कलियुग केवल हरि गुन गाहा । गावत नर पावहिं भव थाहा ॥

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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   कलियुग में केवल प्रभु श्री राम जी के गुण गान करने से मनुष्य भवसागर पार कर जाता है। 
कलियुग जोग न जग्य न ज्ञाना । 
 एक अधार राम गुन गाना ॥ 
  यह इसलिए संकेत किया गया कि कलियुग में मनुष्य इतना अधिक भय बीमारी शोक और प्रिय बस्तुओ का बियोग आदि मोहजनित बिकारों से ग्रस्त हो जाएगा कि उसे योग यग्य जप तप का समय नहीं मिलेगा। हर ब्यक्ति आलस्य में ब्यस्त है। हर ब्यक्ति का मष्तिष्क भय से पीड़ित है, शरीर बीमारी से पीड़ित है, हृदय शोक से पीड़ित है, तो इन परिस्थितियों में क्या तप ध्यान या योग करेगा।। 
 योग का मतलब उस परमात्मा से इस जीवात्मा का योग।
  तो इन परिस्थितियों में क्या किया जा सकता है केवल श्री हरि का गुणगान करने से गीता में भगवान श्री कृष्ण के बताए गए दैवीय सम्पदा के गुण हरि नाम भजने वाले में आ जातें हैं।
अभयं सत्त्वसंशुद्धिज्ञानयोगव्यवस्थिति: । 
दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम् ॥ 
अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्याग: शान्तिरपैशुनम् । 
दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम् ॥ 
तेज: क्षमा धृति: शौचमद्रोहोनातिमानिता । 
भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत  ॥ 
  नाम-जप से नामी का अक्स (बिम्ब) जापक पर पड़ता है । नाम और नामी में भेद नहीं है । श्रीहरि के नाम-जप से भगवान् की स्मृति हो जाती है ।
 भगवान् के नाम स्मरण से हृदय में विशेष रुचि-प्रेम होता है । मनुष्य कोई भी काम करे, करते-करते उसमें रुचि हो जाती है । उसी प्रकार नाम स्मरण करने से ही आगे जाकर उसमें रुचि हो जाती है । नाम-जपसे दया, क्षमा, समता, शान्ति, प्रीति, ज्ञान सब आ जाते हैं ।   
 नाम का प्रभाव इतना है कि इससे दुर्गुण, दुराचार और पाप नष्ट हो जाते हैं तथा मनुष्य पवित्र हो जाते हैं ।
 कलियुग में न तो योग और यज्ञ है और न ही ज्ञान है। यहाँ पर श्री रामजी का गुणगान ही एकमात्र आधार है। अतः सभी आशाएं और विश्वास छोड़कर जो श्री राम जी का भजन करता है और प्रेमसहित उनके गुणसमूहों को गाता है। 
सब भरोस तजि जो भज रामहिं
 प्रेम समेत गाव गुन ग्रामहि।।
सोइ भव तर कछु संशय नाहीं
नाम प्रताप प्रगट कलि माहीं।।
 सारे झूठे सहारे छोड़कर जो प्रभु श्री राम जी का भजन स्मरण करता है वह भवसागर पार कर जाता है इसमें कोई शक नहीं है।

कृतजुग त्रेताँ द्वापर पूजा मख अरु जोग।
जो गति होइ सो कलि हरि नाम ते पावहिं लोग॥

 सत्ययुग, त्रेता और द्वापर में जो गति पूजा, यज्ञ और योग से प्राप्त होती है, वही गति कलयुग में जीव केवल प्रभु के नाम से प्राप्त कर लेते हैं। 
  ये भवसागर पार कर जाना, इसका मतलब समझना चाहिए - भवसागर यही संसार है जहाँ हम रह रहे हैं। इसे पार कर जाने का मतलब यह है कि हम इस शरीर को बड़ी सरलता के साथ छोड़कर चले जाएं।। यदि हम आसानी से शरीर छोड़कर चले गए तो भवसागर पार और यदि सालों तक विस्तर पर बीमार हालत में दुर्दशा को प्राप्त होते रहे तो समझिए कि यही है नर्क। 
  भगवान का सरल भक्त निश्चित रूप से बिना किसी परेशानी के शरीर छोड़कर चला जाता है लेकिन यदि परिवार के लोग कहने लगे कि इनका अब शरीर छूट जाता तो अच्छा था तो समझ लीजिए कि साधना बन नहीं पाई और कहीं न कहीं दोष था। यदि प्रभु के सरल भक्त आप हैं वास्तव में तो दुर्दशा नहीं होगी।
  इस लिए प्रभु से वास्तविक प्रेम रखना चाहिए अन्यथा रिजल्ट अंत में घोषित होगा और पता चल जाएगा कि हम भक्ति के रूप में नौटंकी कर रहे थे या वास्तविक प्रेम।।

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