श्रीकृष्ण बांसुरी क्यों बजाते हैं ?

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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श्रीकृष्ण बांसुरी क्यों बजाते है ?

    एक बार सभी सखियों ने वासुरी से कहा हे बांसुरी ! तुमने ऐसी कौन सी तपस्या की है, कि तुम श्याम सुन्दर के होठो से लगी रहती हो, उनका वो मधुर अधरामृत पान करतीरहती हो, जब वे तुम्हे बजाते है तो मानो तुम उन्हें अपने इशारों पर नाचती हो, एकपैर पर खड़ा रखती हो, वे अपने हाथो के पलग पर तुम्हे सुलाते है, होठो का तकिया लगाते है,और जब उनकी उगुलिया तुम पर चलती है, तो मानो तुम्हारे चरण दबा रहे हो, और जब हवा चलती है तो उनके घुघराले केश हिलते है तो मानो तुम्हे पंखा कर रहे हो,कितनी सेवा करते है तुम्हारी ,वंशी का यदि हम उलटा करे तो होता है "शिव" ये बांसुरी शिव ही है, भगवान शिव जैसे बनो शांत मीठा बोलने वाले,वासुरी भगवान श्री कृष्ण को अति प्रिये है क्योकिवासुरी में तीन गुण है – 1. पहला- "बांसुरी में गांठ नहीं है पोली है मानो हमें बता रही है कि अपने अंदर किसी भी प्रकार कि गाँठ मत रखो. चाहे कोई तुम्हारे साथ कैसा भी करे बदले कि भावना मत रखो .2. दूसरा- "बिना बजाये बजती नहीं है" मानो बता रही है कि जब तक ना कहा जाये तब तक मत बोलो, बोल बड़े कीमती है बुरा बोलने से अच्छा है शांत रहो .3. और तीसरा- "जब भी बजती है मधुर ही बजती है" मानो बता रही है कि जब भी बोलोतो मीठा ही बोलो जब ऐसे गुण किसी में भगवान देखते है तो उसे उठाकर अपने होठो से लगा लेते है.एक बार राधा जी ने बांसुरी से पूछा -हे प्रिय बासुरी यह बताओ कि मैं कृष्ण जी को इतना प्रेम करती हूँ , फिर भी कृष्ण जी मुझसे अधिक तुमसे प्रेम करते है, तुम्हे अपने होठों से लगाये रखते है, इसका क्या कारण है? बासुरी ने कहा - मैंने अपने तन को कटवाया , फिर से काट-काट कर अलग की गई, फिर मैंने अपना मन कटवाया, मतलब बीच में से बिलकुल आर-पार पूरी खाली कर दी गई. फिर अंग-अंग छिदवाया, मतलब मुझमें अनेको सुराख़ कर दिए गए. उसके बाद भी मैं वैसे ही बजी जैसे कृष्ण जी ने मुझे बजाना चाहा! मैं अपनी मर्ज़ी से कभी नहीं बजी! यही अंतर है. मैं कृष्ण जी की मर्ज़ी से चलती हूँ और तुम कृष्ण जी को अपनी मर्ज़ी से चलाना चाहती हो!

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