मकर संक्रांति का आध्यात्मिक रहस्य मकर संक्रांति पर प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालुओं का मेला विभिन्न नदियों के घाटों पर लगता है... इस शुभ दिन त...
मकर संक्रांति का आध्यात्मिक रहस्य
मकर संक्रांति पर प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालुओं का मेला विभिन्न नदियों के घाटों पर लगता है... इस शुभ दिन तिल-खिचड़ी का दान करते हैं... वास्तव में स्थूल परम्पराओं में आध्यात्मिक रहस्य छुपे हुए हैं।
अभी कलियुग का अंतिम समय चल रहा है... सारी मानवता दुखी-अशांत हैं... हर कोई परिवर्तन के इंतजार में है... सारी व्यवस्थाएं व मनुष्य की मनोदशा जीर्ण-शीर्ण हो चुकी हैं... ऐसे समय में विश्व सृष्टिकर्ता परमात्मा ज्योति स्वरूप शिव कलियुग — सतयुग के संधिकाल अर्थात् संगमयुग पर ब्रह्मा के तन में आ चुके हैं... जिस प्रकार भक्ति मार्ग में पुरुषोत्तम मास में दान-पुण्य आदि का महत्व होता है... उसी प्रकार पुरुषोत्तम संगमयुग... जिसमें ज्ञान-स्नान करके बुराइयों का दान करने से... पुण्य का खाता जमा करने वाली हर आत्मा उत्तम पुरुष बन सकती है... इस दिन जो खिचड़ी और तिल का दान करते हैं... इसका भाव यह है कि मनुष्य के संस्कारों में आसुरियता की मिलावट हो चुकी है... अर्थात् उसके संस्कार खिचड़ी हो चुके हैं... जिन्हें परिवर्तन करके अब दिव्य संस्कार धारण करने हैं... इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक मनुष्य को ईर्ष्या-द्वेष आदि संस्कारों को छोडकर संस्कारों का मिलन इस प्रकार करना है... जिस प्रकार खिचड़ी मिलकर एक हो जाती है... परमात्मा की अभी आज्ञा है कि तिल समान अपनी सूक्ष्म से सूक्ष्म बुराइयों को भी हमें तिलांजलि देना है... जैसे उस गंगा में भाव-कुभाव से ज़ोर-जबरदस्ती से एक दो को नहलाकर खुश होते हैं और शुभ मानते हैं; इसी प्रकार अब हमें ज्ञान गंगा में नहलाकर मुक्ति-जीवनमुक्ति का मार्ग दिखाना है ... जैसे जब नयी फसल आती है तो सभी खुशियाँ मनाते हैं ... इसी प्रकार वास्तविक और अविनाशी खुशी प्राप्त होती है ... बुराइयों का त्याग करने से ... फसल कटाई का समय देशी मास के हिसाब से पौष महीने के अंतिम दिन तथा अंग्रेजी महीने के 12 ...13 ... 14 या 15 जनवरी को आता है ... इस समय एक सूर्य राशि से दूसरी राशि में जाता है ... इसलिए इसे संक्रमण काल कहा जाता है ... अर्थात एक दशा से दूसरी दशा में जाने का समय ... यह संक्रमण काल उस महान संक्रमण काल का यादगार है जो कलियुग के अंत सतयुग के आरंभ में घटता है ... इस संक्रमण काल में ज्ञान सूर्य परमात्मा भी राशि बदलते हैं ... वे परमधाम छोड़ कर साकार वतन में अवतरित होते हैं ... संसार में अनेक क्रांतियाँ हुई ... हर क्रांति के पीछे उद्देश्य-परिवर्तन रहा है ... हथियारों के बल पर जो क्रांतियाँ हुई, उनसे आंशिक परिवर्तन तो हुआ ...किन्तु सम्पूर्ण परिवर्तन को आज मनुष्य तरस रहा है ... सतयुग में खुशी का आधार अभी का संस्कार परिवर्तन है ... इस क्रांति के बाद सृष्टि पर कोई क्रांति नहीं हुई ... संक्रांति का त्योहार संगमयुग पर हुई उस महान क्रांति की यादगार में मनाया जाता है ।
1) स्नान :- ब्रह्म मुहूर्त में उठ स्नान ... ज्ञान स्नान का यादगार है ।
2) तिल खाना :- तिल खाना ... खिलाना ... दान करने का भी रहस्य है ... वास्तव में छोटी चीज़ की तुलना तिल से की गयी है ... आत्मा भी अति सूक्ष्म है ... अर्थात तिल आत्म स्वरूप में टिकने का यादगार है ।
3) पतंग उड़ाना :- आत्मा हल्की हो तो उड़ने लगती है; देहभान वाला उड़ नहीं सकता है ... जबकि आत्माभिमानी अपनी डोर भगवान को देकर तीनों लोकों की सैर कर सकता है ।
4) तिल के लड्डू खाना :- तिल को अलग खाओ तो कड़वा महसूस होता है ... अर्थात अकेले में भारीपन का अनुभव होता है ... लड्डू एकता एवं मिठास का भी प्रतीक है ।
5) तिल का दान :- दान देने से भाग्य बनता है ... अतः वर्तमान संगमयुग में हमें परमात्मा को अपनी छोटी कमज़ोरी का भी दान देना है ।
6) आग जलाना :- अग्नि में डालने से चीज़ें पूरी तरह बदल जाती ... सामूहिक आग - योगीजन संगठित होकर एक ही स्मृति से ईश्वर की स्मृति मे टिकते हैं ... जिसके द्वारा न केवल उनके जन्म-जन्म के विकर्म भस्म होते हैं ... बल्कि उनकी याद की किरणें समस्त विश्व में फाइल कर शांति ... पवित्रता ... आनंद ... प्रेम ... शक्ति की तरंगे फैलाती हैं ।
आप सभी को इस महान् पर्व मकर सक्रांति की बहुत-बहुत शुभ कामनाएँ।
बहुत ही उपयोगी पोस्ट🙏🙏
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