वास्तुशास्त्र के अनुसार उद्योग या कारखाने की स्थापना

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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karkhane ka vaastu
vastu ke anushar karkhana

 औद्योगिक इकाइयों में मुख्यतः दो प्रकार की इकाइयाँ होती है। पहली इकाई वह होती है जो नगरीय व उपनगरीय क्षेत्रों में पनपती है तथा दूसरी वह होती है जो निर्धारित औद्योगिक स्थान में स्थापित होती है।

नगरीय उद्योग-

 नगरीय उद्योग में वे उद्योग सम्मिलित है। जो नगरों में छोटे भू-खण्डों पर या भवनों में छोटे-मोटे कल करखानों के रूप में कार्य कर रहे होते है जैसे प्लास्टिक के सामान, दवा आदि के रैपर, डिब्बा, बर्तन इत्यादि।

औद्योगिक इकाई- 

औद्योगिक विकास के साथ-साथ हर नगरों के बाहर औद्योगिक क्षेत्र (इण्डस्ट्रियल एरिया) बना दिया गया है। वास्तु शास्त्र के मुख्य सिद्धान्त सभी स्थलों पर समान रूप से लागू होता है। अतः औद्योगिक क्षेत्र में जिस भू खण्ड का चुनाव किया जाए वह भू-खण्ड वास्तु शास्त्र के अनुरूप होना चाहिए।

 कारखाने की भूमि -

 कारखाने की भूमि को समचतुर्भुजाकार अथवा आयताकार रखना चाहिए। आग्नेय कोण और नैऋत्य कोण 90 अंश का होना चाहिए।

मुख्य मशीनों की स्थापना-

 दक्षिण पश्चिम दिशा स्थित स्थल में फैक्ट्री की मुख्य एवं महत्वपूर्ण मशीनों की स्थापना की जानी चाहिए अर्थात दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य कोण) में भारी मशीनों को रखा जाना चाहिए । ऐसा करने से मशीनों की आयु बढ़ेगी एवं उत्पादन में वृद्धि के साथ सम्पूर्ण उद्योग परिवार की समृद्धि होगी।

विद्युत बायलर (भट्ठी) आदि का स्थान- 

ये सारे स्रोत एवं संसाधन अग्नि से सम्बन्धित है और अग्नि उत्पन्न करते हैं । अतः इनकी स्थापना अग्नि कोण में किया जाना वास्तु सम्मत होगा। अग्नि सम्बन्धित सामान यदि आग्नेय कोण में रहता है तो दुर्घटना की सम्भावना कम रहती है ।

पूजा गृह एवं स्वागत कक्ष- 

ईशान की ओर पूजा एवं स्वागत कक्ष रखना चाहिए। यह कोण देवताओं का स्थल होता है तथा इस स्थान की पवित्रता का बहुत ध्यान चाहिए।

प्रशासनिक कार्यालय- 

  प्रशासनिक कार्यालय भी संगठन का मस्तिष्क होता है अतः इस के चुनाव में असावधानी नहीं करनी चाहिए । प्रशासनिक कार्यालय के लिए पूर्व का क्षेत्र, पश्चिम का मध्य क्षेत्र, एवं उत्तर तथा दक्षिण का मध्य भाग उपयुक्त समझा गया है। इसमें पूर्व एवं पश्चिम क्षेत्र सर्वोत्तम है । ईशान औद्योगिक क्षेत्र का हृदय स्थल है । प्रशासनिक कार्य हेतु उपयुक्त नहीं होता है, यदि इन क्षेत्रों में प्रशासनिक कार्यालय बनाया गया तो सदैव गलत निर्णय का शिकार होना पड़ेगा एवं तनाव बना रहेगा। प्रबंधन से असंतुष्ट कर्मचारीगण हड़ताल करके प्रबंधन को परेशानी में डाल सकते हैं ।

कच्चे माल हेतु भण्डार गृह -

 मध्य-उत्तर, मध्य-पश्चिम का भाग कच्चे-माल भंडारण हेतु स्थल निर्माण किया चाहिए। ईशान एवं मध्य क्षेत्र में कच्चा माल रखना उचित होता है।

उत्पाद या तैयार माल गोदाम- 

तैयार माल या उत्पाद को रखने के लिए सदैव वायव्य कोण में स्थल चयन करना चाहिए। इस कोण में उत्पाद रखने से उत्पाद में चमक लम्बी अवधि तक बनी रहती है और माल भी जल्दी बिक जाता है । ईशान, नैऋत्य एवं औद्योगिक स्थल के मध्य में निर्मित उत्पाद नहीं रखना चाहिए।

चौकीदार एवं कर्मचारी आवास-

 चौकीदारों के निवास हेतु आग्नेय कोण सर्वोत्तम माना गया है। यहाँ चौकीदार को रात्रि में नींद नहीं आयेगी। फैक्ट्री में काम करने वाले कर्मचारियों को आवास निर्माण के लिए वायव्य दिशा का चुनाव चाहिए। ईशान, नैऋत्य अथवा मध्य क्षेत्र में कर्मचारियों एवं चौकीदारों के रहने का निवास बनाया जाना चाहिए, इससे उद्योग को पहुंचने सम्भावना बलवती होती यद्यपि औद्योगिक इकाई में वास्तु नियमों उसी प्रकार पालन होता है जिस आवासीय वास्तु परिस्थिति जन्य निर्णय लेना आवश्यक होता है । जैसे- यदि औद्योगिक इकाई में आग की भट्ठी से सम्बन्धित कार्य है और चारों ओर भट्ठियाँ ही हैं तो वहां पर ईशान व उत्तर एवं नैऋत्य को इससे मुक्त नहीं किया जा सकता, तब वहाँ भट्ठियों की स्थापना उनकी विशालता (भारीपन) के अनुरूप किया जा सकता है । जैसे - भट्ठी को दक्षिण की तरफ, कम भारी को पश्चिम की तरफ व छोटी भट्ठियों की स्थापना पूर्व, उत्तर व ईशान में किया जा सकता है ।

आवश्यक सावधानियाँ-

1. औद्योगिक इकाई के मुख्य द्वार गार्ड दिशा अनुसार मुख्य बाई दाई ओर रहना चाहिए। उदाहरण लिए मुख्य द्वार उत्तर में हो चौकीदार पश्चिम में होना चाहिए। मुख्य यदि पूर्व में होतो द्वार के दक्षिण तरफ मुख्य द्वार पश्चिम में होतो के उत्तर तरफ और मुख्य द्वार दक्षिण की ओर हो तो द्वार के पूर्व की ओर स्थापित किया जाना चाहिए।

2. प्रशासकीय कार्यालय हेतु सर्वोच्च अधिकारी के बैठने की  व्यवस्था हर हाल में दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य) होना चाहिए, दक्षिण पूर्व क्षेत्र में भी कर सकते हैं । अन्य अधिकारी गण को उत्तर या पूर्व में बैठना चाहिए, संगणक एवं सर्वेयर को आग्नेय में बैठाना उचित होता है। विक्रय अधिकारी, चौकीदारी या अस्थाई कर्मचारी आदि के बैठने स्थान कार्यालय उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में रखना चाहिए।

3. पानी का भंडार या जल संसाधन हेतु उत्तर-पूर्व क्षेत्र श्रेष्ठ माना गया है।

4. कच्चे माल के लिए नैऋत्य स्थान सर्वश्रेष्ठ है।

5. फैक्ट्री की प्रयोगशाला, व्यवस्थापन यूनिट, अनुसन्धान विभाग सभी पश्चिम की दिशा में होने चाहिए।

6. प्लांट के अन्दर ओवर हेड टंकी पश्चिम दिशा मे वायव्य कोण में होना आवश्यक है।

7. नदी-नाले या तालाब व जलाशय फैक्ट्री के दक्षिण हिस्से में अथवा पश्चिम हिस्से में होने से आमदनी कम होती है। परिस्थितिओं में कुछ भी परिवर्तन नहीं आता ।

8- कोई भी मशीन छत के बीम के नीचे नहीं रखनी चाहिए क्योंकि मशीन-मैन के दिमाग पर कोई मनोवैज्ञानिक दबाव या वजन नही होना चाहिए।

9. मशीनों पर कार्य करते समय कारीगर को अपना मुख पूर्व या उत्तर में रखना चाहिए । प्रमाद दूर होने के साथ-साथ यह आरोग्यदायक भी है।

10. पश्चिम की ओर कार्य करने वाले उद्योगों में प्रायः हड़ताल हो जाया करता है। यह दिवालिये पन की निशानी है।

11.धातु,औजारों और मशीनरी के स्वामी शनि है। धातु और कालचक्र को प्रभावित करते हैं। अतः घड़ी पश्चिम की दीवार पर लगायें।

12. उत्तर एवं पूर्व की ओर वाहन रखने की व्यवस्था रखनी चाहिए।

13. औद्योगिक संस्थान में न्यायालयीय विवाद अवश्य होगा तथा विवाद से सम्बंधित दस्तावेज महत्वपूर्ण होते है इसको लेकर प्रबन्धन सदैव चिन्तित रहता है। इसलिए, ध्यान रहे कोर्ट-केस की फाइल कभी भी • अग्निकोण में न रखे इससे विवाद बढ़ता ही चला जायेगा। यदि • विवादस्पद कागजात दक्षिण दिशा में रखे गये तो मुकदमा हार जायेगें और शत्रु मृत्युलोक तक पहुचाँ देगा । मुकदमे की फाइलें कभी भी कैश बाक्स में न रखें अन्यथा ये धन को खीच लेंगे, ऐसी स्थिति में रूपया का व्यय कोर्ट-केस को लेकर अधिक होगा, फाइलें पूर्व दिशा अथवा त ईशान में ही रखें।

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