विशिष्टाद्वैतवाद के मुख्य बिन्दु(The main points of distinctive dualism)
ramanujacharya |
⇒ रामानुजाचार्य (विशिष्टाद्वैत वाद)
⇒ जन्म - १०१७ ई०
⇒ जन्मभूमि - पेकम्बुदूर गाँव, मद्रास (अब चेन्नई)
⇒ मृत्यु - ११३७ ई.,श्रीरंगम्, तमिलनाडु में।
⇒ पिता - आसूरि केशव दीक्षित
⇒ गुरु - यादव प्रकाश, बाद में श्रीरंगम् यतिराज से दीक्षा |
⇒ कर्मभूमि - भारत
⇒सिद्धान्त - विशिष्टाद्वैतवाद
⇒ मुख्य ग्रन्थ - श्रीभाष्य, वेदान्त संग्रह, वेदान्त द्वीप, गीता भाष्य, वेदान्तसार ।
⇒ सम्प्रदाय - श्री सम्प्रदाय ।
⇒ इनके अनुसार देह वह द्रव्य है, जिसे एक चेतन आत्मा धारण करती है, नियंत्रित करती है, कार्य में प्रवृत्त करती है, और जो पूर्णतया उस आत्मा के अधीनस्थ रहती है।
⇒ विशिष्ट सम्बन्ध ब्रह- जीव-जगत् जिसे "अपृथक्सिद्ध" नाम दिया गया है।
⇒ "तत्त्वमसि" - "तत्" शब्द ब्रह्म का द्योतक, "त्वं" भी जीव का नहीं वह ब्रह्म का द्योतकहै।
⇒"समानाधिकरण्य" के आधार पर "तत्वमसि" की व्याख्या।
⇒ जीव जगत यद्यपि वास्तविक एवं भिन्न हैं तथापि जिस ब्रह्म में अन्तर्भूत है, वह एक ही है। ये लीलावाद के समर्थक है।
⇒ मायावाद खण्डन में 7 तर्क
1. आश्रयानुपपत्ति- माया से संसार की उत्पत्ति का आश्रय ब्रह्म जीव नहीं ।
2. तिरोधानानुपपत्ति- ब्रह्म अध्यारोप का विषय नहीं है।
3. स्वरूपानुपपत्ति - अविधा ब्रह्म से प्रथक हो तो जगत की व्याख्या असंभव ।
4. अनिर्वचनीयानुपपत्ति- माया भाव रूप होने से अनिर्वचनीय नहीं।
5. प्रमाणानुपपत्ति - प्रमाण नहीं मिलता | माया ब्रह्म की विशिष्ट शक्ति है।
6. निवर्तकानुपपत्ति- ज्ञान के सविशेष होने से अविद्या का निवर्तन नही हो सकता है।
7. निवर्त्यापपत्ति - भाव का स्वरूप होने से अविद्या का निवारण संभव नहीं। सृष्टि वास्तविक हैं।
⇒ समस्त भौतिक पदार्थ अचित् या प्रकृति का ही परिणाम है।
⇒ त्रिवृतकरण - प्रकृति के तीन रूप
1. तेज(सत्वगुणयुक्त)
2. जल(रजोगुणयुक्त)
3. पृथ्वी(तमोगुणरूप)
⇒ इनकी भक्ति भाव प्रधान न होकर चिंतन प्रधान है जिसे "ध्रुवानुस्मृति" नाम से पुकारते हैं।
⇒ भक्ति और ज्ञान की अभिन्नता है।
⇒ जीव व्रह्म में एकाकार नहीं एकरूप होता है। जीव अपना पृथक् अस्तित्व रखते हुए ब्रह्म की तरह अनन्त ज्ञान और अनन्त आनन्द से युक्त हो जाता है। वह ब्रह्म के पर्याय एवं अंश के रूप में रहता है।
⇒ ब्रह्म और जीव जगत में "अचिन्त्यभेदाभेद" है।