जिस व्यक्ति की मृत्यु सन्निकट हो उसे क्या करना चाहिए ? (What should a person whose death is imminent, do?) यह संसार असार है । दुःखरूप एवं व...
जिस व्यक्ति की मृत्यु सन्निकट हो उसे क्या करना चाहिए ? (What should a person whose death is imminent, do?)
असारः खलु संसारः दुःखरूपी विमोहकः ।
यहाँ कोई भी वस्तु टिकाऊ नहीं है , सब मिटाऊ है । (Nothing is permanent here, everything is perishable.)
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युः ।
अर्थात् जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु सुनिश्चित है । जिस प्रकार व्यक्ति अपने फटे-पुराने वस्त्रों को छोड़कर नूतन वस्त्र धारण करता है उसी प्रकार यह आत्मा भी जीर्ण शरीर का परित्याग कर नूतन शरीर में प्रवेश करती है । ( That is, the one who is born is sure to die. Just as a person leaves his old clothes and wears new clothes, similarly this soul also leaves the old body and enters the new body.)
वासांसि जीर्णीनि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-
न्यन्न्यानि संयाति नवानि देही ॥
तो एक न एक दिन इस शरीर को छोड़ना ही पड़ेगा । ( So one day one or the other will have to leave this body.)
जब व्यक्ति का अन्तिम क्षण आता है, तब वह बहोत बेचैन हो जाता है । वह समझ नहीं पाता कि अन्तिम पल में क्या करे ? इस सार्वभौम प्रश्न का उत्तर भगवान स्वयं बताते हैं । उसी गूढ़ प्रश्न का निरूपण हम आगे कर रहे हैं ।(When the last moment of a person comes, then he becomes very restless. He doesn't know what to do at the last moment. The answer to this universal question is given by God Himself. We are going to formulate the same puzzling question next.)
एक बार की बात है कि शतानीक महाराज शौनक मुनि के पास आए । शौनक जी ने उनका स्वागत सत्कार कर आसन पर बैठाया । आसनासीन होने के बाद शतानीक ने शौनक जी से प्रश्न किया कि हे महामुनि शौनक जी !(Once upon a time, Shatanik Maharaj came to Shaunak Muni. Shaunak ji welcomed him and made him sit on the seat. After being seated, Shatanik asked Shaunak ji that O great sage Shaunak ji!)
"सततं किं जपेज्जाप्यं विबुधः किमनुस्मरन् ।
मरणे यज्जपेज्जाप्यं यं च भावमनुस्मरन् ॥"
अर्थात्, निरन्तर किसका जप करें ? , सुधीजन किसका स्मरण करें ?, मृत्यु के समय किस भाव से क्या करे ? शौनक मुनि ने इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए एक संवाद का आश्रय लिया । शौनक जी ने कहा - हे ब्रह्मदेव ! जो प्रश्न आपने किया है वही प्रश्न एक बार महाराज युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह से किया । इस पर भीष्म पितामह जी ने महामुनि नारद और नारायण का संवाद सुनाया ।(That is, who should be chanted continuously? Whom should Sudhijan remember?, What to do at the time of death? To answer these questions, Saunaka Muni took the help of a dialogue. Shaunak ji said - O Brahmadev! Maharaj Yudhishthira once asked the same question you have asked to Bhishma Pitamah. On this Bhishma Pitamah ji narrated the dialogues of Mahamuni Narad and Narayan.)
नारद जी ने नारायण से कहा - हे प्रभु ! क्या जपनीय तथा क्या स्मरणीय है? जिसकी मृत्यु सन्निकट हो वह क्या करे? (Narad ji said to Narayan - O Lord! What is memorable and what is memorable? What should he do if his death is imminent?)
किं च जप्यं जपेन्नित्यं कल्यमुत्थाय मानवः ।
कथं युञ्जन् सदा ध्यायेद् ब्रूहि तत्त्वं सनातनम् ॥
भगवान कहते हैं कि "हे नारद ! मैं तुम्हें यह दिव्य अनुस्मृति प्रदान करता हूँ जिसे जानकर कोई भी व्यक्ति मृत्यु के भयंकर क्षण को पार कर मेरे परमपद का अधिकारी हो जाएगा ।"(The Lord says that "O Narada! I bestow upon you this divine remembrance, knowing which one will be able to pass through the dreadful moment of death and become worthy of my supreme abode.")
"हन्त ते कथयिष्यामि इमां दिव्यामनुस्मृतिम् ।
यामधीत्य प्रयाणे तु मद्भावायोपपद्यते ॥"
हे नारद ! जिस व्यक्ति की मृत्यु सन्निकट हो उसे मन को एकाग्र कर लेना चाहिए । मन को एकाग्र करने के लिए प्राणायामपूर्वक "ॐकार" का उच्चारण करना चाहिए । जब मन एकाग्र हो जाए तो मेरा स्मरण करते हुए "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" इस द्वादशाक्षर मन्त्र का निरन्तर जप करे। ऐसा करने से निश्चय ही वह व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से छूटकर मुक्त हो जाएगा ।( O Narada! The person whose death is imminent, he should concentrate his mind. To concentrate the mind, one should chant "Omkar" with Pranayama. When the mind becomes concentrated, remembering Me, chant this Dwadashakshar mantra continuously. By doing this, surely that person will be freed from the cycle of birth and death.)
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