जन्मकुंडली द्वारा वास्तु योग विचार
जन्मकुंडली द्वारा वास्तु योग विचार |
मित्रों ! वास्तु शास्त्र के विभिन्न विषयों पर चर्चा जारी है । आज हम जन्मकुंडली द्वारा वास्तु योगों पर चर्चा करेंगे । जिस प्रकार विश्व की जनसंख्या बढ़ रही है, उसे देखते हुए सभी लोग मकान के स्वामी नहीं बन सकते। विश्व की लगभग आधी जनसंख्या किराये के मकान में रह रही है। शेष जनसंख्या के अस्थायी झुग्गी-झोपड़ियों एवं कच्ची बस्तियों में अपने दिन गुजार रही है। यदि मनुष्य ने सुरक्षित, दीर्घजीवी एवं क्षमता अनुसार मकान बना लिया तो समाज में उसका पुरषार्थ, पराक्रम एवं अस्तित्व स्वतः ही उजागर हो जाता है। मनुष्य के पुरुषार्थ, परामक्रम, अस्तित्व, सौभाग्य, पूंजी एवं कर्म की सार्थकता की पहचान उसके द्वारा बनाये गये भवन से होती है। मनुष्य अपने भाग्य को तो नहीं बदल सकता, परन्तु वास्तु विज्ञान के कारण वास्तु दोषी मकान बनाने से बच सकता है। मकान (आवास) को बनाने के पहले यह अवश्य पता लगा लेना चाहिये कि ज्योतिषीय गणना के अनुसार मकान का योग है कि नहीं? ज्योतिष ग्रन्थों में मकान कुंडली का चतुर्थ भाव होता है। चतुर्थ भाव के स्वामी के प्रभाव से पता चलता है कि व्यक्ति का घर कहां होगा, जन्म से होगा या भाग्य से होगा या एक घर छोड़कर दूसरे घर को खरीद का योग अथवा स्वयं भूमि को खरीद कर उसमें मकान बनाकर रहने का सुख होगा। इन सभी बातों की जानकारी ज्योतिष में निम्न सिद्धान्तों द्वारा मिलती है
गृह संबंधी शुभ योग-
१. ज्योतिष के प्रथम सिद्धान्तानुसार भूमि का कारक मंगल है। जन्म कुण्डली में चतुर्थ भाव भूमि, जायदाद एवं मकान से संबंध रखता है, अतः श्रेष्ठ भवन प्राप्ति के लिए चतुर्थ भाव, चतुर्थेश एवं चतुर्थ भाव में शुभ ग्रहों का होना तथा मंगल की अच्छी स्थिति अनिवार्य है।
२. चतुर्थ भाव का स्वामी किसी भी केन्द्र या त्रिकोण, लग्न, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम या दशम-भाव में बैठा हो तो ऐसा व्यक्ति अनेक भवनों का स्वामी होता है।
३. चतुर्थेश अपनी मूल त्रिकोण, राशि स्वगृही, उच्चाभिलाषी, मित्र क्षेत्रीय शुभग्रहों से युक्त या देखा जाता हो तो ऐसे व्यक्ति को जमीन-जायदाद मकान आदि का सुख मिलता है।
४. जन्म कुण्डली में मंगल बलवान हो, अपनी उच्च राशि का होकर लग्न, पंचम नवम (त्रिकोण) भावों में हो और चतुर्थ भाव में पापी ग्रह हो तो व्यक्ति के पास विपुल भू-संपदा होती है।
५. दशमेश, एकादशेश एवं द्वितीयेश ग्रहों का संयोग हो तो व्यक्ति उच्च स्तर का भू-स्वामी तथा जमीन जायदाद के धंधे में लाभ उठाने वाला होता है।
६. जातक की जन्म कुण्डली में भाग्येश शनि उच्चाभिलाषी होकर पंचम भाव में बैठा हो, चतुर्थेश (सूर्य) उच्च शुक्र एवं धनेश बुध के साथ लाभ भाव में स्थित होकर भाग्येश को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो ऐसे व्यक्ति के पास अनेक मकान, वाहन एवं विपुल संपदा होती है।
७. कुंडली में चतुर्थेश उच्च राशि बुध होकर सप्तम भाव में दशमेश (गुरु) लग्नेश से युक्त हो, पराक्रमेश स्वगृही हो तथा भाग्येश मंगल लाभेश (शनि) से युक्त होकर प्रथम भाव में स्थित होकर अष्टमेश बलवान पराक्रमेश को पूर्व दृष्टि से देखता हो, तथा मंगल स्वगृहाभिलाषी होने के कारण चेष्टावाली है तो ऐसे जातक के पास अनेक मकान और विपुल संपदा होती है।
८. चतुर्थेश (मंगल) सप्तम भाव में हो लाभेश एकादश भाव के स्वामी एवं धनेश से दृष्ट होकर पंचमेश चतुर्थ-भाव में बलवान होकर बैठा हो, भाग्येश सप्तम भाव में तथा सप्तमेश बलवान होकर पराक्रम भाव में बैठकर पंचम भाव एवं नवम भाव को देखता हो, दशमेश लाभ (एकादश भाव) में लग्नेश से युक्त होकर बैठा हो तो ऐसा जातक विपुल संपदा का स्वामी होकर अनेक भवनों से युक्त होता है।
९. चतुर्थेश एवं लाभेश (मंगल) उच्चराशि के लग्न में हो तथा लग्नेश शनि ग्यारहवें भाव में परस्पर राशि परिवर्तन योग करके बैठे हों, चतुर्थेश की चतुर्थ भाव एवं सप्तमेश (चंद्र) पर पूर्व दृष्टि हो, पंचमेश शुक्र द्वितीय भाव में शुभ ग्रह गुरु के साथ युक्त हों, भाग्येश भाग्य को पूर्व दृष्टि से देखता हो तो ऐसी महिला अनेक भवनों की स्वामिनी एवं विपुल संपदा से युक्त होती है।
१०. चतुर्थ भाव का स्वामी सप्तम (केन्द्र) भाव में तथा लग्नेश मंगल (लग्न) में हो, भाग्येश (गुरु स्वगृही होकर नवम भाव में पराक्रमेश से युक्त होकर लग्नेश मंगल को पूर्ण रूपेण देखता हो, सप्तमेश एवं धनेश (शुक्र) दशमेश एवं लग्नेश शनि से युक्त होकर बलवान लग्नेश को पूर्ण रूप देखता हो, पंचमेश सूर्य दशम भाव में दिग्बली होकर स्थित हो तो ऐसे व्यक्ति के पास अनेक मकान एवं विपुल संपदा होती है।
११. षष्ठेश एवं चतुर्थेश में परस्पर संबंध हो अथवा वे एक दूसरे के भाव में स्थित हो तो ऐसे जातक को शत्रु से टक्कर लेकर अथवा जीत कर मुकदमें आदि में विजयी बनने के कारण भूमि प्राप्त होती है।
१२. चतुर्थ भाव में कोई भी शुभ ग्रह या पाप ग्रह हो और सप्तमेश उच्च राशि में हो या सप्तम भाव में शुक्र हो तो ऐसे व्यक्ति को ससुराल से या पत्नी पक्ष से मकान का लाभ होता है।
१३. चतुर्थेश एवं तृतीयेश का संबंध हो और चतुर्थ भाव में मंगल बैठा हो अथवा चतुर्थ भाव को देखता हो ऐसे जातक को भाई से बंटवारा करके मकान की प्राप्ति होती है।
१४. चतुर्थेश, दशमेश एवं सप्तमेश प्रथम (लग्न), चतुर्थ सप्तम, दशम भाव में हो और उनके साथ मंगल हो तो ऐसे जातक के पास व्यापारिक स्थलों में जमीन जायदाद या मकान होते हैं। यदि शनि, मंगल के साथ राहु भी होतो तो काले धंधों के कारण मकान संपदा होती है।
१५. चतुर्थेश एवं दशमेश चन्द्रमा एवं शनि से युक्त हो तो उस जातक के पास आधुनिक डिजाइन एवं साज सज्जा से युक्त घर होता है।
१६. चतुर्थ भाव में मेष, कर्क, तुला, मकर (चर) राशि हो अथवा चतुर्थेश चर राशि में हो तथा उस पर शुभ ग्रह वृहस्पति की दृष्टि या युति हो तो सरकारी भूसंपत्ति होती है।
१७. चतुर्थेश अकेला या किसी शुभ ग्रह से युक्त होकर लग्न, चतुर्थ, सप्तम दशम (केन्द्र) भाव में हो, तब जातक पैतृक जायदाद से भवन का निर्माण करता है।
१८. चतुर्थ भाव का अधिपति त्रिकोण भाव लग्न पंचम नवम भाव में हो तो अपने भाग्य रूपी पुण्य, प्रताप या सरकार सेप्राप्त भूमि पर मकान बनाता है।
१९. चतुर्थेश तीसरे, छठें, आठवें, बारहवें भाव में हों तो अपनी छोड़कर लंबी आयु के बाद अपने बलबूते पर मकान बनाता है।
२०. चतुर्थेश लग्न में हो और लग्न का स्वामी चतुर्थ भाव में हो तो अपने ही धन से रहने योग्य मकान बनाता है।
२१. चतुर्थेश स्थिर राशि या द्विस्वभाव राशि में हो ऐसे जातक के पास स्थायी छुट्टियां बिताने के लिए भवन अस्थायी नौकरी या व्यापार करने के लिए भवन अर्थात् दोनों प्रकार के भवन होंगे।
२२. केन्द्र, त्रिकोण के भावों में जितने अधिकग्रह हों उतने ही भवन या मकान होते हैं।
२३. चतुर्थ भाव में राहु, केतु, शनि आदि ग्रह होते हैं तथा ग्रह बलवान न हों तो आजीवन किराये के मकान में रहता है।
२४. नवमेश चतुर्थ भाव में और चतुर्थेश नवम भाव में बैठा हो अर्थात् परस्पर राशि परिवर्तन करके बैठे हों तो ऐसे व्यक्ति को बिना धन खर्च किये बना बनाया सुन्दर मकान प्राप्त होता है। ऐसा मकान जातक को बारह वर्ष से लेकर बत्तीस वर्ष के बीच में प्राप्त होता है।
२५. चतुर्थेश एवं द्वितीयेश में मैत्री संबंध हो तथा इनमें से कोई भी एक ग्रह केन्द्र या त्रिकोण भाव में रहता हो तो ऐसे व्यक्ति को काफी प्रयास के बाद छोटा-सा मकान बनाने का सुख मिलता है।
२६. चतुर्थ भाव का स्वामी प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, दशम, पंचम, नवम भाव में हो और चतुर्थ भाव में शुभ ग्रहों की युति या स्थिति हो तो ऐसा जातक काफी धन जमा करके मकान बनाता है।
२७. चतुर्थेश एवं दशमेश प्रथम, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम, दशम भाव में युक्त होकर बैठे हों तो सुख-सुविधाओं के साथ युक्त सरकारी कोठी होती है। ख्याति प्राप्त राजनेताओं एवं राजनयिकों को यह सुविधा प्राप्त होती है।
२८. चतुर्थ भाव में शनि पाप पीड़ित होकर बैठा हो तो उसे कष्टदायक, भीड़-भाड़ युक्त गंदे नीले या दूषित पर्यावरण से परिपूर्ण भूमि पर अपने रहने के लिए मकान बनवाना पड़ता है।
३०. चतुर्थेश उच्च राशि, स्वराशि या अपने नवांश में हो तो वाहन नौकर-चाकर तथा सुख-सुविधाओं से युक्त मकान में रहने का सौभाग्य प्राप्त करता है।
गृह संबंधी अशुभ योग
१. चतुर्थेश किन्हीं दो पापी ग्रहों के मध्य हों तो व्यक्ति को कर्ज या संकट के कारण बना बनाया मकान अथवा खरीदी हुयी। जायदाद बेचनी पड़ती है।
२. लाभेश चतुर्थ भाव में हो और चतुर्थ भाव का स्वामी केन्द्र त्रिकोण प्रथम, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, दशम भाव में न हो तो खरीदी हुयी जायदाद भी नहीं रहती।
३. चतुर्थ भाव का स्वामी बारहवें या छठें भाव में होकर पापी ग्रहों से युक्त हो तो ऐसे व्यक्ति की संपत्ति विस्फोट से या भूकंप आदि के कारणों से नष्ट होती है।
४. चतुर्थेश षष्टम भाव में हो तथा चतुर्थ भाव में पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो उसका भवन शत्रु द्वारा हड़प लिया जाता है। 5. चतुर्थ भाव का अधिपति द्वादश भाव में हो या द्वादशेश चतुर्थ भाव में हो तो व्यक्ति अपना बना बनाया मकान गंवा देता है ।
६. सूर्य षष्ठ भाव में हो तो मकान का दरवाजा पश्चिम दिशा में नहीं रखना चाहिए, अन्यथा संतान को कष्ट होगा। व्यापार में बदलाव भी अवश्य होगा।
७. सूर्य सप्तम भाव में हो तो जातक के मकान का आंगन गली की तरफ होगा अथवा आंगन एवं गली के बीच में छोटी दीवार अवश्य होगी। पत्नी को कष्ट भी अवश्य होगा।
८. दशम भाव में सूर्य हो तब जातक अपने मकान का दरवाजा पश्चिम दिशा में न रखे, अन्यथा गृहस्वामी को दिमागी परेशानी होगी।
९. द्वादश भाव में सूर्य हो तो गृहस्वामी मकान में आंगन अवश्य रखे, अन्यथा मानसिक रूप से परेशान होगा।
१०. जन्मकुण्डली में चन्द्रमा द्वितीय भाव में हो तब मकान में कुआं या हैंडपंप न लगाएं।
११. चन्द्रमा एकादश भाव में हो तब जातक शनिवार के दिन मकान बनाना शुरु न करे अथवा नवीन मकान में प्रवेश न करें।
१२. चंद्रमा द्वादश भाव में हो जातक मकान की छत के नीचे कुआं, हैंडपंप आदि न लगवाए।
१३. मंगल अष्टम भाव में हो तो जातक अपने मकान का दरवाजा दक्षिण दिशा में न रखे, अन्यथा घर में विधवाओं का साथ तथा छोटे भाई को कष्ट होगा।
१४. बुध तृतीय भाव में हो तो दरवाजा दक्षिण दिशा की तरफ न रखें। अन्यथा जातक का गला खराब रहेगा, एलर्जी एवं संक्रमण आदि रोग से परेशान रहेगा।
१५. अष्टम भाव में बुध हो तो ऐसे जातक के मकान का दरवाजा दक्षिण दिशा में न रखें।
१६. शुक्र द्वितीय भाव में हो तो गृहस्वामी को मकान के आगे का हिस्सा छोटा तथा पिछला हिस्सा बड़ा बनाना चाहिए। अन्यथा गृहस्वामी को गृहस्थ जीवन में परेशानियां होंगी।
१७. शुक्र तृतीय भाव में हो, तब जातक अपने मकान के दरवाजे की दिशा में परिवर्तन न करे, अन्यथा जातक की स्त्री को कष्ट, भाग्य वृद्धि में रुकावट आदि परेशानियां होंगी।
१८. शुक्र अष्टम भाव में हो तो गृहस्वामी अपने मकान का दरवाजा दक्षिण दिशा में रखे।
१९. शनि लग्न में हो तो गृहस्वामी अपने मकान में बायें हाथ की तरफ अंधेरी कोठरी अर्थात् ऐसा कमरा बनाए जहां प्रकाश न पहुंच सके, अन्यथा जातक को अट्ठारह वर्ष से इक्कीस वर्ष की आयु के मध्य महाकष्ट एवं मानसिक परेशानी रहेगी ।
२०. शनि द्वितीय भाव में हो तो गृह स्वामी को चाहिए कि जैसा मकान है वैसा ही रखें उसमें तोड़-फोड़ न कराए।
२१. शनि तृतीय भाव में हो तो जातक अपने मकान का दरवाजा दक्षिण दिशा में न रखें अन्यथा उसकी पदोन्नति में रुकावट रहेगी।
२२. शनि एकादश भाव में हो तो मकान का दरवाजा दक्षिण दिशा में न रखें अन्यथा आय के साधन कम होते जायेंगे।
२३. शनि द्वादश भाव में हो तो मकान का दरवाजा दक्षिण दिशा में न मकान की पिछली दीवार में रोशनदान, दरवाजे एवं खिड़कियां न रखें और घर से जाते समय दाएं हाथ का कमरा अंधेरे वाला रखें, अन्यथा जातक को स्त्री के तरफ से परेशानी होगी।
२४. केतु लग्न में हो तो मकान में कोई तोड़-फोड़ न कराएं अन्यथा धन की कमी शुरु हो जायेगी।
२५. अष्टम भाव में केतु हो तो गृहस्वामी कुत्ते को छत पर न बांधे, अन्यथा उसकी संतान को कष्ट हो सकता है।
२६. राहु पंचम भाव में हो तो जातक मकान का दरवाजा दक्षिण दिशा में न रखें तता मकान के आगे बिजली का खंभा आदि भी न रखें अन्यथा परिवार में अधिकतर कलह का वातावरण रहेगा।
२७. राहु अष्टम भाव में हो तो मकान का दरवाजा दक्षिण दिशा में न बनाए, तथा दक्षिण दिशा की दीवार पर रसोई घर भी न बनवाएं, वायव्य कोण में रसोई का कमरा उत्तम रहेगा अन्यथा जातक को बहुत कष्ट व परेशानी होगी।
२८. राहु लग्न में हो तो जातक मकान के आंगन में आग न जलाएँ, अन्यथा जातक का कारोबार एवं मन स्थिर नहीं रहेगा।
(उपर्युक्त वर्णित तथ्य कई प्रमाणित पुस्तकों से लिया गया है। इनमें ‘ज्योतिष तत्व’, वृहद वास्तु माला, वास्तु शास्त्र में ज्योतिष के गणितीय सूत्र, आदि प्रमुख है।)
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