जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा। तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा॥ अंसन्ह सहित मनुज अवतारा। लहेउँ दिनकर बंस उदारा॥ हे मुनि !, सिद्ध ! और द...
जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा।
तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा॥
अंसन्ह सहित मनुज अवतारा।
लहेउँ दिनकर बंस उदारा॥
हे मुनि !, सिद्ध ! और देवताओं के स्वामियों ! डरो मत। तुम्हारे लिए मैं मनुष्य का रूप धारण करूँगा और उदार (पवित्र) सूर्यवंश में अंशों सहित मनुष्य का अवतार लूँगा॥
मर्त्यावतारस्वित्वह मर्त्यशिक्षणं
रक्षोवधायैव न केवल विभोः॥
यहां एक बात जानना चाहिए कि श्री राम का जन्म केवल रावणादि राक्षसों का वध करने के लिये ही नहीं हुआ है अपितु मनुष्यों को धर्म की शिक्षा देने के लिये भी हुआ है।
राम एक तापस तिय तारी ।
नाम कोटि खल कुमति सुधारी॥
श्री रामजी ने एक तपस्वी की स्त्री (अहिल्या) को ही तारा अर्थात उद्धारः किया , परन्तु नाम ने करोड़ों दुष्टों की बिगड़ी बुद्धि को सुधार दिया।
श्री रामजी ने ऋषि विश्वामिश्र के हित के लिए एक सुकेतु यक्ष की कन्या ताड़का की सेना और पुत्र (सुबाहु) सहित समाप्ति की, है॥
श्री राम के अवतार के कारण प्रभुनिर्मित वही सनातन धर्म है। वह सनातन धर्म ही है जो ईश्वर को शरणागत वत्सल, धर्म वत्सल, लोक वत्सल, रिपुवत्सल, मातृ-पितृ वत्सल बनाता है प्रभु की यही करूणामय वात्सल्यता अवतार को हेतु है। अपने भक्तों की तपस्या द्वारा आर्त पुकार भक्त का श्राप, दीन दुखियों का दुख आदि अनेक ऐसे कारण है जिसके फलस्वरूप वह अव्यक्त परब्रह्म साकार होकर इस मृत्युलोक में प्राकृत नर के समान लीलायें करते हैं।
व्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुन बिगत विनोद।
सो अज प्रेम भगति बस कौसल्या की गोद ॥
जो सर्वव्यापक, निरंजन (मायारहित), निर्गुण, विनोद रहित और अजन्मा ब्रह्म है वही प्रेम और भक्ति के वश होकर कौशल्या की गोद में खेल रहे है।
गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि -
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
मैं अवतार लेता हूं. मैं प्रकट होता हूं. जब जब धर्म की हानि होती है, तब तब मैं आता हूं. जब जब अधर्म बढ़ता है तब तब मैं साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूं,।
सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मै आता हूं, दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए में आता हूं और युग युग में जन्म लेता हूं।
भगवान के अवतार के संबंध में रामचरित मानस में जो जो तथ्य दिये गये हैं उनका एक एक वर्णन करना न्यायसंगत होगा।
गो द्विज धेनु देव हितकारी।
कृपा सिंधु मानुष तनुधारी॥
गो का अर्थ है पृथ्वी, रावण के अत्याचारों से जब धरती व्याकुल हो गई तब वह गाय का रूप बनाकर भगवान के पास अपनी करूण व्यथा सुनाने गई प्रभु ने समस्त देवता, सिद्ध मुनि, ब्रह्मा शंकर भगवान और पृथ्वी सभी को अभय करते हुए।
हरिहउँ सकल भूमि गरुआई
निर्भय होहु देव समुदाई॥
गगन ब्रह्मबानी सुनि काना।
तुरत फिरे सुर हृदय जुड़ाना॥
भगवान कहते हैं कि मैं पृथ्वी का सब भार हर लूँगा। हे देववृंद! तुम निर्भय हो जाओ। आकाश में ब्रह्म (भगवान) की वाणी को कान से सुनकर देवता तुरंत लौट गए। उनका हृदय शीतल हो गया॥
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