श्रीकृष्ण भगवान अद्भुत व्यक्तित्व एवं प्रभाव

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 श्रीकृष्ण भगवान अद्भुत व्यक्तित्व एवं प्रभाव

   वैष्णवों के भक्ति- भावना में "कृष्णस्तु भगवान स्वयम"। भक्तजन- बल्लभ अवतारी भगवान् श्रीकृष्ण को अलग- अलग स्थानों में अलग- अलग नाम से जाना जाता है। यथा-- उत्तर प्रदेश में कृष्ण, गोपाल, गोविन्द आदि नाम से; राजस्थान में श्रीनाथजी, ठाकुरजी के नाम से; महाराष्ट्र में बिट्ठल के नाम से; ओडिशा में जगन्नाथ के नाम से; बंगाल में गोपालजी के नाम से; दक्षिण भारत में वेंकटेश, गोविंदा के नाम से; गुजरात में द्वारिकाधीश के नाम से; असम, त्रिपुरा, नेपाल आदि पूर्वोत्तर क्षेत्रो में कृष्ण नाम से; मलेशिया, इंडोनेशिया, अमेरिका, इंग्लैंड, फ़्रांस आदि देशो में कृष्ण नाम ही विख्यात है।

   गोविन्द या गोपाल में "गो" शब्द का अर्थ गाय एवं इन्द्रिय-- दोनों से है। 'गो' एक संस्कृत शब्द और ऋग्वेद में 'गो' का अर्थ होता है मनुष्य की इंद्रिया, जो इन्द्रियों का विजेता अर्थात जिसके वश में इंद्रिया हो और इसलिए गोविंद या गोपाल नाम से गृहीत है।

  साधारण परिचय और महनीयता 

   श्रीकृष्ण के पिता का नाम वसुदेव; इसलिए इन्हें आजीवन "वासुदेव" के नाम से जाना गया। गोकुल (गोपपुर) में नन्द- यशोदा की गोद में बढ़ने के कारण 'नन्दलाल', 'यशोदा- नन्दन' 'कान्हा' नाम से पुकारे जाते थे। श्रीकृष्ण का जन्म उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद के राजा कंस की बंदिशाला में हुआ था। उनके बड़े भाई बलराम और उद्धव तथा अंगिरस उनके चचेरे भाई थे। अंगिरस ने बाद में तपस्या की थी और जैन धर्म शास्त्र के अनुसार तीर्थंकर 'नेमिनाथ' के नाम से विख्यात हुए थे।

     श्रीकृष्ण ने १६००० राजकुमारियों को असम के राजा 'नरकासुर' के कारागार से मुक्त कराया था और उन राजकुमारियों को आत्महत्या से रोकने के लिए, उनके सम्मान रक्षा हेतु मजबूरी में उनसे विवाह किया था। विशेष कारण ये था कि उस युग में हरण की हुयी स्त्री अछूत समझी जाती थी और तत्कालीन समाज उन्हें अपनाता नहीं था।

   श्रीकृष्ण की मूल पटरानी एक ही थी, जिनका नाम 'रुक्मणी' था, जो महाराष्ट्र के विदर्भ राज्य के राजा रुक्मी की बहन थी। रुक्मी था श्रीकृष्ण का शत्रु शिशुपाल का एक मित्र। फिर उस युग के कुरुराजकुमार दुर्योधन था श्रीकृष्ण का समधी और उसके बेटी लक्ष्मणा का विवाह कृष्ण- तनय साम्ब से हुआ था।

  आयुध के रूप में श्रीकृष्ण के धनुष का नाम था 'सारंग', शंख का नाम 'पाञ्चजन्य', और चक्र का नाम था 'सुदर्शन'। उनकी प्रेमिका का नाम भक्तिस्वरूपिणी 'राधाराणी', जो बरसाना ग्राम के मुख्य वृषभानु के बेटी थी। उम्र में लगभग छह साल बड़ी उस राधाराणी से श्रीकृष्ण निष्काम तथा निःस्वार्थ प्रेम करते थे। श्री कृष्ण ने १४ वर्ष की उम्र में वृंदावन छोड़ दिया था और उसके बाद वो राधा से कभी नहीं मिले थे, सिवाय स्मृति के रूप में अपनी मोहन वांशुरी को उनके पास छोड़ गए थे।

  विद्या अर्जन के लिए श्रीकृष्ण मथुरा से मध्य प्रदेश अंतर्गत 'उज्जैन' आये थे और वंहा उन्होंने उच्चकोटि के ब्राह्मण महर्षि 'सान्दीपनि' से अलौकिक विद्याओं का ज्ञान अर्जित किया था।

  पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण जी कुल १२५ वर्ष धरती पर रहे थे। उनके गहरा काला रंग (कृष्णवर्ण) की शरीर अष्टगंध से महकता था। उनके वस्त्र रेशम के पीले रंग के होते थे और मस्तक पर मोर- मुकुट शोभा देता था। उनके सारथी का नाम 'दारुक' और उनके रथ में चार घोड़े जुते होते थे। उनकी दोनो आँखों में प्रचंड सम्मोहन- शक्ति था।

  श्रीकृष्ण के कुलगुरु महर्षि श्रेष्ठ 'शांडिल्य' थे। श्रीकृष्ण का नामकरण महर्षि 'गर्ग' ने किया था। उनके बड़े पोते का नाम 'अनिरुद्ध', जिसके लिए श्रीकृष्ण ने बाणासुर और भगवान् शिव से युद्ध करके उन्हें पराजित किया था।

  श्रीकृष्ण ने गुजरात के समुद्र के बीचो बीच 'द्वारिका' नाम की राजधानी बसाई थी। देवशिल्पी विश्वकर्मा के द्वारा निर्मित सोने की यह द्वारिकापूरी बाद में समुद्रतल में समाहित होगया था। 'ज़रा' नाम के शिकारी (भील/ शबर) का बाण श्रीकृष्ण जी के पैर के अंगूठे में लगा था और वे बलराम जी को साथ लेते हुए भालातीर्थ में पाताली होकर स्वधाम को लौट गए थे। भाला- विद्धकारी ज़रा ही पूर्व जन्म (त्रेता) का 'बाली' था।

  श्रीकृष्ण ने हरियाणा के कुरुक्षेत्र में अर्जुन को पवित्र 'गीता' का ज्ञान रविवार शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन मात्र कुछ क्षण (४५ मिनट!) में प्रदान किया था।

      श्रीकृष्ण ने गोकुल- लीला अवसर में सिर्फ एक बार बाल्यावस्था में यमुना नदी में नग्न होकर स्नान करने वाले गोप- स्त्रियों के वस्त्र चुराए कर, उन्हें अगली बार ऐसे खुले में विना वस्त्र में स्नान न करने की नसीहत दी थी।

      श्रीकृष्ण के अनुसार गौ हत्या करने वाला मनुष्य आसुरी प्रकृति की है और उन्हें जीने का कोई अधिकार नहीं था। इसलिए श्रीकृष्ण जी गोरक्षक गोपाला थे।

      श्रीकृष्ण अवतार नहीं थे, बल्कि 'अवतारी' थे....जिसका अर्थ होता है "पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान्" ; न ही उनका जन्म साधारण मनुष्य की तरह हुआ था और न ही उनकी मृत्यु हुयी थी ।

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