भाषाविज्ञान एवं व्याकरण का सम्बन्ध

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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पिछली पोस्ट में हम सबने  भाषा उत्पत्ति के अन्य सिद्धान्त विषय पर चर्चा की । अब हम सब देखेंगे -

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LANGUAGE SCIENCE


1. भाषिक सम्बन्ध

व्याकरण का सम्बन्ध भाषाविशेष से होता है तथा भाषाविज्ञान का सम्बन्ध भाषामात्र से होता है। इसी कारण भाषाविज्ञान के नियम व्यापक और स्थायी होते हैं। व्याकरण का सम्बन्ध भाषाविशेष अर्थात् एक भाषा से होने के कारण व्याकरण का क्षेत्र सीमित है। भाषाविज्ञान का सम्बन्ध अनेक भाषाओं से होने के कारण भाषाविज्ञान का क्षेत्र व्यापक है।

2.  कालिक सम्बन्ध

व्याकरण कालविशिष्ट एवं देशविशिष्ट होता है। भाषाविज्ञान सार्वकालिक व सार्वदेशिक है। व्याकरण का सम्बन्ध किसी कालविशेष एवं देशविशेष की किसी विशिष्ट भाषा से होता है। भाषाविज्ञान का सम्बन्ध सभी देशों और सभी कालों की सभी भाषाओं से होता है। व्याकरण एककालिक भाषा के स्वरूप का अध्ययन करता है और वर्तमान के प्रसङ्ग में उसकी व्याख्या करता है। जबकि भाषाविज्ञान अतीत और वर्तमान दोनों भाषास्वरूपों का अध्ययन करता है। ऐतिहासिक भाषाविज्ञान प्रत्येक भाषा के उद्गम और विकास का इतिहास प्रस्तुत करता है।

3.आङ्गिक सम्बन्ध

 भाषाविज्ञान अङ्गी है व्याकरण उसका अङ्ग है। भाषा विज्ञान में व्याकरण भी सम्मिलित है, जबकि व्याकरण में भाषाविज्ञान सम्मिलित नहीं हैं। अतः भाषाविज्ञान को. 'व्याकरण का व्याकरण' भी कहा जाता है।

4.सैद्धान्तिक सम्बन्ध

 व्याकरण विवरणात्मक या वर्णनात्मक होता है, किन्तु भाषाविज्ञान व्याख्यात्मक और विश्लेषणात्मक है।भाषाविज्ञान भाषा सम्बन्धी नियमों और परिवर्तनों में कार्यकारणभाव स्थापित करने का प्रयास करता है।

5. वैषयिक सम्बन्ध

भाषाविज्ञान विज्ञान है और व्याकरण शास्त्र व्याकरण निष्पन्नरूप (सिद्धरूप) के प्रकृति और प्रत्यय का विवेचन करता है । उसके उच्चारण और लेखन की शिक्षा देता है तथा साधु शब्द के प्रयोग का आदेश देता है। व्याकरण भाषा के तात्कालिक स्वरूप और नियमों से सम्बद्ध है, किन्तु वह यह नहीं बता सकता कि कोई रूप क्यों, कैसे और कब बना? वह केवल भाषा-सम्बन्धी क्या (किम्) का उत्तर दे सकता है, क्यों (कथम्) का नहीं। इसीलिए व्याकरण को विवरणात्मक या वर्णनात्मक माना जाता है क्योंकि उसका काम केवल विवरण या वर्णन प्रस्तुत कर देना है। दूसरे शब्दों में इसे यों कह सकते हैं कि व्याकरण भाषा के निष्पन्नस्वरूप का वर्णन कर विरत (अलग) हो जाता है, किन्तु भाषाविज्ञान इससे आगे जाकर उसका कारण भी बताता है। इस प्रकार भाषाविज्ञान भाषा सम्बन्धी क्यों' या 'कथम्' का उत्तर देता है । अतः भाषाविज्ञान को व्याख्यात्मक व विश्लेषणात्मक माना गया है।जिस तरह भाषा के नियमों के ज्ञान हेतु व्याकरण की आवश्यकता है, उसी तरह व्याकरण के नियमों की जानकारी के लिए व व्याख्या के लिए भाषाविज्ञान की आवश्यकता है। उदाहरणार्थ संस्कृत में नकारान्त 'करिन्' शब्द का तृतीया विभक्ति एकवचन में रूप बनता है 'करिणा', किन्तु इकारान्त 'हरि शब्द से 'हरिणा' क्यों बना? इसका उत्तर व्याकरण नहीं प्रत्युत भाषाविज्ञान देता है। मानव का यह स्वभाव है कि वह एक वस्तु की तुलना ' सादृश्य' के आधार पर दूसरी वस्तु से करता है इसी कारण 'करिणा' के सादृश्य पर 'हरिणा' का भी प्रयोग होने लगा। हिन्दी व्याकरण क अनुसार 'आय' शब्द स्त्रीलिङ्ग है पर व्याकरण यह नहीं बताता कि एक ही धातु और प्रत्यय से निष्पन्न ' आय' शब्द स्त्रीलिङ्ग क्यों हो गया? जबकि 'व्यय' पुल्लिंग है। इसका समाधान भाषाविज्ञान करता है। 'आय' शब्द के लिङ्ग पर फारसी के ' आमद' शब्द का प्रभाव है, जो स्त्रीलिङ्ग है। 'आमद' का स्त्रीलिङ्ग में प्रयोग करने वाली जुबान ने जब 'आय' का प्रयोग करना शुरू किया तो पूर्वसंस्कार से उसको भी स्त्रीलिङ्ग बना डाला, यद्यपि प्रकृति प्रत्यक्ष की दृष्टि से उसे पुल्लिङ्ग ही होना चाहिए, जैसे- समय, उदय, अन्वय, अव्यय, प्रत्यय, उपाय आदि शब्दों में देखा जाता है। इसी प्रकार हिन्दी व्याकरण 'पुस्तक' शब्द को स्त्रीलिङ्ग कह देता है पर उसका कारण नहीं बताता। संस्कृत के नपुंसकलिङ्ग 'पुस्तक' शब्द का हिन्दी में सामान्यतः 'पुल्लिङ्ग में प्रयोग होना चाहिए था, किन्तु अरबी की किताब' के प्रभावस्वरूप 'पुस्तक' शब्द का स्त्रीलिङ्ग में व्यवहार होने लगा। यही कारण है कि भाषाविज्ञान को व्याकरण का व्याकरण कहते हैं अर्थात् वह व्याकरण द्वारा निर्दिष्ट नियमों का सकारण विवेचन करता है।

6. रूढ़िगत सम्बन्ध

 व्याकरण रूढ़िवादी होता है, भाषा विज्ञान प्रगतिवादी व्याकरण की दृष्टि में किसी भी शब्द को केवल व्याकरण-निष्पन्न रूप में ही सदा प्रयुक्त किया जाना चाहिए, अन्यथा वह अशुद्ध माना जायेगा। भाषाविज्ञान की दृष्टि में ऐसे अशुद्ध शब्द अपने पूर्ववर्ती शब्दों का विकास है। जैसे- संस्कृत व्याकरण के अनुसार केवल 'सर्व' शब्द हो शुद्ध है 'सब्ब' और 'सब' अशुद्ध है, किन्तु भाषाविज्ञान की दृष्टि में ये सब्ब' और 'सब''सर्व' के ही विकसित रूप हैं।

7. व्यावहारिक सम्बन्ध

व्याकरण परिष्कृत भाषा को ही अपनाता है, किन्तु भाषाविज्ञान व्याकरण से असि या अशुद्ध प्राकृत, अपभ्रंश एवं ग्राम्य जनों द्वारा व्यवहृत भाषा एवं असभ्य जंगली मनुष्यों क बोली को भी भाषा की अंमूल्य निधि मानता है। भाषाविज्ञान में भाषा की प्रगति और प्रवृति के अध्ययन के लिए तथा भाषावैज्ञानिक विश्लेषणात्मक अध्ययन के लिए सभी साहित्यिक भाषाओं की अपेक्षा ग्रामीण भाषा एवं बोलचाल की भाषा अधिक उपादेय मानी जाती है।

8. वस्तुगत सम्बन्ध

 भाषाविज्ञान एवं व्याकरण की विषयसामग्री एवं विवेचन विषय में भी अन्तर व्याकरण के मुख्य विषय है- शब्दरूप साधन, वाक्यविन्यास एवं वाक्यप्रयोग शिक्षण । भाषाविज्ञान में ध्वनिविज्ञान, अर्थविज्ञान, भाषा के ऐतिहासिक विकास का अध्ययन विभिन्न भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन, लिपि, कोशविज्ञान आदि का समावेश है।

9. अनुगामिक सम्बन्ध

व्याकरण भाषाविज्ञान का अनुगामी है। भाषाविज्ञान द्वारा बनाये गए निर्देशक तत्त्वों काअनुसरण व्याकरण को करना पड़ता है। कालानुक्रम एवं विकास के अनुसार प्रचलित के प्रयोग को भाषाविज्ञान शुद्ध मानता है। अतएव भाषाविज्ञान की दृष्टि में सत्य> सच्च> सच, घृत>घी, जगत्> जग, उपाध्याय >ओझा> झा, सन्ध्या> साँझ आदि शब्द विकसित होने के कारण साधु शब्द है। परवर्ती भाषाओं का व्याकरण इन्हें शुद्ध रूप मानकर व्याख्या करता है।

भाषाविज्ञान और व्याकरण में समानताएँ-

 व्याकरण और भाषाविज्ञान में उपयुक्त विषमताओं के बावजूद कतिपय समानताएँ भी है-

 1. अध्ययन की समानता

व्याकरण  और भाषाविज्ञान दोनों का भाषा के अध्ययन से साक्षात् सम्बन्ध है।

2. विवेचन की समानता

 व्याकरण और भाषाविज्ञान दोनों भाषा के सूक्ष्मतम अंश का प्रतिपादन करते हैं।

 3. शुद्धिकरण की समानता

भाषा का परिष्कार और यथार्थज्ञान दोनों का लक्ष्य है। 


4. लक्ष्य की समानता

भाषा का सर्वाङ्गीण विवेचन दोनों का उद्देश्य है।


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