शिवमहापुराण माहात्म्य हिन्दी कथा तृतीय अध्याय

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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शिवमहापुराण माहात्म्य हिन्दी कथा तृतीय अध्याय



बिंदुग ब्राह्मण की कथा


  श्री सूत जी बोले- शौनक! सुनो, मैं तुम्हारे सामने एक अन्य गोपनीय कथा का वर्णन करूंगा, क्योंकि तुम शिव भक्तों में अग्रगण्य व वेदवेत्ताओं में श्रेष्ठ हो। समुद्र के निकटवर्ती प्रदेश में वाष्कल नामक गांव है, जहां वैदिक धर्म से विमुख महापापी मनुष्य रहते हैं। वे सभी दुष्ट हैं एवं उनका मन दूषित विषय भोगों में ही लगा रहता है। वे देवताओं एवं भाग्य पर विश्वास नहीं करते। वे सभी कुटिल वृत्ति वाले हैं। किसानी करते हैं और विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र रखते हैं। वे व्यभिचारी हैं। वे इस बात से पूर्णतः अनजान है कि ज्ञान, वैराग्य तथा सधर्म ही मनुष्य के लिए परम पुरुषार्थ हैं। वे सभी पशुबुद्धि हैं। अन्य समुदाय के लोग भी उन्हीं की तरह बुरे विचार रखने वाले, धर्म से विमुख हैं। वे नित्य कुकर्म में लगे रहते हैं एवं सदा विषयभोगों में डूबे रहते हैं। वहां की स्त्रियां भी बुरे स्वभाव की स्वेच्छाचारिणी, पाप में डूबी, कुटिल सोच वाली और व्यभिचारिणी हैं। वे सभी सद्व्यवहार तथा सदाचार से सर्वथा शून्य है। वहां सिर्फ दुष्टों का निवास है।

" चाष्कल नामक गांव में बिंदुग नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वह अधमी, दुरात्मा एवं महापापी था। उसकी स्त्री बहुत सुंदर थी। उसका नाम चंचुला था वह सदा उत्तम धर्म का  पालन करती थी परंतु बिंदुग वेश्यागामी था। इस तरह कुकर्म करते हुए बहुत समय व्यतीत हो गया। उसकी स्त्री काम से पीड़ित होने पर भी स्वधर्मनाश के भय से क्लेश सहकर भी काफी समय तक धर्म भ्रष्ट नहीं हुई। परंतु आगे चलकर वह भी अपने दुराचारी पति के आचरण से प्रभावित होकर, दुराचारिणी और अपने धर्म से विमुख हो गई।

  इस तरह दुराचार में डूबे हुए उन पति-पत्नी का बहुत सा समय व्यर्थ बीत गया। वेश्यागामी, दूषित बुद्धि वाला वह दुष्ट ब्राह्मण बिंदुग समयानुसार मृत्यु को प्राप्त हो, नरक में चला गया। बहुत दिनों तक नरक के दुखों को भोगकर वह मूढ़ बुद्धि पापी विध्यपर्वत पर भयंकर पिशाच हुआ। इधर, उस दुराचारी बिंदुग के मर जाने पर वह चंचुला नामक स्त्री बहुत समय तक पुत्रों के साथ अपने घर में रहती रही। पति की मृत्यु के बाद वह भी अपने धर्म से गिरकर पर पुरुषों का संग करने लगी थी। सतियां विपत्ति में भी अपने धर्म का पालन करना नहीं छोड़तीं। यही तो तप है। तप कठिन तो होता है, लेकिन इसका फल मीठा होता है। विषयी इस सत्य को नहीं जानता इसीलिए वह विषयों के विषफल का स्वाद लेते हुए भोग करता है। एक दिन दैवयोग से किसी पुण्य पर्व के आने पर वह अपने भाई-बंधुओं के साथ गोकर्ण क्षेत्र में गई उसने तीर्थ के जल में स्नान किया एवं बंधुजनों के साथ यत्र-तत्र घूमने लगी। घूमते-घूमते वह एक देव मंदिर में गई। वहां उसने एक ब्राह्मण के मुख से भगवान शिव की परम पवित्र एवं मंगलकारी कथा सुनी कथावाचक ब्राह्मण कह रहे थे कि 'जो स्त्रियां व्यभिचार करती हैं, वे मरने के बाद जब यमलोक जाती हैं, तब यमराज के दूत उन्हें तरह तरह से यंत्रणा देते हैं। वे उसके कामांगों को तप्त लौह दण्डों से दागते हैं। तप्त लौह के पुरुष से उसका संसर्ग कराते हैं। ये सारे दण्ड इतनी वेदना देने वाले होते हैं कि जीव पुकार पुकार कर कहता है कि अब वह ऐसा नहीं करेगा। लेकिन यमदूत उसे छोड़ते नहीं कर्मों का फल तो सभी को भोगना पड़ता है। देव, ऋषि, मनुष्य सभी इससे बंधे हुए हैं। ब्राह्मण के मुख से यह वैराग्य बढ़ाने वाली कथा सुनकर चंचुला भय से व्याकुल हो गई। कथा समाप्त होने पर सभी लोग वहां चले गए, तब कथा बांचने वाले ब्राह्मण देवता से चंचुला ने कहा- हे ब्राह्मण! धर्म को न जानने के कारण मेरे द्वारा बहुत बड़ा दुराचार हुआ है। स्वामी मेरे ऊपर कृपा कर मेरा उद्धार कीजिए। आपके प्रवचन को सुनकर मुझे इस संसार से वैराग्य हो गया हैं। मुझ मूढ़ चित्तवाली पापिनी को धिक्कार है। मैं निंदा के योग्य हूँ में बुरे विषयों में फंसकर अपने धर्म से विमुख हो गई थी। कौन मुझ जैसी कुमार्ग में मन लगाने वाली पापिनी का साथ देगा? जन्म यमदूत मेरे गले में फंदा डालकर मुझे बांधकर ले जाएंगे और नरक में मेरे शरीर के टुकड़े करेंगे, तब मैं कैसे उन महायातनाओं को सहन कर पाऊंगी? मैं सब प्रकार से नष्ट हो गई हूं, क्योंकि अभी तक में हर तरह से पाप में डूबी रही हूं। हे ब्राह्मण आप मेरे गुरु हैं, आप हूं व ही मेरे माता-पिता है मैं आपकी शरण में आई हूं। मुझे अबला का अब आप ही उद्धार कीजिए। सूत जी कहते हैं- शौनक, इस प्रकार विलाप करती हुई चंचुला ब्राह्मण देवता के चरणों में गिर पड़ी तब ब्राह्मण ने उसे कृपापूर्वक उठाया।

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