लक्ष्मण सा योद्धा नहीं ??

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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लक्ष्मण सा योद्धा नहीं !!

   राक्षस_संस्कृति के अवसान के पश्चात सीताजी और लक्ष्मण जी सहित भगवान श्रीराम ने अयोध्या आकर वहां का राजपट संभाल लिया तब एक बार अगस्त्य_मुनि का अयोध्या में आगमन हुआ। श्रीराम जी से वार्तालाप के मध्य उनके मध्य लंका युद्ध के प्रसंग पर चर्चा होने लगी।

   वार्तालाप के मध्य भगवान_श्रीराम ने उन तथ्यों का वर्णन किया जिनमें मुख्य विषय थे कि उन्होंने कैसे रावण और कुंभकर्ण जैसे प्रचंड वीरों का संहार को अंजाम दिया और उनके भाई लक्ष्मण ने इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों को कैसे स्वर्ग सिधारा?सम्पूर्ण प्रसंग सुनने के पश्चात अगस्त्य मुनि के अंतश में कुछ प्रश्नों के अंकुर प्रष्फुटित हुए तो उन्होंने श्रीराम के समक्ष अपनी जिज्ञासा को रखते हुए कहा-

    "मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम!यह सत्य है कि रावण और कुंभकर्ण महान पराक्रमी योद्धा थे लेकिन मेरी दृष्टि में सबसे बड़ा वीर मेघनाध ही था जिसने अंतरिक्ष में स्थित इंद्र से युद्ध कर उसे पराजित ही नहीं किया अपितु उसे बंदी बनाकर लंका ले आया। इसीलिए तो मेघनाद को इंद्रजीत का संबोधन प्राप्त हुआ।इंद्र की पराजय ने सम्पूर्ण देवलोक को विचलित कर दिया तब ब्रह्माजी को मेघनाद से मुक्त कराने के लिए स्वयं धरा पर आना पड़ा।धरा पर आकर उन्होंने दान के रूप में मेघनाद से इंद्र को मांगा तब मेघनाद ने ब्रह्मा का मान रखते हुए इंद्र को मुक्त कर दिया और उसी इंद्रजीत मेघनाद का लक्ष्मण वध कर दिया इसलिए लक्ष्मण ही सबसे बड़े योद्धा हैं।"

    ऋषि के वचन सुनकर भगवान श्रीराम को किंचित आश्चर्य हुआ लेकिन भाई के रणकौशल और पराक्रम की प्रशंसा से वह प्रसन्न थे फिर भी उनके मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि आखिर अगस्त्य मुनि ने ऐसा क्यो कहा कि इंद्रजीत का वध करना रावण से ज्यादा कठिन व दुर्गम था । उन्होंने अपनी जिज्ञासा मुनि के समक्ष रखी।

    अगस्त्य_मुनि ने श्रीराम जी की जिज्ञासा के समाधान के लिए कहा-" प्रभु,आपको ज्ञात है कि इंद्रजीत को यह वरदान प्राप्त था कि उसके वध में वही सफल हो सकता है कि जो-

:- चौदह वर्षों तक न सोया हो,

:- जिसने चौदह साल तक किसी स्त्री का मुख न देखा हो, और

:- चौदह साल तक जिसने भोजन न किया हो।"

     श्रीराम ने मुनि के वचन सुनकर कहा-"अपने सत्य कहा मुनिवर, परंतु मैंने बनवास काल में चौदह वर्षों तक नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से के फल-फूल उन्हें दिए। मैं और सीता एक कुटी में रहते थे, बगल की कुटी में लक्ष्मण का निवास था फिर कैसे सम्भव है कि उन्होंने सीता का मुख न देखा हो, चौदह वर्षों तक अनिद्रा का पालन किया है?"

    भगवान श्रीराम की शंका समझ अगस्त्य मुनि मुस्कुराए और उन्होंने स्वयं से ही प्रश्न किया कि प्रभु से कुछ छुपा है भला?क्या सम्भव है यह?

     वस्तुत: सभी अयोध्यावासी सिर्फ श्रीराम का गुणगान करते थे लेकिन प्रभु की इच्छा थी कि लक्ष्मण के तप और वीरता की चर्चा भी अयोध्या के घर-घर में होनी ही चाहिए।

     अगस्त्य मुनि ने शंका के समाधान हेतु कहा - "क्यों न लक्ष्मणजी से इस संबंध में जानकारी ली जाए ?"

     लक्ष्मणजी को संदेश भेजकर बुलाया गया। उनके आगमन पर प्रभु ने कहा-"आपसे जो प्रश्न किए जाएं उनके सही और स्तरीय उत्तर दीजिए। परम पूज्य पिताश्री के आदेश पर हम तीनों 14 वर्षों के वनवास पर साथ गए और साथ रहे फिर आपने सीता का मुख कैसे नहीं देखा ? आपको आहार के लिए फल दिए गए फिर भी अनाहारी कैसे रहे और 14 साल तक आपने निद्रा_का_दमन कैसे किया?यह सब कैसे संभव हुआ ?"

    लक्ष्मण जी ने बिना समय बिताए तुरन्त बताया- "भैया, जब हम भाभी की तलाश में ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे तब सुग्रीव ने हमें भाभी के आभूषण दिखाए थे। आपको स्मरण होगा भइया कि मैं सिर्फ उनके पैरों के नुपूर को ही कोई पहचान पाया था,शेष आभूषण आपने पहचाने क्योंकि मेरी कभी भी उनके चरणों के ऊपर दृष्टि गई ही नहीं।"

    लक्ष्मण ने आगे कहा-"चौदह_वर्ष नहीं सोने के विषय में भी जान लीजिए- आप औऱ माता एक कुटिया में सोते थे। मैं रातभर बाहर धनुष पर बाण चढ़ाए पहरेदारी करता था। निद्रा ने मेरी आंखों पर कब्जा करने का प्रयास किया तो मैंने निद्रा को अपने बाणों से आहत कर दिया था।

   निद्रा ने हारकर स्वीकार कर कहा कि वह चौदह वर्ष तक मुझे स्पर्श नहीं करेगी लेकिन जब आपका अयोध्या आगमन पर राज्याभिषेक हो रहा था तब मैं आपके पीछे सेवक की तरह छत्र लिए खड़ा तब आपको याद होगा कि राज्याभिषेक के समय मेरे हाथ से छत्र गिर गया था।"

   कुछ पल रुक कर लक्ष्मण बोले-"अब मैं 14 साल तक अनाहारी कैसे रहा यह भी जान लीजिए। वन से मेरे लाए फल-फूल आप तीन भागों में विभक्त करते थे। उनमें से एक भाग देकर आपने सदैव यही कहा कि लक्ष्मण फल रख लो।आपने कभी फल खाने के लिए नहीं कहा तो मैं उन्हें आपकी आज्ञा के बिना कैसे भक्षण करता? मैंने उन्हें संभाल कर हमेशा कुटिया में रख दिया। सभी फल उसी कुटिया में अभी भी सुरक्षित होंगे"

   प्रभु रामजी और मुनि के आदेश पर लक्ष्मण जी चित्रकूट की कुटिया से वे सारे फलों ले आए।उन फलों की गिनती हुई की गई तो सात दिन के हिस्से के फल गायब थे।फलों की संख्या कम पाकर प्रभु ने लक्ष्मण से प्रश्न किया-"इसका तात्पर्य है कि तुमने सात दिन तो आहार किया?

   लक्ष्मणजी ने फलों की कम संख्या के बारे में जो बताया वह द्रष्टव्य है- "इन सात दिनों में फल आए ही नहीं थे भइया-

1. जिस दिन हमें पिताश्री के स्वर्गवास होने की सूचना मिली। 

2. जिस दिन रावण ने माता का हरण किया उस दिन फल लाने मैं गया ही नहीं था।

3. जिस दिन समुद्र की साधना कर आप उससे राह मांग रहे थे उस दिन उपवास था सबका भइया। 

4. जिस दिन आप इंद्रजीत के नागपाश में बंधकर दिनभर अचेत रहे उस रोज कोई फल लेने गया नहीं। 

5. जिस दिन इंद्रजीत मेघनाद ने मायावी सीता मां को काटा था हम सभी शोक में रहे।

6. जिस दिन मेघनाद ने मुझ पर शक्ति_का_प्रहार किया तो फल आए ही नहीं, और

7. जिस दिन आपने रावण_वध किया उस दिन किसी को भोजन की सुध ही नहीं थी।

    भइया ‌ऋषि विश्वामित्र से मैंने एक अतिरिक्त विद्या सीखी थी कि बिना आहार किए कैसे जीवन को सुरक्षित रखा जा सकता है।उसी के प्रयोग से मैं चौदह साल तक भूख को नियंत्रित कर निराहार रहा ,इसी का सुफल था इंद्रजीत संहार।"

लक्ष्मणजी की तपस्या के संदर्भ में सुनकर भगवान श्रीराम ने उन्हें अपने ह्रदय से लगा लिया।

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