानारत्नसमन्वितम।
कर्त्स्वरसमायुक्तामासनम प्रतिगृह्यताम।।
( बोल कर शिवजी कोई आसन अर्पण करे )
पादप्रक्षालन
उष्णोदकं निर्मलं च सर्व सौगन्धि संयुतम्।
पादप्रक्षालनार्थय दत्तं ते प्रतिगृह्यताम्।।
( बोल कर शिवजी के पैरो को पखालने हे )
अर्घ्य मंत्र
जलं पुष्पं फलं पत्रं दक्षिणा सहितं तथा।
गंधाक्षतयुतं दिव्ये अर्ध्यं दास्ये प्रसीद मे।।
( बोल कर जल पुष्प फल पात्र का अर्ध्य देना चाहिए )
पंचामृत स्नान
पयो दधि घृतं चैव शर्करा मधुसंयुतम्।
पंचामृतं मयानीतं गृहाण परमेश्वर।।
( बोल कर पंचामृत से स्नान करावे )
स्नान मंत्र
गंगा रेवा तथा क्षिप्रा पयोष्णी सहितास्तथा।
निर्मलोदकस्नानं गृहाण शिवशङ्कर! ।।
(बोल कर भगवन शंकर को स्वच्छ जल से स्नान कराये और चन्दन पुष्प चढ़ाये )
समर्पण मन्त्र
अनेन पञ्चामृत स्नानं आराध्य देवता: प्रीयन्ताम् न मम। ( तत पश्यात शिवजी कोई चढ़ा हुवा पुष्प ले कर अपनी आख से स्पर्श कराकर उत्तर दिशा की और फेक दे ,बाद में हाथ को धो कर फिर से चन्दन पुष्प चढ़ाये )
अभिषेक मंत्र
सहस्त्राक्षी शतधारं ऋषिभिः पावनं कृतम्।
तेन त्वामभिषिञ्चामि पावमान्यः पुनन्तु मे।।
( बोल कर जल शंख में भर कर शिवलिंगम पर अभिषेक करे ) बाद में शिवलिंग या प्रतिमा को स्वच्छ जल से स्नान कराकर उनको साफ कर के उनके स्थान पर विराजमान करवाएँ।
वस्त्र मंत्र
सुवर्णतन्तुभिर्युक्तं रजतं वस्त्रमुत्तमम्।
प्रतिगृहाण भो देव प्रसीद शिवशङ्कर।।
( बोल कर वस्त्र अर्पण करने की भावना करे )
जनेऊ मन्त्र
नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम्।
उपवीतं प्रदास्यामि गृह्यतां परमेश्वर।।
( बोल कर जनेऊ अर्पण करने की भावना करे )
चन्दन मंत्र
मलयाचलसम्भूतं देवदारु समन्वितम्।
विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यताम्।।
( बोल कर शिवजी को चन्दन का लेप करे )
अक्षत मंत्र
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठः कुंकुमाक्तः सुशोभितः।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर।।
(बोल चावल चढ़ाये )
पुष्प मंत्र
नानासुगन्धि पुष्पाणि यथाकालोद्भवानि च।
पुष्पाञ्जलिर्मया दत्त प्रसीद परमेश्वर ।।
( बोल कर शिवजी को विविध पुष्पों की माला अर्पण करे )
तुलसी मंत्र
तुलसीं हेमवर्णां च रत्नावर्णां च मञ्जरीम् ।
प्रीति सम्पादनार्थाय अर्पयामि हरिप्रियाम्।।
( बोल कर तुलसी पात्र अर्पण करे )
बिल्वपत्र मन्त्र
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्र्ययायुधम्।
त्रिजन्म पापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।
( बोल कर बिल्वपत्र अर्पण करे )
दूर्वा मन्त्र
दुर्वांकुरान् सुहरितान् अमृतान् मंगलप्रदान्।
आनीतास्तव पूजार्थं प्रसीद परमेश्वर ।।
( बोल करे दूर्वा दल अर्पण करे )
सौभाग्य द्रव्य
हरिद्रां चैव सिंदूरं कुमकुमेन समन्वितम्।
सौभाग्यारोग्यप्रीत्यर्थं गृहाण शिवशंकर:।।
( बोल कर अबिल गुलाल चढ़ाये और होश्के तो अलंकर और आभूषण शिवजी को अर्पण करे )
धूप मन्त्र
वनस्पति रसोत्पन्नं सुगंधेन समन्वित:।
देव प्रीतिकरो नित्यं धूपो यं प्रतिगृह्यताम्।।
( बोल कर सुगन्धित धुप करे )
दीप मन्त्र
त्वं ज्योति: सर्व देवानं तेजसं तेज उत्तम:।
आत्मज्योति: परम धाम दीपो यं प्रतिगृह्यताम्।।
( बोल कर भगवन शंकर के सामने दीप प्रज्वलित करे )
नैवेद्य मन्त्र
नैवेद्यं गृह्यतां देव भक्तिर्मे ह्यचलां कुरु।
इप्सितं च वरं देहि परं च पराम् गतिम्।।
( बोल कर नैवेध्य चढ़ाये )
भोजन (नैवेद्य मिष्ठान मंत्र)
ॐ प्राणाय स्वाहा
ॐ अपानाय स्वाहा
ॐ समानाय स्वाहा
ॐ उदानाय स्वाहा
ॐ समानाय स्वाहा
( बोल कर भोजन कराये )
नैवेद्यान्ते हस्तप्रक्षालनं मुखप्रक्षालनं आचमनीयम् च जलं समर्पयामि।
उपरोक्त 5 मंत्र से भोजन करवाए और 3 बार जल अर्पण करें ।
मुखवास मंत्र
एलालवंग संयुक्तं पूगीफल समन्वितम्।
नागवल्लीदलं दिव्यं देवेश प्रति गृह्यताम्।।
( बोल कर पान सोपारी अर्पण करे )
दक्षिणा मंत्र
हेमं वा रजतं वापि पुष्पं वा पत्रमेव च।
दक्षिणां देवदेवेश गृहाण शिवशंकर ।।
( बोल कर अपनी शक्ति अनुसार दक्षिणा अर्पण करे )
आरती मंत्र
सर्व मंगल मंगल्यं देवानां प्रीतिदायकम्।
निराजनमहं कुर्वे प्रसीद परमेश्वर! ।।
( बोल कर एक बार आरती करे )
आरती भगवान गंगाधर जी की
ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा ।
त्वं मां पालय नित्यं कुपया जगदीशा ॥
हर हर हर महादेव ॥ १॥
कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रुमविपिने ।
गुञ्जति मधुकरपुञ्जे कुञ्जवने गहने ॥
कोकिलकूजित खेलत हंसावन ललिता ।
रचयति कलाकलापं नृत्यति मुदसहिता ॥
हर हर हर महादेव ॥ २॥
तस्मिल्ललितसुदेशे शाला मणिरचिता ।
तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मुदसहिता ॥
क्रीडा रचयति भूषारञ्जित निजमीशम् ।
इन्द्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम् ॥
हर हर हर महादेव ॥ ३॥
बिबुधबधू बहु नृत्यत हृदये मुदसहिता ।
किन्नर गायन कुरुते सप्त स्वर सहिता ॥
धिनकत थै थै धिनकत मृदङ् वादयते ।
क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते ॥
हर हर हर महादेव ॥ ४॥
रुण रुण चरणे रचयति नूपुरमुज्ज्चलिता ।
चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिक तां ॥
तां तां लुप चुप तां तां डमरू वादयते ।
अंगुष्ठांगुलिनादं लासकतां कुरुते ॥
हर हर हर महादेव ॥ ५॥
कर्पूरद्युतिगौरं पञ्चाननसहितम् ।
त्रिनयनशशिधरमौलिं विषधरकण्ठयुतम् ॥
सुन्दरजटाकलापं पावकयुतभालम् ।
डमरुत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम् ॥
हर हर हर महादेव ॥ ६॥
मुण्डै रचयति माला पन्नगमुपवीतम् ।
वामविभागे गिरिजारूपं अतिललितम् ॥
सुन्दरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम् ।
इति वृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणम् ॥
हर हर हर महादेव ॥ ७॥
शङ्खनिनादं कृत्वा झल्लरि नादयते ।
नीराजयते ब्रह्मा वेदकऋचां पठते ॥
अतिमृदुचरणसरोजं हृत्कमले धृत्वा ।
अवलोकयति महेशं ईशं अभिनत्वा ॥
हर हर हर महादेव ॥ ८॥
ध्यानं आरति समये हृदये अति कृत्वा ।
रामस्त्रिजटानाथं ईशं अभिनत्वा ॥
संगतिमेवं प्रतिदिन पठनं यः कुरुते ।
शिवसायुज्यं गच्छति भक्त्या यः शृणुते ॥
हर हर हर महादेव ॥ ९॥
॥ इति आरती भगवान गंगाधर समाप्त ॥
त्रिदेवों की आरती
ॐ जय शिव ओंकारा,भोले हर शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ हर हर हर महादेव...॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
तीनों रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भोले शशिधारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।
जगकर्ता जगभर्ता जगपालन करता ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठि दर्शन पावत रुचि रुचि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
लक्ष्मी व सावित्री, पार्वती संगा ।
पार्वती अर्धांगनी, शिवलहरी गंगा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।
पर्वत सौहे पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।
जटा में गंगा बहत है, गल मुंडल माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
ॐ जय शिव ओंकारा भोले हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा ।। ॐ हर हर हर महादेव....।।...
आरती के बाद में आरती की चारो और जल की धरा करे और आरती पर पुष्प चढ़ाये सभी को आरती दे और खुद भी आरती ले कर हाथ धो ले।
पुष्पांजलि मंत्र
पुष्पांजलि प्रदास्यामि मंत्राक्षर समन्विताम।
तेन त्वं देवदेवेश प्रसीद परमेश्वर।।
( बोल कर पुष्पांजलि अर्पण करे )
प्रदक्षिणा
यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणां पदे पदे।।
( बोल कर प्रदक्षिणा करें )
बाद में शिवजी के कोई भी मंत्र स्तोत्र या शिव शहस्त्र नाम स्तोत्र का पाठ करे अवश्य शिव कृपा प्राप्त होगी।
पूजा में हुई अशुद्धि के लिये निम्न स्त्रोत्र पाठ से क्षमा याचना करें।
क्षमा प्रार्थना
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर ।
यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे।।
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम।
तस्मात् कारुण्यभावेन रक्ष मां परमेश्वर।।
।।देव्पराधक्षमापनस्तोत्रम्।।
न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथा:।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम्॥
विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत्।
तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति॥
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहव: सन्ति सरला:
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुत:।
मदीयोऽयं त्याग: समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति।।
जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया।
तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति।।
परित्यक्ता देवा विविधविधिसेवाकुलतया
मया पञ्चाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि।
इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम्।।
श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातङ्को रङ्को विहरति चिरं कोटिकनकै:।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जन: को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ।।
चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपति:।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानी त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम्।।
न मोक्षस्याकाङ्क्षा भवविभववाञ्छापि च न मे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुन:।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपत: ।।
नाराधितासि विधिना विविधोपचारै:
किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभि:।
श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव।।
आपत्सु मग्न: स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथा:
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति।।
जगदम्ब विचित्रमत्र किं परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि।
अपराधपरम्परापरं न हि माता समुपेक्षते सुतम्।।
मत्सम: पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि।
एवं ज्ञात्वा महादेवि यथा योग्यं तथा कुरु।।
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