शैव दर्शन के मुख्य बिन्दु
(Main points of Shaivism)
shiv philosophy |
शैव दर्शन के षट् प्रमाण -
(1) पति
(2) विद्या
(3) अविद्या
(4) पशु
(5) पाश
(6) कारण
पदार्थ के तीन भेद -
1. पति
2. पशु
3. पाश
प्रमाण - तीन(3)
1. प्रत्यक्ष
2. अनुमान
3. आगम
ईश्वर के पाँच कार्य-
1. सृष्टि
2. स्थिति
3. संहार
4. तिरोभाव
5. अनुग्रह
पशु की परिभाषा (शैव दर्शन के अनुसार)
अनणुक्षेत्रज्ञादिपदवेदनीयो जीवात्मा पशुः (अनणु, क्षेत्रज्ञ आदि पद से जाना जाने वाला जीवात्मा ही पशु है)
पशु के प्रकार-
पशुस्त्रिविधः(3 भेद)-
(1) विज्ञानाकल - मलयुक्त
(2) प्रलयाकल - मलकर्ममुक्त
(3) सकल- मलकर्मयुक्त
विज्ञानाकल के दो भेद -
(1) समाप्त कलुष (विद्येश्वराष्टपद तथा 7 करोड़ मन्त्र)
(2) असमाप्त कलुष
विद्येश्वराष्ट(आठ विद्येश्वरों के नाम)-
1. अनन्त
2. सूक्ष्म
3. शिवोत्तम
4. एकनेत्र
5. एकरुद्र
6. त्रिमूर्तिक
7. श्रीखण्डी
8. शिखण्डी
प्रलयाकल के 2 भेद-
(1) पक्वपाशद्वय( इसी से मोक्ष होता है)
(2) तद्विलक्षण
सकल के 2 भेद -
(1) पक्व कलुष
(2) अपक्व कलुष ।
शैव दर्शन के अनुसार मल की परिभाषा
दृक्क्रिययोच्छादको मल: (दृक्और दृक्शक्ति का आच्छादन)
पुर्यष्टक( आठ पुरी) -
बुद्धि, कर्म, अन्तःकरण, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ ।
अपर पुर्यष्टक-
1. भूत
2. तन्मात्र
3. बुद्धिन्द्रिय
4. कर्मेन्द्रिय
5. अन्तःकरण
6. करण
7. प्रधान
8. कलादिपञ्चक ।
पाश के चार भेद -
1. मन
2. कर्म
3. माया
4. रोधशक्ति । (मृगेन्द्र के अनुसार - मल, ईश, बल, कर्म)
पुरी की परिभाषा-
पुर्यष्टकं नाम प्रतिपुरुषनियतः सर्गादारभ्य कल्पान्तं मोक्षान्तं वा स्थितः पृथिव्यादिकलापर्यन्तत्रिंशत्तत्त्वात्मकः शिवात्मक: सूक्ष्मो देहः।
>> मलमात्र ही मुक्त है, वह सकल' है।
>> जिनका मल और कर्मपरिपाक नहीं होता वे प्रलयकाल में पुर्यष्टक देहयुक्त होकर कर्मवशात् निखिल योनि में संक्रमण करते हैं।
>> कलुष परिपाक को मण्डलादि 118 मन्त्रेश्वरपद प्रदान करते हैं।
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