manas mantra बाबा तुलसीदास जी कहते हैं कि प्रभु की माया से मोहित होकर हम सभी सो रहे हैं। और जो कुछ भी इस संसार में देख रहे हैं वो मात्र स...
manas mantra |
बाबा तुलसीदास जी कहते हैं कि प्रभु की माया से मोहित होकर हम सभी सो रहे हैं। और जो कुछ भी इस संसार में देख रहे हैं वो मात्र स्वप्न है. जैसे ही मृत्यु का झटका लगेगा, एक क्षण में ये सारा स्वप्न उजड़ जायेगा.।
यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः ।
आत्मन्येव च संतुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते ।।
‘जो मनुष्य आत्मा में ही रमण करने वाला और आत्मा में ही तृप्त तथा आत्मा में ही संतुष्ट हो, उसके लिए कोई कर्त्तव्य नहीं है।’
'मन इन्द्रियों को संयत करके एकाग्रचित्त होना सब धर्मों में -
श्रेष्ठ धर्म है, सब तपों में श्रेष्ठ तप है।
तपःसु सर्वेषु एकाग्रता परं तपः ॥
आद्यगुरु भगवान शंकराचार्य जी ने बहुत ही सुन्दर तरीके से इसे समझाया है. उन्होंने सत्ता के तीन स्तर परमार्थ, व्यवहार और प्रतिभास में विभेद किया है।
उन्होंने स्वप्न और व्यक्तिगत होने वाले भ्रम को "प्रतिभास" नाम दिया है. इसका अस्तित्व तब तक है जब तक वह व्यक्ति नींद से जाग नहीं जाता. जैसे ही वो नींद से होश में आता है, वो जान जाता है कि ये उसका निजी भ्रम था, इसका वास्तव में अस्तित्व नहीं है
भगवान शंकर दूसरे स्तर पर "व्यवहार" की सत्ता मानते हैं. वो इसे भी स्वप्न ही मानते हैं. ये स्वप्न हम सभी सामुहिक स्तर पर एक साथ देख रहे हैं और ये बहुत लम्बे समय तक चलता है, इस कारण इसके एकदम सत्य होने की भावना हमारे अन्दर दृढ़ हो जाती है।
पर ये सत्य है नहीं. जब कोई व्यक्ति सत्ता के तीसरे स्तर "परमार्थ" में पहुँच जाता है तब उसे इस सामुहिक स्वप्न का पता चलता है. परमार्थ के स्तर पर पता चलता है कि ये जो कुछ भी दिख रहा है वो वास्तव में है ही नहीं, वास्तविक सत्ता सिर्फ एकमात्र "ब्रह्म" की ही है।
अस अभिमान जाइ जनि भोरे।
मैं सेवक रघुपति पति मोरे।।
सच्चा भक्त तो प्रभु की प्रसन्नता में ही अपनी प्रसन्नता मानता है , इसी को तत्सुख-सुखित्वभाव कहा जाता है
लेकिन ये सारा संसार ही मोह की नींद में सो रहा है और विभिन्न प्रकार के स्वपन देख रहा है कोई मान प्रतिष्ठा प्राप्त करने के,कोई सुख ऐश्वर्य के स्वपन देख रहा है कोई धनी बनने के स्वपन देख रहा है कोई राज्य पदवी को प्राप्त करने के स्वपन देख रहा है। महापुरुष फरमाते हैं कि चाहे कोई झुग्गी झोंपड़ी में रह रहा है या भव्य महलों में, चाहे कोई पैसे पैसे के लिये तरस रहा है या किसी ने धन केअम्बार लगा रखे हों। चाहे कोई कर्ज़दार बना हुआ है या साहूकार बना हुआ है। हैं ये सब सपने के दृश्य ही। रोज़ाना जो हम नींद करते हैं ये ज़रा सपना छोटा है पाँच छः घन्टे का है आठ नौ घन्टे का है और जो जीवन का सपना है ज़रा लम्बा है पचास साठ वर्ष,अस्सी नब्बे वर्ष का है फर्क इतना ही है बस। हैं दोनों सपने ही। असत्य हैं क्योंकि रोज़ाना की नींद में व्यक्ति जब स्वपन की रचना को देख रहा होता है प्रसन्न या अप्रसन्न हो रहा होता है उस समय ये रचना उसे सत्य प्रतीत होती है और संसार की तरफ से बेखबर होने के कारण दुनियाँ का उसके लिये कोई अस्तित्व नहीं होता वह उसके लिये असत्य होती है और जब इस नींद से जाग कर इन बाहरी नेत्रों से संसार के दृश्य देख रहा है और संसार के कार्य व्यवहार में लग जाता है तो सपने की रचना उसके लिये असत्य हो जाती है लेकिन अन्दर के नेत्र बन्द होने के कारण ये संसार के दृश्य भी सपने ही हैं। जीव के पिछले जन्म जो बीत गये हैं क्या वो सपना नही हो गये ?
काल धर्म नहिं ब्यापहिं ताही।
रघुपति चरन प्रीति अति जाही॥
नट कृत बिकट कपट खगराया।
नट सेवकहि न ब्यापइ माया॥
जिसका श्री रघुनाथ जी के चरणों में अत्यंत प्रेम है, उसको कालधर्म (युगधर्म) नहीं व्यापते। हे पक्षीराज! नट (बाजीगर) का किया हुआ कपट चरित्र (इंद्रजाल) देखने वालों के लिए बड़ा विकट (दुर्गम) होता है, पर नट के सेवक (जंभूरे) को उसकी माया नहीं व्यापती॥
उसी प्रकार से इस जन्म के जो वर्ष बीत चुके हैं क्या वो सपना नहीं हो गया?
कल जो बीत गया आज वो सपना हो गया है आज जो बीत जायेगा कल सपना हो जायेगा। इसी तरह ये सारे जीवन की कार्यवाही सपना हो जाती है।
कहाँ गई चिन्ताएँ जिनके लिए हम रात भर सोए नहीं थे?
कहां गये वे सुख जिनके लिये हमने आकाँक्षायें की थीं? एक सपना ही मालूम पड़ेगा, आया और गया।
भगवान शिव जी कहते हैं कि -
उमा कहहुँ मैं अनुभव अपना।
सत हरि भजन जगत सब सपना।।
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