भगवान का अद्भुत खेल

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 भगवान का अद्भुत खेल



     एक दिन श्री राम-लक्ष्मण-भरत-शत्रुघ्न चारों भैया श्रीसरजूजी के किनारे, गेंद का खेल खेलने आए । खेल कोई भी हो दो दल बनाने पड़ते हैं तभी खेल होता है  ।         

       श्रीरामजी ने  लक्ष्मणजी को देखा, तो श्रीलक्ष्मणजी ने सोचा, कि  कहीं  ऐसा न हो कि भगवान हमें खेल में अपने खिलाफ खड़ा कर दें, लक्ष्मण जी खेल में भी भगवान के खिलाफ नहीं खड़ा  होना  चाहते, बोले  प्रभु यदि खिलाड़ी बनाना है तो, हमें अपने पक्ष में ही रखना, क्योंकि  मैं खेल में भी आपके खिलाफ में नहीं रह सकता । 

       श्रीरामजी ने कहा! लक्ष्मण आओ तुम हमारी तरफ हो जाओ । लेकिन कठिनाई यह है कि सभी पक्ष में ही रहेंगे,तो विपक्ष में कौन खड़ा होगा । और बिना दो दल के खेल कैसे होगा । असमंजस में पड़े श्री राम जी की दृष्टि भरत जी की ओर गई । भरत जी समझ गए और तुरंत विपक्ष में जाकर खड़े हो गए । किसी ने भरत जी से कहा रामजी ने लक्ष्मण को तो अपने पक्ष में रखा आपको अपने विपक्ष में रखा । क्या आपको इसकी परवाह नहीं है । 

     भाव विह्वल होकर भरत ने कहा हमें इसकी कोई परवाह नहीं है । भगवान हमें पक्ष में रखें या विपक्ष में हमारा तो एक ही उद्देश्य है कि, भगवान का खेल पूरा होना चाहिए । चाहे पक्ष में रहने से पूरा हो अथवा विपक्ष में  हमें कोई अंतर नहीं पड़ता । परन्तु खेल में विपक्ष में रामजी से दूर हो जाओगे लाभ क्या है ।

      श्रीभरत जी ने कहा यह तो अपने-अपने देखने का ढंग है हमें तो लाभ हुआ है, क्योंकि अगर विचार करें तो खेल में  लाभ बिपक्ष वालों को अधिक मिलता है । क्योंकि श्री रामजी के पक्ष में जो खड़े हैं वे तो हमें देख रहे हैं । और हम जो विपक्ष में खड़े हैं तो राम जी को देख रहे हैं । तो दर्शन का अवसर जो विपक्ष वालों को मिल रहा है वह पक्ष वालों को नहीं मिल रहा है । क्योंकि  पक्ष वाले तो दाएं- बाएं खड़े हैं विपक्षी सन्मुख है ।

        अब गेंद का खेल शुरू हुआ श्री राम जी ने गेंद पर ठोकर लगाई,गेंद बड़ी तेजी से लुढ़कता हुआ भरत जी के पास आया, भरत जी ने दुगने वेग से गेंद पर जोर की ठोकर लगाई । गेंद  रामजी  के पास गया, रामजी ने पुनः गेंद को ठुकराया नहीं । लोगों ने कहा भरत जी जीतना चाहते थे  इसलिए गेंद पर  इतनी जोर की ठोकर लगाई भरत  जी  से पूछा गया क्या आप ने गेंद पर इसलिए जोर की ठोकर लगाई कि आप रामजी के जीतना चाहते थे । श्रीभरतजी बोले?यह बात नहीं है । जब वह गेंद मेरी ओर आ रहा था तो हमें लगा, कि यह गेंद  कितना अभागा है, जो भगवान के चरणों को छोड़कर इधर आ रहा है । मुझे लगा कि जो भगवान के चरणों को छोड़कर भागे । उस पर तो ऐसी जोर की ठोकर लगानी चाहिए, कि वह सोच ले कि भगवान के चरणों को छोड़कर जहां जाएंगे वहां ठोकर ही ठोकर मिलेगा और कुछ नहीं मिलेगा । 

 श्रीरामजी से पूछा गया आपने गेंद को दुबारा क्यों नहीं ठुकराई,  रामजी बोले वैसे तो किसी को भी ठुकराने की मेरी आदत नहीं, पर खेल में गेंद को ठोकर लगा भी देता लेकिन यह गेंद मेरे लिए साधारण नहीं रह गई, क्योंकि इस पर तो भरतजी ने अपने पैर का ठोकर लगा कर वापस भेज दिया, और संत जिसे अपने चरण जोड़कर मेरी तरफ भेज देते हैं,मैं उसे ठुकराता नहीं ।यही मेरा स्वभाव है ।

 आपने यह कथा सुनी होगी,जब गजराज का पैर ग्राह ने पकड़ लिया, गज ने भगवान को पुकारा, भगवान आए गजराज का पूरा शरीर जल में डूब गया था ग्राह खींचे ले जा रहा था । फिर बचाने के लिए आंखों में आंसू लिए गज ऊपर देख रहा हैं । भगवान पधारे भगवान ने चक्र चलाया और ग्राह की गर्दन काटी, गजराज का उद्धार हो गया । लेकिन गजराज ने देखा चतुर्भुज रूपधारी दिव्य पुरुष भगवान की स्तुति कर रहा है ।गजराज ने पूछा प्रभु कौन है यह, भगवान मुस्कुराए, वही ग्राह, ।गज ने कहा समझ में नहीं आता नाथ? क्या न्याय किया है । रोते गजराज ने कहा चिल्लाया मैं, रोया मैं, डूबा भी मैं।

 और आपने ग्राह का उद्धार पहले कर दिया । मैं हाथी के ही रूप में रहा और आपने ग्राह को हरि रूप प्राप्त करा दिया । उद्धार करना था तो बाद में करते, उसका उद्धार पहले ही क्यों किया ।भगवान ने कहा गजराज मैं विवस था, 

 क्योंकि तुमने मुझे पुकारा, और ग्राह ने तुम्हारा पांव पकड़ा था। मैं अपने पुकारने वाले का उद्धार बाद में करता हूं, उसका पांव पकड़ने वाले का उद्धार पहले करता हूं, 

 यही कारण है भरत जैसे संत के चरणों को छूकर गए आई वह गेंद मेरे लिए उपहार है ।  भरतजी सिर झुकाए बैठे हैं संकोच में । रामजी प्रसन्न हैं जीत की खुशी में अशर्फियां बांट रहे हैं। कैसी जीत भगवान श्रीराम ने कहा कि  मेरा भरत जीत गया है ।जब कोई भरत जी से पूछता है कि, आपने रामजी को हरा दिया। आप जीत गए तो भारत कहते मैंने श्रीरामजी को हराया नहीं है । श्री राम जी तो कह रहे हैं कि भरत जीत गए । यही तो बात है भरतजी कहते हैं मैंने श्रीरामजी को हराया नहीं, बल्कि उन्होंने मुझे जीता दिया है। आध्यात्मिक दृष्टि में यह संसार खेलने हेतु भगवान ने बनाया है । गेंद रूपी समस्त जीवात्मा ही भगवान के खिलौने हहै ।जीव जब संत- सद्गुरु द्वारा शरणागति आश्रय लेकर आते हैं ।तो ऐसे जीव को भगवान अपना बना लेते हैं ।जीव ईश्वर का खिलौना बन जाए यही जीवन की पूर्णता है ।

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