योगदर्शन प्रश्नोत्तरी(Important questions of yoga darshan)

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
By -
yoga_darshan
Important questions of yoga darshan

प्रश्न - योगदर्शन के प्रणेता कौन हैं ?

उ. महर्षि पतञ्जलि ।

प्रश्न - योग शब्द में कौन सा प्रत्यय है ?

उ. घञ् ।

प्रश्न - योग शब्द में कौन सी धातु है ?

उ. युज् धातु ।

प्रश्न - योग शब्द का क्या अर्थ है ?

उ. समाधि ।

प्रश्न - योगदर्शन का आधारभूत ग्रन्थ क्या है ?

उ. योगसूत्र।

प्रश्न - योगसूत्र के लेखक हैं ?

उ. महर्षि पतञ्जलि ।

प्रश्न - योगदर्शन को और किस नाम से जाना जाता है ?

उ. सेश्वरसांख्य ।

प्रश्न - योगदर्शन को सेश्वरसांख्य क्यों कहा जाता है ?

उ. ईश्वर तत्त्व को मानने के कारण ।

प्रश्न - योगसूत्र पर आधारित योगभाष्य के रचनाकार कौन हैं ?

उ. वेदव्यास ।

प्रश्न - योगसूत्र का विभाजन किसमें किया गया है ?

उ. पादों में ।

प्रश्न - योगसूत्र में पादों की संख्या कितनी है ?

उ. चार पाद - समाधिपाद(51 सूत्र), साधनपाद(55 सूत्र), विभूतिपाद(55सूत्र), कैवल्यपाद(34 सूत्र) ।

प्रश्न - योगसूत्र में कुल कितने सूत्र हैं ?

उ. 195 ।

प्रश्न - समाधिपाद में किसका वर्णन है ?

उ. योग तथा समाधि के स्वरूप तथा भेदों का वर्णन ।

प्रश्न - साधनपाद का विषय क्या है ?

उ. योगप्राप्ति के साधन तथा अष्टाङ्गयोगाङ्गों का वर्णन । 

प्रश्न - विभूतिपाद में क्या वर्णित है ?

उ. योग से प्राप्त सिद्धियों का वर्णन ।

प्रश्न - कैवल्यपाद में किसका वर्णन है ?

उ. मोक्ष का वर्णन ।

प्रश्न - योगदर्शन में पदार्थों अथवा तत्त्वों की संख्या कितनी है ?

उ. 26 ।

प्रश्न - योगदर्शन पर लिखा गया प्राचीन एवं सर्वप्रथम भाष्य कौन सा है ?

उ. व्यास कृत व्यासभाष्य ।

प्रश्न - योगसूत्र पर 'तत्त्ववैशारदी' नामक  टीका के रचनाकार कौन हैं ?

उ.  वाचस्पतिमिश्र ।

प्रश्न - योगसूत्र कितने प्रमाण मानता है ?

उ. तीन प्रमाण - प्रमाण, प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम (शब्द)।

प्रश्न - योगसूत्र पर योगवार्तिक नामक टीका किसने लिखी है ?

उ.  विज्ञानभिक्षु ने ।

प्रश्न - व्यासभाष्य में योग के कितने भेद हैं ?

उ. चार -1. वितर्कानुगत 2 विचारानुगत 3. आनन्दानुगत 4. अस्मितानुगत ।

प्रश्न - वितर्कानुगत का क्या अर्थ है ?

उ.  ध्येय विषय के स्थूल रूप का सम्प्रज्ञान।

प्रश्न - विचारानुगत का क्या अर्थ है ?

उ. ध्येय विषय के सूक्ष्म रूप का सम्प्रज्ञान ।

प्रश्न - आनन्दानुगत का क्या आशय है ?

उ. ध्यानकारिणी बुद्धि से स्वतः स्फूर्त आनन्द का सम्प्रज्ञान ।

प्रश्न - अस्मितानुगत क्या है ?

उ. बुद्धि और पुरुष की प्रतीयमान एकाकारता से प्रकट होने वाले उभय-स्वरूप विवेक का सम्प्रज्ञान ।

प्रश्न - योगदर्शन का पहला सूत्र क्या  है ?

उ. अथ योगानुशासनम् ।

प्रश्न - 'अथ योगानुशासनम् ' सूत्र में 'अथ' पद किसका वाचक है ?

उ. अधिकार-वाचक ।('अथ इति अयम् शब्दः = अधिकारार्थः ')

प्रश्न -  योग का क्या लक्षण है ?

 उ. योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः ( 1/2 )। चित्त की वृत्तियों के निरोध को ही योग कहते हैं। 

प्रश्न -  'योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः सूत्र में चित्त पद से क्या अभिप्राय है ?

उ. अन्तःकरण । (मन, बुद्धि और अहङ्कार) ।

प्रश्न - चित्तभूमियों या अवस्थाओं की संख्या कितनी है ?

उ. पाँच - क्षिप्त, मूढ, विक्षिप्त, एकाग्र, निरुद्ध ।

प्रश्न - क्षिप्त अवस्था में किस गुण की अधिकता होती है ?

उ. रजोगुण की ।

प्रश्न - मूढ अवस्था में किस गुण की अधिकता होती है ?

उ. तमोगुण की ।

प्रश्न - विक्षिप्त अवस्था में किस गुण की प्रधानता होती है ?

उ. सत्वगुण की ।

प्रश्न - एकाग्र अवस्था में किस गुण की अधिकता होती है ?

उ. सात्विक गुण की ।

प्रश्न - निरुद्ध चित्तभूमि में किस गुण की अधिकता होती है ?

उ. किसी भी गुण का निरोध।

प्रश्न - चित्तवृत्तियाों की संख्या कितनी है ?

उ. पाँच - प्रमाण,विपर्यय,विकल्प, निद्रा,स्मृति । (प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतयः -16 )

प्रश्न - प्रमाण नामक वृत्ति के कितने भेद हैं ?

उ. तीन - 1. प्रत्यक्ष 2. अनुमान 3. आगम (शब्द) प्रमाणानि (1 /7)

प्रश्न - विपर्यय किसे कहते हैं ?

उ. ज्ञेय वस्तु से भिन्न अर्थ में प्रतिष्ठित मिथ्याज्ञान विपर्यय कहा जाता है।(विपर्ययविपर्ययो मिथ्याज्ञानमतद्रूपप्रतिष्ठम्- 1/8)

प्रश्न - विपर्यय का क्या अर्थ है ?

उ. मिथ्याज्ञान अथवा अविद्या ।

प्रश्न - विपर्यय या अविद्या के कितने पर्व / क्लेश/ अङ्ग बताये गये हैं ?

उ. पाँच -1. अविद्या,  2. अस्मिता 3. राग 4. द्वेष  5. अभिनिवेश (पञ्चक्लेश- अविद्याऽस्मितारागद्वेषाभिनिवेशाः पञ्च क्लेशाः ।)

प्रश्न - 'विकल्प' किसे कहते हैं ?

उ. शब्द से उत्पन्न जो ज्ञान, उसके पीछे, चलने का जिसका स्वभाव हो और जो वस्तु की सत्ता की अपेक्षा रखता हो, उसे विकल्प कहा जाता है ।(विकल्प शब्दज्ञानानुपाती वस्तुशून्यो विकल्प: -179) 

प्रश्न - निद्रा से क्या आशय है ?

उ.  जाग्रत तथा स्वप्नावस्था की वृत्तियों के अभाव के कारणभूत तमोगुण को विषय बनाने वाली वृत्ति निद्रा कही जाती है।(निद्रा अभावप्रत्ययालम्बना वृत्तिर्निद्रा - 1/10 )

प्रश्न - 'स्मृति' किसे कहते हैं ?

उ. अनुभव किये हुऐ विषय का फिर चित्त में तन्मात्र विषयक ज्ञान होना स्मृति कहलाता है।(अनुभूतविषयासम्प्रमोष: स्मृति: । - 1 / 11 ) 

प्रश्न -पाँचो वृत्तियों के निरोध का उपाय क्या है ?

उ. अभ्यास और वैराग्य ।

प्रश्न - अभ्यास किसे कहते हैं ?

उ. स्थिति के निमित्त प्रयत्न करना ही अभ्यास है।(अभ्यासवैराग्याभ्यां तन्निरोधः ॥ -1/12) 

प्रश्न - वैराग्य क्या है ?

उ. ऐहिक और पारलौकिक विषयों से निःस्पृह चित्त का वशीकार संज्ञा' नामक  वैराग्य होता है (दृष्टानुश्रविकविषयवितृष्णस्य वशीकारसंज्ञा वैराग्यम् - 1/15)

प्रश्न - वैराग्य कितने प्रकार का होता है ?

उ. दो - 1. अपरवैराग्य , 2. परवैराग्य

प्रश्न - परवैराग्य किसे कहते हैं ?

उ. पुरुष की ख्याति के कारण गुणों के प्रति जो उपेक्षाबुद्धि होती है, वही परवैराग्य है। (तत्परं पुरुषख्यातेर्गुणवैतृष्ण्यम् -1/16)

प्रश्न - समाधि के कितने भेद हैं ?

उ. दो भेद - सम्प्रज्ञात और असम्प्रज्ञात ।

प्रश्न - सम्प्रज्ञात समाधि किसे कहते हैं ?

उ. वितर्क, विचार, आनन्द और अस्मिता का अनुगम होने से सम्प्रज्ञातसमाधि होती हैं। (वितर्कविचारानन्दा स्मितानुगमात्सम्प्रज्ञातः - 1/17)

प्रश्न - असम्प्रज्ञात समाधि क्या है ?

उ. सभी वृत्तियों के अस्त हो जाने पर चित्त का निरोध संस्कारमात्र शेष निरोध- असम्प्रज्ञात समाधि है। (असम्प्रज्ञात का लक्षण विरामप्रत्ययाभ्यासपूर्वः संस्कारशेषोऽन्यः - 1/18)

प्रश्न - असम्प्रज्ञात समाधि के कितने भेद हैं ?

उ. दो - (1) उपायप्रत्यय (2) भवप्रत्यय ।

प्रश्न -  'निर्बीज समाधि' किसे कहते हैं ?

उ. असम्प्रज्ञात समाधि को ।

प्रश्न -  'भवप्रत्यय' क्या है ?

उ. असम्प्रज्ञातसमाधि विदेहों तथा प्रकृतिलीनों की होती है।('भवप्रत्ययो विदेहप्रकृतिलयानाम् -1/19)

प्रश्न - किससे असम्प्रज्ञातसमाधि और कैवल्य की सिद्धि निकटतम हो जाती है ?

उ.  'ईश्वरप्रणिधानाद्वा' (1/23) ईश्वर की भक्ति विशेष से 

प्रश्न -  असम्प्रज्ञात समाधि सम्पाद्य होती है ?

उ. ईश्वरप्रणिधान से  ।

प्रश्न - ईश्वर का लक्षण क्या है ?

उ. 'ईश्वर' क्लेश, कर्म, विपाक और आशय वासनाओं के परामर्श से रहित एकविशेष प्रकार का पुरुष है (क्लेशकर्मविपाकाशयैरपरामृष्टः पुरुषविशेष ईश्वरः ॥ - 1/24) 

प्रश्न - सर्वज्ञता का बीज प्राप्त होता है ?

उ. अपनी पराकाष्ठा को । (तत्र निरतिशयं सर्वज्ञबीजम् - 1/25 ) 

प्रश्न - ''प्रणवः' किसका वाचक है ?

उ. ईश्वर का ।

प्रश्न - कर्म से क्या आशय है ?

उ. कर्मसंस्कार धर्माधर्मरूप ।

प्रश्न - विपाक क्या है ?

उ. विपाकः कर्मफलानि, कर्म से मिलने वाले फल जाति, आयु और भोगरूप फल। 

प्रश्न - आशय का क्या अर्थ है ?

उ. चित्ते आ समन्तात् शेते इति वासना संस्कारः आशयः । चित्त में सब ओर से ग्रथित रहने के कारण इन वासना संस्कारों को 'आशय' कहते हैं।

प्रश्न - अपरामृष्ट से क्या आशय है ?

उ. अपरामृष्ट: असंस्पृष्टः - नाममात्र के भी सम्बन्ध अर्थात् सम्पर्क से रहित । 

प्रश्न - ईश्वर का अभिधायक शब्द क्या है ?

उ. ओंकार ।

प्रश्न - ओंकार जप के पश्चात् क्या करना चाहिए ?

उ. योगसाधना ।

प्रश्न - योगसाधना के पश्चात् क्या करना चाहिए ?

उ. जप ।

प्रश्न - परमात्मा का साक्षात्कार कैसे होता है ?

उ. जप और योग की सिद्धि से ।

प्रश्न - चित्तविक्षेपों की संख्या कितनी है ?

उ. नव(9) - व्याधि, स्त्यान, संशय, प्रमाद, आलस्य, अविरति भ्रान्तिदर्शन, अलब्धभूमिकत्व और अनवस्थितत्व । (व्याधिस्त्यानसंशयप्रमादाऽऽलस्याऽविरतिभ्रान्तिदर्शनाऽलब्धभूमिकत्वाऽनवस्थितत्वानि चित्तविक्षेपास्तेऽन्तरायाः - 1/30) । ये नव विघ्न ही चित्त के विक्षेप हैं।

प्रश्न - विक्षेपों के साथ रहते हैं ?

उ.  दुःख, दौर्मनस्य अङ्गकल्पन, श्वास और प्रश्वास ।(दुःखदौर्मनस्याङ्गमेजयत्वश्वासप्रश्वासा विक्षेपसहभुवः - 1 / 31 ) 

प्रश्न - विघ्नों को दूर करने के लिये क्या करना चाहिए ?

उ. किसी एक तत्व का अभ्यास ।(तत्प्रतिषेधार्थमेकतत्त्वाभ्यास -1/32)

प्रश्न - चित्त प्रसन्न कैसे होता है ?

उ. प्राणों का रेचक, पूरक तथा कुम्भक करने से । ('प्रच्छर्दनविधारणाभ्यां वा प्राणस्य' -1/34)

प्रश्न - प्रच्छर्दन क्या है ?

उ. उरस्थ वायु को नाक के नथुनों से विशिष्ट प्रयत्न के द्वारा निकालना ।

प्रश्न -विधारण' किसे कहते हैं ?

उ. पूरक तथा कुम्भक प्राणायाम को ।

प्रश्न - समापत्ति किसे कहते हैं ?

उ. श्रेष्ठमणि के समान क्षीणवृत्तियों वाले तथा ग्रहीता, ग्रहण और ग्राह्य विषयों में स्थित होने वाले चित्त का उनके आकार को ग्रहण कर लेना ।( 'क्षीणवृत्तेरभिजातस्येव मणेर्ग्रहीतृग्रहणग्राह्येषु तत्स्थतदञ्जनता समापत्तिः ' - 1/41 ) 

प्रश्न - समापत्ति में प्रकृति प्रत्यय है ?

उ. सम् + आ + पद् + क्तिन् ।

प्रश्न - समापत्ति का क्या अर्थ है ?

उ.  सम्यक् प्रकार से सब ओर से हो जाना।

प्रश्न - समापत्तियों की संख्या कितनी है ?

उ. चार(4) - 1. सवितर्का, 2. निर्वितर्का, 3. सविचारा, 4. निर्विचारा ।

प्रश्न - सबीज समाधियाँ कौन हैं ?

उ. सवितर्का,  निर्वितर्का, सविचारा, निर्विचारा ये चारों समापत्तियाँ ही सबीज समाधियाँ  हैं । ( 'ता एव सबीजः समाधिः ' - 1/46 ) 

प्रश्न - निर्बीज समाधि कब सिद्ध होती है ?

उ. ऋतम्भरा प्रज्ञा तथा तज्जन्य संस्कार का निरोध हो जाने से । ( 'तस्यापि निरोधे सर्वनिरोधान्निर्बीजः समाधिः '- 1/51)

प्रश्न - क्रियायोग किसे कहते हैं ?

उ. तपस्या स्वाध्याय और ईश्वरप्रणिधान को । ('तपः स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि क्रियायोगः - 2.1)

प्रश्न - तप किसे कहते हैं ?

उ. चित्त की प्रसन्नता को बाधित न करने वाली स्थिति को तप कहते हैं ।

प्रश्न - स्वाध्याय क्या है ?

उ. शास्त्रों के द्वारा ओङ्कार इत्यादि पवित्र मन्त्रों का जप करना स्वाध्याय है ।

प्रश्न - ईश्वरप्रणिधान का क्या अर्थ है ?

उ. सभी क्रियाओं को परम गुरू ईश्वर में अर्पित करना या उन कर्मों के फलों का संन्यास ईश्वरप्रणिधान कहा जाता है।  

प्रश्न - क्लेशों की संख्या कितनी है ?

उ. पाँच(5) - अविद्या अस्मिता, राग, द्वेष, और अभिनिवेश।(अविद्याऽस्मितारागद्वेषाभिनिवेशाः पञ्च क्लेशाः - 2/3)

प्रश्न - भाष्यकार के अनुसार पाँच क्लेशों का क्या अर्थ है ?

उ. पाँच प्रकार के विपर्यय या मिथ्याज्ञान ।

प्रश्न - प्रसुप्त, तनु, विच्छिन्न और उदार इन चारों अवस्थाओं में रहने वाले 'अस्मिता' इत्यादि चारों परवर्ती क्लेशों की प्रसवभूमि कौन  है ?

उ. अविद्या । (अविद्या क्षेत्रमुत्तरेषां प्रसुप्ततनुविच्छिन्नोदाराणाम् - 2/4)

प्रश्न - अविद्या क्या है ?

उ. अनित्य, अपवित्र, दुःखमय और अनात्मपदार्थों में क्रमशः नित्य, पवित्र, सुखमय और आत्मा का ज्ञान होना अविद्या है। ('अनित्याऽशुचिदुःखानात्मसु नित्यशुचिसुखात्मख्यातिरविद्या - 2/5)

प्रश्न - अविद्या का आशय क्या है ?

उ. अनित्य पदार्थ में नित्यपदार्थ का ज्ञान अविद्या है । जैसे पृथ्वी नित्य या स्थायी है। चन्द्रमा और तारों सहित द्युलोक नित्य है।

प्रश्न - अस्मिता किसे कहते हैं ?

उ. दृकशक्ति पुरुष और दर्शनशक्ति बुद्धि की प्रतीयमान एकात्मता को अस्मिता नामक क्लेश कहते हैं । ('दग्दर्शनशक्त्योरेकात्मतेवास्मिता' - 2/6)

प्रश्न - राग क्या है ?

उ. सुख के अनुभविता को सुखानुभव की स्मृतिपूर्वक सुख या सुख के साधनभूत पदार्थ के प्रति जो चाह, लालच या लोलुपता होती है वही राग नामक क्लेश है । ('सुखानुशयी रागः' - 2/7)

प्रश्न - द्वेष किसे कहते हैं ?

उ. दुःख के अनुभविता को दुःखानुभव की स्मृतिपूर्वक दुःख या दुःख के साधनभूत पदार्थ के प्रति जो प्रतिहिंसा, मन्यु, मारने की इच्छा या क्रोध होता है, वह द्वेष है। ('दुःखानुशयी द्वेष:' - 2/8) 

प्रश्न - अनुशयी में प्रकृत प्रत्यय है ?

उ. अनु + शीङ् + णिनिः = अनुशयी ।

प्रश्न - अभिनिवेश किसे कहते हैं ?

उ. संस्काररूप से स्थिर, विद्वानों में भी उसीप्रकार से वर्तमान क्लेश अभिनिवेश है। ( स्वरसवाही विदुषोऽपि तथारूढोऽभिनिवेश: - 2/9 )

प्रश्न - अभिनिवेश क्या है ?

उ. अभिनिवेश नामक क्लेश स्वभावतः वर्तमान में रहने वाला उत्पन्न मात्र हुए कीट को भी प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम प्रमाणों के द्वारा अज्ञेय, आत्मनाश की कल्पनारूप मरण का भय है। ('स्वरसवाही स्वरसेन संस्कारमात्रेण वहतीति स्वरसवाही' अभिनिवेशः मरणभयम् ।)

प्रश्न - स्वरसवाही में प्रकृति प्रत्यय है ?

उ. स्वरस + वह + णिनिः । (स्वस्य रसः इति स्वरसः तं वोढुं शीलमस्येति स्वरसवाही)  अपने मौलिक रूप को सदा अक्षुण्ण रखने वाला या संस्कार से सदैव वर्तमान रहने वाला । 

प्रश्न - अभिनिवेश का क्या अर्थ है ?

उ. मरने का डर ही अभिनिवेश है।

प्रश्न - पाँच क्लेशों की वृत्तियाँ किसके द्वारानष्ट की जाने योग्य होती है ?

उ. क्रियायोग से हल्की तथा विवेकख्याति के द्वारा । ("ध्यानयास्तद्वृत्तयः " - 2/11) 

प्रश्न - जन्म, आयु और भोग रूपी कर्माशय के फल कब प्राप्त होते हैं ?

उ. क्लेशरूपी मूल के रहने पर  । (सति मूले तद्विपाको जात्यायुर्भोगाः - 2/13)

प्रश्न - हेय क्या है ?

उ. भविष्यकालिक दुःख ही हेय' है । ( हेयं दुःखमनागतम् - 2/16)

प्रश्न - हेय का क्या हेतु है ?

उ. द्रष्टा और दृश्य का संयोग । (द्रष्टृदृश्ययोः संयोगो हेयहेतुः - 2/17)

प्रश्न - 'हान' किसे कहते हैं ?

उ. अविद्या के मिट जाने से संयोग का नाश हो जाना ।  वही पुरुष का 'कैवल्य' है। (तद्भावात्संयोगाभावो हानं तद्दृशेः कैवल्यम् - 2 / 25 )

प्रश्न - हान का क्या उपाय है ?

उ. मिथ्याज्ञानशून्य विवेकख्याति ही हान का उपाय है । ( विवेकख्यातिरविप्लवा हानोपायः - 2/26)

प्रश्न - विवेकख्याति योगी की उत्कृष्ट स्तरवाली प्रज्ञा कितने प्रकार की होती है ?

उ. सात प्रकार की । ( तस्य सप्तधा प्रान्तभूमि: प्रज्ञा - 2/27) 

प्रश्न - अष्टाङ्गयोग के अनुष्ठान करने से, अशुद्धि का क्षय हो जाने पर क्या होता है ?

उ. विवेकख्याति के उदय तक ज्ञान का प्रकाश होता जाता है। ( योगाङ्गानुष्ठानादशुद्धिक्षये ज्ञानदीप्तिराविवेकख्यातेः - 2/28 )

प्रश्न - योग के कितने अङ्ग हैं ?

उ. आठ(8) - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि (यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहाारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावङ्गानि  - 2/29 ) । 

प्रश्न - यम कितने हैं ?

उ. पाँच(5) - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह । (अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहाः यमाः - 2/30)

प्रश्न - अहिंसा किसे कहते हैं ?

उ. सब प्रकार से सदैव सब प्राणियों को पीड़ा न पहुचाना अहिंसा है। ( 'तत्राहिंसा सर्वथा सर्वदा सर्वभूतानामनभिद्रोहः ।')

प्रश्न -  सत्य किसे कहते हैं ?

उ. जैसा देखा गया या अनुमित किया गया या सुना गया हो उसके सम्बन्ध में वैसी ही वाणी और वैसा ही मन रखना 'सत्य' है । ('सत्यं यथार्थे वाङ्मनसे')

प्रश्न - अस्तेय क्या है ?

उ. शास्त्राज्ञा के विपरीत दूसरों का द्रव्य ग्रहण करना 'स्तेय' है। (स्तेयमशास्त्रपूर्वकं द्रव्याणां परत: स्वीकरणम्)। इस प्रकार की इच्छा का अभाव रूप स्तेयाभाव 'अस्तेय' है। (तत्प्रतिषेधः पुनरस्पृहारूपमस्तेयमिति) ।

प्रश्न - ब्रह्मचर्य क्या है ?

उ. गुप्तेन्द्रिय अर्थात् जननेन्द्रिय का निग्रह 'ब्रह्मचर्य है। ('ब्रह्मचर्य गुप्तेन्द्रियस्योपस्थस्य संयमः।')

प्रश्न - अपरिग्रह किसे कहते हैं ?

उ. विषयों की प्राप्ति रक्षा और तद्विषयक आसक्ति तथा हिंसादि दोषों के कारण उन विषयों को स्वीकार न करना 'अपरिग्रह' है। (विषयाणामर्जनरक्षणक्षयसङ्गहिंसादोषदर्शनादस्वीकरणमपरिग्रह इत्येते यमाः ।)

प्रश्न - 'महाव्रत' किसे कहा जाता है ?

उ. जाति, देश, काल और आचार परम्परा से सीमित न होने वाले यम सार्वभौम महाव्रत कहे जाते हैं। ('जातिदेशकालसमयानवच्छिनाः सार्वभौमा महाव्रतम् (2/31) ।

प्रश्न - नियम कितने हैं ?

उ. पाँच(5) -  शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वरप्रणिधान । (शौचसन्तोषतपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमा: - 2/32)

प्रश्न - ईश्वरप्रणिधान का क्या अर्थ है ?

उ. गुरु या ईश्वर के प्रति सभी कर्मों का अर्पण करना । (ईश्वरप्रणिधानं तस्मिन् परमगुरौ सर्वकर्मार्पणम् ।)

प्रश्न - प्राणियों का पारस्परिक वैरभाव कब छूट जाता है ?

उ. अहिंसा के प्रतिष्ठित हो जाने पर । (अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः  - 2/35) ।

प्रश्न - साधक में शुभाशुभ क्रियाओं और उनके फलों की आश्रयता कब आती है ?

उ. सत्य के प्रतिष्ठित वितर्कशून्यतया स्थिर हो जाने पर । (सत्यप्रतिष्ठायां क्रियाफलाश्रयत्वम् - 2/36)

प्रश्न - किसके प्रतिष्ठित हो जाने पर सभी रत्नों की उपस्थिति होती है ?

उ. अस्तेय के प्रतिष्ठित हो जाने पर । (अस्तेयप्रतिष्ठायां सर्वरत्नोपस्थानम् ' - 2 / 37 )

प्रश्न - सामर्थ्य लाभ कब होता है ?

उ. ब्रह्मचर्य के प्रतिष्ठित हो जाने पर । (ब्रह्मचर्यप्रतिष्ठायां वीर्यलाभ: - 2/38)

प्रश्न - भूत, वर्तमान और भविष्य के जन्मों तथा अनेक प्रकार का सम्यग्ज्ञान कब होता है ?

उ. अपरिग्रह के स्थित होने पर । (अपरिग्रहस्थैर्ये जन्मकथन्तासम्बोध: - 2 / 39 )

प्रश्न - अपने अङ्गों के प्रति घृणा और अन्य प्राणी के अङ्गों से संसर्गाभाव कब होता है ?

उ.  शौच के स्थिर होने से ।  (शौचात् स्वाङ्गजुगुप्सा परैरसंसर्ग - 2/40)

प्रश्न - बुद्धिशुद्धि से क्या होता है ?

उ. मन की प्रसन्नता, एकाग्रता इन्द्रियों पर विजय और आत्मसाक्षात्कार की योग्यता आती है (सत्त्वशुद्धिसौमनस्यैकाग्र्येन्द्रियजयात्मदर्शनयोग्यत्वानि च - 2/41) ।

प्रश्न - सन्तोष के स्थित होने से क्या लाभ है ?

उ. सन्तोष के स्थित होने से निरतिशय सुख की प्राप्ति होती है। (सन्तोषादनुत्तमसुखलाभ: - 2/42) ।

प्रश्न - इष्ट देवताओं का सम्पर्क कब होता है ?

उ. स्वाध्याय के स्थिर होने से ।  (स्वाध्यायादिष्टदेवतासम्प्रयोगः - 2/44) ।

प्रश्न - समाधि की सिद्धि कब होती है ?

उ. ईश्वरप्रणिधान स्थित होने से । (समाधिसिद्धिरीश्वरप्रणिधानात् 2/45) 

प्रश्न - आसन किसे कहते हैं ?

उ. जो शारीरिक स्थिति स्थायी और सुखद हो, वह आसन है । (स्थिरसुखमासनम्  - 2/46) । जैसे -  पद्मासन, वीरासन, भद्रासन, स्वस्तिकासन, दण्डासन, सोपाश्रय, पर्यङ्क, क्रौञ्चनिषदन, हस्तिनिषदन, उष्ट्रनिषदन, समसंस्थान, स्थिरसुख, यथासुख आदि इसी प्रकार के और भी स्थिर सुख आसन होते हैं।

प्रश्न - आसन में प्रकृति प्रत्यय है ?

उ. आस्यते अनेन इति करणे ल्युट् (आस् + ल्युट् ) आसनम् ।

प्रश्न - निश्चल तथा सुखकारी आसनसिद्धि होने पर क्या होता है ?

उ. शीतोष्णादि द्वन्द्वों से बाधा नहीं होती। (ततो द्वन्द्वानभिघातः - 2/48) ।

प्रश्न - प्राणायाम किसे कहते हैं ?

उ. श्वास और प्रश्वास की गति को रोकना । (श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायाम:' - 2/49) ।

प्रश्न - कौन देश, समय और संख्या के द्वारा परीक्षित होता हुआ दीर्घ और सूक्ष्म होता है ?

उ. शरीर के बाहर होने वाला रेचक, भीतर होने वाला पूरक तथा बाहर और भीतर रुकने वाला कुम्भक त्रिविध प्राणायाम । (बाह्याभ्यन्तरस्तम्भवृत्तिर्देशकालसंख्याभिः परिदृष्टो दीर्घसूक्ष्म - 2/50) ।

प्रश्न - प्राणायाम की सिद्धि से क्या होता है ?

उ. प्रकाश पर पड़ा हुआ पर्दा क्षीण होता है।  ('ततः क्षीयते प्रकाशावरणम्' - 2/52) ।

प्रश्न - मन की क्षमता होती है ?

उ. धारणाओं में । (धारणासु च योग्यता मनसः - 2/53) ।

प्रश्न - प्रत्याहार किसे कहते हैं ?

उ.  इन्द्रियों के विषयों के साथ सन्निकर्ष न होने पर इन्द्रियों का चित्त के स्वरूप का अनुसरण सा कर लेना प्रत्याहार है। (स्वविषयासम्प्रयोगे वित्तस्वरूपानुकार इवेन्द्रियाणां प्रत्याहारः - 2/54) 

प्रश्न - इन्द्रियों की प्रबल वशवर्तिता किससे होती है ?

उ.  प्रत्याहार से ।(ततः परमा वश्यतेन्द्रियाणाम् 2/55)।

प्रश्न - धारणा किसे कहते है ?

उ. चित्त के सात्विक वृत्ति को किसी बाहरी या भीतरी प्रदेश में लगाना । (देशबन्धश्चित्तस्य धारणा - 3 / 1 )

प्रश्न - ध्यान की परिभाषा क्या है ?

उ. धारणा वाले विषय में, ध्येयरूप आलम्बन वाले ध्येय पर ही केन्द्रित तथा अन्य ज्ञानों से अस्पृष्ट ज्ञान की अविच्छिन्न तथा अभिन्न धारा ही 'ध्यान' है। (तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम् - 3/2) ।

प्रश्न - समाधि की परिभाषा क्या है ?

उ. ध्येय अर्थमात्र को निर्भासित करने वाला अपने (ज्ञानात्मक) रूप से भी रहित सा ध्यान ही समाधि है । (तदेवार्थमात्रनिर्मासं स्वरूपशून्यमिव समाधिः - 3/3) ।

प्रश्न - योग के लिये किन समाधियों की उपयोगिता होती है ?

उ. 1. योगाङ्गरूप समाधि 2. सम्प्रज्ञातसमाधि 3. असम्प्रज्ञातसमाधि ।

प्रश्न - संयम की परिभाषा क्या है ?

उ. धारणा, ध्यान और समाधि तीनों एकत्र अर्थात् एक ही आलम्बनगत होने पर संयम कहे जाते हैं। (त्रयमेकत्र संयमः - 3/4 ) ।

प्रश्न - अन्तरङ्ग साधन यमादि साधनों की अपेक्षा धारणा, ध्यान और समाधि किसके लिए अन्तरङ्ग माने जाते हैं ?

उ. सम्प्रज्ञात समाधि के लिये । (यमन्तर पूर्वेभ्यः -  3/7 ) 

प्रश्न - निर्बीजसमाधि के लिये बहिरङ्ग है ?

उ. संयम  (तदपि बहिरङ्गं निर्बीजस्य - 3/8) ।

प्रश्न -  धारणा, ध्यान, समाधि इन तीनों  परिणामों में संयम करने से क्या होता है ?

उ.  योगी को अतीत तथा अनागत का साक्षात्कार होता है। परिणामत्रयसंयमादतीतानागतज्ञानम् -  3 / 16 ) 

प्रश्न - संस्कारों में संयम करने के फलस्वरूप प्राप्त साक्षात्कार से क्या होता है ?

उ. पूर्वजन्मों का ज्ञान । संस्कारसाक्षात्कारणात्पूर्णजातिज्ञानम् -  3 / 18 ) । 

प्रश्न - सूर्य में किये गये संयम से क्या होता है ?

उ. समस्त भुवनों का ज्ञान। (भुवनज्ञानं सूर्ये संयमाद् - 3/26) ।

प्रश्न - प्रतिष्ठित चित्त वाले योगी को सभी पदार्थों का स्वामित्व तथा सर्वज्ञत्वकिसमें सिद्ध  होता है ?

उ. बुद्धि और पुरुष के अन्यत्व की ख्याति में । (सत्त्वपुरुषान्यताख्यातिमात्रस्य सर्वभावाधिष्ठातृत्वं सर्वज्ञातृत्वञ्च - 3/49)

प्रश्न - वो कौन सी सिद्धि है जिसको प्राप्त करके योगी सर्वज्ञ, दग्धक्लेशाबन्धन और स्वामी होकर विचरण करता है ?

उ. विशोका नाम की  सिद्धि ।

प्रश्न - कैवल्य  कब होता है ?

उ. बुद्धिसत्व और पुरुष की शुद्धि के समान हो जाने पर । (सत्त्वपुरुषयोः शुद्धिसाम्ये कैवल्यमिति - 3/55) ।

प्रश्न -सिद्धियाँ किससे उत्पन्न होती है ?

उ. जन्म, औषधि मन्त्र, तप और समाधि से । (जन्मौषधिमन्त्रतपः समाधिजाः सिद्धयः - 4 / 1 ) ।

प्रश्न - अन्यदेहधारणरूपासिद्धि होती है ?

उ. देवादिनिकायों में जन्म से ।

प्रश्न - औषधियों से अर्थात् रसायन इत्यादि से सिद्धि होती है ?

उ. आसुर लोको में ।

प्रश्न - आकाश में उड़ना और अणिमादि सिद्धियों की प्राप्ति होती है ?

उ. मन्त्रों से । 

प्रश्न - सङ्कल्प की सिद्धि किससे होती है ?

उ. तप से । 

प्रश्न - निर्मीयमाण शरीर में निर्मित होने वाले निर्माण चित्त किससे निर्मित होते हैं ?

उ. अस्मिता से ।'निर्माणचित्तान्यस्मितामात्रात् (4/4) । 

प्रश्न - योगी निर्माणचित्तों को कैसे तैयार करता है ?

उ. चित्त के कारणभूत अस्मितामात्र को लेकर ।

प्रश्न - चित्त कितने प्रकार का होता है ?

उ. पाँच प्रकार(5) - जन्म, ओषधि, मन्त्र, तपस्या और समाधि ।

प्रश्न -   कर्मक्लेश की वासना से रहित होता है ?

उ. समाधिसम्पन्न चित्त । (तत्र ध्यानजमनाशयम्  - 4/6 ) ।

प्रश्न - निर्माणचित्त कितने प्रकार का होता है ?

उ. पाँच प्रकार का । (जन्मौषधिमन्त्रतः समाधिजाः सिद्धय इति ।)क्योंकि जन्म, औषधि, मन्त्र, तपस्या और समाधि इन पाँच से ऐसी सिद्धियाँ उत्पन्न होती हैं।

प्रश्न - वासनाओं का अभाव कब हो जाता है ?

उ.  कारण (अविद्या) फल (पुरुषार्थ) आश्रय (चित्त) और आलम्बन (विषय) के द्वारा ही उपचित होने के कारण, इन चारों का अभाव होने पर । (हेतुफलाश्रयालम्बनः सङ्गृहीतत्वादेषामभावे तदभावः - 4/11)

प्रश्न - हेतु का आशय है ?

उ.  धर्म से सुख और अधर्म से दुःख होता है, सुख से राग और दुःख से द्वेष होता है और उस रागद्वेष से प्रयत्न होता हैं। 

प्रश्न - सभी विषयों वाला होता है ?

उ. द्रष्टा (पुरुष) और दृश्य (विषयी ) से अभिसम्बद्ध चित्त । (द्रष्टृदृश्यपरक्तं चित्तं सर्वार्थम् - 4/23) 

प्रश्न -किसकी आत्मभाव की भावना निवृत्त हो जाती है ?

उ. चित्त से विविक्त (पुरुष) का साक्षात्कार कर लेने वाले की, । (विशेषदर्शिन आत्मभावभावनाविनिवृत्ति: - 4 / 25 )

प्रश्न - योगी का चित्त कैसा होता है ?

उ. विवेकमार्गी एवं कैवल्य फलोन्मुख । (तदा विवेकनिम्नं कैवल्यप्राम्भारं चित्तम् - 4/26) ।

प्रश्न - विवेकख्याति में भी वीतराग (योगी) को सर्वथा विवेकख्याति होने से किस प्रकार की समाधि होती है ?

उ. धर्ममेध समाधि । ('प्रसंख्यानेऽप्यकुसीदस्य सर्वथा विवेकख्यातेर्धममेधः समाधिः - 4/29) 

प्रश्न - धर्ममेव समाधि से क्या होता है ?

उ. क्लेश और कर्म की निवृत्ति । ( ततः क्लेशकर्मनिवृत्तिः - 4/30)

प्रश्न -  समस्त आवरणमलों से रहित ज्ञान के अनन्त हो जाने से क्या होता है ?

उ.  श्रेय स्वल्प हो जाता है।  (तदा सर्वावरणमलापेतस्य ज्ञानस्यानन्त्याज्ज्ञेयमल्पम् - 4/31) ।

प्रश्न - चित्तरूप सत्वादि तीनों गुणों के परिणाम के क्रम की समाप्ति हो जाती है ?

उ. धर्ममेध के उदित होने से । ('ततः कृतार्थानां परिणामक्रमसमाप्तिर्गुणानाम्' - 4/32) ।

प्रश्न -  'क्रम' का ज्ञान किससे होता है ?

उ. क्षणप्रतियोगिक तथा परिणाम के पर्यवसान से ।  (क्षणप्रतियोगी परिणामापरान्तनिर्गाह्यः क्रमः -  4/33 )।

प्रश्न -गुणों के अधिकार (परिणाम) के क्रम की समाप्ति हो जाने पर क्या होता है ?

उ.  कैवल्य प्राप्त होता है । ('गुणाधिकारक्रमसमाप्ती केवल्यमुक्तम्)

प्रश्न - कैवल्य का स्वरूप क्या है ?

उ. भोगापवर्गरूपी पुरुषार्थ से रहित सत्वादि तीनों गुणों का अव्यक्त में प्रविलीन हो जाना कैवल्य है या चित्तशक्ति का अपने रूप में प्रतिष्ठित हो जाना ही कैवल्य है। (पुरुषार्थशून्यानां गुणानां प्रतिप्रसवः कैवल्यं स्वरूपप्रतिष्ठा वा चितिशक्तिरिति  - 4/34)


और भी देखें>>

>>  योगदर्शन प्रश्नोत्तरी

>>  न्यायदर्शन प्रश्नोत्तरी

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