देवदूत

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
1

देवदूत

    ऑन-ड्यूटी नर्स उस चिंतित सेना के युवा मेजर को उस बिस्तर के पास ले गई।

"आपका बेटा आया है" उसने धीरे से बिस्तर पर पड़े बूढ़े आदमी से कहा बुजुर्ग की आंखें खुलने से पहले उसे कई बार इन्ही शब्दों को दोहराना पड़ा।

दिल के दौरे एवं दर्द के कारण भारी बेहोशी की हालत में हल्की आंखे खोलकर किसी तरह उन्होंने उस युवा वर्दीधारी मेजर को ऑक्सीजन टेंट के बाहर खड़े देखा।

युवा मेजर ने हाथ बढ़ाया। मेजर ने अपने प्यार और स्नेह को बुजुर्ग तक पहुंचाने के लिए नजदीक जाकर ध्यानपूर्वक उन्हें गले लगाने का अधूरा सा प्रयास किया। इस प्यार भरे लम्हे के बाद मेजर ने उन बूढ़े हाथों को अपनी जवान उंगलियों में, प्यार से कसकर थामा और मैं आपके साथ, आपके पास ही हूँ, का अहसास दिलाया।

इन मार्मिक क्षणों को देखते हुए, नर्स तुंरन्त एक कुर्सी ले आई ताकि मेजर साहब बिस्तर के पास ही बैठ सकें।

सारी रात वो जवान मेजर वहां, खराब रोशनी वाले वार्ड में बैठा रहा। बस बुजुर्ग का हाथ पकड़े, उन्हें स्नेह, प्यार और ताकत के अनेकों शब्द बोलते, संबल देते।

बीच- बीच में, नर्स ने मेजर से आग्रह किया कि "आप भी थोड़ी देर आराम कर लीजिये" जिसे मेजर ने शालीनता से ठुकरा दिया।

जब भी नर्स वार्ड में आयी हर बार वह उसके आने से बेखबर बस यूँ ही बुजुर्ग का हाथ थामे बैठा रहा। ऑक्सीजन टैंक की गड़गड़ाहट, रात के स्टाफ सदस्यों की हँसी का आदान-प्रदान, अन्य रोगियों के रोने और कराहने की आवाजें, कुछ भी उसकी एकाग्रता को तोड़ नही पाई थी।

उसने मेजर को हरदम, बस बुजुर्ग को कुछ कोमल मीठे शब्द कहते सुना। मरने वाले बुजुर्ग ने कुछ नहीं कहा। रात भर केवल अपने बेटे के हाथ को कसकर पकड़े रखा।

भोर होते ही बुजुर्ग का देहांत हो गया। मेजर ने उनके बेजान हाथ को छोड़ दिया और नर्स को बताने के लिये गया। पूरी रात मेजर ने बस वही किया जो उसे करना चाहिए था, उसने इंतजार किया।

अंततः जब नर्स लौट आई और सहानुभूति जताने के लिये कुछ कह पाती, उससे पहले ही मेजर ने उसे रोककर पूछा "कौन था वो आदमी?"

नर्स चौंक गई "वह आपके पिता थे।"

 "नहीं, वे नहीं थे" मेजर ने उत्तर दिया। "मैंने उन्हें अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखा।"

"तो जब मैं आपको उनके पास ले गयी थी तो आपने कुछ कहा क्यों नहीं ?"

"मैं उसी समय समझ गया था कि कोई गलती हुई है, लेकिन मुझे यह भी पता था कि उन्हें अपने बेटे की ज़रूरत है और उनका बेटा यहाँ नहीं है।"

नर्स सुनती रही, बडी उलझन में थी।

"जब मुझे एहसास हुआ कि वो बुजुर्ग बहुत बीमार है, आखिरी सांसे गिन रहा है, उसे मेरी जरूरत है, तो मैं उनका बेटा बनकर रुक गया।"

"तो फिर आपका इस अस्पताल में आने का कारण?" नर्स ने पूछा -

"जी मैं आज रात यहां श्री विक्रम सलारिया को खोजने आया था। उनका बेटा कल रात जम्मू-कश्मीर में मारा गया था, और मुझे उन्हें सूचित करने के लिए भेजा गया था।"

"लेकिन जिस आदमी का हाथ आपने पूरी रात पकड़े रखा, वे ही मिस्टर विक्रम सलारिया थे।"

दोनों कुछ समय तक पूर्ण मौन में खड़े रहे क्योंकि दोनों को एहसास था कि एक मरते हुए आदमी के लिए अपने बेटे के हाथ से ज्यादा आश्वस्त करने वाला कुछ नहीं हो सकता था।

दोस्तों, जब अगली बार किसी को आपकी जरूरत हो तो आप भी बस वहीं रुके रहें, साथ बने रहें, अंत तक। आपके बोल, उत्साह, आश्वासन तथा दूसरे को ये अहसास कि 'मैं हूँ न' ही उसे स्वस्थ करने के लिये पर्याप्त है।

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

thanks for a lovly feedback

एक टिप्पणी भेजें

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top