एक भरोसो एक बल एक आस बिस्वास

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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एक  भरोसो  एक  बल  एक  आस  बिस्वास।
एक राम घन स्याम हित चातक तुलसीदास ॥
जय श्री राम प्रभु भक्तों :-
     जैसे चातक की नजर एक ही जगह पर होती है, ऐसे ही हे प्रभु ! हमारी दृष्टि तुम पर रख दो। भगवान पर भरोसा करोगे तो क्या शरीर बीमार नहीं होगा, बूढा नहीं होगा, मरेगा नहीं ? अरे भाई ! जब शरीर पर, परिस्थितियों पर भरोसा करोगे तो जल्दी बूढ़ा होगा, जल्दी अशांत होगा, अकाल भी मर सकता है। भगवान पर भरोसा करोगे तब भी बूढ़ा होगा, मरेगा लेकिन भरोसा जिसका है देर-सवेर उससे मिलकर मुक्त हो जाओगे और भरोसा नश्वर पर है तो बार-बार नाश होते जाओगे। ईश्वर की आशा है तो उसे पाओगे व और कोई आशा है तो वहाँ भटकोगे। पतंगे का आस-विश्वास-भरोसा दीपज्योति के मजे पर है तो उसे क्या मिलता है ? परिणाम क्या आता है ? जल मरता है ।

सच्चिदानंदरूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे।
 तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नुमः॥

  जो सत् है, चित् है, जो आनन्दस्वरूप है उस पूर्ण परमात्मा का भरोसा, उसी की आस, उसी का विश्वास।  पूर्ण की आस पूर्ण कर देगी, पूर्ण का भरोसा पूर्णता में ला देगा, पूर्ण का विश्वास पूर्णता प्रदान कर देगा। नश्वर की आस, नश्वर का भरोसा, नश्वर का विश्वास नाश करता रहता है।

वेष विसद बोलनि मधुर, मन कटु करम मलीन।
 तुलसी   राम  न  पाइऐ, भएँ  बिषय-जल  मीन ॥

   तुलसीदास जी कहते हैं कि ऊपर का वेष साधुओं का-सा हो और बोली भी मीठी हो, परंतु मन कठोर और कर्म भी मलिन हो; इस प्रकार विषय रूपी जल की मछली बने रहने से श्री राम की प्राप्ति नहीं होती (श्री राम तो सरल मन वाले को ही मिलते हैं)।

एक कहानी के माध्यम से समझते हैं -

   एक बार दरिया में जोरों का तुफान उठा। नाव तरंगो में उछलने लगी। समुद्री तुफान को देख यात्रियों के प्राण कंठ में आ गये। अब क्या करें, किसकी आशा करें, किसका भरोसा करें, किस पर विश्वास करें ? अब गये-अब गये, रोये चीखे चिल्लाये। यात्रियों में एक नवविवाहित भी थे। पत्नी देख रही थी के मेरे पति आकाश की ओर शांत भाव से देख रहे हैं।
वह बोलीः “अजी ! ऐसी आँधी चल रही है, तुफान आ रहा है। अब क्या होगा, कोई पता नहीं। सब चीख रहे हैं, हे प्रभु ! बचाओ। और आप निश्चिंत हो !
पति ने म्यान में तलवार निकाली और उसके गले पर रख दी। पत्नी पति के सामने देखने लगी।
पति बोलाः तुझे डर नहीं लगता ? मौत तेरे सिर पर आ गयी है।
पत्नी ने कहा -मैं क्यें डरूँगी ! तलवार है तो मेरी गर्दन पर लेकिन मेरे स्वामी के हाथ में है। यह तलवार मेरा क्या बिगाड़ेगी ।
पति ने कहा - तेरा अपने स्वामी पर भरोसा है तो तू निश्चिंत है, तो मेरा भी मेरे स्वामी पर भरोसा है इसलिए मैं निश्चिंत हूँ।
   मेरे स्वामी पर मेरा विश्वास है कि जो करेंगे भले के लिए करेंगे। अगर यह नाव डुबाते हैं तो नया शरीर देना चाहेंगे, उसमें भी मेरा भला है और इसी जीवन में सत्संग-साधना में आगे बढ़ाना चाहेंगे तो नाव किनारे लगायेंगे। हमारे हाथ की बात तो है नहीं कि आँधी, तूफान को रोक दें लेकिन आशा, विश्वास और भरोसा उन्हीं का है, उनको जो भी अच्छा लगेगा ये करेंगे।

एतैर्विमुक्तः   कौन्तेय  तमोद्वारैस्त्रिभिर्नरः।
 आचरत्यात्मनः श्रेयस्ततो याति परां गतिम्॥

 हे कुन्तीनन्दन ! इन नरकके तीनों दरवाजोंसे रहित हुआ जो मनुष्य अपने कल्याणका आचरण करता है, वह परमगतिको प्राप्त हो जाता है।

अनन्यचेताः सततं  यो  मां स्मरति नित्यशः ।
 तस्याहं सुलभः पार्थ नित्यमुक्तस्य योगिनः ॥

   गीता में केवल यही एक श्लोक है जिसमें श्रीकृष्ण कहते हैं कि उन्हें पाना सरल है किन्तु इसकी शर्तों के संबंध में *अनन्यचेताः*' अर्थात 'कोई अन्य नहीं' शब्द कहा गया है जिसका अर्थ है कि मन अनन्यता से अकेले उनमें तल्लीन रहना चाहिए। अनन्य शब्द अत्यंत महत्वपूर्ण है। 
 'न अन्य, या कोई अन्य नहीं है। मन अकेले भगवान के अलावा किसी और में आसक्त नहीं होना चाहिए। इस अनन्यता की शर्त को भगवद् गीता में प्रायः बार-बार दोहराया गया है।

मामेकमेव शरणमात्मानं सर्वदेहिनाम्।

 "तुम सब प्राणियों के आत्मस्वरूप मुझे एक परमात्मा की ही शरण ग्रहण करो।"

मम हृदय भवन प्रभु तोरा।
तहँ  बसे  आइ  बहु चोरा ॥

    ईश्वर का धाम शरीर ही है, जो सबको मिलता है। जिसमें रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्द होकर वह सकल संसार में व्यापा है। शरीरों में हृदय ही उसका भवन है। प्रभु के घर में काम, क्रोध और लोभ घुस आये हैं। महाकवि तुलसीदास जी कहते हैं कि हे राम! वे मुझे अनाथ समझकर तुम्हारे ही घर को लूट रहे हैं। मुझे चिन्ता है कि जगत में तुम्हारा अपयश न फैल जाए।
अंत में इतना ही :-
उमा  जे   राम  चरन  रत  बिगत  काम   मद   क्रोध।
निज प्रभुमय देखहिं जगत केहि सन करहिं बिरोध॥


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