पुष्यमित्र शुंग :- एक कट्टर हिन्दू सम्राट

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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पुष्यमित्र शुंग :- एक कट्टर हिन्दू सम्राट

   "जिसके सिर पर तिलक ना दिखे, उसका सर धड़ से अलग कर दो।"

  - सम्राट पं० पुष्यमित्र शुंग

  यह बात आज से लगभग 2100 वर्ष पहले की है। एक किसान ब्राह्मण के घर एक पुत्र ने जन्म लिया, जिसका नाम रखा गया पुष्यमित्र या पुष्यमित्र शुंग और वह बना एक महान हिंदू सम्राट जिसने भारत देश को बौद्ध देश बनने से बचाया।

  अगर पुष्यमित्र शुंग जैसा कोई राजा कंबोडिया मलेशिया या इंडोनेशिया में जन्म लेता तो आज भी यह देश हिंदू देश होते।

  जब सिकंदर राजा पोरस से मार खाकर अपना विश्व विजय का सपना तोड़कर उत्तर भारत से शर्मिंदा होकर मगध की ओर गया था तो उसके साथ आए हुए बहुत से यवन वहां बस गए थे।

  सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म अपना लेने से उनके बाद उनके वंशजों ने भारत में बौद्ध धर्म लागू करवा दिया।

  ब्राह्मणों के द्वारा इस नीति का विरोध होने पर उनका सबसे अधिक कत्लेआम हुआ, लाखों ब्राह्मणों की हत्याएं हुईं, हजारों मंदिर गिरा दिए गए, इसी समय पुष्यमित्र के माता-पिता को धर्म परिवर्तन के लिए कहा गया, जब उन्होंने मनाकर दिया तो छोटे से बालक पुष्यमित्र के सामने ही उसके माता-पिता को काट दिया गया। बालक चिल्लाता रहा मेरे माता पिता को छोड़ दो पर किसी ने नहीं सुनी माता-पिता को मरा देखकर पुष्यमित्र की आंखों में रक्त उतर आया। उसे गांव वालों की संवेदना से भी नफरत हो गई और उसने प्रतिज्ञा ली कि वह इसका बदला बौद्धों से एक दिन जरूर देगा और जंगल की ओर भाग गया।

  ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने के कारण योग की सूक्ष्म क्रियाओं का ज्ञान पुष्यमित्र को था। अतः उसने महान योग क्रियाओं के द्वारा अपने शरीर को अत्यधिक बलवान बना लिया, वह जंगल में रहता था निरंतर योग एवं शस्त्र विद्या का अभ्यास करता था।

  एक दिन बौद्ध राजा बृहद्रथ मौर्य वन में घूम रहा था, अचानक वहां उसके सामने एक सिंह आ गया, सिंह सम्राट की ओर झपटा ही था कि तभी अचानक एक लंबा चौड़ा बलशाली भीमसेन जैसा बलवान युवक शेर के सामने आ गया और उसने अपनी मजबूत भुजाओ से उस शेर के जबड़े को पकड़कर, उसके दो टुकड़े कर बीच से चीर दिया और सम्राट से कहा कि आप अब सुरक्षित हो।

सम्राट ने पूछा- "कौन हो तुम"

युवक ने कहा- "ब्राह्मण हूं महाराज"

उसका पराक्रम देखकर सम्राट ने कहा- "सेनापति बनोगे"

  युवक आकाश की ओर देखकर रक्त से अपना तिलक कर बोला- "मातृभूमि को जीवन समर्पित है।"

  उसी वक्त सम्राट ने उसे मगध का उप सेनापति घोषित कर दिया जल्दी ही अपने शौर्य और पराक्रम के बल पर वह प्रधान सेनापति बन गया।

  शांति का पाठ अधिक पढने के कारण मगध साम्राज्य कायर हो चुका था। लेकिन पुष्यमित्र के अंदर ज्वाला अभी भी जल रही थी वह रक्त से स्नान करने और तलवार से बात करने में विश्वास रखता था।

  पुष्यमित्र एक निष्ठावान हिंदू था और भारत को फिर से हिंदू राष्ट्र बनाना उसका स्वप्न था। आखिर वह दिन भी आ गया,  यवनों की लाखों की फौज ने मगध पर आक्रमण कर दिया। पुष्यमित्र समझ गया कि अब मगध विदेशी गुलाम बनने जा रहा है, जब उसने यह बात सम्राट बृहद्रथ को बताई तो सम्राट बृहद्रथ युद्धकर मगध रक्षा करने के पक्ष में नहीं था, उसका कहना था कि युद्ध से रक्तपात होता है और हमें शांति चाहिए .. युद्ध नहीं।

  मगध के नागरिकों में यवनों का भय व्याप्त होने लगा क्योंकि युद्ध के बाद यवन लूटपाट, हत्याएं तथा स्त्रियों का हरण करते थे।

  पुष्यमित्र ने बिना सम्राट की आज्ञा लिए सेना को युद्ध के लिए तैयारी करने का आदेश दे दिया। उसने कहा कि "इससे पहले के दुश्मन के पैर हमारी मातृभूमि पर पड़े हम उसका शीश उड़ा देंगे।"

  यह नीति तत्कालीन मौर्य साम्राज्य के बौद्ध धार्मिक विचारों के विरुद्ध थी,

  सम्राट बृहद्रथ पुष्यमित्र के पास गया और गुस्से से बोला "यह किसके आदेश से तुम सेना को युद्ध के लिए तैयार कर रहे हो।"

  पुष्यमित्र ने कहा- "मातृभूमि की रक्षा के लिए मुझे किसी की आज्ञा की आवश्यकता नहीं है और ब्राह्मण किसी की आज्ञा नहीं  लेता है।यह कहकर पुष्यमित्र ने सम्राट का सर तलवार के एक ही प्रहार से धड़ से अलग कर दिया।

  लाल आंखों वाले पुष्यमित्र ने सम्राट के रक्त से अपना तिलक किया और पुष्यमित्र ने सैनिकों को संबोधित करते हुए कहा- " ना बृहद्रथ महत्वपूर्ण है, ना पुष्यमित्र, महत्वपूर्ण है तो हमारी मातृभूमि, क्या तुम मातृभूमि के लिए रक्त बहाने को तैयार हो। पुष्यमित्र की शेर जैसी गरज की आवाज से सेना जोश में आ गई और सभी  सैनिक आगे बढ़कर बोले -"हां सम्राट पुष्यमित्र हम तैयार हैं"

  पुष्यमित्र ने कहा- "आज मैं सेनापति ही हूं।" चलो काट दो यवनों को, जो मगध पर अपनी विजय पताका फहराने का स्वप्न पाले हुए हैं और युद्ध में गाजर मूली की तरह ही यवनों को काट दिया गया।

   एक सेना जो कल तक दबी हुई, डरी हुई रहती थी, आज युद्ध में हर हर महादेव और जय जय महाकाल के नारों से दुश्मन को थर्रा रही थी। यवनों ने मगध तो छोड़ ही दिया और अपना राज्य भी खो दिया।इसके बाद पुष्यमित्र का राज्याभिषेक हुआ।

   सम्राट बनने के बाद पुष्यमित्र ने घोषणा की कि- "अब मगध में कोई बौद्धधर्म नहीं मांनेगा, हिंदू सनातन धर्म ही राजधर्म है, और जिसके माथे पर तिलक ना दिखे वह सर धड़ से अलग कर दिया जाएगा।"

  उसके बाद पुष्यमित्र ने वो किया जो आजतक नहीं हुआ, जिससे आज भारत कंबोडिया नहीं है।

  हजारों की संख्या में बौद्ध मंदिर जो कि हिंदू मंदिरों को ध्वस्तकर कर बनाए गए थे, उन्हें ध्वस्त करा दिया गया, बौद्ध मठों को तबाह कर दिया गया। चाणक्य काल की वापसी की घोषणा हुई और तक्षशिला विश्वविद्यालय का सनातन शौर्य फिर से स्थापित हुआ, और जो लोग अपने सनातनधर्म को त्यागकर बौद्ध बन गए थे उन्होंने पुनः सनातन धर्म में वापसी की और जिन लोगों ने सनातनधर्म का विरोध किया उनकी लाखों की संख्या में पुष्यमित्र ने हत्या करा दी।

  पुष्यमित्र शुंग के पुत्र सम्राट अग्निमित्र शुंग ने अपना साम्राज्य तिब्बत तक फैला लिया और तिब्बत भारत का अंग बन गया। वह बौद्धों को दौड़ता हुआ चीन तक ले गया वहां चीन के सम्राट ने अपनी बेटी की शादी अग्निमित्र से करके संधि स्थापित की। इनके वंशज आज भी चीन में शुंग उपनाम नाम ही लिखते हैं।

  पंजाब-अफगानिस्तान-सिंध की शाही ब्राह्मण वंशावली के बाद शुंग वंश सबसे बेहतरीन सनातन साम्राज्य था शायद पेशवा से भी महान, जिसने सनातन धर्म को पुनः स्थापित करने का महान कार्य किया।

  हमें गर्व करना चाहिए! अपने पूर्वजों पर जिन्होंने अपने बलिदान से हमें आज सर उठाकर जीने का अधिकार दिलाया। और आग लगा देनी चाहिए इस फिल्म इंडस्ट्री को जो ब्राह्मणो और क्षत्रियों को कमजोर और भ्रष्ट बताती है।

  हिंदू चाहे किसी भी वर्ण का हो उसे सदैव गलत और पूरे विश्व में आतंकवाद फैलाने वाले इस्लामिक आतंकवादियों को श्रेष्ठ बताती है।

  पुष्यमित्र जैसा सनातनधर्म का रक्षक आजतक कोई नहीं हुआ। वह जानता था कि बिना शास्त्र और शस्त्र के धर्म की रक्षा नहीं हो सकती।

  आवश्यकता है अपने बच्चों को सही इतिहास बताने की।

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