घर बना खण्डहर एक सेठ जी थे, जो दिन-रात अपना काम-धँधा बढ़ाने में लगे रहते थे। उन्हें तो बस, शहर का सबसे अमीर आदमी बनना था। धीरे-धीरे पर आख...
घर बना खण्डहर
एक सेठ जी थे, जो दिन-रात अपना काम-धँधा बढ़ाने में लगे रहते थे।
उन्हें तो बस, शहर का सबसे अमीर आदमी बनना था।
धीरे-धीरे पर आख़िर वे नगर के सबसे धनी सेठ बन ही गए।
इस सफलता की ख़ुशी में उन्होने एक शानदार घर बनवाया। गृह प्रवेश के दिन, उन्होने एक बहुत शानदार पार्टी का आयोजन किया।
जब सारे मेहमान चलें गए, तों वे भी अपने कमरे में सोने के लिए चले आए।
थकान से चूर, जैसे ही बिस्तर पर लेटे, एक आवाज़ उन्हें सुनायी पड़ी...
"मैं तुम्हारी आत्मा हूँ, और अब मैं तुम्हारा शरीर छोड़ कर जा रही हूँ !!"
सेठ घबरा कर बोले, "अरे! तुम ऐसा नहीं कर सकती!!, तुम्हारे बिना तो मैं मर ही जाऊँगा।
देखो!, मैंने वर्षों के तनतोड़-परिश्रम के बाद यह सफलता अर्जित की है। अब जाकर इस सफलता को आमोद प्रमोद से भोगने का अवसर आया है।
सौ वर्ष तक टिके, ऐसा मजबूत मकान मैने बनाया है।
यह करोड़ों रूपये का, सुख सुविधा से भरपूर घर, मैंने तुम्हारे लिए ही तो बनाया है!, तुम यहाँ से मत जाओ।"
आत्मा बोली, "यह मेरा घर नहीं है, मेरा घर तो तुम्हारा शरीर था, स्वास्थ्य ही उसकी मजबूती थी...
किन्तु करोड़ों कमानें के चक्कर में, तुमने इसके रख-रखाव की अवहेलना की है।
मौज - शौक़ के कबाड़ तो भरता रहा, पर मज़बूत बनाने पर किंचित भी ध्यान नहीं दिया।
तुम्हारी गैर ज़िम्मेदारी ने इस अमूल्य तन का नाश ही कर डाला है।"
आत्मा नें स्पष्ट करते हुए कहा, "अब इसे ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, थायरॉइड, मोटापा, कमर दर्द जैसी बीमारियों ने घेर लिया है।
तुम ठीक से चल नहीं पाते, रात को तुम्हे नींद नहीं आती, तुम्हारा दिल भी कमज़ोर हो चुका है।
तनाव के कारण, ना जाने और कितनी बीमारियों का घर बन चुका है, ये तुम्हारा शरीर!!"*
"अब तुम ही बताओ,
क्या तुम किसी ऐसे जर्जरित घर में रहना चाहोंगे,
जिसके चारो ओर कमजोर व असुरक्षित दीवारें हो,
जिसका ढाँचा चरमरा गया हो,
फर्नीचर को दीमक खा रही हो,
प्लास्टर और रंग-रोगन उड़ चुका हो,
ढ़ंग से सफाई तक न होती हो,
यहाँ वहाँ गंदगी पड़ी रहती हो।
जिसकी छत टपक रही हो,
जिसके खिड़की दरवाजे टूटे हों!!
क्या रहना चाहोगे ऐसे घर में?
नहीं रहना चाहोगे ना!! ...
इसलिए मैं भी ऐसे आवास में नहीं रह सकतीं हूँ।"
सेठ पश्चाताप मिश्रित भय से काँप उठे!! अब तो आत्मा को रोकने का, न तो सामर्थ्य और न ही साहस सेठ में बचा था। एक गहरी निश्वास छोड़ते हुए आत्मा, सेठ जी के शरीर से निकल पड़ी... सेठ का पार्थिव बंगला पडा रहा।
मित्रों, ये कहानी आज अधिकांश लोगों की हक़ीक़त हैं। सफलता अवश्य हासिल कीजियेगा, किन्तु स्वास्थ्य की बलि देकर नहीं, अन्यथा सेठ की तरह मंजिल पा लेने के बाद भी, अपनी सफलता का लुत्फ उठाने से वंचित रह जाएँगे !!
पहला सुख निरोगी काया"।