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kashi vishwanath temple |
वर्तमान समय में जहां औरंगजेब के द्वारा ढांचा खड़ा किया गया है , उस स्थान पर जो प्राचीन काशी विश्वनाथ का मंदिर था, जिसका निर्माण श्रीनारायण भट्ट ने करवाया था , उस मंदिर के प्राचीन स्वरूप के विषय में पुराणों में जो भौगोलिक उल्लेख मिलता है , उसे यहां किञ्चित् निरूपण किया जा रहा है --
१. काशी खंड के अनुसार विश्वेश्वर के दक्षिण में ज्ञानवापी है,अर्थात् ज्ञानवापी के उत्तर दिशा में भगवान विश्वेश्वर विराजमान हैं, जो कि वर्तमान मस्जिद का स्थान है -
देवस्य दक्षिणे भागे तत्र वापी शुभोदका।
- काशीखंड- ९७.१२०
२. शिव रहस्य के अनुसार इस मंदिर के चार दिशाओं में चार मंडप थे। पूर्व में ज्ञान मंडप , उत्तर में ऐश्वर्य मंडप, दक्षिण में मुक्ति मंडप और पश्चिम में श्रृंगार मंडप के पास श्रृंगार गौरी थी, जो वर्तमान में भी ढांचे के पश्चिम द्वार पर दिखाई दे रही है । यही निरूपण काशी खंड में भी किया गया है।
३. शिव रहस्य, सप्तम अंश, अध्याय ७ के अनुसार यह मंदिर समस्त रत्नों से युक्त तथा लिंग के आकार का था। इस मंदिर का मूल तथा शिखर जल्दी दिखाई नहीं दे पाता था, क्योंकि इसका शिखर बहुत ऊंचा था । इसमें दिव्य रत्न रखे हुए थे, जो रात्रि में प्रकाश करते थे। वहां यह कहा गया है की हजारों रत्नों के शिखर मंदिर में दिखाई देते थे । यह शिखर लिंग के आकार के हुआ करते थे।
प्रसादोऽपि सुरत्नाढ्यो लिङ्गाकारो विराजते।
तन्मूलमग्रभागो वा न केनापि च दृश्यते ।।
प्रासाददिव्यरत्नानि रात्रौ दीप इवाम्बिके।
तिष्ठन्त्यत्यन्तरम्याणि नेत्रोत्सवकराणि च।।
सहस्रं रत्नशृंगाणां राजते तत्र सर्वदा।
लिंगाकाराणि शृंगाणि शुद्धान्यप्रतिमानि च
(शिवरहस्य , सप्तम अंश, सप्तम अध्याय- ५,७,९)
४. इस मंदिर का दर्शन करना भी ब्रह्महत्या से मुक्ति देता है। मंदिर के शिखर का दर्शन करने वालों के घर में संपत्ति के कलश भरे रहते हैं, यह बात काशी खंड में कही गई है। काशी खंड के अनुसार इसी मंदिर का दूसरा नाम मोक्षलक्ष्मीविलास भी है ।
मोक्षलक्ष्मीविलासाख्यप्रासादस्य विलोकनात्।
शरीराद् दूरतो याति ब्रह्महत्यापि नान्यथा।।
मोक्षलक्ष्मीविलासस्य कलशो यैर्निरूपितः।
निधानकलशास्तांस्तु न मुञ्चन्ति पदे पदे।।
(काशी खण्ड 79, 47-48)
५. काशी खण्ड 100.69 के अनुसार नवगौरी यात्रा में श्रृंगार गौरी चौथी हैं।
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