नीयत में होगी खोट तो प्रकृति करेगी चोट कुछ धनी किसानों ने मिलकर खेती के लिए एक कुँआ बनवाया । सबकी अपनी-अपनी बारी बंधी थी। कुंआ एक निर्ध...
नीयत में होगी खोट तो प्रकृति करेगी चोट
कुछ धनी किसानों ने मिलकर खेती के लिए एक कुँआ बनवाया । सबकी अपनी-अपनी बारी बंधी थी। कुंआ एक निर्धन किसान के खेतों के पास था लेकिन उसे पानी नहीं मिलता था.धनी किसानों ने खेतों में बीज बोकर सिंचाई शुरू कर दी. निर्धन किसान बीज भी नहीं बो पा रहा था. उसने धनवानों की बड़ी आरजू मिन्नत की लेकिन एक न सुनी गई। निर्धन बरसात से पहले खेत में बीज भी न बो पाया तो भूखा मर जाएगा। यह सोचकर अमीर किसानों ने उस पर दया की और बीज बोने के लिए एक रात तीन घंटे की सिंचाई का मौका दे दिया । उसे एक रात के लिए ही मौका मिला था। वह रात बेकार न जाए यह सोचकर एक किसान ने मजबूत बैलों का एक जोड़ा भी दे दिया ताकि वह पर्याप्त पानी निकाल ले ।
निर्धन तो जैसे इस मौके की तलाश में था। उसने सोचा इन लोगों ने उसे बहुत सताया है। आज तीन घंटे में ही इतना पानी निकाल लूंगा कि कुछ बचेगा ही नहीं । इसी नीयत से उसने बैलों को जोता पानी निकालने लगा । गाधी पर बैठा और बैलों को चलाकर पानी निकालने लगा । पानी निकालने का नियम है कि बीच-बीच में हौज और नाली की जांच कर लेनी चाहिए कि पानी खेतों तक जा रहा है या नहीं । लेकिन उसके मन में तो खोट था । उसने सोचा हौज और नाली सब दुरुस्त ही होंगी. बैलों को छोड़कर गया तो वे खड़े हो जाएंगे. उसे तो कुँआ खाली करना था. ताबडतोड़ बैलों परडंडे बरसाता रहा । डंडे के चोट से बैल भागते रहे और पानी निकलता रहा । तीन घंटे बाद दूसरा किसान पहुंच गया जिसकी पानी निकालने की बारी थी । उसने बैल खोल लिए और अपने खेत देखने चला.वहां पहुंचकर वह छाती पीटकर रोने लगा । खेतों में तो एक बूंद पानी नहीं पहुंचा था । उसने हौज और नाली की तो चिंता ही नहीं की थी । सारा पानी उसके खेत में जाने की बजाय कुँए के पास एक गड़ढ़े में जमा होता रहा ।
अंधेरे में वह किसान खुद उस गडढ़े में गिर गया । पीछे-पीछे आते बैल भी उसके ऊपर गिर पड़े वह चिल्लाया तो दूसरा किसान भागकर आया और उसे किसी तरह निकाला.दूसरे किसान ने कहा- परोपकार के बदले नीयत खराब रखने की यही सजा होती है । तुम कुँआ खाली करना चाहते थे । यह पानी तो रिसकर वापस कुँए में चला जाएगा लेकिन तुम्हें अब कोई फिर कभी न अपने बैल देगा, न ही कुँआ.तृष्णा यही है । मानव देह बड़ी मुश्किल से मिलता है । इंद्रियां रूपी बैल मिले हैं हमें अपना जीवन सत्कर्मों से सींचने के लिए लेकिन तृष्णा में फंसा मन सारी बेईमानी पर उतर आता है । परोपकार को भी नहीं समझता ईश्वर से क्या छुपा । वह कर्मों का फल देते हैं लेकिन फल देने से पहले परीक्षा की भी परंपरा है । उपकार के बदले अपकार नहीं बल्कि ऋणी होना चाहिए तभी प्रभु आपको इतना क्षमतावान बनाएंगे कि आप किसीपर उपकार का सुख ले सकें । जो कहते हैं कि लाख जतन से भी प्रभु कृपालु नहीं हो रहे । उन्हें विचारना चाहिए कि कहीं उनके कर्मों में कोई ऐसा दोष तो नहीं जिसकी वह किसान की तरह अनदेखी कर रहे हैं और भक्ति स्वीकर नहीं हो रही।
Bahut hi Sundar gyanvardhak Katha
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति 🙏🙏👌👌👌
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