न्यायदर्शन प्रश्नोत्तरी(Important questions of nyaya darshan)

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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Important questions of nyaya darshan
Important questions of nyaya darshan

प्रश्न - न्याय शब्द की व्युत्पत्ति क्या है ?

उ. नीयते विवक्षितार्थः अनेन इति न्यायः ।

प्रश्न - न्याय शब्द का क्या अर्थ है ?

उ. जिस साधन से हम अपने विवक्षित (ज्ञेय) तत्त्व के पास पहुँच जाये या उसे जान पाये, वही साधन न्याय है। 

प्रश्न - वात्स्यायन के अनुसार न्याय शब्द का क्या अर्थ है ?

उ. प्रमाणैरर्थपरीक्षणं न्याय:, अर्थात्  प्रमाणों से अर्थ की परीक्षा करना ( न्यायभाषा)

प्रश्न - न्याय को और किन नामों से जाना जाता है ?

उ. तर्कशास्त्र, प्रमाणशास्त्र, हेतुविद्या, वाद-विवाद तथा आन्वीक्षिकी(समीक्षात्मक परीक्षण) आदि नामों से ।

प्रश्न - न्यायदर्शन के प्रणेता कौन हैं ?

उ. गौतम मुनि (अक्षपाद) ।

प्रश्न - कौन सा दर्शन वस्तुवादी दर्शन है ?

उ. न्यायदर्शन । यह अनुभव के आधार पर दर्शनशास्त्र के विवेच्य तत्त्वों की व्याख्या करता है।

प्रश्न - न्यायदर्शन का मुख्य विषय क्या  है ?

उ. प्रमाणों के स्वरूप का विवेचन ।

प्रश्न - न्यायशास्त्र का लक्ष्य क्या है ?

उ. दुःखनिवृत्ति करना अर्थात् मोक्षप्राप्ति । 

प्रश्न - न्यायशास्त्र के अनुसार जगत् सत्य है या असत्य ?

उ. सत्य ।

प्रश्न - न्यायशास्त्र कितने धाराओं में विभक्त है ?

उ. दो(2) - (क) प्राचीनन्याय (ख) नव्यन्याय

प्रश्न - न्यायसूत्र के रचयिता कौन हैं ?

उ. आचार्य गौतम ।

प्रश्न - न्यायदर्शन के प्रर्वतक आचार्य गौतम कहाँ के निवासी थे ?

उ. मिथिला के ।

प्रश्न - आचार्य गौतम का समय क्या है ?

उ. 200 ई.पू० ।

प्रश्न - न्यायसूत्र किसमें विभक्त है ?

उ. अध्याय और आह्निक में ।

प्रश्न - न्यायसूत्र में कितने अध्याय और आह्निक हैं ?

उ.  पाँच अध्याय तथा प्रत्येक अध्याय में दो आह्निक ।

प्रश्न -  न्यायसूत्र में कुल कितने आह्निक हैं ?

उ. दश(10) ।

प्रश्न - आचार्य वात्स्यायन का समय क्या है ?

उ.  400 ई. ।

प्रश्न - आचार्य वात्स्यायन कहाँ के निवासी हैं ?

उ. मिथिला के ।

प्रश्न - न्यायसूत्र पर 'न्यायभाष्य' नामक विस्तृत भाष्य किसने किया ?

उ. आचार्य वात्स्यायन ने ।

प्रश्न - न्यायभाष्य पर न्यायवार्तिक किसने लिखा ?

उ.  उद्योतकर ( वार्तिककार ) ने ।

प्रश्न - उद्योतकर का समय क्या है ?

उ.  600 ई. ।

प्रश्न - उद्योतकर कहाँ के निवासी थे ?

उ.  काश्मीर के ।

प्रश्न - तात्पर्याचार्य के नाम से कौन प्रसिद्ध है ?

उ. वाचस्पति मिश्र ।

प्रश्न - वाचस्पति मिश्र जी का समय क्या है ?

उ. 900 ई0 ।

प्रश्न - वाचस्पति मिश्र जी कहाँ के  निवासी थे ?

उ. मिथिला के।

प्रश्न - वाचस्पति मिश्र जी के गुरु का क्या नाम था  ?

उ. त्रिलोचन ।

प्रश्न - न्यायवार्तिक पर वाचस्पति मिश्र ने कौन सी टीका लिखी ?

उ.  तात्पर्यटीका ।

प्रश्न - न्यायसूत्रों की रक्षा के लिए 'न्यायसूची' निबन्ध नामक लघुकायग्रन्थ किसने  लिखा ?

उ. वाचस्पति मिश्र जी ने ।

प्रश्न -वाचस्पति मिश्र जी ने सांख्ययोग की विशद व्याख्या किस ग्रन्थ में की ?

उ.   'सांख्यतत्त्वकौमुदी' तथा 'योगतत्त्ववैशारदी' नामक टीका ग्रन्थों में ।

प्रश्न - वाचस्पति मिश्र द्वारा रचित मीमांसा शास्त्र से सम्बन्धित ग्रन्थ कौन  है ?

उ. न्यायकणिका तथा तत्त्वबिन्दु ।

प्रश्न - ब्रह्मसूत्र शारीरकभाष्य पर लिखी गयी भामती टीका किसकी है ?

उ. वाचस्पति मिश्र की ।

प्रश्न -  ब्रह्मसूत्र शारीरकभाष्य किस दर्शन का प्रामाणिक ग्रन्थ है ?

उ. अद्वैत वेदान्त का ।

प्रश्न - वाचस्पति मिश्र को अलौकिक पाण्डित्य के कारण क्या कहा जाता है ?

उ.  सर्वतन्त्रस्वतन्त्र ।

प्रश्न - तात्पर्याचार्य के नाम से कौन विख्यात है ?

उ. वाचस्पति मिश्र ।

प्रश्न - वैशेषिक को छोड़कर पञ्चदर्शनों पर किसकी टीकाएँ प्राप्त होती है ?

उ. वाचस्पति मिश्र की 

प्रश्न - 'न्यायमञ्जरी' नामक ग्रन्थ के लेखक कौन है  ?

उ. जयन्तभट्ट ।

प्रश्न - जयन्तभट्ट का समय क्या है ?

उ. 900 ई. ।

प्रश्न - न्यायसम्प्रदाय का मौलिक शोधग्रन्थ कौन सा है ?

उ. न्यायमञ्जरी ।

प्रश्न - न्यायसूत्र पर निर्भर एक प्रकरणग्रन्थ 'न्यायसार' किसकी रचना है ?

उ. भासर्वज्ञ ।

प्रश्न - भासर्वज्ञ का समय क्या है ?

उ. 900 ई० ।

प्रश्न - भासर्वज्ञ कहाँ के निवासी हैं ?

उ.  काश्मीर के निवासी ।

प्रश्न - न्यायसार पर 'न्यायभूषण' नामक अत्यन्त विशालकाय टीका किसकी है ?

उ. भासर्वज्ञ की ।

प्रश्न - तात्पर्याटीका पर इन्होंने 'परिशुद्धि' नामक टीका किसने लिखी है ?

उ. उदयनाचार्य ।

प्रश्न - उदयनाचार्य का समय क्या है ?

उ. दसवीं शताब्दी (1000 ई०) ।

प्रश्न - उदयनाचार्य कहाँ के निवासी हैं ?

उ. मिथिला के ।

प्रश्न - प्रशस्तपादभाष्य पर 'किरणावली' नामक टीका किसने लिखी है ?

उ. उदयनाचार्य ने ।

प्रश्न -  उदयनाचार्य जी ने कितने मौलिक ग्रन्थ लिखे ?

उ. दो(2) - 1. आत्मतत्त्वविवेक (बौद्धधिक्कार) 2. न्यायकुसुमाञ्जलि

प्रश्न - किसको नव्यन्याय का जनक कहा जाता है ?

उ. गंगेश उपाध्याय ( नव्यनैयायिक) ।

प्रश्न - गंगेश उपाध्याय का समय क्या है ?

उ. 13वीं शताब्दी ।

प्रश्न - गंगेश उपाध्याय कहाँ के निवासी थे ?

उ.  मिथिला के ।

प्रश्न - तत्त्वचिन्तामणि किसकी रचना है ?

उ.  गंगेश उपाध्याय की ।

प्रश्न - तत्त्वचिन्तामणि का दूसरा नाम क्या है ?

उ. प्रमाणतत्त्वचिन्तामणि या चिन्तामणि ।

प्रश्न - तत्वचिन्तामणि की प्रभा टीका के रचनाकार कौन हैं ?

उ. यज्ञपति उपाध्याय ।

प्रश्न - तत्वचिन्तामणि की आलोक टीका किसने लिखी ?

उ. जयदेवमिश्र पक्षधरमिश्र ने ।

प्रश्न - तत्वचिन्तामणि की दीधिति टीका के रचनाकार कौन हैं ?

उ. रघुनाथ शिरोमणि ।

प्रश्न - तत्वचिन्तामणि की मूलगादाधरी टीका किसकी है ?

उ. गदाधर भट्टाचार्य ।

प्रश्न - 'दीधिति' है जो तत्त्वचिन्तामणि की टीका के रचनाकार रघुनाथ शिरोमणि का समय क्या है ?

उ. 16वीं शताब्दी ।

प्रश्न - दीधिति की रहस्य टीका किसने लिखी ?

उ. मथुरानाथ ने ।

प्रश्न - दीधिति की जगदीशी टीका के रचनाकार कौन हैं ?

उ. जगदीश भट्टाचार्य ।

प्रश्न - दीधिति की गादाधरी टीका की रचना किसने की ?

उ. गदाधर भट्टाचार्य ने ।

प्रश्न - आलोक, चिन्तामणि और दीधिति पर 'गूढार्थप्रकाशिनी रहस्य' नाम की टीकाएँ किसने लिखी ?

उ. मथुरानाथ ने ।

प्रश्न - मथुरानाथ किसके शिष्य थे ?

उ. रघुनाथ शिरोमणि के ।

प्रश्न - मथुरानाथ का समय क्या है ?

उ. 16वीं शताब्दी ।

प्रश्न - दीधिति पर 'जागदीशी' टीका किसने लिखी ?

उ. जगदीश भट्टाचार्य ने ।

प्रश्न - जगदीश भट्टाचार्य का समय क्या है ? 

उ. 17 वीं शताब्दी ।

प्रश्न - शब्दशक्ति पर 'शब्दशक्तिप्रकाशिका' निबन्ध किसने लिखा ?

उ. जगदीश भट्टाचार्य ने ।

प्रश्न - गदाधरभट्टाचार्य का समय क्या है ?

उ. 17 वीं शताब्दी ।

प्रश्न - उदयन के 'आत्मविवेक' और तत्त्वचिन्तामणि पर 'मूलगादाधरी' टीका किसने लिखी ?

उ. गदाधरभट्टाचार्य ने ।

प्रश्न - 'व्युत्पत्तिवाद' तथा 'शक्तिवाद' प्रसिद्ध ग्रन्थों के सहित अन्य 52 मौलिक ग्रन्थों की रचना किसने की ?

उ. गदाधरभट्टाचार्य ने ।

प्रश्न -  न्याय वैशेषिक के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ तार्किकरक्षा के रचनाकार कौन हैं ? 

उ. वरदराज( 1250 ई0) ।

प्रश्न - न्याय वैशेषिक के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ तर्कभाषा की रचना किसने की ?

उ. केशवमिश्र ( 1300 ) ने ।

प्रश्न - न्याय वैशेषिक के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ भाषापरिच्छेद और सिद्धान्तमुक्तावली की रचना किसने की ?

उ. विश्वनाथ (1700ई0) ने ।

प्रश्न - न्याय वैशेषिक के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ तर्कसंग्रह के रचनाकार कौन है ?

उ. अन्नम्भट्ट (1700 ई0 ) ।

प्रश्न - न्यायशास्त्र की दो धाराएँ कौन सी है ?

उ. 1. प्राचीनन्याय (गौतम) पदार्थमीमांसा 2. नव्यन्याय (गंगेश) प्रमाणमीमांसा

प्रश्न - नव्यन्याय की कितनी शाखाएँ हैं ?

उ. दो(2) - 1. मिथिला शाखा,  2. नवद्वीप(बंगाल) शाखा ।

प्रश्न - प्राचीन न्याय के प्रमुख आचार्य कौन हैं ?

उ. आचार्य गौतम, वात्स्यायन, उद्योतकर, वाचस्पति मिश्र, जयन्तभट्ट, भासर्वज्ञ, उदयनाचार्य आदि ।

प्रश्न - मिथिलाशाखा के प्रमुख आचार्यों के नाम बताइये ?

उ. वर्धमानोपाध्याय,  वासुदेव मिश्र, पक्षधर आदि ।

प्रश्न - नवद्वीप (बंगाल) शाखा के प्रमुख आचार्य कौन हैं ?

उ. पक्षधर मिश्र (जयदेव), रघुनाथ शिरोमणि, मथुरानाथ, जगदीश भट्टाचार्य, गदाधर भट्टाचार्य आदि ।

प्रश्न - न्यायनिबन्धप्रकाश के रचनाकार कौन हैं ?

उ. वर्धमान(1225 ई.) ।

प्रश्न - न्यायालंकार की रचना किसने की ?

उ. श्रीकण्ठ ने ।

प्रश्न - न्यायसूत्रोद्धार के लेखक कौन हैं ?

उ. वाचस्पति मिश्र द्वितीय(1450ई.) ।

प्रश्न - न्यायरहस्य किसकी रचना है ?

उ. रामभद्र ।

प्रश्न - न्यायदर्शन पर जयराम कृत ग्रन्थ का क्या नाम है ?

उ. न्यायसिद्धान्तमाला ।

प्रश्न - न्यायसूत्रवृत्ति के रचनाकार कौन हैं ?

उ. विश्वनाथ(1634 ई.) ।

प्रश्न - न्यायसंक्षेप किसकी रचना है ?

उ. गोविन्दखन्ना(1640 ई.) ।

प्रश्न - केशवमिश्र कहाँ के निवासी थे ?

उ. सुन्दरलाल गोस्वामी के अनुसार  मिथिला के सरिसव गाँव के ।

प्रश्न - अभिनव वाचस्पति के प्रपौत्र कौन थे ?

उ. केशवमिश्र ।

प्रश्न - केशवमिश्र का समय क्या है ?

उ. 1300 ई. के लगभग ।

प्रश्न - केशवमिश्र को किस दर्शन का आचार्य माना जा सकता है ?

उ. न्यायदर्शन ।

प्रश्न - अलंकारशेखर किसकी रचना है ?

उ. केशवमिश्र की ।

प्रश्न - तर्कभाषा के लेखक कौन हैं ?

उ. केशवमिश्र ।

प्रश्न - तर्कभाषा किस दर्शन का  प्रकरणग्रन्थ है ?

उ. न्यायदर्शन का ।

प्रश्न - तर्कभाषा में कितने तत्त्वों अथवा पदार्थों का वर्णन किया गया है ?

उ. न्याय के 16 पदार्थों का साथ ही वैशेषिक के 7 पदार्थों का वर्णन ।

प्रश्न - द्वित्वोत्पत्ति की प्रक्रिया,पाकजोत्पत्ति, विभागज विभाग आदि  विशिष्ट मन्तव्य किस दर्शन के हैं ?

उ. वैशेषिक दर्शन के ।

प्रश्न - वैशेषिक दर्शन में कितने द्रव्यों की परिगणना है ?

उ. नौ(9) द्रव्यों की ।

प्रश्न - वैशेषिक दर्शन में कितने गुणों की चर्चा है ?

उ. चौबीस(24) गुणों की ।

प्रश्न - न्याय-वैशेषिक सम्प्रदाय का एक अद्वितीय ग्रन्थ कौन सा है ?

उ.  केशवमिश्र का तर्कभाषा ग्रन्थ ।

प्रश्न - कौन सा ग्रन्थ न्यायवैशेषिक का प्रवेशद्वार तथा भारतीयदर्शन का प्रदीप है ?

उ. तर्कभाषा ।

प्रश्न - तर्कभाषा की सबसे प्राचीन टीका कौन सी है ?

उ.  तर्कभाषा प्रकाशिका ।

प्रश्न- तर्कभाषा प्रकाशिका के रचनाकार कौन हैं ?

उ. चिन्नभट्ट (14वीं शताब्दी) ।

प्रश्न - तर्कभाषा पर लगभग कितनी  टीकायें लिखी गयी हैं ?

उ. चौदह टीकाएँ(14) ।

प्रश्न - तर्कभाषा की उज्ज्वला टीका के रचनाकार कौन हैं ?

उ. गोपीनाथ ।

प्रश्न - तर्कभाषा की तत्त्वप्रबोधिनी टीका किसने लिखी ?

उ. गणेशदीक्षित ने ।

प्रश्न - तर्कभाषा की तर्ककीमुदी टीका के रचनाकार कौन हैं ?

उ. दिनकरभट्ट ।

प्रश्न - तर्कभाषा की तर्कभाषा प्रकाश टीका किसने लिखी ?

उ. गोवर्धन मिश्र ने।

प्रश्न - तर्कभाषा प्रकाश के लेखक कौन हैं ?

उ. अखण्डानन्द सरस्वती ।

प्रश्न - तर्कभाषा प्रकाशिका के रचनाकार कौन-कौन हैं ?

उ. चिन्नम्भट्ट, गौरीकान्त, बलभद्र और वागीशभट्ट ।

प्रश्न - तर्कभाषा सारमञ्जरी किसकी रचना है ?

उ. माधवदेव की ।

प्रश्न - न्यायप्रदीप के रचनाकार कौन हैं ?

उ. विश्वकर्मा ।

प्रश्न - न्यायसंग्रह के रचयिता कौन हैं ?

उ. रामलिङ्ग ।

प्रश्न - तर्कभाषा की परिभाषादर्पण टीका किसने लिखी ?

उ. भास्करभट्ट ने ।

प्रश्न - तर्कभाषा का प्रतिपाद्य विषय क्या है ?

उ. आलसी बालकों के  लिए न्याय के सिद्धान्तों में प्रवेश हेतु संक्षिप्त युक्तियों का प्रकाशन ।("बालोऽपि यो न्यायनये प्रवेशम्, अल्पेन वाञ्छन्त्यलसः श्रुतेन । संक्षिप्तयुक्त्यन्विततर्कभाषा, प्रकाश्यते तस्य कृते मयैषा"॥ -इति ग्रन्थकारेण)

प्रश्न - तर्कभाषा का प्रयोजन क्या है ?

उ. अल्प अध्ययन से ही न्याय के सिद्धान्तों का परिचय कराना तथा विवेकपूर्ण बोध कराना। 

प्रश्न - तर्कभाषा के अनुसार तर्क क्या है ?

उ. तर्कभाषा के अनुसार  'तर्क' शब्द का अर्थ प्रमाण आदि षोडश पदार्थ किया गया है।("तक्यन्ते प्रतिपाद्यन्ते इति तर्काः प्रमाणादयः षोडशपदार्था: ") 

प्रश्न - इस ग्रन्थ का नाम तर्कभाषा क्यों है ?

उ. प्रमाणादि षोडश पदार्थों की व्याख्या करने के कारण इस ग्रन्थ का नाम तर्कभाषा हैं('तर्क्यन्ते प्रतिपाद्यन्ते इति तर्का (प्रमाणदयः षोडशपदार्थाः ) ते भाष्यन्ते अनया इति तर्कभाषा')।

प्रश्न - तर्कभाषा के षोडश पदार्थ कौन हैं ?

उ. षोडश पदार्थ -  प्रमाण-प्रमेय-संशय-प्रयोजन दृष्टान्त-सिद्धान्त-अवयव-तर्क-निर्णय-वाद-जल्प-वितण्डा - हेत्वाभास-छल-जाति-निग्रहस्थान' ।

प्रश्न - प्रमाण किसे कहते हैं ?

उ. प्रमाकरणं प्रमाणम्  - प्रमा का करण प्रमाण है। 

प्रश्न - प्रमेय क्या है ?

उ.   प्रमा का विषय ही प्रमेय है।

प्रश्न - संशय किसे कहते हैं ?

उ. एक धर्मी में परस्पर विरुद्ध अनेक धर्मों के अवमर्श (बोध) को संशय कहते हैं।("एकस्मिन् धर्मिणि विरुद्धनानार्थाविमर्शः संशयः "  वस्तु के बारे में परस्पर विरोधी या परस्पर भिन्न विशेषताओं का एक साथ ज्ञान संशय है। 

प्रश्न - प्रयोजन किसे कहते हैं ?

उ. जिससे प्रयुक्त (प्रेरित होकर मनुष्य किसी कार्य में प्रयुक्त होता है वही, 'प्रयोजन' है। ("येन प्रयुक्तः प्रवर्तत तत् प्रयोजनम्" ) ।

प्रश्न - प्रयोजन की व्युत्पत्ति क्या है ?

उ. 'प्रयुज्यते प्रवर्त्यते अनेन तत् प्रयोजनम्।' प्रयोजन का अर्थ है प्रर्वतक ।

प्रश्न - दृष्टान्त किसे कहते हैं ?

उ. वादी और प्रतिवादी दोनों की सहमति के विषयभूत अर्थ को 'दृष्टान्त' कहते हैं।("वादिप्रतिवादिनोः संप्रतिपत्तिविषयोऽर्थो दृष्टान्तः ')

प्रश्न- दृष्टान्त के कितने भेद हैं ?

उ.  दो भेद हैं- साधर्म्य तथा वैधर्म्यं ।

प्रश्न - सिद्धान्त की परिभाषा क्या है ?

उ. जो अर्थ प्रामाणिक रूप से स्वीकृत होता है, उसे सिद्धान्त कहते हैं।(प्रामाणिकत्वेनाभ्युपगतोऽर्थः सिद्धान्तः")

प्रश्न- सिद्धान्त के कितने भेद हैं ?

उ. चार(4) - 1. सर्वतन्त्र सिद्धान्त, 2. प्रतितन्त्र सिद्धान्त, 3. अधिकरण सिद्धान्त,  4. अभ्युपगम सिद्धान्त ।

प्रश्न - अवयव की परिभाषा क्या है ?

उ. अनुमान वाक्य के एकदेश (अंश) को अवयव कहते हैं। ("अनुमानवाक्यस्यैकदेशा अवयवाः ") ।

प्रश्न - तर्क किसे कहते हैं ?

उ. अनिष्ट का प्रसङ्ग (प्राप्ति) होने लगना 'तर्क' है। ( " तर्कोऽनिष्टप्रसङ्गः ' ) ।

प्रश्न - निर्णय की परिभाषा क्या है ?

उ. निश्चयात्मक ज्ञान को ही 'निर्णय' कहते हैं। ( निर्णय निर्णयोऽवधारणज्ञानम्") ।

प्रश्न - वाद किसे कहते हैं ?

उ. तत्त्वज्ञान के इच्छुक वादी प्रतिवादी की प्रश्नोत्तररूप कथा को 'वाद' कहते हैं।( "तत्त्वबुभुत्सोः कथा वादः ") ।

प्रश्न - जल्प किसे कहते हैं ?

उ. जिस कथा (विचार) में वादी प्रतिवादी दोनों अपने-अपने पक्षों का साधन, विजय की कामना से करते हैं, उस कथा को 'जल्प' कहते हैं।(जल्प उभयसाधनवती विजिगीषुकथा जल्पः ")  

प्रश्न - कथा की परिभाषा क्या है ?

उ. कथा वह वाक्य समूह है जो अनेक वक्ताओं के पूर्वपक्ष और उत्तरपक्ष का प्रतिपादन करता है।

प्रश्न - कथा के कितने प्रकार हैं ?

उ. तीन(3) - वाद, जल्प, वितण्डा 

प्रश्न- वितण्डा क्या है ?

उ. जल्पकथा ही जब अपने पक्ष की स्थापना से रहित होकर चलती है, उसे वितण्डा कहते हैं।("स एव स्वपक्षज्ञस्थापनहीनो वितण्डा") ।

प्रश्न - हेत्वाभास किसे कहते हैं ?

उ. असद् हेतु को हेत्वाभास कहते हैं। जो कुछ हेतु रूपों के योग से हेतु के समान आभासित होते हैं 'हेत्वाभास' कहे जाते हैं।( "तेऽपि कतिपयहेतुरूपयोगाद्धेतुवदाभासमाना हेत्वाभासाः ") ।

प्रश्न - छल की परिभाषा क्या है ?

उ.  अन्य अभिप्राय से प्रयुक्त शब्द का अर्थ मानकर दोष दिखलाना 'छल' है।(अभिप्रायान्तरेण प्रयुक्तस्य शब्दस्यार्थान्तरं परिकल्प्य दूषणाभिधानं छलम्") ।

प्रश्न - जाति किसे कहते हैं ?

उ. अयुक्त या अनुचित उत्तर 'जाति' है ।( असदुत्तरं जातिः ) ।

प्रश्न - निग्रहस्थान किसे कहते हैं ?

उ. पराजय (हार) प्राप्त होने में जो निमित्त (कारण) होता हैं,उसे निग्रहस्थान कहते हैं।("पराजयहेतुः निग्रहस्थानम्")।

प्रश्न - षोडशपदार्थ (16) कौन- कौन हैं ?

उ. 1. प्रमाण 2. प्रमेय 3. संशय 4. प्रयोजन 5. दृष्टान्त 6. सिद्धान्त 7. अवयव 8 तर्क 9 निर्णय 10. वाद 11. जल्प 12 वितण्डा 13. हेत्वाभास 14. छल 15. जाति 16. निग्रहस्थान ।

प्रश्न - प्रमा किसे कहते हैं ?

उ. यथार्थ अनुभव 'प्रमा' है। ('यथार्थानुभवः प्रमा) ।

प्रश्न - करण किसे कहते हैं ?

उ. साधकतम को करण कहते हैं । (साधकतमं करणम् )

प्रश्न - कारण किसे कहते हैं ?

उ. जिसकी सत्ता कार्य से पूर्व निश्चित हो और जो अन्यथासिद्ध (अनावश्यक ) न हो उसे कारण कहते हैं। जैसे- तन्तु, वेमा आदि 'पट' के कारण हैं।( 'यस्य कार्यात् पूर्वभावो नियतोऽनन्यथासिद्धश्च तत्कारणम्' )

प्रश्न - कारण के कितने प्रकार हैं ?

उ. तीन प्रकार(3) - समवायि, असमवायि और निमित्त कारण ।

प्रश्न - समवायिकारण किसे कहते हैं ?

उ. जिसमें समवाय सम्बन्ध से कार्य उत्पन्न होता है वह समवायिकारण है जैसे- तन्तु पट का समवायिकारण है।(यत्समवेतं कार्यमुत्पद्यते तत्समवायिकारणम्) ।

प्रश्न -  असमवायिकारण किसे कहते हैं ?

उ. जो समवायि कारण में रहता हो और कार्योत्पादन करने में जिसका सामर्थ्य निश्चित हो वह असमवायिकारण है। जैसे- तन्तुसंयोग पट का असमवायि कारण है।(यत्समवायिकारणप्रत्यासन्नमवधृतसामर्थ्यं तदसमवायिकारणम्")

प्रश्न - निमित्तकारण क्या है ?

उ. जो न समवायि है और न असमवायि है फिर भी कारण है, उसे निमित्तकारण कहते है। जैसे वेमा पट का निमित्तकारण है।('यन्न समवायिकारणं, नाप्यसमवायिकारणम्, अथ च कारणं तत्रिमित्तकारणम्' ) ।

प्रश्न - प्रमाण कितने प्रकार के होते हैं ?

उ. चार प्रकार(4) के -1. प्रत्यक्ष, 2. अनुमान, 3. उपमान, 4. शब्द । ('प्रत्यक्षानुमानोपमानशब्दाः प्रमाणानि)।

प्रश्न -  प्रत्यक्ष प्रमाण का क्या लक्षण है ?

उ. साक्षात्कारिणी प्रमा के करण को प्रत्यक्ष प्रमाण कहते हैं।( "साक्षात्कारिप्रमाकरणं प्रत्यक्षम् ") ।

प्रश्न - साक्षात्कारिणी प्रमा के कितने प्रकार हैं ?

उ. दो प्रकार(2) - (1) सविकल्पक (2) निर्विकल्पक ।

प्रश्न - साक्षात्कारिणी प्रमा का करण कितने प्रकार का होता है ?

उ. तीन प्रकार(3) का  (1) कभी इन्द्रिय (2) कभी इन्द्रिय और अर्थ का सन्निकर्ष (3) कभी ज्ञान

प्रश्न - सन्निकर्ष कितने प्रकार का होता है ?

उ. षोढा सन्निकर्षः - (छः प्रकार का) ।

प्रश्न - छः प्रकार के सन्निकर्ष कौन-कौन हैं ?

उ. संयोग सन्निकर्ष, संयुक्त समवाय सन्निकर्ष, संयुक्तसमवेतसमवाय सन्निकर्ष, समवाय सन्निकर्ष, समवेतसमवाय सन्निकर्ष, विशेषण- विशेष्यभाव सन्निकर्ष ।

प्रश्न- चक्षु इन्द्रिय और  घट विषय का सन्निकर्ष किस प्रकार का सन्निकर्ष है ?

उ. संयोग सन्निकर्ष ।

प्रश्न - चक्षु इन्द्रिय और  घटरूप विषय का सन्निकर्ष किस प्रकार का सन्निकर्ष है ?

उ. संयुक्त समवाय सन्निकर्ष ।

प्रश्न - चक्षु इन्द्रिय और  घटरूपत्व जाति विषय का सन्निकर्ष किस प्रकार का सन्निकर्ष है ?

उ. संयुक्तसमवेत समवाय सन्निकर्ष ।

प्रश्न - श्रोत्र इन्द्रिय और  शब्द विषय का सन्निकर्ष किस प्रकार का सन्निकर्ष है ?

उ. समवाय सन्निकर्ष ।

प्रश्न - श्रोत्र इन्द्रिय और  शब्दत्व विषय का सन्निकर्ष किस प्रकार का सन्निकर्ष है ?

उ. समवेत समवाय सन्निकर्ष ।

प्रश्न - श्रोत्र इन्द्रिय और  भूतल पर घटाभाव विषय का सन्निकर्ष किस प्रकार का सन्निकर्ष है ?

उ. विशेषण- विशेष्यभाव सन्निकर्ष ।

प्रश्न - अनुमान किसे कहते हैं ?

उ. लिङ्ग परामर्श को ही अनुमान कहते हैं।( 'लिङ्गपरामर्शोऽनुमानम्') । जिससे अनुमिति की जाती है उसे अनुमान कहते हैं। लिङ्ग परामर्श से अनुमिति की जाती है अतः लिङ्गपरामर्श अनुमान है। लिङ्ग परामर्श - धूमादि का ज्ञान । अग्नि का ज्ञान अनुमिति है और धूमादि का ज्ञान उस अनुमिति का कारण है।

प्रश्न - लिङ्ग किसे कहते हैं ?

उ. व्याप्ति के आधार पर (बल पर) अर्थ का जो बोधक होता है, उसे लिङ्ग कहते हैं।( व्याप्तिवलेनाथंगमकं लिङ्गम्) जैसे- 'धूम' अग्नि का लिङ्ग है।

प्रश्न - व्याप्ति किसे कहते हैं ?

उ. साहचर्य (साथ-साथ रहना) नियम को व्याप्ति कहते हैं।(व्याप्तिः साहचर्यनियमो व्याप्तिः) ।जैसे -  "यत्र यत्र धूमः, तत्र तत्र वह्निः " जहाँ-जहाँ धुआँ है। वहाँ-वहाँ अग्नि है।

प्रश्न - परामर्श किसे कहते हैं ?

उ. लिङ्ग के तृतीय ज्ञान को परामर्श कहते हैं। ('तस्य तृतीयं ज्ञानं परामर्शः ') ।

प्रश्न - अनुमान प्रमाण के कितने प्रकार हैं ?

उ. दो प्रकार - (1) स्वार्थानुमान (2) परार्थानुमान (तच्चानुमानं द्विविधम् स्वायं परार्थं चेति) ।

प्रश्न -  स्वार्थानुमान का क्या लक्षण है ?

उ. अपने ज्ञान (प्रतिपत्ति) का निमित्त स्वार्थानुमान है। (स्वार्थ स्वप्रतिपत्तिहेतुः) । जैसे- कोई व्यक्ति स्वयं ही पाकशाला में धूम और अग्नि को साथ देखकर उनके साहचर्य का निश्चय करके, पर्वत के समीप जाकर धूम रेखा को देखता है तो उसका संस्कार उद्बुद्ध हो जाता है और वह जहाँ धूम होता है वहाँ अग्नि होती है' इस व्याप्ति का स्मरण करता है तदन्तर यहाँ भी धूम है यह परामर्श करता है उस (लिङ्गपरामर्श) से 'यहाँ पर्वत में भी अग्नि है' इसप्रकार स्वयं ही समझ लेता है। यही स्वार्थानुमान है।

प्रश्न - परार्थानुमान किसे कहते हैं ?

उ. जब कोई व्यक्ति स्वयं धूम से अग्नि का अनुमान करके दूसरे को उसका बोध कराने के लिए पाँच अवयव वाले अनुमान वाक्य का प्रयोग करता है, वह परार्थानुमान है। (यत्तु कश्चित् स्वयं धूमादग्निमनुमाय परं बोधयितुं पञ्चावयवमनुमानवाक्यं प्रयुङ्क्ते तत् परार्थानुमानम् ृ)

प्रश्न - हेतु किसे कहते हैं ?

उ. लिङ्ग को बताने वाला तृतीयान्त अथवा पञ्चम्यन्त वाक्य हेतु है।(तृतीयान्तं पञ्चम्यन्तं वा लिङ्गप्रतिपादकं वचनं हेतुः) ।

प्रश्न - हेतु के कितने प्रकार हैं ?

उ. तीन प्रकार(3) - 1.  अन्वयव्यतिरेकी,  2. केवलान्वयी, 3. केवल व्यतिरेकी ।

प्रश्न - अन्वयव्यतिरेकी  किसे कहते हैं ?

उ. अन्वय और व्यतिरेक व्याप्ति से युक्त हेतु ।  (स चान्वयव्यतिरेकी, अन्वयेन व्यतिरेकेण च व्याप्तिमत्वात् )।

प्रश्न - अन्वयव्याप्ति क्या है ?

उ. जहाँ-जहाँ धूमवत्व होता है, वहाँ वहाँ अग्निमत्व होता है जैसे महानस में यह अन्वयव्याप्ति है।। जैसे - यत्र यत्र धूमवत्वं तत्राग्निमत्वं यथा महानसे इत्यन्वयव्याप्तिः ।

प्रश्न - केवल व्यतिरेकी किसे कहते हैं ?

उ. केवल व्यतिरेकव्याप्ति से युक्त हेतु केवल व्यतिरेकी कहलाता है। जैसे -  'जीवच्शरीरं सात्मकं प्राणादिमत्वात्' जीवित शरीर सात्मक है क्योंकि वह प्राण से युक्त है।

प्रश्न - व्यतिरेक व्याप्ति क्या है ?

उ. जहाँ अग्नि नहीं होती वहाँ धुंआ भी नहीं होता जैसे जलाशय में यह व्यतिरेक व्याप्ति है। ('यत्राग्निर्नास्ति तत्र धूमोऽपि नास्ति यथा महाह्रदे') ।

प्रश्न - केवलान्वयी का लक्षण क्या है ?

उ. केवल अन्वयव्याप्ति से युक्त हेतु केवलान्वयी कहलाता है। यथा शब्दोऽभिधेयः प्रमेयत्वात् । शब्द अभिधेय है प्रमेय होने से

प्रश्न - परार्थानुमान के कितने अवयव हैं ?

उ. पाँच(5) - 1. प्रतिज्ञा - पर्वतोऽग्निमान् ।

                   2. हेतु - धूमवत्त्वात् ।

                   3. उदाहरण - यो यो धूमवान् स स अग्निमान्, यथा - महानसः ।

                   4. उपनय  - तथा चायम् ।

                   5. निगमन - तस्मात्तथा ।

प्रश्न - उपमान प्रमाण किसे कहते हैं ?

उ. अतिदेश वाक्य (जैसी गाय वैसी नीलगाय ) के अर्थ का स्मरण करने के साथ 'गौ की समानता से युक्त पिण्ड (आकृति) का ज्ञान ही 'उपमान प्रमाण' है। जैसे- 'यथा गौस्तथा गवयः' जैसी गाय वैसे ही नीलगाय । ( उपमान प्रमाण अतिदेशवाक्यार्थस्मरणसहकृतं गोसादृश्य विशिष्टपिण्डज्ञानमुपमानम्"।)

प्रश्न - उपमिति क्या है ?

उ. सञ्ज्ञा और सञ्ज्ञी के सम्बन्ध की प्रतीति उपमिति है।(संज्ञासंज्ञिसम्बन्धप्रतीतिरुपमितिः) ।

प्रश्न - शब्दप्रमाण का लक्षण क्या है ?

उ. आप्त का वाक्य शब्द प्रमाण है।(आप्तवाक्यं शब्द:) ।

प्रश्न - आप्त किसे कहते हैं ?

उ. यथाभूत का अर्थ ही उपदेश करने वाला पुरुष 'आप्त' कहलाता है।

प्रश्न - वाक्य किसे कहते हैं ?

उ. आकांक्षा, योग्यता और सन्निधि से युक्त पदसमूह वाक्य है।(वाक्यं त्वाकांक्षायोग्यतासन्निधिमतां पदानां समूहः) ।

प्रश्न - आकांक्षा किसे कहते हैं ?

उ.  एक पद का दूसरे के बिना अन्वय बोध न करा सकना ।

प्रश्न - योग्यता का अर्थ क्या है ?

उ. पदार्थों के पारस्परिक सम्बन्ध में बाधा न होना ।

प्रश्न - सन्निधि का क्या अर्थ है ?

उ. पदों का अविलम्ब से उच्चारण किया जाना ।

प्रश्न - पद का लक्षण क्या है ?

उ. वर्णों का समूह पद है।( पदं च वर्णसमूहः)

प्रश्न - समूह का क्या अभिप्राय है ?

उ.  एक ज्ञान का विषय होना।

प्रश्न - अर्थापत्ति प्रमाण को कौन नहीं मानते हैं ?

उ. नैय्यायिकों के अनुसार -  नन्वर्थापत्तिः पृथक् प्रमाणमस्ति । अर्थापत्ति को मीमांसक पृथक् प्रमाण मानते हैं किन्तु नैयायिक इसका अन्तर्भाव अनुमान प्रमाण में करते हैं। 

प्रश्न - अर्थापत्ति का लक्षण क्या है ?

उ. अनुपपद्यमान अर्थ को जानकर उसके उपपादक अर्थ की कल्पना अर्थापत्ति है। (अर्थापत्ति अनुपपद्यमानार्थदर्शनात् तदुपपादकीभूतार्थान्तराकल्पना अर्थापत्तिः) ।

प्रश्न - अभाव प्रमाण क्या है ?

उ. अभाव का ज्ञान जिस प्रमाण से होता है उसे अभाव प्रमाण कहते हैं जैसे- 'भूतले घटो नास्ति ।

प्रश्न - प्रमाण्यवाद क्या है ?

उ. प्रामाण्य का अर्थ 'ज्ञान का सत्य होना' और अप्रमाण्य का अर्थ 'ज्ञान का असत्य होना' है। इस प्रकार का विचार प्रामाण्यवाद है ।

प्रश्न - बौद्धमत में प्रामाण्य और अप्रमाण्य की मान्यता किस प्रकार है ?

उ. प्रामाण्य स्वतः एवं अप्रामाण्य परतः ।

प्रश्न - जैनमत में प्रामाण्य और अप्रमाण्य की मान्यता किस प्रकार है ?

उ. प्रामाण्य और अप्रमाण्य - परतः(उत्पत्ति) तथा प्रामाण्य और अप्रमाण्य - स्वतः(ज्ञाप्ति) ।

प्रश्न -सांख्यमत में प्रामाण्य और अप्रमाण्य की मान्यता किस प्रकार है ?

उ. प्रामाण्य और अप्रमाण्य - स्वतः ।

प्रश्न - मीमांसामत में प्रामाण्य और अप्रमाण्य की मान्यता किस प्रकार है ?

उ. प्रामाण्य - स्वतः तथा अप्रमाण्य परतः प्रमाण है ।

प्रश्न - न्यायवैशेषिक मत में प्रामाण्य और अप्रमाण्य की मान्यता किस प्रकार है ?

उ. प्रामाण्य और अप्रमाण्य दोनों परतः प्रामाण्य मानते हैं

प्रश्न -  प्रमेय किसे कहते हैं ?

उ.  प्रमा का विषय प्रमेय होता है जिसके 'ज्ञान' से निःश्रेय (मोक्ष) की प्राप्ति में सहायता प्राप्त होती है।

प्रश्न - प्रमेय कितने हैं ?

उ. बारह(12) - 1. आत्मा, 2. शरीर, 3. इन्द्रिय, 4. अर्थ, 5. बुद्धि, 6. मन, 7. प्रवृत्ति, 8. दोष, 9 प्रेत्यभाव, 10.फल, 11. दुःख, 12. अपवर्ग ।

प्रश्न - आत्मा किसे कहते हैं ?

उ. आत्मत्व जाति (सामान्य) जिसमें रहती हैं, वह आत्मा है।('तत्रात्मत्वसामान्यवानात्मा' ) ।आत्मा देह, इन्द्रिय से भिन्न हैं, प्रत्येक शरीर में पृथक् पृथक् है, विभु और नित्य है। उस आत्मा का मानस प्रत्यक्ष होता है ('स च मानसप्रत्यक्षः) '।

प्रश्न - शरीर क्या है ?

उ. आत्मा के भोग आयतन (आश्रय) अन्त्य अवयवी शरीर हैं। ('तस्य भोगायतनमन्त्यावयवि शरीरम्') । अथवा चेष्टा का आश्रय शरीर है। ('चेष्टाश्रयो वा शरीरम्) 

प्रश्न -  भोग का क्या अर्थ है ?

उ. सुख दुःख में से किसी एक का प्रत्यक्ष अनुभव ।

प्रश्न - चेष्टा क्या है ?

उ. हित की प्राप्ति तथा अहित के परिहार के लिए की जाने वाली क्रिया चेष्टा है। 

प्रश्न - इन्द्रिय का लक्षण क्या है ?

उ. शरीर से संयुक्त अतीन्द्रिय का ज्ञान करण 'इन्द्रिय' है। ('शरीरसंयुक्तं ज्ञानकरणमतीन्द्रियम् इन्द्रियम्) ।

प्रश्न - घ्राण का लक्षण क्या है ?

उ. गन्ध की उपलब्धि का साधन इन्द्रिय घ्राण है जो नासिका के अग्रभाग में रहती है।('गन्धोपलब्धिसाधनमिन्द्रियं घ्राणम्' ) ।

प्रश्न - जिह्वा का लक्षण क्या है ?

उ. रस की उपलब्धि का साधन इन्द्रिय रसना है जो जिह्वा के अग्रभाग में रहती हैं। ('रसोपलब्धिसाधनमिन्द्रियं रसनम्) ।

प्रश्न - चक्षु का लक्षण क्या है ?

उ.  रूप की उपलब्धि का साधन इन्द्रिय चक्षु हैं जो नेत्र की काली पुतली में रहती है। (रूपोपलब्धिसाधनमिन्द्रियं चक्षुः) ।

प्रश्न - त्वगिन्द्रिय का लक्षण क्या है ?

उ. स्पर्श उपलब्धि का साधन इन्द्रिय त्वक् है जो सारे शरीर में रहती है। (स्पर्शोपलब्धिसाधनमिन्द्रियं त्वक्) ।

प्रश्न - श्रोत्र इन्द्रिय का लक्षण क्या है ?

उ. शब्द की उपलब्धि का साधन इन्द्रिय श्रोत्र है जो कर्ण के छिद्र में विद्यमान रहती है। ('शब्दोपलब्धिसाधनमिन्द्रियं श्रोत्रम्') ।

प्रश्न- मन का लक्षण क्या है ?

उ. सुख आदि की उपलब्धि का साधन इन्द्रिय मन है जो हृदय के भीतर रहता है। ('सुखाद्युपलब्धिसाधनमिन्द्रियं मनः') ।

प्रश्न - न्याय दर्शन के अनुसार अर्थ क्या है ?

उ. अर्थ के अन्तर्गत छः पदार्थ आते हैं  (“अर्थाः षड्पदार्थाः")।

प्रश्न - अर्थ नामक प्रमेय के अन्तर्गत गृहीत छः पदार्थ कौन हैं ?

उ.  द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय ।

प्रश्न - द्रव्य क्या है ?

उ. जो समवायिकारण हैं अथवा गुण का आश्रय है वह द्रव्य है।('समवायिकारणं द्रव्यम् गुणाश्रयो वा' ) ।

प्रश्न- द्रव्य कितने हैं ?

उ.  नौ(9) द्रव्य- पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश, काल, दिक्, आत्मा, मन- ये नौ द्रव्य हैं। ('पृथिव्यप्तेजोवाय्वाकाशकालदिगात्ममनांसि नवैव') ।

प्रश्न - पृथ्वी का लक्षण क्या है ?

उ.  नौ द्रव्यों में पृथिवीत्व जाति वाली पृथिवी कहलाती है।(पृथिवीत्वसामान्यवती पृथिवी) ।

प्रश्न - जल का क्या लक्षण है ?

उ. जलत्व जाति से युक्त जल है । ('अप्त्वसामान्ययुक्ता आपः) जल रसनेन्द्रिय, शरीर, नदी, हिम, ओला के रूप में है।

प्रश्न - तेज का क्या लक्षण है ?

उ. तेजस्त्व सामान्य से युक्त तेज हैं।('तेजस्त्वसामान्यवत् तेज:') । तेज़ ग्यारह गुणों वाला होता है।

प्रश्न - तेज द्रव्य के कितने भेद हैं ?

उ.  नित्य तथा अनित्य के भेद से तेज दो प्रकार का होता है।

प्रश्न - अनित्य तेज कितने प्रकार का होता है ?

उ. चार(4)प्रकार का - उदभूतरूपस्पर्श,अनुद्भूतरूपस्पर्श, अनुद्भूतरूपमुद्भूतस्पर्श, उद्भुतरूपमनुद्भूतस्पर्श। 

प्रश्न - वायु का क्या लक्षण है ?

उ. वायुत्व के समवाय सम्बन्ध वाला वायु है। ('वायुत्वाभिसम्बन्धवान् वायुः' )

प्रश्न - वायु कितनें गुणों वाला होता है ?

उ. नौ गुणों वाला -  स्पर्श, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, तथा वेग ।

प्रश्न - आकाश का क्या लक्षण है ?

उ. जिसमें शब्द गुण रहता है उसे आकाश कहते हैं। ('शब्दगुणकमाकाशम्') ।

प्रश्न - आकाश कितने गुणों से युक्त है ?

उ.  छः गुणों से -  शब्द, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग। आकाश एक, नित्य और व्यापक है और उसका अनुमापक शब्द है।

प्रश्न - काल का क्या लक्षण है ?

उ. दिशा से भिन्न परत्व अपरत्व द्वारा काल का अनुमान किया जाता है।('कालोऽपि दिग्विपरीतपरत्वापरत्वानुमेय:')। 

प्रश्न -  काल कितने गुणों से युक्त होता है ?

उ. पाँच गुणों से - संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग । काल एक, नित्य तथा विभु है।

प्रश्न - दिक् का क्या लक्षण है ?

उ. दिशा एक, नित्य तथा विभु है। (दिग् एका नित्या विभ्वी च)

प्रश्न - दिक् कितने गुणों वाला है ?

उ. पाँच गुणों वाला -  संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग ।

प्रश्न - आत्मा का क्या लक्षण है ?

उ. आत्मत्व के समवाय सम्बन्ध वा आत्मा है।  (आत्मत्वाभिसम्बन्धवान् आत्मा' ) ।

प्रश्न - मन का लक्षण क्या है ?

उ. मनस्त्व जाति के समवाय सम्बन्ध वाला मन है । ('मनस्त्वाभिसम्बन्धवन्मनः ) ।

प्रश्न - मन कितने गुणों वाला है ?

उ. आठ गुणों वाला - संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व संस्कार ।

प्रश्न - गुण का क्या लक्षण है ?

उ. सामान्य से युक्त,असमवायिकारण वाला, कर्मस्वरूप न होने वाले को गुण कहते हैं । (सामान्यमान् असमवायिकारणं अस्पन्दात्मा गुणः ' ) ।

प्रश्न -  गुण किसके आश्रित रहते हैं ?

उ. द्रव्य के ।

प्रश्न - गुणों की कुल संख्या कितनी है ?

उ. चौबीस(24)  -रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, गुरुत्व, द्रवत्व, स्नेह, शब्द, बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म, संस्कार ।

प्रश्न - रूप का क्या लक्षण है ?

उ. जो चक्षु से ग्रहण होता है वह रूप है।(‘रूपं चक्षुर्मात्रग्राह्यो विशेषगुणः ') । 

प्रश्न - रस का क्या लक्षण है ?

उ. जो रसनेन्द्रिय द्वारा ग्रहण किया जाय वह रस है। ('रसो रसनेन्द्रियग्राह्यो विशेषगुणः) ।

प्रश्न - गन्ध का क्या लक्षण है ?

उ. जिसे घ्राणेन्द्रिय द्वारा ग्रहण किया जाय वह गन्ध नामक गुण है। सुगन्ध तथा दुर्गन्ध के भेद से गन्ध दो प्रकार का है। ('गन्धो घ्राणग्राह्यो विशेषगुणः पृथिवीमात्रवृत्तिः ') । 

प्रश्न -  स्पर्श का क्या लक्षण है ?

उ. जो त्वक् इन्द्रिय द्वारा ग्रहण करने योग्य है वह स्पर्श नामक गुण है।('स्पर्शस्त्वगिन्द्रियमात्रग्राह्यो विशेषगुणः') ।

प्रश्न - स्पर्श के कितने भेद हैं ?

उ. तीन(3) भेद -  शीत, उष्ण, अनुष्णाशीत ।

प्रश्न - स्पर्श कब कहाँ रहता है ?

उ.  जल में शीत स्पर्श, तेज में उष्ण स्पर्श, पृथिवी और वायु में अनुष्णाशीत स्पर्श रहता है।

प्रश्न - संख्या का क्या लक्षण है ?

उ. जो एकत्व आदि व्यवहार का निमित्त होता है वह संख्या नामक विशेष है। (संख्या एकत्वादिव्यवहारहेतुः सामान्यगुणः ') ।

प्रश्न -  परिमाण का क्या लक्षण है ?

उ. माप के व्यवहार का असाधारण कारण परिमाण है। ('परिमाणं मानव्यवहारासाधारणं कारणम्' ) ।

प्रश्न - परिमाण कितने प्रकार का होता है ?

उ. चार प्रकार का - अणु, महद्, दीर्घ, ह्रस्व 

प्रश्न - पृथक्त्व का क्या लक्षण है ?

उ. पृथक्त्व के व्यवहार का असाधारण कारण पृथक्त्व हैं। ( 'पृथक्त्वं पृथग्व्यवहारासाधारणं कारणम्) । 

प्रश्न - पृथक्त्व कितने प्रकार का है ?

उ. दो प्रकार का - एक पृथक्त्व, द्विपृथक्त्व । 

प्रश्न - संयोग का क्या लक्षण है ?

उ. जो संयुक्त व्यवहार का निमित्त गुण होता है उसे संयोग नामक गुण कहते हैं।(संयोगः संयुक्तव्यवहारहेतुर्गुणः') ।

प्रश्न - संयोग के कितने भेद हैं ?

उ. तीन भेद -  अन्यतरकर्मज, उभयकर्मज, संयोगज ।

प्रश्न -  विभाग का क्या लक्षण है ?

उ. विभक्त प्रतीति का कारण विभाग है। (विभागोऽपि विभक्तप्रत्ययहेतुः) ।

प्रश्न - विभाग के कितने भेद हैं ?

उ.  तीन(3) - अन्यतरकर्मज, उभयकर्मज, विभागज ।

प्रश्न - परत्व तथा अपरत्व का क्या लक्षण है ?

उ. पर तथा अपर व्यवहार का असाधारण कारण परत्व तथा अपरत्व है। ( 'परत्वापरत्वे परापरव्यवहारासाधारणकारणे') ।  

प्रश्न -  परत्व तथा अपरत्व कितने प्रकार का होता है ?

उ. दो प्रकार का - दिक्कृत तथा कालकृत ।

प्रश्न - गुरुत्व का क्या लक्षण है ?

उ. प्रथमपतन का असमवायिकारण गुरुत्व है । गुरुत्व पृथिवी तथा जल में रहता है। संयोग, वेग, प्रयत्न के अभाव में गुरुत्व के कारण पतन होता है। ('गुरुत्वमाद्यपतनासमवायिकारणम् )

प्रश्न - द्रवत्व का क्या लक्षण है ?

उ. प्रथम स्पन्दन का असमवायिकारण द्रवत्व है। द्रवत्व-भूमि, तेज और जल में रहता है ।  (द्रवत्वमाद्यस्यन्दनासमवायिकारणम् ) ।

प्रश्न -  स्नेह का क्या लक्षण है ?

उ. चिकनापन ही स्नेह है। स्नेह केवल जल में रहता है। ( 'स्नेहश्चिक्कणता जलमात्रवृत्तिः ) ।

प्रश्न -  शब्द गुण का क्या लक्षण है ?

उ. जिसका श्रोत्र के द्वारा ग्रहण किया जाता है उसे शब्द नामक गुण कहते है ।शब्द आकाश का विशेष गुण हैं। ( 'शब्दः श्रोत्रग्राह्यो गुणः' ) ।

प्रश्न -  बुद्धि का क्या लक्षण है ?

उ. अर्थ का प्रकाशन बुद्धि है। ईश्वर की बुद्धि नित्य होती है। जबकि अन्य की बुद्धि अनित्य होती है ।('अर्थप्रकाशो बुद्धिः' ) ।

प्रश्न - सुख का क्या लक्षण है ?

उ. प्रीति को सुख कहते हैं। सुख का समस्त आत्माओं के द्वारा प्रतिकूल रूप में अनुभव किया जाता है। ('प्रीतिः सुखम्'। 'तच्च सर्वात्मनामनुकूलवेदनीयम् ' )।

प्रश्न - दुःख का क्या लक्षण है ?

उ. पीड़ा का नाम दुःख है दुःख का समस्त आत्माओं के द्वारा प्रतिकूल रूप में अनुभव किया जाता है। ( पीडा दुःखम् । तच्च सर्वात्मनां प्रतिकूलवेदनीयम्' )

प्रश्न - इच्छा का क्या लक्षण है ?

उ. राग को इच्छा कहते हैं। ('राग इच्छा') ।

प्रश्न -  द्वेष का क्या लक्षण है ?

उ. क्रोध को द्वेष कहते हैं।('क्रोधो द्वेषः' ) ।

प्रश्न - प्रयत्न का क्या लक्षण है ?

उ. उत्साह को प्रयत्न कहा गया है। ( 'उत्साहः प्रयत्नः ' ) ।

प्रश्न - प्रयत्न का क्या लक्षण है ?

उ.  बुद्धि आदि छः गुणो का मानस प्रत्यक्ष होता है।

प्रश्न - धर्म तथा अधर्म का क्या लक्षण है ?

उ. सुख तथा दुःख के असाधारण कारण धर्म तथा अधर्म हैं। ('धर्माऽधर्मी सुखदुःखयोरसाधारणकारणे ) ।

प्रश्न -  संस्कार का क्या लक्षण है ?

उ. संस्कार सम्बन्धी व्यवहार का असाधारण कारण संस्कार है। ( 'संस्कारव्यवहाराऽसाधारणं कारणं संस्कारः' ) ।

प्रश्न - संस्कार कितने प्रकार का होता है ?

उ. तीन प्रकार का - वेग, भावना तथा स्थितिस्थापक ।

प्रश्न - द्रव्य कितने हैं ?

उ. नव ( 9 ) -पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश, काल, दिक्, आत्मा, मन ।

प्रश्न - कर्म का क्या लक्षण है ?

उ. कर्म का स्वरूप है क्रिया ('चलनात्मकं कर्म) जैसे -  चलना, हिलना, गति ।

प्रश्न - कर्म के कितने भेद हैं ?

उ.  पाँच भेद- उत्क्षेपण, अपक्षेपण, आकुंचन, प्रसारण, गमन। ऊर्ध्वगति उत्क्षेपण, अधोगमन को अपक्षेपण, सिकुड़ना को आकुशन, फैलना को प्रसारण, प्रस्थान करना को गमन कहते हैं।

प्रश्न - सामान्य का क्या लक्षण है ?

उ. समानाकारक प्रतीति का हेतु सामान्य (जाति) है। ('अनुवृत्तिप्रत्ययहेतुः सामान्यम्') ।

प्रश्न - विशेष का क्या लक्षण है ?

उ.  विशेष नित्य है जो नित्य द्रव्यों में रहता है। ('विशेषो नित्यो नित्यद्रव्यवृत्तिः') ।

प्रश्न - समवाय का क्या लक्षण है ?

उ. अयुतसिद्धों (पदार्थों) का सम्बन्ध समवाय है। ('अयुतसिद्धः सम्बन्धः समवायः' ) ।

प्रश्न - अभाव का क्या लक्षण है ?

उ. द्रव्य आदि छः पदार्थों से भिन्न जो पदार्थ है वह अभाव नाम का सातवाँ पदार्थ है।

प्रश्न - अभाव के कितने भेद हैं ?

उ.  दो(2) - संसर्गाभाव तथा अन्योन्याभाव ।

प्रश्न - संसर्गाभाव के कितने भेद हैं ?

उ. तीन भेद  -  प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव तथा अत्यन्ताभाव ।

प्रश्न - प्रागभाव का क्या लक्षण है ?

उ. उत्पत्ति से पूर्व जो कारण में कार्य का अभाव होता है। जैसे- तन्तुषु पटाभावः स चानादिरुत्पत्तेरभावात् अर्थात् तन्तुओं में पट का अभाव प्रागभाव है। (उत्पत्तेः प्राक् कारणे कार्यस्याभावः प्रागभावः') ।

प्रश्न - प्रध्वंसाभाव किसे कहते हैं ?

उ. उत्पन्न का जो उसके कारण में अभाव होता है उसे प्रध्वंसाभाव कहते हैं। जैसे भग्ने घटे कपालमालायां घटाभावः अर्थात् घट के टूट जाने पर कपालों में घट का अभाव हो जाता है। ('उत्पन्नस्य कारणेऽभावः प्रध्वंसाभाव:' ) ।

प्रश्न - अत्यन्ताभाव का क्या लक्षण है ?

उ. तीनों कालों में रहने वाला त्रैकालिक अभाव अत्यन्ताभाव है। ('त्रैकालिकोऽभावोऽत्यन्ताभावः) । 'जैसे- 'वायौ रूपाभावः' वायु में रूप का अभाव।

प्रश्न - अन्योन्याभाव का क्या लक्षण है ?

उ. अन्योन्याभाव वह अभाव है जिसका प्रतियोगी तादात्म्य अभेद होता है अथवा जिसका प्रतियोगी तादात्म्य सम्बन्ध से युक्त होता है जैसे- 'घटः पटः न भवति' अर्थात् घट पट नहीं है । (अन्योन्याभावस्तु तादात्म्यप्रतियोगिताकोऽभावः)।

प्रश्न - अनुभव कितने प्रकार का होता है ?

उ. दो(2) प्रकार - यथार्थ अनुभव, अयथार्थ अनुभव ।

प्रश्न -  यथार्थ अनुभव का क्या लक्षण है ?

उ. अर्थ के विपरीत न होने वाला यथार्थ अनुभव है। ('यथार्थोऽविसंवादी' ) ।

प्रश्न - अयथार्थ अनुभव का क्या लक्षण है ?

उ. अयथार्थ अनुभव अर्थ का अनुसरण नहीं करता क्योंकि वह प्रमाण से उत्पन्न नहीं होता । (अयथार्थस्तु अर्थव्यभिचारी, अप्रमाणजः) ।

प्रश्न -  बुद्धि का क्या लक्षण है ?

उ. अर्थ का ज्ञान बुद्धि है । ('अर्थप्रकाशो बुद्धिः' ) ।

प्रश्न - बुद्धि के कितने भेद हैं ?

उ.  दो भेद -  अनुभव तथा स्मरण ।

प्रश्न - अयथार्थ अनुभव कितने प्रकार का है ?

उ. तीन प्रकार का -  संशय, तर्क, विपर्यय ।

प्रश्न - संशय का क्या लक्षण है ?

उ.  एक धर्मी में अनेक विरुद्ध धर्मों का ज्ञान संशय है।  (एकस्मिन् धर्मिणि विरुद्धनानार्थविमर्शः संशय:) ।

प्रश्न - संशय के कितने भेद हैं ?

उ. तीन(3) भेद, विशेष का दर्शन न होने पर -   1. समान धर्म के दर्शन से उत्पन्न, 2. विरुद्धार्थप्रतिपादक वचनों से उत्पन्न, 3. असाधारण धर्म के दर्शन से उत्पन्न । 

प्रश्न - तर्क का क्या लक्षण है ?

उ. अनिष्ट की प्राप्ति होने लगना तर्क है। ('तर्कोऽनिष्टप्रसङ्गः) ।

प्रश्न -  विपर्यय का क्या लक्षण है ?

उ. अन्य वस्तु में उस वस्तु का ज्ञान विपर्यय अर्थात् भ्रम है। ('विपर्ययस्तु अतस्मिंस्तद्ग्रहः) ।  जैसे- 'शुक्तिकादी रजतारोषः इदं रजतम्' रजत से भिन्न सीपी आदि में रजत का भान होना विपर्यय है।

प्रश्न - स्मरण के कितने भेद हैं ?

उ. दो भेद - यथार्थ स्मरण तथा अयथार्थ स्मरण ।

प्रश्न -  मन का क्या लक्षण है ?

उ. आन्तरिक इन्द्रिय (अन्तःकरण) मन है। (‘अन्तरिन्द्रियं मनः') ।

प्रश्न - प्रवृत्ति का क्या लक्षण है ?

उ. धर्म अधर्म का जनक वाणी आदि का कर्म ही प्रवृत्ति है। ( प्रवृत्तिः धर्माऽधर्ममयी वागादिक्रिया') ।

प्रश्न -  दोष का क्या लक्षण है ?

उ. राग (इच्छा), द्वेष (मन्यु या क्रोध), मोह (मिथ्याज्ञान या विपर्यय) दोष हैं।  - ('दोषा रागद्वेष मोहा:') ।

प्रश्न - प्रेत्यभाव का क्या लक्षण है ?

उ. पुनः उत्पन्न होना प्रेत्यभाव है। ('पुनरुत्पत्तिः प्रेत्यभावः' ) ।

प्रश्न - फल का क्या लक्षण है ?

उ. सुख अथवा दुःख में से किसी एक के अनुभव रूप भोग को फल कहते हैं। ('फलं पुनर्भोगः सुखदुःखान्यतरसाक्षात्कारः') ।

प्रश्न - दुःख का क्या लक्षण है ?

उ. पीड़ा को दुःख कहते हैं(पीडा दुखम्') । यह जीवात्मा का विशेष गुण है जिसकी उत्पत्ति पाप (अधर्म) से होती है।

प्रश्न - अपवर्ग का क्या लक्षण है ?

उ. मोक्ष को अपवर्ग कहते हैं। ('मोक्षोऽपवर्गः)।

प्रश्न - मोक्ष का क्या अर्थ है ?

उ. इक्कीस प्रकार के दुःखों की आत्यन्तिक निवृत्ति। 

प्रश्न - दुःखों के इक्कीस भेद कौन-कौन हैं ?

उ.  शरीर, षट्इन्द्रिय, षट्विषय, षट्ज्ञान (बुद्धि) सुख, दुःख । 

प्रश्न - अवयव किसे कहते हैं ?

उ. अनुमान वाक्य के अंश अवयव कहलाते हैं। ('अनुमानवाक्यस्यैकदेशा अवयवाः') ।

प्रश्न - अवयव के कितने भेद है ?

उ. पाँच(5) - प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय, निगमन, अवयव ।

प्रश्न - हेत्वाभास किसे कहते है ?

उ. असद् हेतु को हेत्वाभास कहते हैं, जो हेतु नहीं होता किन्तु हेतु के समान भासित होता है।  हेत्वाभास शब्द के दो अर्थ हैं- 1. हेतु का दोष 2. दुष्ट हेतु ।

प्रश्न -  हेतु का दोष क्या है ?

उ. जिसके ज्ञान से अनुमिति के कारण अथवा साक्षात् अनुमिति ही प्रतिबन्धित हो जाती है, वह हेत्वाभास या हेतुदोष कहलाता है। (आभासते इत्याभासः हेतोराभासः हेत्वाभासः') ।

प्रश्न - दुष्ट हेतु किसे कहते हैं ?

उ. जो हेतु के समान भासित होता है वस्तुतः दोष युक्त होने के कारण हेतु नहीं होता है दुष्ट हेत्वाभास कहलाता है। ('हेतुवद् आभासते इति हेत्वाभासः') ।

प्रश्न - हेतु के कितने रूप हैं ?

उ. पांच रूप -  पक्षसत्व, सपक्षसत्त्व, विपक्षव्यावृत्तत्व अबाधितविषयत्व, असत्प्रतिपक्षत्व ।

प्रश्न - अहेतु का क्या लक्षण है ?

उ. पक्षधर्मता पक्षसत्त्व आदि हेतु के पाँच रूपों में से किसी एक रूप से भी रहित हेतु अहेतु है । ('उक्तानां पक्षधर्मत्वादिरूपाणां मध्ये येन केनापि रूपेणहीना अहेतवः)

प्रश्न - हेत्वाभास की संख्या कितनी है ?

उ. पाँच(5)- असिद्ध, विरुद्ध, अनैकान्तिक, प्रकरणसम, कालात्ययापदिष्ट ।

प्रश्न - असिद्ध हेत्वाभास किसे कहते हैं ?

उ. लिङ्ग के रूप में निश्चित न होने वाला हेतु असिद्ध हेत्वाभास । ('लिङ्गत्वेनानिश्चितोहेतुरसिद्धः' )

प्रश्न - असिद्ध हेत्वाभास के कितने भेद हैं ?

उ. तीन(3) भेद -  आश्रयासिद्ध, स्वरूपासिद्ध, व्याप्यत्वासिद्ध ।

प्रश्न - आश्रयासिद्ध हेत्वाभास किसे कहते हैं ?

उ. जिस हेतु के आश्रय का ही अभाव होता है उसे आश्रयासिद्ध हेत्वाभास कहते हैं('यस्य हेतोराश्रयो नावगम्यते स आश्रयासिद्धः) । जैसे गगनारविन्दं सुरभि, अरविन्दत्वात् सरोजारविन्दवत् ।

प्रश्न -  स्वरूपासिद्ध हेत्त्वाभास किसे कहते हैं ?

उ. जो हेतु आश्रय में सिद्ध नहीं होता हैं उसे स्वरूपासिद्ध हेत्वाभास कहते हैं।('यो हेतुराश्रये नावगम्यते') । जैसे- 'अनित्यः शब्दः चाक्षुषत्त्वात् घटवत्।

प्रश्न - व्याप्यत्त्वासिद्ध हेत्वाभास किसे कहते हैं ?

उ. जहाँ हेतु में व्याप्ति सिद्ध नहीं होती है वह व्याप्यत्त्वासिद्ध हेत्वाभास होता है। ('यत्र हेतोर्व्याप्तिर्नावगम्यते') । 

प्रश्न - व्याप्यत्त्वासिद्ध के कितने भेद हैं ?

उ.  दो(2)  - 1. साध्य के साथ सहचर न रहने वाला, 2. उपाधियुक्त साध्य से सम्बन्ध रखने वाला । जैसे- शब्दः क्षणिकः सत्त्वात् तथा क्रत्त्वन्तवर्तिनी हिंसा अधर्मसाधनं, हिंसात्त्वात् क्रतुबाह्यहिंसावत् । 

प्रश्न - विरुद्ध हेत्वाभास का क्या लक्षण है ?

उ. साध्य के अभाव से व्याप्त हेतु विरुद्ध हेत्वाभास कहलाता है('साध्यविपर्ययव्याप्तो हेतुर्विरुद्धः ') । जैसे- 'शब्दो नित्यः कृतकत्वादात्मवत्' ।

प्रश्न - अनैकान्तिक हेत्वाभास क्या है ?

उ. सव्यभिचार हेतु अनैकान्तिक हेत्वाभास है(सव्यभिचारोऽनैकान्तिकः) ।

प्रश्न -  अनैकान्तिक हेत्वाभास के कितने भेद हैं ?

उ. दो भेद- 1. साधारण अनैकान्तिक 2. असाधारण अनैकान्तिक ।

प्रश्न - साधारण अनैकान्तिक किसे कहते हैं ?

उ. पक्ष, सपक्ष तथा विपक्ष में रहने वाला साधारण अनैकान्तिक है( पक्षसपक्षविपक्षवृत्तिः साधारण:) । जैसे शब्दो नित्यः प्रमेयत्त्वात् व्योमवत् ।

प्रश्न - आसाधारण अनैकान्तिक किसे कहते हैं ?

उ. जो सपक्ष तथा विपक्ष में नहीं रहता केवल पक्ष में ही रहता है वह असाधारण अनैकान्तिक है('सपक्षाद् विपक्षाद् व्यावृत्तो यः पक्ष एवं वर्तते सोऽसाधारणानैकान्तिकः') ।  जैसे- भूर्नित्या गन्धवत्त्वात् ।

प्रश्न - प्रकरणसम हेत्वाभास किसे कहते हैं ?

उ. जिस हेतु के साध्य के विपरीत अर्थ का दूसरा हेतु विद्यमान होता है वह प्रकरणसम हेत्वाभास हैं(यस्य हेतोः साध्यविपरीतसाधकं हेत्वन्तरं विद्यते) । जैसे शब्दोऽनित्यो नित्यधर्मरहितत्त्वात्। प्रकरणसम हेत्वाभास को सत्प्रतिपक्ष भी कहते हैं।

प्रश्न - बाधितविषय या कालात्ययापदिष्ट का क्या लक्षण है ?

उ. प्रत्यक्षादि प्रमाण के द्वारा पक्ष में जिस हेतु के साध्य का अभाव निश्चित कर लिया जाता है वह 'कालात्ययापदिष्ट' हैं इसे 'बाधितविषय' भी कहा जाता है(प्रमाणान्तरावधृतसाध्याभाव कालात्ययापदिष्ट' अथवा प्रत्यक्षादिप्रमाणेन पक्षे 'साध्याभावः परिच्छिन्नः स कालात्ययापदिष्टः) ।  जैसे - अग्निरनुष्णः कृतकत्वाज्जलवत्।


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2 टिप्पणियाँ

thanks for a lovly feedback

  1. न्याय दर्शन को आपने सर पूरा कवर कर दिया, बहुत ही उपयोगी पोस्ट.. धन्यवाद🙏💕

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  2. बहुत ही उत्तम पोस्ट, धन्यवाद भाई 🙏🙏

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