भरद्वाज मुनिकी श्रीरामभक्ति-निष्ठा

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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bharadwaj muni

भरद्वाज मुनिकी श्रीरामभक्ति-निष्ठा

महामोहु महिषेसु बिसाला । रामकथा कालिका कराला  ॥ 

 भगवान् के मंगलमय चरितों को सुनने से त्रयतापसंतप्त प्राणी को शान्ति प्राप्त होती है । माया के काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि विकार दूर होते हैं । हृदय निर्मल होता है । इसलिये संत-पुरुष सदा भगवत्कथा कहने-सुनने में ही लगे रहते हैं । श्रीहरि के नित्य दिव्य गुणों में जिनका हृदय लग गया, उनको फिर संसार के सभी विषय फीके लगते हैं । उन्हें वैराग्य करना या जगाना नहीं पड़ता, अपने-आप उनका चित्त सभी लौकिक भोगों से विरक्त हो जाता है । आनन्दकन्द प्रभु के चरित भी आनन्दरूप ही हैं । उनकी सुधा-माधुरिमा का स्वाद एक बार मन को लगाना चाहिये, फिर तो वह अन्यत्र कहीं जाना ही नहीं चाहेगा ।

 देवगुरु बृहस्पति के भाई उतथ्य के पुत्र भरद्वाजजी श्रीरामकथा-श्रवण के अनन्य रसिक थे । ये ब्रह्मनिष्ठ, श्रोत्रिय, तपस्वी और भगवान् के परम भक्त थे । तीर्थराज प्रयाग में गंगा- यमुना के संगम से थोड़ी दूर पर भरद्वाजजी का आश्रम था । सहस्रों ब्रह्मचारी इनसे विद्याध्ययन करने आते और बहुत-से विरक्त साधक इनके समीप रहकर अपने अधिकार के अनुसार योग, उपासना, तत्त्वानुसंधान आदि पारमार्थिक साधन करते हुए आत्मकल्याण की प्राप्ति में लगे रहते । भरद्वाजजी की दो पुत्रियाँ थीं, जिनमें एक महर्षि याज्ञवल्क्यजी को विवाही थी और दूसरी विश्रवा मुनि की पत्नी हुई, जिसके पुत्र लोकपाल कुबेर हुए ।  

  भगवान् श्रीराम में भरद्वाजजी का अनन्य अनुराग था । जब श्रीराम वन जाने लगे, तब मुनिके आश्रम में प्रयागराज में उन्होंने एक रात्रि निवास किया । मुनि ने भगवान् से उस समय अपने हृदय की निश्चित धारणा बतायी थी -

 करम बचन मन छाडि छलु 

जब लगी जनु न तुम्हार ।

 तब लगी सुखु सपनेहु

नहिं किएँ कोटि उपचार ॥ 

  जब भरतलालजी प्रभु को लौटाने की उद्देश्य से चित्रकूट जा रहे थे, तब वे भी एक रात्रि मुनि के आश्रममें रहे थे । अपने तपोबल से, सिद्धिओं के प्रभाव से मुनि ने अयोध्या के पूरे समाज का ऐसा अद्भुत आतिथ्य किया की सब लोग चकित रह गये । जो भगवान् के सच्चे भक्त हैं, उन्हें भगवान् के भक्त भगवान् से भी अधिक प्रिय लगते हैं । किसी भगवद्भक्त का मिलन उन्हें प्रभु के मिलन से भी अधिक सुखदायी होता है । भरद्वाजजी को भरतजी से मिलकर ऐसा ही असीम आनन्द हुआ । उन्होंने कहा भी –

 सुनहु भरत हम झूठ न कहहीं । 

उदासीन तापस बन रहहीं ॥ 

 सब साधन कर सुफल सुहावा ।

लखन राम सिय दरसनु पावा ॥ 

 तेहि फल कर फलु दरस तुम्हारा । 

सहित पयाग सुभाग हमारा ॥ 

 जब श्रीरघुनाथजी लंका-विजय करके लौटे, तब भी वे पुष्पक विमान से उतर कर प्रयाग में भरद्वाजजी के पास गये । श्रीराम के साकेत पधारने पर भरद्वाजजी उनके भुवनसुन्दर रूप के ध्यान तथा उनके गुणों के चिन्तन में ही लगे रहते थे । माघ महीने में प्रतिवर्ष ही प्रयागराज में ऋषि- मुनिगण मकर-स्नान के लिये एकत्र होते थे । एक बार जब माघभर रहकर सब मुनिगण जाने लगे, तब बड़ी श्रद्धा से प्रार्थना करके भरद्वाजजी ने महर्षि याज्ञवल्क्य को रोक लिया और उनसे श्रीरामकथा सुनाने की प्रार्थना की । याज्ञवल्क्यजी ने प्रसन्न होकर श्रीराम-चरित का वर्णन किया । इस प्रकार भरद्वाजजी की कृपा से लोक में श्रीराम-चरित का मंगल-प्रवाह प्रवाहित हुआ ।

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1 टिप्पणियाँ

thanks for a lovly feedback

  1. हमारे देश की महान विभूतियों में से एक महामुनि भरद्वाज को सादर नमन🙏🙏

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