वल्लभाचार्य शुद्धाद्वैतवाद के मुख्य बिन्दु

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 बल्लभाचार्य (शुद्धाद्वैत)

vallabhacharya
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⇒ वल्लभाचार्य जी का जन्म -संवत् 1530 में एवं मृत्यु- संवत् 1588 । 

⇒इनके दो पुत्र हैं - गोपीनाथ, विट्ठलनाथ।

⇒ कर्म भूमि- ब्रज 

⇒ पुष्टिमार्ग के प्रणेता।

⇒ शुद्धाद्वैत के सन्दर्भ में इनके द्वारा रचित भागवत की "सुबोधिनी टीका" का अत्यधिक महत्व है।

⇒ दार्शनिक समस्याओं के समाधान में अनुमान को अनुपयुक्त मानकर शब्द-प्रमाण को वरीयता दी है।

⇒ ये 'अग्नि' के अवतार हैं, अतः "वैश्वानरावतार" कहा जाता है।

⇒ इनका जन्म दक्षिण भारत के कांकरवाडग्राम के तैलंग ब्राह्मण श्री लक्ष्मणभट्ट की पत्नी इलम्मागारू के गर्भ से काशी के समीप हुआ ।

⇒ श्री विल्वमंगलाचार्य (रुद्रसंप्रदाय) द्वारा "अष्टादशाक्षर गोपालमन्त्र" की दीक्षा दी गई।

⇒ त्रिदंड सन्यास की दीक्षा "स्वामी नारायणेन्द्र तीर्थ "से प्राप्त हुई।

⇒ इनका विवाह पं. श्री देवभट्ट जी की कन्या "महालक्ष्मी" से हुआ।

⇒ दो बहन तीन भाई -- रामकृष्ण, रामचन्द्र, विश्वनाथ 

⇒ प्रमुख ग्रन्थ - ब्रह्मसूत्र का  अणुभाष्य' और बृह‌द्भाष्य, भागवत तत्वदीप निबन्ध, पूर्वमीमांसा भाष्य, गायत्री भाष्य, पत्रावलंबन ।

⇒ तीन शक्ति -

1. संधिनीशक्ति - सत्  का आविर्भाव करती है।

2. संचित शक्ति - चित् का आविर्भाव करती है।

3. हलादिनी शक्ति - आनन्द का आविर्भाव करती है। 

⇒ ब्रह्म कर्त्ता भोक्ता दोनों है। 

⇒ ब्रह्म के तीन रूप -

1. आधिदैविक - परब्रह्म 

2. आध्यात्मिक - अक्षरब्रह्म

3. आधिभौतिक - जगद्ब्रह्म

⇒ वल्लभ ब्रह्म को जगत का समवायिकारण मानते हैं तथा अविकृत परिणामवाद को स्वीकारते हैं।

⇒ पुष्टिमार्गीय भक्ति में 4 भाव -

1. वात्सल्य

2. कान्तभाव (स्वकीया और परकीया)

3. ब्रह्मभाव 

4. सख्यभाव

⇒ गोपियों के 3 प्रकार

1. कुमारी

2. गोपांगना

3. ब्रजाङ्गना 

⇒ नित्यसेवा के आठ अङ्ग-

1. मंगला - इसके तीन अङ्ग - जगाना, कलेऊ, आरती ।

2. श्रृंगार

3. ग्वाल

4. राजभोज

5. उत्थापन

6. भोग

7. संख्या

8. आरती और गायन,

⇒ सेवा के दो प्रकार -

1. नित्य सेवा

2. वर्षोत्सव सेवा

⇒  वर्षोत्सव सेवा के प्रकार -  फूलडोल, होली, व्रतचर्या, रासलीला, गोबर्धन पूजा |

⇒ भक्तिपथ की तीन भूमियाँ- 

1. प्रवृत्ति (प्रेम) 

2. आसक्ति

3. व्यसन

⇒ भक्ति पथ के 3 सोपान 

1. गुरुसेवा 

2. सन्त सेवा

3. प्रभु सेवा

⇒ पुष्टि के चार प्रकार -

1. प्रवाह पुष्टि

2. मर्यादा पुष्टि 

3. पुष्टि भक्ति 

4. शुद्ध पुष्टि

⇒ सिद्धान्त पक्ष - शुद्धाद्वैत, 

⇒ आचारपक्ष- पुष्टिमार्ग (सेवामार्ग)

⇒ सेवा के 2 भेद 

1.नाम 

2.रूप । 

⇒ रूप सेवा के 3 भेद – 

1. तनुजा

2. वित्तजा

3. मानसी 

⇒ मानसी सेवा के दो भेद - 

1. मर्यादा मार्ग

2. पुष्टिमार्ग ।

⇒ शुद्धाद्वैत का दो प्रकार से विग्रह

1. शुद्धं चेदम् अद्वैतञ्च (कर्मधारय)

2. शुद्धयोः अद्वैतम् ( षष्ठी तत्पुरुष)

⇒ माया उपादान कारण है। 

⇒ माया के दो भेद- 

1. विद्या माया

2. अविद्या माया



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