बड़ा पद ?

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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बड़ा पद ? 

    पिता अपने बेटे के साथ पांच-सितारा होटल में प्रोग्राम अटेंड करके कार से वापस जा रहे थे। रास्ते में ट्रेफिक पुलिस हवलदार ने सीट बैल्ट नहीं लगाने पर रोका और चालान बनाने लगे।

बेटे ने सचिवालय में अधिकारी होने का परिचय देते हुए रौब झाड़ना चाहा तो हवलदार जी ने कड़े शब्दों में आगे से सीट बैल्ट लगाने की नसीहत देते हुए छोड़ दिया। पिता चुपचाप सब देख रहा था। 

रास्ते में बेटा "अरे मैं आइएएस लेवल के पद वाला अधिकारी हूं और कहां वो मामूली हवलदार मुझे सिखा रहा था, मैं क्या जानता नहीं क्या जरुरी है क्या नहीं, बडे अधिकारियों से बात करना तक नहीं आता, आखिर हम भी जिम्मेदारी वाले बड़े पद पर हैं भई !!" पिता ने खिड़की से बगल में लहर जैसे चलती गाडियों का काफिला देखा, तभी अचानक तेज ब्रेक लगने और धमाके की आवाज आई। 

बेटे ने कार रोकी, तो देखा सामने सड़क पर आगे चलती मोटरसाइकिल वाले प्रोढ़ को कोई तेज रफ्तार कार वाला टक्कर मारकर भाग गया था। मौके पर एक अकेला पुलिस का हवलदार उसे संभालकर साइड में बैठा रहा था।

खून ज्यादा बह रहा था, हवलदार ने बेटे को कहा "खून ज्यादा बह रहा है मैं ड्यूटि से ऑफ होकर घर जा रहा हूं और मेरे पास बाईक नहीं है, आपकी कार से इसे जल्दी अस्पताल ले चलते हैं, शायद बच जाए।" 

पिता घबराया हुआ चुपचाप देख रहा था और बेटे से कुछ कहना चाह रहा था तभी बेटे ने तुरंत घर पर इमरजेंसी का बहाना बनाया और जल्दी से पिता को कार में बिठाकर चल पड़ा। 

पिता अचंभित सा चुपचाप सोच रहा था कि बड़ा पद वास्तव में कौन सा है !! बेटे का प्रशासनिक पद या पुलिस वाले हवलदार का पद जो अभी भी उस घायल की चिंता में वहां बैठा है...

अगले दिन अखबार के एक कोने में दुर्घटना में घायल को गोद में उठाकर 700 मीटर दूर अस्पताल पहुंचाकर उसकी जान बचाने वाले हवलदार की फोटो सहित खबर व प्रशंसा छपी थी। पिता के होठों पर सुकुन भरी मुस्कुराहट थी, उसे अपना जवाब मिल गया था। 

शिक्षा :-

इंसानियत का मतलब सिर्फ खुशियां बांटना नहीं होता… बड़े पद का असली मतलब अपने पास आई चुनौतियों का उस समय तक सामना करना होता है, जब तक उसका समाधान नहीं हो जाता। उस समय तक साथ देना होता है जब वो मुसीबत में हो, जब उसे हमारी सबसे ज्यादा ज़रुरत हो… इसलिए हमें कभी भी अपने पद का घमंड नहीं करना चाहिए, हर समय मदद के लिए तैयार होकर अपने पद की गरिमा बनानी चाहिए..!

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