Hai naman unko ki jinke saamne bauna himalaya by Dr. Kumar Vishwas

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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poem of kumar vishwas
kummar vishwas poem
   
है नमन उनको कि जो देह को अमरत्व देकर

इस जगत में शौर्य की जीवित कहानी हो गये हैं

है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय


जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये हैं

पिता जिनके रक्त ने उज्जवल किया कुलवंश माथा

मां वही जो दूध से इस देश की रज तौल आई

बहन जिसने सावनों में हर लिया पतझर स्वयं ही

हाथ ना उलझें कलाई से जो राखी खोल लाई

बेटियां जो लोरियों में भी प्रभाती सुन रहीं थीं

पिता तुम पर गर्व है चुपचाप जाकर बोल आये

है नमन उस देहरी को जहां तुम खेले कन्हैया

घर तुम्हारे परम तप की राजधानी हो गये हैं

है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय


हमने लौटाये सिकन्दर सर झुकाए मात खाए

हमसे भिड़ते हैं वो जिनका मन धरा से भर गया है

नर्क में तुम पूछना अपने बुजुर्गों से कभी भी

उनके माथे पर हमारी ठोकरों का ही बयां है

सिंह के दाँतों से गिनती सीखने वालों के आगे

शीश देने की कला में क्या अजब है क्या नया है

जूझना यमराज से आदत पुरानी है हमारी

उत्तरों की खोज में फिर एक नचिकेता गया है

है नमन उनको कि जिनकी अग्नि से हारा प्रभंजन

काल कौतुक जिनके आगे पानी पानी हो गये हैं ॥

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