माध्ववेदान्त (द्वैतवाद) के मुख्य बिन्दु(The main points of Madhva Vedanta (Dualism)

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
0

 माध्ववेदान्त (द्वैतवाद) के मुख्य बिन्दु

The main points of Madhva Vedanta (Dualism).

madhwa_vedant
madwacharya





⇒ मध्वाचार्य जी का जन्म - दक्षिण भारत,तमिलनाडु के मंगलूर जिले में, उडुपी के निकट, तुलुप वेलीग्राम (बेललिग्राम) नामक स्थान 'विजयादशमी वि० सं० 1256 (1199 ई0)।

⇒ बाल्यावस्था का नाम - वासुदेव

⇒ 11 वर्ष की अवस्था में अद्वैत मत के सन्यासी सनककुलोद्भव आचार्य शुद्धानन्द अच्युतपक्षा से दीक्षा ली, तब इनका नाम "पूर्णप्रज्ञ" पड़ा ||

⇒ वेदान्त पारंगत होने पर इनका नाम "आनन्दतीर्थ " पड़ा। बाद में यही "मध्व" नाम से विख्यात हुये।

⇒ माता - श्रीमती वेदवती 

⇒ पिता -  श्री नारायण भट्ट। 

⇒ "वायु देवता" के अवतारी ।

⇒ द्वैतवाद के प्रवर्त्तनकर्त्ता । 

⇒ इनके अनुसार जगत सत्य है। जीव-ब्रह्म में वास्तविक भेद हैं।

⇒ ये तीन प्रमाण- प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम मानते हैं ।

⇒ ग्रन्थ- ब्रह्मसूत्रभाष्य, भागवतनिर्णय, विष्णुतत्त्वनिर्णय, प्रपंच मिथ्या तत्व निर्णय, तंत्रसार संग्रह, गीतातात्पर्य निर्णय आदि ३७ ग्रन्थ ।

⇒ जीव की दो उपाधि - 1.स्वरुपोपाधि 2. वाह्योपाधि

⇒ मोक्ष- चार प्रकार - 
1. कर्मक्षय 
2. उत्कान्ति
3. अर्चिरादि
4. भोग

⇒भोगमुक्ति के चार प्रकार
1. सालोक्य
2. सामीप्य 
3. सारूप्य
4. सायुज्य

 ⇒ मुक्ति हेतु प्रपंच ज्ञान

1. ब्रह्म जीव पार्थक्य
2. बाल जगत् पार्थक्य 
3. जीवेषु भिन्नता
4. जीव जगत् पार्थक्य 
5. जड़ जगत के कार्य रूप पृथक्क होने पर एक अंश अन्य अंश से पृथक हो जाता है
6. भक्ति, मुक्ति का साधन है।

⇒ सेवा के तीन प्रकार

1. आयुधों की छाप (भगवान के) शरीर पर लगाना |
2. पुत्रादि का नाम भगवान के नाम पर रखना 
3. भजन करना ।

 ⇒ भजन  के १० प्रकार

- वाचिक (4) - 1. सत्य बोलना, 2. हितभाषी 3.प्रिय भाषी, 4. स्वाध्याय 
- शारीरिक (3) - 1. सत्पात्र को दान 2. विपन्न व्यक्ति का उद्धार  3. शरणागत रक्षा
- मानसिक( 3) - 1. दया (दरिद्र के दुख दूर करना) 2. स्पृहा (भगवान का दास बनने की इच्छा) 3. श्रद्धा ( गुरु और शास्त्रों में विश्वास) 
इस प्रकार माध्वाचार्य जी ने चार वाचिक, तीन शारीरिक और तीन मानसिक भक्ति को मिलाकर भक्ति के 10 भेद माने हैं।

⇒ प्रमाण शब्द का प्रयोग दो अर्थों में -

1. यथार्थ ज्ञान (प्रमाण)

2. यथार्थ ज्ञान का साधन। (अनुप्रमाण)


⇒ प्रत्यक्ष प्रमाण के 7 भेद

पाँच इन्द्रिय आधारित, तथा दो मन और आत्मा पर आधारित

⇒ प्रत्यक्ष किसे कहते हैं ?

"निर्दोषार्थीन्द्रिय सन्निकर्ष: प्रत्यक्षम् (निर्दोष - निश्चित अर्थ का बोध कराने वाला) 

 ⇒ अनुमान के दो भेद 
 
1. स्वार्थानुमान 

2. परार्थानुमान

⇒ आगम के दो भेद  

1. पौरुषेय
2. अपौरुषेय 

⇒ निर्विकल्पक ज्ञान नहीं स्वीकारते, सविकल्पक ज्ञान को ही माना है।

⇒ तत्व के दो प्रकार

1. स्वतंत्र
2. अस्वतंत्र 

⇒ पदार्थ के 10 प्रकार 
1.  शक्ति
2.  सादृश्य
3.  अभाव
4.  द्रव्य
5.  गुण
6. कर्म
7.  सामान्य
8.  विशेष
9.  विशिष्ट
10.अंशी

⇒ द्रव्य के 20 भेद  

परमात्मा, लक्ष्मी, जीव, अव्याकृत, आकाश, प्रकृति, महतत्त्व, अहंकारतत्त्व, बुद्धि, मन, इन्द्रिय, तन्मात्राएँ

महाभूत, ब्रह्माण्ड, अविद्या, वर्ण, अंधकार, वासना, काल और प्रतिविम्ब ।

⇒ उपादान कारणता युक्त  द्रव्य होता है ।

⇒ कर्म 3 प्रकार 
1. विहित
2. निषिद्ध
3. उदासीन 

⇒ सामान्य के 2 प्रकार 

1. जाति
2. उपाधि

⇒ भेद का अभाव होने पर भी भेद व्यवहार के निर्वाहक पदार्थ को विशेष कहा गया है। 

⇒ शक्ति के 4 प्रकार

1. अचिन्त्य शक्ति (अघटितघटनापटीयसी)
2. आधेय शक्ति
3. सहजशक्ति 
4. पदशक्ति

⇒ ईश्वर, जगत और जीवों  की परमार्थिक सत्ता को स्वीकारते हैं।

⇒ उक्त तीनों का अन्तर्भाव नहीं होता। 

⇒ 'तत्त्वमसि' वाक्य से जीव की तात्त्विक स्वतंत्रता व्यक्त होती हैं।

⇒ प्रकृति जगत का उपादान कारण हैं या प्रकृति का विकार या परिणाम है।

⇒ उपादान कारण में दो प्रकार के परिणाम

1. धर्मी परिणाम
2. धर्मपरिणाम  

⇒ उपादान कारण और कार्य में भेद और अभेद दोनों होता है।

⇒ तन्तुरूप उपादान कारण और पट रूप कार्य में भेद अभेद दोनों है।

⇒ सत्कार्यवाद तथा परिणामवाद के पक्षधर हैं ।

⇒ जगत का उपादान कारण प्रकृति है, वह पारमार्थिक तत्त्व है उसका विकार मिथ्या या असत् कैसे हो सकता है अर्थात् नहीं हो सकता है।

⇒ ब्रह्मैक्षण द्वारा प्रकृति से जगत की सृष्टि बतायी गयी है।

⇒ मध्व का भक्ति परक मत "अमला भक्ति" के नाम से प्रसिद्ध हैं। कहीं-2 "ब्रह्मसम्प्रदाय" के नाम से भी जाना जाता है।

⇒ ईश्वरीय उपासना के अधिकारी भेद से 2 प्रकार

1. सतत शास्त्राभ्यास रूपा
2. ध्यान रूपा  

⇒ ब्रह्मविद्या के अधिकारी
(जातिगत भेद) -
1. मंद  - मनुष्यों में जो उत्तम गुण सम्पन्न है।
2. मध्यम - ऋषि गन्धर्वादि
3. उत्तम -  देवतादि 
(गुणगत भेद)-
1. अधम - भगवान में भक्ति अध्ययनशील
2. मध्यम - साम संयुक्त
3. उत्तम - वैरागी विष्णु एकमात्र जिनके आश्रय हो

⇒ त्याग, भक्ति, ईश्वर की प्रत्यक्ष अनुभूति, मुक्ति का एकमात्र साधन है। 

⇒ ध्यान बिना ईश्वर साक्षात्कार नहीं होता है।


इसे भी पढ़ें->>>>

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

thanks for a lovly feedback

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top