vastu, Vastu Housing Finance Corporation vastu chakra vastu shastra vastu chart vastu for home वास्तु टिप्स फॉर होम – TV प्रोग्राम vastu shastra
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के विभिन्न भाग
vastushastri sooraj krishna shastri |
मित्रों ! वास्तु का प्रभाव प्रत्येक मनुष्य पर जिस गृह में वह रहता है, गाँव या शहर में रहता है उसके अनुसार एवं उस व्यक्ति विशेष की कुण्डली के अनुसार भिन्न-भिन्न पड़ता है।
आधुनिक युग में हम अपने गृह का वास्तुशास्त्रानुसार निर्माण करवा पाएँ इसकी संभावना बहुत कम होती है। इसका कारण है कि महानगरों इत्यादि में स्थानाभाव के कारण भूखण्ड का आकार छोटा होता है एवं बहुमंजिला फ्लैट प्रणाली होने के कारण सब कुछ वास्तु के अनुरूप हो, इसकी सम्भावना कम होती है। हर व्यक्ति की आर्थिक स्थिति भी इतनी सुदृढ़ नहीं होती है। अतः विकल्प बहुत सीमित होते हैं फिर भी जहाँ तक प्रयास कर सकें तो भवन को वास्तु-अनुरूप बनाना उत्तम होता है। जिस तरह आयुर्वेद में पंचतत्वों का संतुलन होना आवश्यक है, उसी प्रकार वास्तु में भी स्वस्थ शरीर की भाँति ही सुदृढ़वास्तु का होना एवं पंचतत्व का उनमें ठीक-ठीक संतुलन होना भी आवश्यक है। अतः संक्षिप्त में यहाँ गृह के विभिन्न भागों को कहां, कैसे एवं किस दिशा में रखें इसका वर्णन किया गया है। सर्वप्रथम गृह के द्वार से आरम्भ करते हैं।
गृह का मुख्य द्वार-
पूर्व मुखी भवन में मुख्य द्वार पूर्वोत्तर (ईशान) में बनाना चाहिए। पश्चिम मुखी भवन में उत्तर पश्चिम (वायव्य) में द्वार का निर्माण करना चाहिए। उत्तर मुखी भवन में उत्तर पूर्व (ईशान) में द्वार बनाना चाहिए। दक्षिण मुखी भवन में दक्षिण पूर्व (आग्नेय) में द्वार हो तो उत्तम है। दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य) में किसी भी प्रकार का द्वार निर्माण नहीं करना चाहिए।
मुख्य द्वार भवन के अन्य द्वारों से बड़ा व सुन्दर होना मुख्य द्वार ना तो बहुत बड़ा व ना ही बहुत छोटा होना चाहिए। द्वार के समक्ष कोई पेड़, खम्भा अथवा गड्ढा न हो इस बात का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। दक्षिण एवं पश्चिम मुखी भवन में एक ही प्रवेश द्वार न रखकर पूर्व या उत्तर में भी एक अन्य द्वार रखना चाहिए। मुख्य द्वार पर शुभ मांगलिक चिन्ह अवश्य बनाना चाहिए। द्वार सदा अन्दर की तरफ खुलने वाला बनाना चाहिए। द्वार खोलने व बन्द करने में किसी प्रकार की ध्वनि नहीं होनी चाहिए।
रसोई घर-
रसोईघर सदा पूर्वी आग्नेय में बनाना चाहिए एवं निम्न बातों का अवश्य ध्यान रखना चाहिए । खाना पकाते समय मुख पूर्व को रहे। पीने का पानी, सिंक इत्यादि ईशान में रखें। चूल्हा रसोई गृह में दक्षिण पूर्व में ही रखें। पानी का स्थान एवं चूल्हे के मध्य संभव हो तो कम से कम 7 फुट की दूरी रखें। वायव्य कोण पर भी रसोई घर बनाया जा सकता है परन्तु ईशान व नैऋत्य में कभी नहीं बनाना चाहिए। यदि स्थानाभाव के कारण रसोईगृह में ही पूजा गृह बनाना पड़े तो पूजा स्थल ईशान कोण में बनाना चाहिए। रसोईगृह को खुला एवं हवादार रखना चाहिए। भोजन बनाने के पश्चात बर्तन इत्यादि को चूल्हें पर कभी भी नहीं छोड़ना चाहिए। खाद्य सामग्री (कच्ची ) उत्तर दिशा में रखें। भारी बर्तन एवं सामान इत्यादि रसोई गृह में दक्षिण-पश्चिम भाग में रखना चाहिए।
बैठक (ड्राइंग रूम) -
ड्राइंगरूम को उत्तर-पश्चिम या उत्तर-पूर्व कोण में बनाना चाहिए। पूर्व में भी बना सकते हैं। सोफा एवं फर्नीचर इत्यादि कभी भी पूर्वी या उत्तरी दीवार से सटाकर नहीं रखें। इसे सदा दक्षिण या पश्चिम की दीवार से सटा कर रखना चाहिए।
बैठक के उत्तर-पूर्व का क्षेत्र यथासंभव खुला या खाली रखना चाहिए। कोई मूर्ति इत्यादि यहाँ रख सकते हैं। यहाँ पर व्यर्थ का व अधिक सामान न रखें। सेन्टर टेबल के मध्य में एक फूलदान रखें। जिसमें छोटे-छोटे ताजा फूल यदि रख सकें तो अवश्य रखना चाहिए। टेबल वर्गाकार या आयताकार हो। गृहस्वामी जब भी बैठक में बैठे तो प्रयास रहे कि उसका मुख पूर्व या उत्तर की तरफ ही रहे। ऐसे सजावटी जानवर जिनमें भूसा भरा होता है उसे नहीं रखना चाहिए फिर भी यदि आवश्यक लगे तो वायव्य कोण की तरफ रखें। टी.वी. या टेलीफोन इत्यादि यदि रखना हो तो उसे अग्नि कोण की तरफ रखना चाहिए।
शयनकक्ष-
शयन कक्ष एक ऐसा स्थान है जहाँ व्यक्ति अपनी दिनभर की थकान मिटाकर अपना एक तिहाई समय व्यतीत करता है। मुख्य शयन कक्ष नैऋत्य में ही बनाना चाहिए। इसे अन्य कमरों की अपेक्षा बड़ा, खुला व हवादार रखना चाहिए। शयन के समय सिर दक्षिण को रहे। दरवाजे की ओर पैर सोते समय न रखे। बीम या दुछत्ती के नीचे न सोएं। शयन कक्ष में दर्पण न रखें यदि आवश्यक हो तो इसे सोते समय कपड़े से ढक दें। पूजा का स्थान कभी भी शयन कक्ष में नहीं होना चाहिए। धातु या लोहे की पलंग पर नहीं सोना चाहिए। सोते समय सर की ओर जल रखकर सोना चाहिए। हल्के रंग का प्रकाश रखना चाहिए। टी.वी. टेलीफोन इत्यादि शयन कक्ष में न रखें। ताजा फूलों का चित्र लगाकर रखें। जंगली जानवर, लड़ाई-झगड़े, शिकार इत्यादि के चित्र शयन कक्ष में नहीं लगाने चाहिए। चौड़े पत्ते वाला पौधा शयन कक्ष में रख सकते हैं।
भोजन करने का स्थान (डाइनिंग रूम)-
पश्चिमी भाग में बनाना चाहिए। भोजन करते समय भी अग्नि का यदि गृह में डाइनिंग रूम बनाना हो तो इसे गृह के दर्शन होता रहे इस उद्देश्य से यहाँ एक अगरबत्ती खाते समय जला देना पूर्व या पश्चिम मुख होकर ही भोजन करना चाहिए । (डाइनिंग टेबल पश्चिम दिशा में रखें।) बीम के नीचे बैठकर भोजन नहीं करना चाहिए। शान्त-चित्त होकर भोजन करना चाहिए। चप्पल या जूता पहनकर भोजन करने से बचना चाहिए। बैठकर भोजन करना सबसे उत्तम होता है। अँधेरे, कम रोशनी या टी.वी. देखकर भोजन नहीं करना चाहिए। प्रकाश की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। भोजन खाते समय अखबार या किताब नहीं पढ़ना चाहिए।
बच्चों का कमरा -
बच्चों का कमरा पूर्वोत्तर, पूर्व या उत्तर में रखना चाहिए। इसे खुला, हवादार एवं पूर्व खिड़की होनी चाहिए। कमरे में अधिक सामान नहीं रखना चाहिए। सोते समय बच्चों का सिर पूर्व की ओर रहे। उत्तर-पूर्व में पढ़ाई का टेबल रहे। पढ़ते समय मुख पूर्व में रहे । टेबल पर किताब कापी अव्यवस्थित ढंग से न रहे। मेज को दीवार से सटाकर न रखें। बीम या दुछत्ती के नीचे बैठकर नहीं पढ़ना चाहिए। दीवारों का रंग हल्का पीला या हल्का नीला होना चाहिए। प्रकाश की उचित व्यवस्था रहे। विवाह योग्य कन्या हो तो उसे वायव्य दिशा में सोना चाहिए।
पूजा घर -
पूजा का स्थान भवन के ईशान कोण पर हो एवं इसे खुला, बड़ा व हवादार रखें। पूर्व मुख होकर पूजा करनी चाहिए। पूजा घर रसोई या शौचालय से सटा नहीं होना चाहिए। तहखाने में पूजा नहीं करनी चाहिए। पूजा गृह ऊपर तल पर भी शौचालय नहीं होना चाहिए। रसोई घर भी न हो। वहाँ भारी सामान भी नहीं रखना चाहिए। पूजा कक्ष में अपवित्र वस्तुएं रखना या ले जाना वर्जित है। दक्षिण मुख होकर पूजा नहीं करनी चाहिए। खण्डित मूर्ति न हो। पूर्वजों के चित्र न हों, सौन्दर्य प्रसाधन की वस्तुएँ भी न रखें। धूप अगरबत्ती हवन कुंड इत्यादि अग्निकोण की तरफ रखना चाहिए।
सीढ़ी-
सीढ़ी सदा गृह के अन्दर एवं पीछे की तरफ बनवानी चाहिए। इसे दक्षिण पश्चिम की तरफ रखना चाहिए। उत्तर-पूर्व में
कभी सीढ़ी नहीं बनवाना चाहिए। प्रवेश द्वार के समक्ष घर में घुसते ही सामने गृह के मध्य में भी सीढ़ी न हो। सीढ़ी सदा दायीं ओर को घूमी हुई रहे। एक से दूसरी सीढ़ी के मध्य कम से कम 9 इंच की ऊँचाई होनी चाहिए। सीढ़ियों की संख्या विषम रहे एवं 3 का भाग देने पर 2 शेष न बचे। सीढ़ी के नीचे पूजा गृह या शौचालय न हो। घुमावदार सीढ़ी न हो एवं त्रिकोण से सीढ़ी का आरम्भ न रहे। सीढ़ी के दोनों तरफ हत्था रहे।
स्नानगृह-
आधुनिकतावश आजकल शौचालय व स्नानगृह एक साथ होते हैं जो वास्तु सम्मत नहीं है। परन्तु यदि कोई अलग से स्नानगृह बनाना चाहे तो उसे पूर्व, उत्तर या उत्तर-पूर्व में बनवाना चाहिए। फर्श का ढलान पूर्व की ओर रहे। गीजर स्नानगृह के दक्षिण-पूर्व में रहे।
बाथ टब उत्तर-पूर्व को रखें। दर्पण उत्तर या पूर्व की
दीवार पर रहे। शॉवर ईशान की ओर। स्नानगृह का द्वार पूर्व या उत्तर को रहे। दीवारों की टाइल्स हल्के रंग की हो। पूर्वी या उत्तरी दीवार पर खिड़की अवश्य रहे। यदि इसमें शौचालय भी हो तो उसे पश्चिम या उत्तर-पश्चिम की ओर रखें।
आँगन-
आजकल आँगन रखने की परम्परा प्रायः लुप्त हो गयी है। यह गृह के मध्य का खाली स्थान होता है जिसे ब्रह्म स्थान भी कहते हैं, परन्तु आजकल गृह के आगे या पीछे खुली जगह छोड़ने की प्रथा है इसे ही बरामदा कहते हैं। बरामदे की पूर्वोत्तर में ही बनाना चाहिए। इसे खुला रखें, भारी वस्तु यहाँ न रखें। यहाँ पौधे लगावें एवं इसकी ढलान पूर्व या उत्तर की तरफ रहे। यह प्रयास करना चाहिए कि गृह का मध्य भाग हमेशा हल्का रहे, गंदगी न रहे। ब्रह्म स्थान को चिन्हित करने हेतु वहाँ पर एक कमल का निशान भी बनाया जा सकता है।
बालकनी -
पूर्वी या उत्तरी दिशा में बालकनी बनाना चाहिए। इसकी चौड़ाई 3 फीट से अधिक नहीं रखनी चाहिए। इसकी रेलिंग कमर की ऊँचाई तक ही रहे। उत्तर-पश्चिम में भी बालकनी बनवा सकते हैं परन्तु यदि दक्षिण-पश्चिम में बनाना आवश्यक हो जाए तो इसे छोटा ही बनाना चाहिए।
कोषागार -
कोषागार भवन के उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए। तिजोरी को कभी भी आग्नेय या वायव्य कोण में नहीं रखना चाहिए। कोषागार में तिजोरी सदा दक्षिण-पश्चिम की तरफ ही रखना चाहिए। इस प्रकार रखें कि इसका द्वार सदा उत्तर को खुले। इसे फर्श से कुछ ऊंचा रखना चाहिए।
तहखाना -
भवन के मध्य एवं नैऋत्य में भूलकर भी तहखाना नहीं बनाना चाहिए। इसे भवन के चौधाई भाग में उत्तर या पूर्व की ओर बनाना चाहिए। यहाँ शौचालय न हो। तहखाने में जाने वाली सीढी ईशान की तरफ रखनी चाहिए।
अन्न- भण्डार गृह -
अन्न भण्डारण उत्तर-पश्चिम में सर्वोत्तम है, परन्तु इसे उत्तर में भी बनवा सकते हैं। इस कक्ष का द्वार कभी भी दक्षिण पश्चिम में न रखें। यदि इसमें स्लैब या आल्मारी हो तो दक्षिण या पश्चिम दीवार पर रहे। यहाँ खाली डिब्बा, कन्टेनर इत्यादि नहीं रखना चाहिए। नित्य प्रयोग की वस्तु इस कक्ष के वायव्य कोण में रखना चाहिए। तेल-घी इत्यादि पूर्व दिशा में रहे। पूर्वी दीवार पर माता अन्नपूर्णा या माता लक्ष्मी का चित्र लगाना चाहिए। इस कक्ष के ईशान में पानी से भरा घड़ा रखें, जिसका जल नित्य बदला जाए। यहाँ गैस सिलेन्डर या केरोसिन नहीं रखना चाहिए।
पानी की टंकी-
पानी की टंकी यदि भूमिगत है तो इसे ईशान या उत्तर दिशा में बनवाना चाहिए। आग्नेय व नैऋत्य में भूलकर भी भूमिगत पानी टंकी नहीं बनवाना चाहिए। यदि पानी की टंकी को छत के ऊपर रखना हो तो इसे नैऋत्य या पश्चिम दिशा की तरफ रखना चाहिए। इसे कभी भी ईशान कोण पर नहीं रखना चाहिए।
बाग-बगीचा-
भूखण्ड के पूर्व एवं उत्तर में, दक्षिण व पश्चिम की अपेक्षा अधिक खाली जगह छोड़नी चाहिए। यदि पूर्व या उत्तर में बगीचा लगाना हो तो यहाँ अधिक बड़े वृक्ष कभी नहीं लगाने चाहिए। अपितु दक्षिण व पश्चिम दिशा के बगीचे में बड़े वृक्षों को लगा सकते हैं। बगीचे में काँटेदार पौधा, दूधवाला पौधा नहीं लगाना चाहिए। गुलाब लगा सकते हैं। कैक्टस नहीं लगाना चाहिए।बगीचे में लता वाले पौधे लगाए जा सकते हैं।
बगीचे के ईशान कोण में एक तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए।
COMMENTS