मनुष्य की आकांक्षाएं

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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मनुष्य की आकांक्षाएं




  एक बड़ी प्राचीन, तिब्बती कहानी है। एक आदमी यात्रा से लौटा है--लंबी यात्रा से। अपने मित्र के घर ठहरा और रात को उसने मित्र से कहा, यात्रा से एक बहुत अनूठी चीज मेरे हाथ लगी है।

  और मैंने सोचा था कि जब मैं लौटूंगा तो अपने मित्र को दे दूंगा, लेकिन अब मैं डरता हूं, तुम्हें दूं या न दूं। डरता हूं इसलिए कि जो भी मैंने उसके परिणाम देखे हैं, वे बड़े भयानक हैं। 

   मुझे एक ऐसा ताबीज मिल गया है कि तुम उससे तीन आकांक्षायें मांग लो, वे पूरी हो जाती हैं। और मैंने खुद भी तीन मांग कर देख लीं हैं। वे पूरी हो गई हैं और अब मैं पछताता हूं कि मैंने क्यों मांगीं? 

  मेरे और मित्रों ने भी मांग कर देखी हैं, सब छाती पीट रहे हैं, सिर ठोक रहे हैं। सोचा था तुम्हें दूंगा, लेकिन अब मैं डरता हूं, तुम्हें दूं या न दूं।

   मित्र तो दीवाना हो गया। उसने कहा, 'तुम यह क्या कहते हो; न दूं? कहां है ताबीज? अब हम ज्यादा देर रुक नहीं सकते जल्दी करो ताबीज मुझे दे दो। क्योंकि कल का क्या भरोसा?' पत्नी तो बहुत ज्यादा पीछे पड़ गई कि जल्दी निकालो ताबीज। उसने कहा कि 'भई, मुझे सोच लेने दो क्योंकि जो परिणाम मिले, सब बुरे ही मिले।' उसके मित्र ने कहा, 'तुमने ठीक ढंग से मांगा नहीं होगा। गलत मांग लिया होगा।'

   हर व्यक्ति यही सोचता है कि दूसरा व्यक्ति गलत मांग रहा है, इसलिए मुश्किल में पड़ गया। मैं बिलकुल ठीक मांगूंगा।

    लेकिन कोई भी नहीं जानता कि जब तक तुम ठीक नहीं हो, तुम ठीक मांगोगे कैसे? मांग तो तुमसे पैदा होगी । नहीं माना मित्र, नहीं मानी पत्नी। उन्होंने बहुत आग्रह किया तो ताबीज देकर मित्र उदास मन से चला गया। सुबह तक ठहरना मुश्किल लग रहा था। 

   दोनों ने सोचा, क्या मांगें? बहुत दिन से एक आकांक्षा थी कि घर में कम से कम एक लाख रुपया हो, पहला लखपति हो जाने की आकांक्षा थी। और लखपति तिब्बत में बहुत बड़ी बात थी। तो उन्होंने कहा, पहली आकांक्षा तो पूरी कर ही लें, फिर सोचेंगे। तो पहली आकांक्षा मांगी कि लाख रुपया।

    जैसे ही कोई आकांक्षा मांगते, ताबीज हाथ से एकदम झटक कर गिरता था। उसका मतलब था कि आप की मांग स्वीकार हो गई। बस, उसी क्षण दरवाजे पर दस्तक पड़ी। 

   खबर आई कि उनका लड़का जो राजा की सेना में था, वह मारा गया और राजा ने लाख रुपये का पुरस्कार दिया। पत्नी तो छाती पीट कर रोने लगी कि यह क्या हुआ? 

     उसने कहा कि दूसरी आकांक्षा इसी वक्त मांगो कि मेरा लड़का जिंदा किया जाए। बाप थोड़ा डरा। उसने कहा कि यह अभी जो पहली का फल हुआ...पर पत्नी एकदम पीछे पड़ी थी कि देर मत करो कहीं वे दफना न दें, कहीं लाश सड़-गल न जाए, जल्दी मांगो। 

  तो दूसरी आकांक्षा मांगी कि लड़का हमारा वापिस लौटा दिया जाए। ताबीज झटक कर गिरा। उसी क्षण दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। लड़के के पैर की आहट थी। उसने जोर से कहा, 'पिताजी।' आवाज भी सुनाई पड़ी, पर दोनों बहुत डर गये। इतने जल्दी लड़का आ गया? बाप ने बाहर झांक कर देखा, वहां कोई भी दिखाई नहीं दिया। खिड़की में से देखा, वहां भी कोई दिखाई नहीं दिया, केवल कोई चलता-फिरता मालूम होता है।

    वह लड़का प्रेत होकर वापिस आ गया था। क्योंकि शरीर तो दफनाया जा चुका था। पत्नी और पति दोनों घबरा रहे हैं, कि अब क्या करें? दरवाजा खोलें या नहीं? क्योंकि तुमने भला कितना ही लड़के को प्रेम किया हो, अगर वह प्रेत बनकर आ जाए तो हिम्मत पस्त हो जायेगी।

 बाप ने कहा, 'रुक अभी एक आकांक्षा और मांगने को बाकी है।' और उसने ताबीज से कहा, 'कृपा करके अब इस लड़के से छुटकारा दिलाओ, नहीं तो अब यह जिंदगी भर सतायेगा। 

   ताबीज झटक कर गिरा। अब बाहर कोई भी आवाज नहीं आ रही थी।

...और पति आधी रात गया ताबीज देने अपने मित्र को वापिस। और कहा कि, 'इसे तुम कहीं फेंक ही दो। अब किसी को भूल कर भी मत देना।'

   गरीब दुखी दिखता है, अमीर और भी दुखी दिखता है। जिसकी शादी नहीं हुई वह परेशान है, जिसकी शादी हो गई है वह छाती पीट रहा है। जिसके बच्चे नहीं हैं वह घूम रहा है दर दर साधु-संतों के सत्संग में, कि कहीं बच्चा मिल जाए और जिनके बच्चे हैं, वे कहते हैं, इनसे कैसे छुटकारा होगा?

  इसलिए समझदार व्यक्ति परमात्मा से यह नहीं कहता कि मेरी प्रार्थना पूरी करना, वह उससे कहता है, 'जो तेरी मर्जी, वही तू पूरी करना। 

  क्योंकि हम तो यह भी नहीं जानते, क्या मांगें? हम तो गलत ही मांगेंगे, क्योंकि हम गलत हैं।

  तुम्हारे पूरे जीवन की कथा यही है कि जो तुमने मांगा, वह तुम्हें मिल गया। फिर तुम उससे परेशान हो रहे हो। न मिलता तो रोते; मिल गया तो भी रो रहे हो। क्योंकि तुम केवल मांगते हो कभी विचार करके नहीं देखते कि इसका परिणाम क्या निकलेगा।

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