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सांख्यदर्शन सांख्यकारिका प्रश्नोत्तरी (sankhyakarika Important question answer)

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प्रश्न - सबसे प्राचीन दर्शन का क्या नाम है ?
उत्तर - सांख्यदर्शन ।
प्रश्न - सांख्य दर्शन के प्रवर्तक एवं सबसे प्राचीन आचार्य कौन हैं ?
उत्तर - आचार्य कपिलमुनि ।
प्रश्न - सांख्य शब्द का क्या अर्थ है ? 
उत्तर - सम् उपसर्गपूर्वक √ख्या प्रकथने धातु से अङ् प्रत्यय करने के बाद ‘टाप्' प्रत्यय करने से 'संख्या' शब्द बनता है। पुनः संख्या पद से "तस्येदम्" सूत्र द्वारा 'अण्' प्रत्यय करने पर “सांख्य” पद निष्पन्न होता है, जिसका अर्थ है 'गणना से सम्बन्धित' अथवा 'गणना से जानने योग्य', क्योंकि सांख्यदर्शन में तत्त्वों की गणना अर्थात् संख्या को अत्यधिक महत्त्व दिया गया है।
प्रश्न - सांख्यदर्शन में कितने तत्वों की चर्चा है ?
उत्तर - 25 ।
प्रश्न - सांख्य दर्शन के अनुसार मुख्य रूप से नित्य तत्त्व कौन हैं ?
उत्तर - दो तत्त्व - पुरुष तथा प्रकृति ।
प्रश्न - सांख्यदर्शन के कतिपय प्रमुख आचार्यों के नाम बताइये ?
उत्तर - सांख्यदर्शन के प्रमुख आचार्य- कपिल, आसुरि, पञ्चशिख, विन्ध्यवासी, जैगीषव्य, वार्षगण्य, ईश्वरकृष्ण आदि हैं।
प्रश्न - सांख्यदर्शन के प्रमुखग्रन्थ कौन हैं ?
उत्तर - सांख्यसूत्र, षष्टितन्त्र, राजवार्तिक, एपिकसांख्य, अर्वाचीन सांख्यसूत्र आदि हैं।
प्रश्न - सांख्य दर्शन की प्रमुख टीकाओं के नाम बताइये ?
उत्तर -  अनिरुद्धवृत्तिसार, सांख्यवृत्तिसार, सांख्यप्रवचनभाष्य, लघुसांख्यवृत्ति, तत्त्वसमास अथवा समाससूत्र आदि।
प्रश्न - ‘सांख्यकारिका'  के लेखक कौन हैं ?
उत्तर -  ईश्वरकृष्ण ।
प्रश्न - ईश्वरकृष्ण के गुरु का नाम बताइये ?
उत्तर - पञ्चशिख ।
प्रश्न - पञ्चशिख के गुरु का क्या नाम है ?
उत्तर - आसुरि ।
प्रश्न - सांख्यकारिका में कितने श्लोक या कारिकाएँ हैं ?
उत्तर - 70 ।
प्रश्न - सांख्यकारिका किस छन्द में निबद्ध है ?
उत्तर - आर्या छन्द ।
प्रश्न - सांख्यकारिका का अपर नाम क्या है ?
उत्तर - सांख्यसप्तति, हिरण्यसप्तति अथवा सुवर्णसप्तति ।
प्रश्न - सांख्यकारिका की टीकाओं का नाम बताइये ?
उत्तर -  गौडपादभाष्य, माठरवृत्ति, जयमङ्गला  युक्तिदीपिका, तथा सांख्यतत्त्वकौमुदी आदि ।
प्रश्न - सांख्यदर्शन का मुख्य सिद्धान्त क्या है ?
उत्तर - सत्कार्यवाद ।
प्रश्न - सांख्यदर्शन का प्रमुख सिद्धान्त सत्कार्यवाद कहाँ से लिया गया है ?
उत्तर - छान्दोग्योपनिषद् ।
प्रश्न - सांख्यदर्शन के प्रमुख दो सिद्धान्त कौन हैं ?
उत्तर - सत्कार्यवाद एवं पुरुषबहुत्व ।
प्रश्न - सांख्यशास्त्र के अनुसार त्रिविध दुःख कौन हैं ?
उत्तर - आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिदैविक ।
प्रश्न - आध्यात्मिक दुःख किसे कहते हैं ?
उत्तर - काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, भय, विषाद आदि से होने वाले दुःख को आध्यात्मिक दुःख कहते हैं।
प्रश्न - आधिभौतिक दुःख किसे कहते हैं ?
उत्तर - मनुष्य, पशु, सर्प आदि से होने वाले दुःख को आधिभौतिक दुःख कहते हैं।
प्रश्न - आधिदैविक दुःख किसे कहते हैं ?
उत्तर - अतिवृष्टि, अनावृष्टि, आँधी आदि प्राकृतिक आपदाओं  से होने वाले दुःख को आधिदैविक दुःख कहते हैं।
प्रश्न - वात, पित्त, कफ आदि से उत्पन्न दुःख किस प्रकार के दुःख हैं ?
उत्तर - शारीरिक दुःख ।
प्रश्न - काम, क्रोध आदि से उत्पन्न दुःख किस प्रकार के दुःख हैं ?
उत्तर - मानसिक ।
प्रश्न - 'ऐकान्तिक' शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर - दुःख का अनिवार्य रूप से नष्ट हो जाना । 
प्रश्न - आत्यन्तिक' शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर - जो दुःख नष्ट हुआ है उसका फिर से उत्पन्न न होना।
प्रश्न - किन उपायों से दुःखत्रय की सार्वकालिक निवृत्ति नहीं होती ?
उत्तर - लौकिक उपायों से ।
प्रश्न - शारीरिक दुःख कैसे उत्पन्न होता है ?
उत्तर - वात, पित्त, कफ त्रिदोष की विषमता से ।
प्रश्न - मानसिक दुःख कैसे उत्पन्न होता है ?
उत्तर - काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, ईर्ष्या, विषाद आदि द्वारा विषयों की अप्राप्ति से। 
प्रश्न - लौकिक उपायों की ही तरह वैदिक उपाय भी किसमें असमर्थ हैं ?
उत्तर - दुःखत्रय की ऐकान्तिक और आत्यन्तिक निवृत्ति में ।
प्रश्न - दुःखत्रय की निवृत्ति कैसे सम्भव है ?
उत्तर - व्यक्त, अव्यक्त और पुरुष के ज्ञान से ।
प्रश्न - सांख्यशास्त्र कितने प्रकार से तत्त्वों का विभाजन करता है ?
उत्तर - चार प्रकार से - (१) प्रकृति (२) प्रकृति-विकृति (३) केवल विकृति (४) न प्रकृति न विकृति ।
प्रश्न - प्रकृति की संख्या कितनी है ?
उत्तर - एक (मूलप्रकृति ) । इसे प्रधान या अव्यक्त भी कहा जाता है। 
प्रश्न - प्रकृति एवं विकृति की संख्या कितनी है ?
उत्तर - सात - 'प्रकृतिविकृतयः सप्त' (कारिका-३) ।
प्रश्न - प्रकृति और विकृति में कौन-कौन परिगणित हैं ?
उत्तर - महत्, अहङ्कार तथा पञ्चतन्मात्राएँ( शब्द स्पर्श रूप रस गन्ध) ।
प्रश्न - प्रकृतिविकृतियों को और किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर - कारण एवं कार्य के नाम से ।
प्रश्न - पञ्चज्ञानेन्द्रियाँ कौन-कौन हैं ?
उत्तर - श्रोत्र(कान), नेत्र(आँख), घ्राण(नासिका), त्वक्(त्वचा), रसना(जिह्वा,जीभ) ।
प्रश्न - पाँच कर्मेन्द्रियाँ कौन-कौन हैं ?
उत्तर - वाक्(मुख), पाणि(हाथ), पाद(पैर), पायु(मूत्रद्वार), उपस्थ(मलद्वार) ।
प्रश्न - केवल विकृति अर्थात् कार्य की संख्या कितनी है ?
उत्तर - सोलह(षोडशकस्तु विकारः,कारिका-3) ।
प्रश्न - केवल विकृतियों में कौन-कौन परिगणित हैं ?
उत्तर - पञ्चज्ञानेन्द्रियाँ, पञ्चकर्मेन्द्रियाँ, मन, और पञ्चमहाभूत(पृथ्वी, जल, तेज. वायु, आकाश) ।
प्रश्न - तन्मात्राएँ कितनी हैं उनके नाम बताइये ?
उत्तर - पाँच -  शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध ।
प्रश्न - पाँचमहाभूत कौन हैं ?
उत्तर - आकाश, वायु, तेज, जल, पृथिवी ।
प्रश्न - कौन प्रकृति और विकृति दोनों नहीं है ?
उत्तर - सांख्य में पुरुष को न प्रकृति (कारण) तथा न विकृति ( कार्य ) कहा गया है। न प्रकृतिर्न विकृति: पुरुष: (कारिका-3) ।
प्रश्न - प्रकृति की परिभाषा क्या है ?
उत्तर - सत्त्व, रजस्, तमस् की साम्यावस्था का नाम प्रकृति है। (सत्त्वरजस्तमसां साम्यावस्था प्रकृतिः) ।
प्रश्न - सांख्य कितने प्रमाण मानता है या कितने प्रमाण अभीष्ट हैं ?
उत्तर - तीन प्रमाण, (त्रिविधं प्रमाणमिष्टम्) ।
प्रश्न - वे प्रमाण कौन-कौन हैं ?
उत्तर - 'दृष्टमनुमानमाप्तवचनं' (कारिका-4) के अनुसार - (१) दृष्ट (प्रत्यक्ष), (२) अनुमान तथा (३)आप्तवचन(शब्दप्रमाण)।
प्रश्न -  उपर्युक्त प्रमाणों के ज्ञान से क्या होता है ?
उत्तर - प्रमेयों का ज्ञान (प्रमेयसिद्धिः प्रमाणाद्धि) ।
प्रश्न - चार्वाक् कितने प्रमाण मानता है ?
उत्तर - केवल प्रत्यक्ष प्रमाण ।
प्रश्न - बौद्ध दर्शन कितने प्रमाण मानता है ?
उत्तर - दो प्रमाण- प्रत्यक्ष और अनुमान ।
प्रश्न - न्याय और वैशेषिक कितने प्रमाण माने हैं ?
उत्तर - चार प्रमाण - प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द ।
प्रश्न - प्रभाकर मीमांसक ने कितने प्रमाण माने हैं ?
उत्तर - पाँच प्रमाण (प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द, अर्थापत्ति) ।
प्रश्न - भाट्ट मीमांसक कितने प्रमाण मानते हैं ?
उत्तर - छः प्रमाण - प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द, अर्थापत्ति, अभाव ।
प्रश्न- पौराणिक कितने प्रमाण मानते हैं ?
उत्तर - आठ प्रमाण - प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द, अर्थापत्ति, अभाव, सम्भव और ऐतिह्य ।
प्रश्न - प्रत्यक्ष प्रमाण का लक्षण क्या है ?
उत्तर - विषय से सम्बद्ध इन्द्रिय पर आश्रित बुद्धि-व्यापार या ज्ञान को प्रत्यक्ष प्रमाण कहते हैं।- प्रतिविषयाध्यवसायो दृष्टम्' (कारिका-५) ।
प्रश्न - अनुमान प्रमाण का क्या लक्षण है ?
उत्तर - लिङ्ग और लिङ्गी के ज्ञान से जो उत्पन्न होता है उसे अनुमान प्रमाण कहते हैं।-तल्लिङ्गलिङ्गिपूर्वकम् अनुमानम्' (कारिका-५) ।
प्रश्न - अनुमान प्रमाण के कितने भेद हैं ?
उत्तर - दो - (१) वीतानुमान (२) अवीतानुमान ।
प्रश्न - वीतानुमान के कितने भेद हैं ?
उत्तर - दो भेद- पूर्ववत्, सामान्यतोदृष्ट ।
प्रश्न - अवीतानुमान के कितने भेद हैं ?
उत्तर - एक भेद -  शेषवत्।
प्रश्न - सांख्य में कुल मिलाकर अनुमान के कितने भेद हो जाते हैं ?
उत्तर -  तीन भेद - पूर्ववत्, शेषवत्, और  सामान्यतोदृष्ट ।
प्रश्न - आप्त प्रमाण(शब्दप्रमाण) किसे कहते हैं ?
उत्तर - आप्त पुरुष की उक्ति ही शब्द प्रमाण है। शब्दप्रमाण को आगमप्रमाण या आप्तप्रमाण भी कहा जाता है। 
प्रश्न - आप्तवचन तथा उपदेश करने वाले को क्या कहते हैं ?
उत्तर - आप्तपुरुष।(आप्तश्रुतिराप्तवचनम्',कारिका-05) ।
प्रश्न - सामान्य विषयों का ज्ञान किससे होता है ? 
उत्तर - प्रत्यक्ष प्रमाण से । 
प्रश्न - इन्द्रियों से दिखाई न देने वाले अर्थात् परोक्ष पदार्थों का ज्ञान किससे होता है ? 
उत्तर - अनुमान प्रमाण से ।
प्रश्न - मूलप्रकृति आदि का ज्ञान किस अनुमान प्रमाण से होता है ? 
उत्तर - सामान्यतोदृष्ट नामक अनुमान प्रमाण से ।
प्रश्न - सांख्य के अनुसार वस्तुओं का प्रत्यक्ष कितने रूपों से नहीं होता है ? 
उत्तर - आठ रूपों से - (१) अत्यधिक दूर होने से, (२) अत्यधिक समीप होने से,  (३) इन्द्रियों के नाश से, (४) मन की अस्थिरता से, (५) बीच में किसी रुकावट के आ जाने से, (६) सूक्ष्म होने से, (७) समान वस्तु में मिल जाने से, (८) अपने कारण से उत्पन्न होने से।
अतिदूरात् सामीप्यादिन्द्रियघातान्मनोऽनवस्थानात् । 
सौक्ष्म्याद् व्यवधानादभिभवात् समानाभिहाराच्च ॥

प्रश्न - प्रकृति की उपलब्धि क्यों नहीं होती है ? 
उत्तर - सूक्ष्म होने के कारण। ('सौक्ष्म्यात्तदनुपलब्धिर्नाभावात्') ।
प्रश्न - प्रकृति की उपलब्धि किससे होती है ? 
उत्तर - उसके कार्य से । 
प्रश्न - महत् आदि कार्य, प्रकृति के समान होते हैं या असमान ? 
उत्तर - समान एवं असमान दोनों (महदादि तच्च कार्यं प्रकृतिसरूपं विरूपं च) । 
प्रश्न - सत्कार्यवाद किस दर्शन का प्रमुख सिद्धान्त है ? 
उत्तर - सांख्यदर्शन का  - सतः सत् जायते । 
प्रश्न - सांख्य की दृष्टि में सत्कार्यवाद क्या है ? 
उत्तर - सत्कार्यवाद सिद्धान्त में पाँच हेतु हैं - (१) असदकरणाद् (२) उपादानग्रहणात् (३) सर्वसम्भवाभावात् (४) शक्तस्य शक्यकरणात् (५) कारणभावात् ।
असदकरणादुपादानग्रहणात् सर्वसम्भवाभावात्। 
शक्तस्य शक्यकरणात् कारणभावाच्च सत्कार्यम् ॥
 सत्कार्यवाद सिद्धान्त के अनुसार कार्य हमेशा अपने कारण रूप में विद्यमान रहता है। इसके अनुसार न तो किसी वस्तु की उत्पत्ति होती है और न ही विनाश होता है। कार्य की उत्पत्ति का अर्थ है अव्यक्त से व्यक्त होना तथा विनाश का अर्थ है व्यक्त से अव्यक्त होना।
प्रश्न - मूलप्रकृति से उत्पन्न होते हैं ? 
उत्तर - महद् आदि कार्य । 
प्रश्न - महद् आदि कार्यों की संज्ञा है ? 
उत्तर - व्यक्त ।
प्रश्न - प्रकृति क्या है ? 
उत्तर -  त्रिगुणात्मिका, प्रधान, प्रसवधर्मिणी, अव्यक्त, जड तथा अचेतन। 
प्रश्न - व्यक्त पदार्थों की क्या विशेषताएँ हैं ? 
उत्तर - व्यक्त पदार्थ - हेतुमान्, अनित्य, अव्यापी, सक्रिय, अनेक, मूलकारण पर आश्रित, लिङ्गसहित, अवयवयुक्त तथा परतन्त्र होते हैं ।
प्रश्न - अव्यक्त की क्या विशेषताएँ हैं ? 
उत्तर - अव्यक्त (प्रकृति) - अहेतुमान्, नित्य, व्यापी, निष्क्रिय, एक, अनाश्रित, लिङ्गरहित, निरवयव तथा स्वतन्त्र है ।
हेतुमदनित्यमव्यापि सक्रियमनेकमाश्रितं लिङ्गम् । 
सावयवं परतन्त्रं व्यक्तं विपरीतमव्यक्तम् ॥(कारिका १०)

प्रश्न - महत् तत्त्व से लेकर आकाश आदि स्थूलपर्यन्त सभी पदार्थों को क्या कहा जाता है ? 
उत्तर - व्यक्त  । 
प्रश्न - प्रत्यक्ष प्रमाण के विषय होते हैं ? 
उत्तर - व्यक्त। 
प्रश्न - हेतुमत् किसे कहते हैं ? 
उत्तर - हेतु अर्थात् कारण जिसका होता है उसे हेतुमत् कहते हैं । 
प्रश्न - अव्यक्त अर्थात् प्रकृति क्या है ? 
उत्तर - नित्य है क्योंकि वह किसी का कार्य नहीं होती है।
प्रश्न - सांख्यमत में अनित्य का क्या अर्थ है ? 
उत्तर - सूक्ष्म रूप से अपने कारण में रहने वाला। 
प्रश्न - पुरुषबहुत्व के सिद्धान्त को मान्यता प्रदान की गई है ? 
उत्तर - सांख्य में । 
प्रश्न - सारे व्यक्त पदार्थ किस पर आश्रित होते हैं ? 
उत्तर - अपने-अपने कारण पर । 
प्रश्न - व्यक्त तथा अव्यक्त(प्रधान) का क्या गुण है ? 
उत्तर - त्रिगुणात्मक, अविवेकी, विषयी, सामान्य, अचेतन और प्रसवधर्मी ।
प्रश्न - पुरुष की विशेषताएँ या गुण क्या है ? 
उत्तर - गुण से रहित (त्रिगुणातीत), विवेकी, अविषयी, असामान्य, चेतन, अप्रसवधर्मी ।
त्रिगुणमविवेक विषयः सामान्यमचेतनं प्रसवधर्मि ।
 व्यक्तं    तथा    प्रधानं, तद्विपरीतस्तथा   च  पुमान्॥
                                                                    (कारिका-११)
प्रश्न - गुण कितने हैं ?
उत्तर - तीन - सत्त्व, रज, और तम ।
प्रश्न - सतोगुण का क्या स्वरूप है ? 
उत्तर - सुखात्मक। 
प्रश्न - रज का स्वरूप क्या है ? 
उत्तर - दुःखात्मक। 
प्रश्न - तमोगुण का क्या स्वरूप है ? 
उत्तर - मोहात्मक ।
प्रश्न - सत्त्वरजतमसां किं स्वरूपमस्ति ? 
उत्तर -प्रीत्यप्रीति विषादात्मकाः ।
प्रश्न - तीनों गुणों के क्या कार्य हैं ? 
उत्तर - प्रकाश, प्रवर्तन, नियमन - प्रकाश प्रवृत्तिनियमार्थाः
प्रश्न - तीनों गुणों के स्वभाव हैं ? 
उत्तर - एक दूसरे को दबाना, आश्रय बनना, उद्भव या आविर्भाव 'अन्योन्याभिभवाश्रयजननमिथुनवृत्तयश्च"। (कारिका-१२) 
प्रश्न - सत्त्व, रजस् तथा तमस् की क्रमशः वृत्तियाँ हैं ? 
उत्तर - शान्त, घोर और मोह ।
प्रश्न - सत्त्व गुण होता है ? 
उत्तर - "सत्त्वं लघु प्रकाशकम्" अर्थात् सतोगुण हल्का होता है अतः प्रकाशक होता है। 
प्रश्न - रजोगुण कैसा होता है ? 
उत्तर - "उपष्टम्भकं चलं च रजः" अर्थात् रजोगुण चञ्चल होने के कारण उत्तेजक होता है।
प्रश्न - तमोगुण का स्वभाव क्या है ? 
उत्तर -"गुरु वरणकमेव तमः" अर्थात् तमोगुण भारी होता है इसलिए अवरोधक होता है।
प्रश्न - तीनों गुण अर्थात् सत्त्व, रजस् तथा तमस् विरोधी स्वभाव वाले होते हुए भी किस प्रकार व्यवहार करते हैं ? 
उत्तर - दीपक के समान - प्रदीपवच्चार्थतो वृतिः। 
प्रश्न - सत्त्वगुण के प्रभावी होने पर व्यक्ति कैसा अनुभव करता है ? 
उत्तर - हल्का, सुखी एवं आनन्दित। 
प्रश्न - रजोगुण के प्रभावी होने पर व्यक्ति में किस प्रकार की अनुभूति होती है ? 
उत्तर - चंचलता एवं गतिशीलता की । 
प्रश्न - तमोगुण के प्रभावी होने पर व्यक्ति का व्यवहार कैसा होता है ? 
उत्तर - किसी भी काम को करने की इच्छा न होना, शरीर में आलस्य होना, सोने आदि में प्रवृत्त होना आदि।
प्रश्न - कौन से दो गुण निष्क्रिय होते हैं ? 
उत्तर - सत्त्वगुण एवं तमोगुण। 
प्रश्न - कौन सा गुण सत और तम को क्रियाशील बनाता है ? 
उत्तर - रजोगुण । 
प्रश्न - अविवेकित्व इत्यादि धर्मों की सत्ता किसके कारण सिद्ध होती है ? 
उत्तर - सत्त्व आदि तीनों गुणों के कारण ।
प्रश्न - मूलप्रकृति(अव्यक्त) की सत्ता कैसे सिद्ध होती है ?
उत्तर - कार्य का कारण गुणों के स्वभाव से युक्त होने के कारण ।
प्रश्न - अव्यक्त अर्थात् मूलप्रकृति की सत्ता सिद्ध करने वाले कितने हेतु हैं? 
उत्तर - पाँच(5) - (१) भेदानां परिमाणात् (कार्यों के सीमित परिमाण से )(२) समन्वयात्  भिन्नपदार्थों में स्थित अनुरूपता) (३) शक्तितः प्रवृत्तेः (शक्ति के अनुसार प्रवृत्ति) (४) कारणकार्यविभागात्,(कारण और कार्य का विभाग प्राप्त होने से ) (५) वैश्वरूपस्य अविभागात् (सभी रूपों के एक रूप हो जाने से) ।
प्रश्न - भेदानां शब्द का क्या आशय है ? 
उत्तर - महत् से लेकर भूमि पर्यन्त सभी कार्य ।
प्रश्न - अव्यक्त किस प्रकार तथा किसके समान प्रवृत्त होता रहता है ? 
उत्तर - अपने तीनों गुणों के स्वरूप तीनों के स्वरूप से तीनों के मिश्रित रूप से, एक-एक गुण के आश्रय से उत्पन्न भेद या वैशिष्ट्य के कारण, परिणाम से जल के समान प्रवृत्त होता रहता है- 'परिणामतः सलिलवत् प्रतिगुणाश्रयविशेषात्।' 
प्रश्न - सृष्टि का मूल कारण क्या है ? 
उत्तर - अव्यक्त -  जिसमें सत्त्व, रजस् तथा तमस् विद्यमान रहते हैं तथा इन्हीं गुणों के सहयोग से मूलप्रकृति निरन्तर क्रियाशील रहती है। 
प्रश्न - ज्ञ अर्थात् पुरुष की सत्ता सिद्ध करने वाले पाँच हेतु कौन कौन हैं ? 
उत्तर - १. संघातपरार्थत्वात् (संघातों का दूसरों के लिए होना)
२. त्रिगुणादिविपर्ययात् ( त्रिगुणादि से विपरीत स्वभाव वाला होने से )
३. अधिष्ठानात् ( त्रिगुण समूह का अधिष्ठाता होने से )
४. भोक्तृभावात् (भोग्य एवं भोक्ताभाव से ) 
५. कैवल्यार्थं प्रवृत्तेः (मोक्ष के लिए प्रवृत्ति देखे जाने से )
संघातपरार्थत्वात् त्रिगुणादिविपर्ययादधिष्ठानात् । 
स पुरुषोऽस्ति भोक्तृभावात् कैवल्यार्थं प्रवृत्तेश्च ॥१७॥ 

प्रश्न - सभी शरीरों का अधिष्ठाता कौन है ? 
उत्तर - पुरुष ।
प्रश्न - सांख्य का पुरुष क्यों सबसे भिन्न है ? 
उत्तर - त्रिगुणरहित होने से ।
प्रश्न - पुरुषबहुत्व का सिद्धान्त किसका सिद्धान्त है ? 
उत्तर -  सांख्य का। 
प्रश्न - पुरुषबहुत्व की सत्ता सिद्ध करने वाले तीन हेतु कौन हैं  ? 
उत्तर - (१) जननमरणकरणानां (२) अयुगपत्प्रवृत्तेः (३) त्रैगुण्यविपर्ययात् ।
प्रश्न - करण कितने हैं  ? 
उत्तर - १३ - मन, बुद्धि, अहंकार और दश इन्द्रियाँ ।
प्रश्न -  पुरुष की सत्ता कैसे सिद्ध होती है ? 
उत्तर - जन्म, मरण तथा इन्द्रियों की व्यवस्था होने से और एक साथ प्रवृत्ति का अभाव होने से तथा तीन गुणों के भेद के कारण पुरुष बहुत्व की सत्ता सिद्ध होती है। 
प्रश्न - पुरुष के कितने धर्म हैं  ? 
उत्तर - पाँच  - साक्षित्व, कैवल्य, माध्यस्थ्य, द्रष्टृत्व एवं अकर्तृत्व ।
प्रश्न - उपर्युक्त धर्मों की सिद्धि कैसे होती है ? 
उत्तर - चेतन, निर्गुण, विशेष, अविषय, विवेकी एवं अप्रसवधर्मी होने के कारण ।
प्रश्न - किसके संयोग से जड़ प्रकृति चेतन के समान प्रतीत होती है ? 
उत्तर - पुरुष के संयोग से ।
प्रश्न - पुरुष में कर्तापन की प्रतीति किस कारण होती  है  ? 
उत्तर - गुणरहित एवं अपरिणामी होने के कारण ।
प्रश्न - सांख्य की सृष्टि किसके समान है  ? 
उत्तर - पङ्ग्वन्धवत् अर्थात् लगड़े और अन्धे के समान ।
प्रश्न - पुरुष और प्रकृति के संयोग के मुख्य कितने प्रयोजन हैं  ? 
उत्तर - दो  - १. प्रकृति का दर्शन,  २. पुरुष को कैवल्य की प्राप्ति ।
प्रश्न - महत् की उत्पत्ति किससे होती है ? 
उत्तर - मूलप्रकृति से ।
प्रश्न - अहंकार की उत्पत्ति किससे होती है ? 
उत्तर -  महत् से ।
प्रश्न - अहंकार से किनकी उत्पन्न होती है ? 
उत्तर - सोलह पदार्थों का समूह अर्थात् पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ, पञ्च कर्मेन्द्रियाँ, पञ्च तन्मात्रा तथा मन । 
प्रश्न - पञ्चमहाभूतों की उत्पत्ति किससे होती है ? 
उत्तर - पाँच तन्मात्राओं से ।
प्रश्न - महत् को और किन-किन नामों से जाना जाता है ?
उत्तर -  बुद्धि, प्रत्यय, महान् एवं उपलब्धि आदि नामों से ।
प्रश्न - सत्त्वगुण प्रधान अहंकार से किसकी उत्पत्ति होती है ?
उत्तर - पञ्चज्ञानेन्द्रियों, पञ्चकर्मेन्द्रियों तथा मन की ।
प्रश्न - तमोगुण प्रधान अहंकार से किसकी उत्पत्ति होती है ?
उत्तर - पञ्च तन्मात्राओं की ।
प्रश्न - किसके बिना लिङ्गशरीर निराश्रय नहीं रह सकता ?
उत्तर - अविशेष अर्थात् पञ्चतन्मात्राओं के बिना ।
प्रश्न - सूक्ष्मशरीर के द्वारा स्थूलशरीर के माध्यम से जो भी कार्य सम्पन्न किए जाते हैं उन सबका मुख्य प्रयोजन क्या है ?
उत्तर - पुरुष के भोग एवं अपवर्ग को सम्पादित करना ।
प्रश्न - प्रकृति अर्थात् स्वभाव से ही सिद्ध सांसिद्धिक तथा 'वैकृतिक' धर्म, अधर्म इत्यादि भाव किसके आश्रित रहते हैं ?
उत्तर - 'करण' अर्थात् निमित्तरूप बुद्धि  (का0-43) कलल अर्थात् जरायु से परिवेष्टित रजोमिश्रितवीर्य इत्यादि भाव कार्य अर्थात् नैमित्तिक शरीर के आश्रित रहते हैं।
प्रश्न - बुद्धि का लक्षण क्या है ? 
उत्तर - अध्यवसाय बुद्धि धर्मः, -  अर्थात् निश्चय करने वाला तत्त्व ।
प्रश्न - बुद्धि के कितने गुण हैं ? 
उत्तर - आठ - धर्म, अधर्म, ज्ञान, अज्ञान, वैराग्य, राग, ऐश्वर्य, अनैश्वर्य ।
प्रश्न - बुद्धि के सात्विक गुण कितने हैं ?
उत्तर - चार - धर्म, ज्ञान, वैराग्य, ऐश्वर्य ।
प्रश्न - बुद्धि के तामसिक गुण हैं ?
उत्तर - अधर्म, अज्ञान, राग, अनैश्वर्य ।
प्रश्न - धर्म से प्राप्ति होती है ?
उत्तर - अभ्युदय एवं निःश्रेयस की प्राप्ति ।
प्रश्न - सांख्य की भाषा में ज्ञान क्या है ?
उत्तर - त्रिगुणात्मिका प्रकृति एवं निर्गुण तेजरूप पुरुष का विवेकपूर्वक साक्षात्कार ।
प्रश्न - वैराग्य क्या है ?
उत्तर - आसक्ति का अभाव ।
प्रश्न - ऐश्वर्य क्या है ?
उत्तर - अणिमा, लघिमा, गरिमा, महिमा, प्राप्ति, प्राक्रम्य ईशित्व और वशित्व आदि आठ प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति ।
प्रश्न - अहंकार किसे कहते हैं ?
उत्तर - अभिमानोऽहंकारः , अर्थात् मैं इस प्रकार का अभिमान ही अहंकार है।
प्रश्न - अहंकार से कितने प्रकार से कार्य होता है ?
उत्तर - २ प्रकार से - १. एकादश इन्द्रिय का समूह , २. पञ्चतन्मात्रा का समूह।
प्रश्न - एकादश इन्द्रियों का समूह किससे उत्पन्न होता है ?
उत्तर - वैकृत नामक सात्विक अहंकार से ।
प्रश्न - पञ्चतन्मात्राओं का समूह किससे उत्पन्न होता है ?
उत्तर - भूतादि नामक तामस अहंकार से ।
प्रश्न - इन्द्रियों के कितने भेद हैं ?
उत्तर - द(२) भेद - अन्तः या आभ्यन्तर इन्द्रिय और वाह्य इन्द्रिय ।
प्रश्न - ज्ञानेन्द्रिय क्या हैं ?
उत्तर - ज्ञान की साधक अथवा ज्ञान कराने वाली इन्द्रियाँ ।
प्रश्न - कर्मेन्द्रिय क्या हैं ?
उत्तर - कर्म की साधक अथवा कर्म करने वाली इन्द्रियाँ ।
प्रश्न - उभयेन्द्रिय कौन है ?
उत्तर - मन । क्योंकि यह ज्ञानेन्द्रिय और कर्मेन्द्रिय दोनों के साथ समान रूप से कार्य करता है ।
प्रश्न - 'कलल' किसे कहते हैं ?
उत्तर - रजस् और वीर्य के मिश्रण को कलल कहा जाता है।
प्रश्न - ऊर्ध्वलोक में गति होती है ?
उत्तर - धर्म से -  'धर्मेण गमनमूर्ध्वम्' ।
प्रश्न - अधोलोक में गति होती हैं ?
उत्तर - अधर्म से - 'गमनमधस्ताद् भवत्यधर्मेण' ।
प्रश्न -सांख्य के अनुसार मोक्ष होता है ?
उत्तर - ज्ञान से -  'ज्ञानेन चापवर्ग:' ।
प्रश्न - बन्धन की प्राप्ति होती है ?
उत्तर - अज्ञान से - 'विपर्ययादिष्यते बन्ध:' ।
प्रश्न - धर्म का अभिप्राय किससे है ?
उत्तर - धर्म का अभिप्राय यम, नियम आदि अष्टाङ्गयोग, अभ्युदय एवं निःश्रेयस् के साधक यज्ञ, दान, आदि अनुष्ठान सभी श्रेष्ठकर्मों से है।
प्रश्न - लोक कितने हैं ?
उत्तर - दो -ऊर्ध्वलोक, अधोलोक ।
प्रश्न - ऊर्ध्वलोकों की संख्या कितनी है ?
उत्तर - सात - भूः भुवः स्वः, महः जनः तपः और सत्यलोक ।
प्रश्न - अधोलोकों की संख्या है ?
उत्तर - सात - अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, महातल और पाताल।
प्रश्न - विवेकख्याति सम्भव है ?
उत्तर -  सांख्यशास्त्र द्वारा ।
प्रश्न - करण की कुल संख्या कितनी है ?
उत्तर - तेरह(त्रिदश) - पञ्चकर्मेन्द्रियाँ( वाक्, पाणि,पाद, पायु, उपस्थ),  पञ्चज्ञानेन्द्रियाँ (श्रोत्र, त्वक्, चक्षु, रसना, घ्राण) तथा मन, बुद्धि , अहंकार ।
प्रश्न - त्रयोदशकरण को कितने भागों में विभाजित किया जा सकता है ?
उत्तर -  दो भागों में -  १. आभ्यन्तरकरण - बुद्धि, अहंकार, मन 2. बाह्यकरण - पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ ।
प्रश्न - करण के प्रथम कितने भेद हैं ?
उत्तर - दो भेद - १. आभ्यन्तरकरण २. बाह्यकरण ।
प्रश्न - सांख्य के अनुसार अन्तःकरण कितने   हैं ?
उत्तर - अन्तःकरणं त्रिविधम् -  तीन प्रकार - बुद्धि, अहंकार, मन ।
प्रश्न - अन्तःकरण को प्रस्तुत करने वाले बाह्यकरण कितने हैं ?
उत्तर - दस । पञ्चज्ञानेन्द्रिय+पञ्चकर्मेन्द्रियाँ ।
प्रश्न - ज्ञानेन्द्रियाँ किस प्रकार अन्तःकरण को सूचनाएँ प्रदान करती हैं ?
उत्तर - ज्ञानेन्द्रियाँ बाहर स्थित अपने-अपने विषयों के सम्पर्क में आकर उन्हें प्रकाशित करके उनकी सूचना अन्तः करण को प्रदान करती हैं।
प्रश्न - वाह्यकरण को साम्प्रत्कालम् क्यों कहा गया है ?
उत्तर - बाह्यकरण केवल वर्तमानकाल के विषयों में प्रभावी होते हैं इसलिए इसे 'साम्प्रत्कालम्' कहा गया है।
प्रश्न - आभ्यन्तर अर्थात् अन्तःकरण किस काल में प्रभावी होते हैं ?
उत्तर - भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालों में ।
प्रश्न - 'स्वालक्षण्यं वृत्तिस्त्रयस्य' में त्रयस्य पद से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर - मन, बुद्धि, अहंकार से ।
प्रश्न - अन्तः करण में कितने प्रकार की शक्तियों को माना जाता है ?
उत्तर - दो प्रकार की शक्तियों को माना जाता है- १. ज्ञानशक्ति तथा २. क्रियाशक्ति ।
प्रश्न - बुद्धि, मन, अहंकार किसका प्रतिनिधित्व करते हैं ?
उत्तर - ज्ञानशक्ति का ।
प्रश्न - प्राणादि प्रतिनिधित्व करते हैं ?
उत्तर - क्रियाशक्ति का ।
प्रश्न - किस प्रकार करण के चार भेद हैं ?
उत्तर - तीन प्रकार के अन्तः करण तथा एक प्रकार का बाह्य करण ।
प्रश्न - प्रत्यक्ष दिखाई देने वाले पदार्थ के सम्बन्ध में चार प्रकार के करणों की प्रवृत्ति किस प्रकार कही गई है ?
उत्तर - कभी एक साथ और कभी क्रमशः ।
प्रश्न - परोक्ष पदार्थों के ज्ञान के सम्बन्ध में व्यापार प्रत्यक्षपूर्वक, एक साथ और क्रमपूर्वक होता है ?
उत्तर - केवल मन, बुद्धि, अहंकार ये तीन अन्तः करण का ।
प्रश्न - स्थूल और सूक्ष्म दो विषयों में प्रवृत्त होती हैं ?
उत्तर - दस बाह्यकरणों में पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ ।
प्रश्न - कर्मेन्द्रियों में वाक् इन्द्रिय किस विषय में प्रवृत्त होती हैं ?
उत्तर - शब्द में ।
प्रश्न - वाक् को छोड़कर शेष चारों ही शब्द स्पर्श इत्यादि कितने  विषयों में प्रवृत्त होती हैं ?
उत्तर - पाँचों विषयों में ।
प्रश्न - तीनों अन्तःकरण प्रधान क्यों हैं ?
उत्तर - क्योंकि मन एवं अहंकार के साथ बुद्धि सभी विषयों में व्याप्त होती है।
प्रश्न - बाह्य इन्द्रियाँ हैं ?
उत्तर - द्वार या साधनमात्र ।
प्रश्न - मन तथा अहंकार से युक्त बुद्धि क्या है ?
उत्तर - साधनवती या प्रधान ।
प्रश्न - पुरुष के सम्पूर्ण प्रयोजन को प्रकाशित करके बुद्धि को समर्पित कर देते हैं ?
उत्तर - करण ।
प्रश्न - सभी ज्ञानेन्द्रियों, मन और अहंकार का लक्ष्य होता है ?
उत्तर - बुद्धि ।
प्रश्न - समस्त विषयों के सम्बन्ध में होने वाले पुरुष के भोग को कौन सम्पादित करती है ?
उत्तर - बुद्धि ।
प्रश्न - प्रकृति एवं पुरुष के सूक्ष्म भेद को प्रकट करती है ?
उत्तर - बुद्धि। 'प्रधानपुरुषान्तरं सूक्ष्मम्'- बुद्धिः ।
प्रश्न - सांख्य के अनुसार मोक्ष अथवा कैवल्य क्या है ?
उत्तर - दुःख की हमेशा के लिए निवृत्ति । 
प्रश्न - सूक्ष्म विषय हैं ?
उत्तर - पञ्चतन्मात्रा अर्थात् शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध । 
प्रश्न - पञ्चतन्मात्राओं से किसकी उत्पत्ति होती है ?
उत्तर - पञ्चमहाभूत की ।
प्रश्न - विशेष अर्थात् स्थूल कहे जाते हैं ?
उत्तर - आकाश आदि पञ्चमहाभूत । ये सुखात्मक, दुःखात्मक और मोहात्मक होते हैं।
प्रश्न - अविशेष हैं ?
उत्तर - सूक्ष्म अर्थात् इन्द्रियों द्वारा जिनका प्रत्यक्ष नहीं किया जाता ।
प्रश्न - शान्त, घोर और मूढ होते हैं ?
उत्तर - पञ्चमहाभूत ।
प्रश्न - तीन प्रकार के स्थूल विषय हैं ?
उत्तर - सूक्ष्मशरीर, माता-पिता से उत्पन्न स्थूलशरीर और पञ्चमहाभूत ।
प्रश्न - नित्य होता है ?
उत्तर - सूक्ष्मशरीर ।
प्रश्न - अनित्य होता है ?
उत्तर - माता-पिता से उत्पन्न स्थूल शरीर ।
प्रश्न - किस शरीर की गति सर्वत्र हती है ?
उत्तर - सूक्ष्मशरीर की ।
प्रश्न - प्रलयकाल में सूक्ष्मशरीर समाहित हो जाता है ?
उत्तर - अपने कारण में ।
प्रश्न - सांख्य का सूक्ष्मशरीर कितने तत्त्व से निर्मित होता है ?
उत्तर - 18 तत्त्वों से - पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ, पाँच तन्मात्राएँ, महत्, अहंकार और मन ।
प्रश्न - सूक्ष्मशरीर का वैशिष्ट्य  है ?
उत्तर - महत् से लेकर सूक्ष्मतन्मात्रापर्यन्त 18 तत्त्वों से निर्मित,  सृष्टि के आरम्भ में उत्पन्न, सभी जगह गति करने में सक्षम, प्रलयकाल तक स्थायीरूप से रहने वाला, भोगरहित और भावों से युक्त रहने वाला । 
प्रश्न - संसरण या गमनागमन करता है ?
उत्तर - सूक्ष्मशरीर ।
प्रश्न - सूक्ष्मशरीर का आधार होता है ?
उत्तर - छः कोषों से निर्मित स्थूलशरीर ।
प्रश्न - 18 तत्त्वों से निर्मित सूक्ष्मशरीर किस रूप में स्थित रहता है ?
उत्तर - केवल तन्मात्रारूप में ।
प्रश्न - सूक्ष्मशरीर हता है ?
उत्तर - निरूपभोग अर्थात् भोगरहित ।
प्रश्न - पुरुष की सत्ता का द्योतक होने के कारण सूक्ष्मशरीर को क्या कहते हैं ?
उत्तर - लिङ्गशरीर । 
प्रश्न - लिङ्ग का लक्षण क्या है ?
उत्तर - 'लिंग्यते अनेन इति लिङ्गम्' अथवा 'लीनं गमयति इति लिङ्गम्' ।
प्रश्न - धर्म से होता है ?
उत्तर - ऊर्ध्वलोक की प्राप्ति ।
प्रश्न - अधर्म से होता है ?
उत्तर - अधोलोक की प्राप्ति ।
प्रश्न - ज्ञान से होता है ?
उत्तर - मोक्ष की प्राप्ति ।
प्रश्न - अज्ञान से किसकी प्राप्ति हती है ?
उत्तर - बन्धन की प्राप्ति ।
प्रश्न - वैराग्य से क्या होता है ?
उत्तर -  प्रकृतिलय -  'वैराग्यात् प्रकृतिलयः ।
प्रश्न - रजोमय राग से होता है ?
उत्तर - संसरण  - 'संसारो भवति राजसाद्रागात्' ।
प्रश्न - ऐश्वर्य से क्या होता है ?
उत्तर - इच्छा की सफलता -  'ऐश्वर्यादविघात' ।
प्रश्न - अनैश्वर्य से होता है ?
उत्तर -  इच्छा की सफलता का हनन -  'विपर्ययात् तद्विपर्यासः' ।
प्रश्न - सृष्टि के कितने भेद हैं ?
उत्तर - दो भेद - १. भौतिक एवं २. बौद्धिक ।
प्रश्न - बुद्धि के प्रमुख परिणाम कितने  हैं ?
उत्तर - चार -  विपर्यय, अशक्ति, तुष्टि और सिद्धि । इन्हें प्रत्ययसर्ग या बुद्धिसर्ग कहते हैं। 
प्रश्न - प्रत्ययसर्ग के कुल कितने भेद हैं ?
उत्तर - ५० (पचास) भेद ।
प्रश्न - विपर्यय के कितने भेद हैं ?
उत्तर - पाँच भेद- तम, मोह, महामोह, तामिस्र, अन्धतामिस्र ।
प्रश्न - अशक्तियों की संख्या कितनी है ?
उत्तर - 28 -  वाधिर्य, कुष्ठता, अन्धत्वी, जडता, अजिघ्रता, मूकता, कैवल्य, पंगुत्व, कौण्ड्य, उदावर्त, मन्दता, असुवर्णा, अनिला, मनोज्ञा, अदृष्टि, अपरा, सुपरा, असुनेत्रा, वसुनाडिका, अनुत्तमाम्भसिका, अप्रतार, असुतार, अतारतार, असदामुदित, अरम्यक्, अप्रमोद, अमुदित, और आमोदमान ।
प्रश्न - अशक्ति में बुद्धिगत दोषों की संख्या है ?
उत्तर - सत्रह(१७) ।
प्रश्न - अशक्ति में इन्द्रियों के वध की संख्या है ?
उत्तर - एकादश(११) ।
प्रश्न - तुष्टि के कितने प्रकार हैं ?
उत्तर -  नौ प्रकार -  १ प्रकृति, २. उपादान ३. काल, ४. भाग, ५. पार, ६. सुपार ७. पारापार, ८.अनुत्तमाम्भस् ९.उत्तमाम्भस् ।
प्रश्न - सिद्धि के कितने भेद हैं ?
उत्तर - आठ भेद -  दुःखत्रय विनाश, अध्ययन, ऊह, शब्द, सुहृत्प्राप्ति और दान ।
प्रश्न - अशक्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर - बुद्धि के उपघातों के साथ ग्यारह इन्द्रियों की विकलता अशक्ति कहलाती है।
प्रश्न - बुद्धि के कितने उपघात हैं ?
उत्तर - नौ तुष्टि और सिद्धियों के विपर्ययभाव से बुद्धि के सत्रह उपघात होते हैं।
प्रश्न - सिद्धि की बाधक हैं ?
उत्तर - विपर्यय, अशक्ति, तुष्टि अंकुश रूप में सिद्धि की बाधक होती हैं ।
प्रश्न - पुरुषार्थ क्या है ?
उत्तर - पुरुष का भोग अपवर्ग रूप प्रयोजन ही पुरुषार्थ है।
प्रश्न - किसके बिना तन्मात्र परिणाम सम्भव नहीं है ?
उत्तर - बौद्धिक परिणाम के बिना ।
प्रश्न - बौद्धिक परिणाम भी सम्भव नहीं है ?
उत्तर - तन्मात्र परिणाम के बिना ।
प्रश्न - देवसृष्टि के कितने प्रकार हैं ?
उत्तर -  आठ प्रकार - १. ब्राह्म, २. प्राजापत्य, ३. ऐन्द्र, ४. पैत्र, ५. गान्धर्व, ६. यक्ष ७. राक्षस, ८ पैशाच  ।
प्रश्न - तिर्यक् सृष्टि के कितने भेद होते हैं ?
उत्तर - पाँच  - १. पशु २. पक्षी, ३. मृग ४. सरीसृप, ५. स्थावर ।
प्रश्न - मनुष्य सृष्टि के कितने भेद हैं ?
उत्तर - एक भैद ।
प्रश्न - भौतिक सृष्टि के कुल कितने भेद हैं ?
उत्तर - चौदह भेद ।
प्रश्न - किस लोक में किस गुण की प्रधानता है ?
उत्तर - ब्रह्म से लेकर तृणपर्यन्त भौतिक सृष्टि में ऊपर के लोक में सत्त्वगुण की प्रधानता, अधोलोक अर्थात् नीचे के लोक में तमोगुण की प्रधानता मध्यलोक में रजोगुण की प्रधानता है।
प्रश्न - किस लोक  में किस प्रकार की सृष्टि है ?
उत्तर - ऊर्ध्वलोक में देवसृष्टि, मध्यलोक  में मानुषी सृष्टि, अधःलोक में तिर्यक् सृष्टि ।
प्रश्न - चेतन पुरुष जरा मरण से उत्पन्न दुःख कब तक भोगता है ?
उत्तर - शरीर के निवृत्त होने तक  - 'जरामरणकृतं दुःखं प्राप्नोति चेतनः पुरुषः' ।
प्रश्न - प्रकृति द्वारा प्रत्येक पुरुष के मोक्ष के लिये किया गया कार्य किसके लिए है ?
उत्तर - महत् आदि से लेकर आकाश आदि महाभूतों की यह सृष्टि अपने लिए की गई सी प्रतीत होते हुए भी पुरुष के लिए ही है- 'प्रतिपुरुषविमोक्षार्थं स्वार्थं इव परार्थ आरम्भ:' ।
प्रश्न - पुरुष के मोक्ष के लिए अचेतन प्रकृति किस प्रकार स्वतः प्रवृत्त होती है ?
उत्तर - गाय एवं बछड़े की तरह । जैसे बछड़े के पोषण के लिए अचेतन दूध माता के स्तनों में प्रवृत होता है उसी प्रकार पुरुष को मोक्ष दिलाने के लिए अचेतन मूलप्रकृति की प्रवृत्ति होती है -
'पुरुषविमोक्षनिमित्तं तथा प्रवृत्तिः प्रधानस्य' ॥

प्रश्न - प्रकृति भी पुरुष के लिए कैसे प्रवृत्त होती हैं ?
उत्तर - जैसे संसार में स्वेच्छा की पूर्ति के लिए लोग कार्यों में प्रवृत्त होते हैं ठीक उसी प्रकार 'पुरुषस्य विमोक्षार्थं प्रवर्तते तद्वदव्यक्तम्' ॥
प्रश्न - किसकी भाँति प्रकृति निवृत्त होती है ?
उत्तर - नृत्यांगना की भाँति । यथा - नाट्यशाला में स्थित दर्शकों को नृत्य दिखाकर नृत्य करने वाली नृत्य से निवृत्त हो जाती है  - रङ्गस्य दर्शयित्वा निवर्तते नर्तकी यथा पुरुषस्य । नृत्यात् तथाऽऽत्मानं प्रकाश्य विनिवर्तते प्रकृतिः ॥ 
प्रश्न - प्रकृति किस प्रकार निःस्वार्थ भाव से कार्य का सम्पादन करती है?
उत्तर - गुणवती एवं उपकारिणी प्रकृति निर्गुण होते हुए पुरुष के भोग एवं अपवर्ग रूप प्रयोजन को अनेक प्रकार के उपायों द्वारा निःस्वार्थ भाव से सम्पादित करती है।
प्रश्न - सुकुमारतर कौन है ?
उत्तर - प्रकृति - इससे अधिक सुकुमारतर या लज्जालु और कोई नहीं है जो पुरुष ने मुझे देख लिया', ऐसा ज्ञान हो जाने पर वह पुनः पुरुष की दृष्टि में नहीं आती -  प्रकृतेः सुकुमारतरं न किञ्चिदस्तीति मे मतिर्भवति । या दृष्टाऽस्मीति पुनर्न दर्शनमुपैति पुरुषस्य ॥ 

प्रश्न - किसका बन्धन और मोक्ष  नहीं होता है ?
उत्तर - पुरुष का - 'तस्मान्न बध्यतेऽद्धा न मुच्यते नापि संसरति कश्चित् । अनेक आश्रयों वाली प्रकृति ही संसरण करती है उसी का बन्धन एवं मोक्ष होता है - 'संसरति बध्यते मुच्यते च नानाश्रया प्रकृतिः' ॥
प्रश्न - प्रकृति स्वयं को  कितने रूपों से बांधती है ?
उत्तर - सात रूपों से - धर्म, अधर्म, अज्ञान, वैराग्य, राग, ऐश्वर्य तथा अनैश्वर्य । -रूपैः सप्तभिरेव तु बधनात्यात्मानमात्मना प्रकृति: ।
प्रश्न - पुरुषार्थ की सिद्धि के लिए प्रकृति स्वयं को कैसे मुक्त करती है ?
उत्तर -  एक रूप ज्ञान द्वारा - 'पुरुषार्थं प्रति विमोचयत्येकरूपेण' ।
प्रश्न - बन्धन किसका होता है ?
उत्तर - सूक्ष्मशरीर के रूप में प्रकृति का ।
प्रश्न - प्रकृति अपने किस भाव से  पुरुष के लिए स्वयं को निवृत्त करती है? 
उत्तर - ज्ञान नामक भाव से ।
प्रश्न - पच्चीस तत्त्वों के लगातार चिन्तनपूर्वक अभ्यास से कितने प्रकार की अनुभूति होती है ?
उत्तर - तीन प्रकार की -  न अस्मि, न मे, न अहम् । अर्थात् न मैं क्रियावान् हूँ, न भोक्तृत्व हूँ, न कर्ता हूँ । - तत्त्वाभ्यासान्नास्मि न मे नाहमित्यपरिशेषम् ।
प्रश्न - निष्क्रिय पुरुष किस प्रकार प्रकृति को देखता है ?
उत्तर - विवेकज्ञान रूप सामर्थ्य से धर्म अधर्म आदि सात रूपों से रहित, तथा अपने सम्बन्ध से भोग और विवेकज्ञान इत्यादि परिणाम न उत्पन्न करने वाली प्रकृति को निष्क्रिय पुरुष द्रष्टा के समान देखता है।
प्रश्न - भोग एवं विवेक ज्ञान सम्पन्न किसके द्वारा होते हैं ?
उत्तर - प्रकृति के द्वारा। 
प्रश्न - प्रकृति  ज्ञान के प्रति अपने भोग एवं अपवर्ग दोनों प्रकार के प्रसव कब बन्द कर देती है ?
उत्तर - तत्त्वों के निरन्तर अभ्यास से उत्पन्न विवेकज्ञान होने पर ।
प्रश्न - सृष्टि का प्रयोजन क्या है ? 
उत्तर -  पुरुष के भोगापवर्ग की सिद्धि ।
प्रश्न - सृष्टि का मुख्य एवं गौण प्रयोजन क्या है ?
उत्तर -  मुख्य प्रयोजन अपवर्ग तथा गौण प्रयोजन भोग ।
प्रश्न - अपवर्ग क्या है ?
उत्तर - पुरुष को विवेकज्ञान होना।
प्रश्न - आत्मज्ञान की प्राप्ति से क्या होता है ?
उत्तर - आत्मज्ञान की प्राप्ति से धर्म अधर्म आदि सृष्टि के कारण में न रहने पर पूर्वजन्म के संस्कारों के कारण कुम्हार के चाक के घूमने के समान शरीर धारण किये रहता है - तिष्ठति संस्कारवशाच्चक्रभ्रमिवद् धृतशरीरः ॥
प्रश्न - पुरुष ऐकान्तिक और आत्यन्तिक मुक्ति कब प्राप्त कर लेता है ?
उत्तर - शरीर पात होने पर, भोग एवं अपवर्ग दोनों पुरुषार्थों के पूर्व से सिद्ध रहने के कारण प्रकृति के निवृत्त हो जानेपर।
प्रश्न - कैवल्य क्या है ?
उत्तर - ऐकान्तिक और आत्यन्तिक दुःख की निवृत्ति ही कैवल्य है।




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